Satya - 30 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 30

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सत्या - 30

सत्या 30

लेकिन अपनी पहली सैलरी स्लिप मीरा ने सत्या के हाथ में दी. सत्या ने फिर उस दिन मिठाईयाँ मंगाई और सबने खुशी-खुशी खाई. रोहन की दसवीं और खुशी की बारहवीं की परीक्षा सर पर थी, इसलिए घर बदलने का विचार फिलहाल के लिए टाल दिया गया.

मीरा ने ज़िद करके घर का खर्च खुद उठाना चाहा. लेकिन सत्या मानने को तैयार नहीं था. अंत में यही फैसला हुआ कि मीरा राशन मंगाएगी. सत्या शेष खर्च उठाएगा. रोहन की पढ़ाई का खर्च मीरा करेगी और खुशी का सत्या. बच्चों की आगे की पढ़ाई के लिए बचत के ख़्याल से मीरा की सैलरी एकाउंट से सत्या ने एक आर. डी. एकाउंट लिंक कराई.

खुशी ने फिर अच्छे नंबर हाँसिल किए. रोहन किसी तरह बहत्तर प्रतिशत अंक के साथ पास हो गया. खुशी को ग्रैजुएशन के लिए सत्या कलकत्ता भेजना चाहता था. लेकिन खुशी ने मना कर दिया. बोली, “मेरे रिज़ल्ट की चिंता न करें. ग्रैजुएशन तो हम इसी शहर से करेंगे और फिर शहर के ही ज़ेवियर इन्सटिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एम. बी. ए.”

सत्या ने रोहन से पूछा, “तुम्हारा क्या प्लान है?”

उसने कहा, “हम तो इन्जीनियरिंग करेंगे.”

इतनी प्लानिंग के बाद भी रोहन का घर बदलने का विचार नहीं बदला. मीरा ने बहुत समझाया कि आगे की पढ़ाई के लिए पैसे बचाने पड़ेंगे. बेवज़ह अलग घर लेकर खर्च बढ़ाना उचित नहीं होगा. लेकिन वो कब मानने वाला था. पैसे की बात पर उसने कहा, “आप मेरी पढ़ाई की चिंता मत कीजिए. हम मेरिट लिस्ट में आ जाएँगे. सरकारी इन्जीनियरिंग कॉलेज में बस नाम-मात्र का खर्च आएगा.”

भाग्य से ठीक सामने वाला घर किराए पर मिल गया. महीने का दो हज़ार रुपया किराया और बिजली पानी का खर्च अलग से घर के बजट में जुट गया. फिर एक दिन इन्जीनियरिंग प्रवेष परीक्षा की तैयारी का खर्च भी जुट गया. मीरा सत्या का कर्ज़ कैसे चुका पाएगी, यह सोचकर दुखी थी. सत्या ने बेफिक्री से कहा, “एक बार बच्चे पैरों पर खड़े हो जाएँ, बस. इसके बाद आपका अपना खर्च ही क्या रह जाएगा?”

घर तो बदल गया. मगर मीरा का दिल नहीं माना. नए घर में जाने से पहले उसने एक शर्त रखी थी कि सत्या की शादी होने तक उसके खान-पान और घर की देख-भाल की ज़िम्मेदारी वह खुद उठाएगी.

सत्या ने टालते हुए कहा कि वह गाँव से अपनी माँ को ले आएगा. लेकिन मीरा का फैसला नहीं बदला. उसने अपना निर्णय सुना दिया, “माँ को आप ज़रूर ले आईये. मगर जबतक आप ब्याह नहीं कर लेते, आप दोनों की सेवा का जिम्मा मेरा ही रहेगा.”

सविता ने भी उसके इस निर्णय में अपनी सहमति दे दी. सत्या अकेला पड़ गया था. संजय की सहायता माँगता तो वह जानता था, वह भी इन्हीं के साथ खड़ा हो जाता. सो सत्या ने हथियार डाल दिए.

एक दिन सत्या के घर के आगे एक ऑटोरिक्शा आकर रुकी. सत्या नीचे उतरा और उसने सहारा देकर एक महिला को उतारा. दो पेटियाँ एक टोकरी, दो झोले और बिस्तर का एक रोल नीचे उतार कर सत्या ऑटो वाले को पैसे देने लगा. आहट सुनकर मीरा सामने के अपने घर से बाहर निकलकर दौड़ी. पीछे-पीछे खुशी भी थी. दोनों ने बारी-बारी महिला के पैर छूए.

सत्या ने परिचय कराया, “ये मीरा है माँ, और ये है खुशी.”

मीरा ने आगवानी की, “आइये माँ. खुशी बेटा, चाचा के साथ मिलकर सामान अंदर ले आओ.”

दोनों गेट खोलकर घर में चले गए. पीछे-पीछे सत्या और खुशी सामान से लदे-फंदे चले.

