Bhadukada - 13 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 13

Featured Books
Categories
Share

भदूकड़ा - 13

कुन्ती का चेहरा पीला पड़ गया. उसे मालूम ही नहीं था, कि सुमित्रा रमा को बता के सामान लाती है उनके लिये!! पहले सुमित्रा और अब बड़के दादा शर्मिन्दगी से गर्दन झुकाए थे. बस एक वाक्य निकला उनके मुंह से-

’हमें माफ़ कर देना छोटी बहू....’

सुमित्रा के लिये तो जैसे तारणहार बन के आई थी रमा! स्नेह तो पहले ही बहुत था दोनों के बीच, अब ये डोर और मजबूत हो गयी. उधर मामला उलट जाने से कुन्ती की रातों की नींद हराम हो गयी. बड़े दादाजी ने कुन्ती से बस इतना कहा था कि-’ अभी जो हुआ सो हुआ, अब आगे न हो, इस बात का ध्यान रखना बड़ी.’ लेकिन कहां ध्यान रख पाई थी कुन्ती? उसका मन तो अब नयी गुड़तान में लगा था कि कैसे बहुत जल्दी ही सुमित्रा को नीचा दिखाये. कैसे इस हार का बदला ले! उधर बड़े दादाजी ने उसी दिन अपने छोटे भाई, यानी तिवारी जी को पत्र लिख दिया कि-

’छोटे, आ के छोटी बहू को ले जाओ, तुरन्त.’

तिवारी जी परेशान! बड़े दादा ऐसे लिख रहे! क्या किया होगा सुमित्रा ने? बड़े घर की लड़की है, पढ़ी-लिखी है, क्या जाने कुछ बोल-बाल दी हो!! अगर ऐसा हुआ तो कैसे सामना करेंगे बड़े दादा का? छोटा भाई, जिसने बचपन से केवल बड़े दादा को ही देखा था, मां-बाप, भाई हर रूप में, पता नहीं क्या-क्या सोच गये. पत्र मिलने के अगले दिन सबेरे ही चल दिये ग्वालियर से. हिचकते, सकुचाते तिवारी जी घर के पास पहुंचे तो बड़े दादा बाहर चबूतरे पर बैठे नज़र आये. तिवारी जी नज़रें झुकाये पहुंचे, कि जाने अब क्या विस्फोट हो. उधर बड़े दादा तिवारी जी से नज़रें चुरा रहे थे, जिसे तिवारी जी ने कुछ-कुछ महसूस किया. अगर सुमित्रा ने कोई गलती की होती तो बड़े दादा की आंखों से अंगारे बरस रहे होते.

’ का हो गओ दादा? इत्तौ अर्जेंट बुलउआ.... सब ठीक तौ है? कौनऊं ग़लती हो गयी होय, तौ माफ़ करियो, छोटो जान के.’ किसी प्रकार हिम्मत जुटा के बोले तिवारी जी.

उधर इतना सुनते ही, इतने सख्त दिखाई देने वाले बड़े दादा, भरभरा के रो पड़े. तिवारी जी इस औचक रुलाई के लिये बिल्कुल तैयार न थे।

’दादी...... कब से ढूंढ रहां हूं आपको. आज लूडो नहीं खेलेंगीं क्या?’
चन्ना की आवाज़ पर चौंक सी गयीं सुमित्रा जी. देखा हाथ में अब तक वही गरुड़, यानी पूजा की घंटी लिये बैठी हैं, धीरे-धीरे बजाती हुईं.
’येल्लो दादी! अब तक आप भजन ही कर रहीं? अरे उठिये न प्लीज़..... मैने पूरा गेम सजा लिया है, बस आपको वहां तक चलना है. सुमित्रा जी के हाथ से घंटी छुड़ा के भगवान के पास रखते हुए चन्ना ने उनका हाथ पकड़ के उठाने की कोशिश की. भारी शरीर की सुमित्रा जी काहे को उठ पातीं छह साल के चन्ना से? चन्ना के साथ बैठीं सुमित्रा जी, चन्ना में अज्जू को देख रही थीं..... अज्जू, जब एक साल का रहा होगा, तब गरुड़ में दूध भर के पीने की ज़िद पकड़ बैठा. उधर चक्की पर अनाज पीसने की बारी अब सुमित्रा जी की ही थी, तो वे भी हड़बड़ी में थीं, कि अज्जू जल्दी से दूध पी ले, तो वे काम पर लगें. लेकिन इधर उन्होनें कटोरी से दूध गरुड़ में डाला, उधर कुन्ती प्रकट हो गयी!
( क्रमशः)