Satya - 33 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 33

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सत्या - 33

सत्या 33

“दादी, कैसी हैं?” कहते हुए रोहन कमरे में आ गया. रोहन इंजीनियरिंग की फाईनल परीक्षा देकर घर आया हुआ था.

दादी बैठी टी. वी. पर कार्यक्रमों के चैनल बदल-बदल कर देख रही थीं. उन्होंने टी. वी. पर से नज़रें हटाए बिना कहा, “आओ बेटा.”

“दादी, हम चाचा की आलमारी से कोई उपन्यास लेने आए थे. ले लें?”

“ले ले ना, तुझे पूछने की क्या ज़रूरत है? एक काम कर, तू यहीं बैठकर पढ़. हमको मीरा से कुछ काम है. हम उसी के पास जा रहे हैं.”

माँ उठकर चली गईं. रोहन ने आलमारी खोली. एक दो किताबें निकाली. देखकर वापस रख दी. और भी अंदर हाथ डालकर खोजा और सहसा रुककर ग़ौर से देखते हुए हाथ बाहर निकाला. हाथ में आए चेन और ताले को देखते ही वह मुस्कुराया और उसके मुँह से निकला, “मेरे बचपन के इस खिलौने को चाचा ने कितना संभाल कर रखा है.”

उसने फिर से अंदर हाथ डाला. इस बार एक पूरानी फोटो एलबम निकली. वह पन्ने पलट कर पुरानी तस्वीरों को देखने लगा. सत्या के बचपन और जवानी के दिनों की कई फोटुएँ लगी हुई थीं. एक फोटो को देखकर वह ठहर गया और उसे एलबम से निकालकर करीब से देखने लगा. यह सत्या की जवानी के दिनों की फोटो थी. फोटो में अपनी साईकिल की हैंडल पकड़े वह शान से खड़ा था..... और साईकिल की सीट के नीचे लटका हुआ था ................वही चेन और ताला.

रोहन ने अपने बचपन के खिलौने को फोटो की चेन और ताले से मिलाकर देखा. दोनों हू-ब-हू मिलते थे. रोहन बड़बड़ाने लगा, “हमको याद आ रहा है कि चाचा से मेरी पहली मुलाकात उसी दिन हुई थी, जिस दिन मेरे पापा मरे थे. हमको यह चेन और ताला पापा की शरीर के पास ही मिला था, जिसे हमने लॉकेट की तरह गले में डाल लिया था. उस दिन चाचा ने हमसे यह लॉकेट खरीदना चाहा था. क्यों? इस चेन और ताले, मेरे पापा और चाचा के बीच क्या कोई कनेक्शन है?”

वह फिर से एक बार आलमारी के अंदर देर तक चीजों को उथल-पुथल करता रहा. अंत में उसके हाथ कुछ लगा. उसने हाथ बाहर निकाला. उसके हाथ में एक चाभी थी. रोहन की आँखें चौड़ी हो गईं, साँसें तेज, माथे पर पसीने की बूँदें. कांपते हाथों से उसने ताले में चाभी डाली. घुमाई. ताला खुल गया. रोहन पसीने से नहा चुका था. उसका चेहरा तमतमाने लगा. बाहर स्कूटर की आवाज़ पर वह मुड़कर दरवाज़े की ओर देखने लगा. उसके मुँह से एक गुर्राहट निकली, “13 नवंबर, मेरे पापा की मृत्यु हुई. अगले दिन चाचा हमारी ज़िंदगी में न जाने कहाँ से चले आए. 13 नवंबर, यही लिखा रहता था उनके आईने के ऊपर चिपके कागज़ पर. ओह, तो ये बात है.”

मीरा और सत्या की माँ घर के बाहर खड़ी बातें कर रही थीं कि सत्या की स्कूटर आकर रुकी. संजय साथ था. सत्या ने सकूटर स्टैंड किया और माँ से कहा, “माँ, संजय तुम्हें अपने घर पर इन्वाईट करने के लिए आया है.”