घर के अंदर आकर मीरा ने कहा, “आइये माँ, ये है आपका घर. बैठिए. खुशी बेटा पानी ले आओ... आप थक गई होंगी ना?”

माँ, “तो तू मीरा है. तुमको देखकर कौन बोलेगा कि तुम इतनी बड़ी बच्ची की माँ हो?”

खुशी ने शिकायत की, “हाँ देखिये न दादी. माँ जब स्कूल आती हैं तो सारे टीचर समझते हैं कि मेरी बड़ी बहन आई है.”

माँ खुशी के गाल थप-थपाती हुई बोली, “अरे तू तो बड़ी मीठी बातें करती है? आ गले से तो लग जा. तुझे प्यार कर लें.......और रोहन कहाँ है?..... दिखाई नहीं दे रहा है?”

माँ ने खुशी को गले से लगा लिया और रोहन को ढूँढने के लिए इधर-उधर नज़र दौड़ाने लगी.

मीरा ने कहा, “अभी यहीं तो खेल रहा था. दोस्तों के साथ कहीं निकल गया लगता है.”

माँ ने झोले में से दो बड़े डब्बे निकाले और बोली, “देखो, हम तुमलोगों के लिए क्या लाए हैं. इसको बोलते हैं चावल का पीठा. हम खुद अपने हाथ से बनाए हैं.”

खुशी ने झपट कर दोनों डब्बे उठा लिए और कमरे से बाहर जाते हुए बोली, “ये सिर्फ मेरे लिए है. रोहन को इसमें से कुछ नहीं मिलेगा. रात को पढ़ते-पढ़ते जब नींद आने लगेगी, एक खा लेंगे. थैंक यू दादी.”

सत्या ने मीरा से कहा, “मीरा जी, माँ थक गई होंगी. ज़रा मुँह-हाथ धुलाकर कमर सीधी कर लेने दीजिए.... चाय बनवाऊँ माँ?”

मीरा ने इस बात का अहसास होते ही हड़बड़ा कर कहा, “जी-जी, आइये माँ.”

माँ ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा, “तुमलोग हमको बुड्ढी समझ रहे हो क्या? हम एकदम ठीक हैं. चलो अपने बारे में बताओ. काम-काज कैसा चल रहा है? ये घर क्यों छोड़ी? अब कहाँ रहती हो?”

अचानक इतने सवालों की बौछार से मीरा सकपका गई. बोली, “जी बच्चों की ज़िद थी बड़ा घर में शिफ्ट होने की. यहीं सामने वाला घर भाड़े पर मिल गया. .. आप माँ जी बस आराम कीजिए. घर का सारा काम मेरे जिम्मे है. खाना भी हम बनाएँगे. आप केवल बच्चों का ख़्याल रखिएगा.”

तभी खुशी रोहन का हाथ पकड़ कर अंदर आई.

खुशी, “दादी, ये रोहन है.”

रोहन ने नमस्ते किया और पैर छूए. माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बड़ा प्यारा बच्चा है. इधर तो आ.”

माँ ने रोहन को खींचकर अपने बगल में बिठा लिया और प्यार से उसका सिर सहलाने लगी.

माँ, “देखो बच्चों, हमारे पास कहानियों का बहुत बड़ा भंडार है. जब पढ़ते-पढ़ते थक जाओ तो मेरे पास आ जाना. ऐसी-ऐसी कहानियाँ सुनाएँगे कि दिमाग एकदम तरो-ताजा हो जाएगा.”

मीरा ने कहा, “हाँ ठीक है. अब से घर में कोई टी. वी. नहीं देखेगा. .... चलिए माँ, हाथ-मुँह धो लीजिए. खाना लगाते हैं.”

रोहन दादी की गिरफ़्त से छूटते ही उठकर भाग गया.

माँ जब मुँह-हाथ धोकर बालों में कंधी करने के लिए आईने के सामने बैठी तो उसने सत्या को वहीं से आवाज़ दी, “सत्या बेटे, यह कैसा कागज़ आईने पर चिपका हुआ है?”

जवाब मीरा ने दिया, “बता रहे थे कि इनके ऑफिस के एक केस की फाईनल हियरिंग की डेट लिखी है,” लेकिन मीरा को भी आश्चर्य हुआ, “पिछली बार तो इन्होंने यही बताया था कि केस ख़ारिज हो गया है. जब हमलोग घर बदल रहे थे तो यह यहाँ चिपका हुआ नहीं था. फिर कब चिपक गया?”

सत्या ने जवाब दिया, “ऑफिस की बातों को तुम क्या जानो. एक कोर्ट में मामला निपटता है. हायर कोर्ट में फिर खुल जाता है....यह सब छोड़ो. माँ के लिए खाना लगाओ.”