तभी पीछे से रोहन की गरज़ती हुई आवाज़ आई, “माँ......”

सबलोग चौंक कर रोहन को देखने लगे. रोहन लाल-लाल आँखें किए चिल्लाया, “मेरे पापा गिरकर नहीं मरे थे.....उनकी हत्या हुई थी, हत्या. और जानती हो किसने की थी हत्या?....”

वह आग्नेय नेत्रों से सत्या को घूरने लगा. सबके चेहरों पर आश्चर्य के भाव थे. मीरा ने कहा, “ये क्या कह रहा है तू?”

रोहन ने चेन और ताला निकालकर सामने लहराया. आँखें गुस्से से सुर्ख लाल. उसने चाभी से ताला खोलकर दिखाया. फिर सत्या से पूछा, “आपका क्या कहना है, मिस्टर सत्यजीत पाल साहब? सच बताएँगे हमें?”

मीरा ने ज़ोर से डपटा, “रोहन, ऐसे बात करते हैँ अपने चाचा से?”

“माँ, इस आदमी के पास उस ताले की चाभी है जो हमको पापा के पास पड़ा मिला था. ये चेन और ताला इसीका है. देखो, इस फोटो में साफ दिख रहा है.”

लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. भीड़ में कौतूहल था. सत्या एक अपराधी की तरह सिर झुकाए खड़ा था. रोहन ने आगे कहा, “मेरे पापा के सिर पर चोट इस ताले के प्रहार से लगी. पत्थर पर गिरने से नहीं. इसी आदमी ने मेरे पापा का कत्ल किया है. याद है वो तारीख जो इसने अपने आईने पर लिख कर चिपकाया था? 13 नवंबर. 13 नवंबर वही तारीख है जिस दिन मेरे पापा की मौत हुई थी. इसीने मेरे पापा को मारा है. इसी ने मारा है. पूछो इससे. ये चुप क्यों है? हे भगवान, मेरे बाप का हत्यारा हमारे ही साथ रह रहा था,” रोहन हिस्टीरियाई अंदाज़ में चीखने लगा.

अब संजय से नहीं रहा गया. उसने भी ऊँची आवाज़ में जवाब दिया, “सुनो, हम

बताते हैं कि क्या हुआ था. ख़ामोशी से सुनो. तुम जो सोच रहे हो, सच्चाई दरअसल कुछ और है.”

लोगों की जिज्ञासू आँखों की तरफ देखकर उसने बताया, “सच ये है कि सत्या उस दिन मेरे घर से काफी रात गए अपने घर लौट रहा था. बस्ती के बाहर गोपी ने नशे की हालत में चाकू के बल पर सत्या की साईकिल छीन ली. इसने अपनी साईकिल वापस पाने के लिए उसपर प्रहार किया और साईकिल लेकर चला गया. दूसरी सुबह पता चला कि गोपी की मृत्यु हो गई है.”

“सरासर झूठ है यह. मेरे पापा चाकू लेकर साईकिल क्यों छीनेंगे? क्यों माँ, मेरे पापा क्या पियक्कड़ और उठाईगीर थे?”

संजय ने ज़ोर देकर कहा, “बात बिस्कुल सच है. गोपी नशे की हालत में था और उसने चाकू दिखाकर सत्या से उसकी साईकिल छीन ली थी.”

अब रमेश ने भी हामी भरी, “साहब ठीक बोल रहे हैं. गोपी पिए हुए था और हमसे चाकू लेकर गया था. अपने पुराने सेठ को धमकाने, जिसके पास उसका दो हज़ार रुपया बकाया था. लेकिन रास्ते में वह सत्या बाबू से उलझ गया था? ये बात हम नहीं जानते हैं.”

संजय ने घटना को विस्तार से समझाया, “असल में ग़लती से सत्या बाबू की साईकिल से उसको धक्का लग गया था. इसलिए उसने गुस्से में उनकी साईकिल छीन ली. नशे में था और उसे तुमलोगों के स्कूल की फीस देने के लिए पैसों की सख़्त ज़रूरत थी. नशे में आदमी का दिमाग ठीक से कहाँ काम करता है? उसने सोचा होगा साईकिल बेचकर स्कूल की फीस जमा हो जाएगी.”

“साईकिल छीनने की कोशिश करने पर जान ही ले लेंगे, यह कहाँ का इंसाफ है?” रोहन का गुस्सा कम नहीं हुआ था.

“गोपी की जान ग़लती से चली गई. उसने जान लेने के इरादे से उसे नहीं मारा था. लेकिन जब जान चली ही गई तो सत्या क्या करता? पुलिस में सरेंडर कर देता? जेल चला जाता? और तुमलोगों को क्या मिलता?.... तुमलोग ख़ुद देखो, वह तुम्हारे परिवार को संभालने यहाँ बस्ती में आ गया. ख़ुद शादी नहीं की. तुम दोनों बच्चों और मीरा को पैरों पर खड़ा करने में अपनी ज़िंदगी निकाल दी. अगर उसके हाथ से हत्या हो ही गई तो उसकी सज़ा भी तो उसने भुगत ली,” संजय ने दलील दी.

“मेरे पापा का कातिल इतने सालों तक ख़ामख्वाह मेरा बाप बना रहा. ... आप लोग

बोल दीजिए इससे कि हमारी ज़िंदगी से चला जाए. और ज़्यादा हमपर अहसान करने की ज़रूरत नहीं है,” कहकर रोहन तेजी से वहाँ से चला गया.

सत्या सिर को झुकाए ख़ामोश खड़ा रहा. चेहरे पर असीम पीड़ा के भाव. रमेश ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला, “रोहन चाहे कुछ भी बोले. हम तो बोलेंगे सत्या बाबू के आने से बस्ती का भाग बदल गया.”

मुखिया ने भी सत्या को समझाने की कोशिश की, “आप रोहन का बात का बुरा मत मानिए. बाप का दुख में पागल हो गया है. हमलोग समझाएँगे उसको. उसका गुस्सा थोड़ा शांत होने दीजिए. आप हमारा बस्ती का उद्धारकर्ता हैं. आप ये बस्ती छोड़कर कहीं मत जाईये.”

अचानक मीरा के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ आने लगी. सबलोगों का ध्यान अब उसकी तरफ गया. सविता और गोमती उसको संभालने की कोशिश करने लगीं. वह रुँधे घले से विलाप करती हुई कह रही थी, “आज तक हम यही सोचकर अपने आप को कोसते रहे कि हमारे ही कारण गोपी ने जान दी,” उसने रोना जारी रखा.

थोड़ी देर बाद जब शांत हुई तो सत्या के पास आकर बोली, “हम हाथ जोड़कर रोहन के लिए आपसे माफी माँगते हैं सत्या बाबू. आपने जितना हमलोगों के लिए किया है, वो कोई अपना भी नहीं करता. आपके अपराध-बोध के कारण आपने अपनी पूरी ज़िंदगी हमलोगों को संभालने में लगा दी. अब आपसे प्रार्थना है कि हम लोगों को छोड़कर ज़िंदगी में आगे बढ़िये. अपने अपराध-बोध से मुक्त हो जाइये. जाईये सत्या बाबू, अबसे हमारी नहीं अपनी ज़िंदगी जीना शुरू कीजिए. जाईये सत्या बाबू, जाईये.”

इतना कहकर मीरा बेहोश होकर ज़मीन पर लुढ़क गई. औरतें उसे संभालने में लग गईं. सत्या ने कातर दृष्टि से मीरा को देखा और बुझे मन से धीरे-धीरे कदम रखता हुआ अपने घर के अंदर चला गया. सत्या के पीछे-पीछे संजय सुबकती हुई माँ को सहारा देकर घर के अंदर ले गया.

दूसरे ही दिन सत्या माँ को लेकर अपने सरकारी आवास पर चला गया.