Morpankh in Hindi Short Stories by Sanket Vyas Sk, ઈશારો books and stories PDF | मोरपंख

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मोरपंख

रींकु हंमेशा गार्डन में पढने के आती। रींकु को पढने का बहुत शोख साथमे यू कुदरत के सानिध्य में बैठकर पढना, लिखना, खेलना वो भी उसे पसंद आ गया। जब भी वो गार्डन में पढने पेडके नीचे बैठी हो उस समय पर वो जहाँ पढने बैठती वही पेड पर मोर आता, आकर एक टहुकार टैहुक.... करके एक मोरपंख खेरता जो सीधे रींकु के पुस्तक पर आ के गिरता। रींकु को मोरपंख भी बहुत पसंदीदा हो गए थे।
शुरुआत में जब वो पहली बार गार्डन में पढने को पहुँची तब तो पूरा गार्डन सूखा-सूखा था इसलिए उसने वहाँ पहले सूखे हुए पैड-पौधे सभी को पानी डालना शुरू किया उसके बाद वहां पढने बैठना एसा नित्यकर्म शुरू कर दिया। वहाँ एक चाचाजी टहलने को आते उन्होने रींकु को ये सब करते हुए हररोज देखते थे फिर उन्होने भी रींकु की मदद करना शुरू कर दिया। एक दिन रींकु अपने साथ खाने को अमरूद और अनार दाना लाई थी। उसी दिन गार्डन में कहीं से मोर-मोरनी आ चढे। रींकु ने उनको देखा तो उसने उसके लाए हुए खाने में से कुछ मोर-मोरनी की ओर डाल दिए और वो तो खा कर वहाँ से उड गए। एसा दूसरे दिन भी हुआ फिर तो मोर-मोरनी हंमेशा आने लगी और रींकु भी हंमेशा अनार दाना लाती रही।
एक दिन मोर-मोरनी जंगल में जा पहुँचे जहाँ कोई पारधी ने अपनी झाल बिछाई हुई थी उसमे मोरनी का पाँव फँस गया और तुरंत ही पारधी को आ जाते देख मोर तो उड गया मगर मोरनी झालमें फँसी हुई थी उसको पारधी ने पकड लिया। फिर दो-तीन दिन मोर गार्डन में नहीं गया। उस समय रींकु मोर-मोरनी को न देखके बहुत ही हैरान हो गई थी। फिर एक दिन वो गार्डन में बैठकर पढ रही थी तब अचानक ही पेड पर से मोरपंख गीरा तो उसने ऊपर देखा तो वहाँ वो मोर था और आसपास कही मोरनी को न देखने पर रींकु थोड़ी परेशान तो हुई पर मोर के लिए उसने अनार दाने डाल दिए। उसके बाद तो रींकु मोरनी को ढूँढने में जुड गई। पर बहुत ही कोशिश करने के बावजूद रींकु उस मोरनी को ढूंढ ही नही पाई और वो गार्डन में पढने आने लगी। वो चाचाजी भी बहुत टाईम से रींकु को विचलित देख रहे थे तो वो रींकु के पास गए तुरंत ही रींकु ने सभी दास्तान उस चाचाजी को बताते हुए रो पडी और कहने लगी, "चाचाजी में हंमेशा यहा पढने आना चाहती हू मगर वो मोर-मोरनी की जोड को देखे बिना मुझे चैन नहीं मिलता क्या करु मुझे कुछ हमझ नहीं आता मेरा बहुत अच्छा रीश्ता बन गया था उनके साथ", ईतना कहते वो रो पडी । चाचाजी उसे संभालते हुए कहने लगे,"तुम्हें में जब से मोर-मोरनी आते थे तबसे बहुत ही खुश देख रहा था मगर उसमें से एक का आना बंध हुआ तबसे उदास देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा और में तेरे पास चला आया, बेटा तुम खुश रहो यही मैं देखना चाहता हूँ और वो तो पंछी हैं उनकी भी अलग दुनिया हैं जो हमें नहीं मालूम और कुछ दिनों पहले मैंने देखा था की कुछ लोग कोई शख्स को पकडकर उसे पुलिसवाले के वहां जा रहे थे, बात करते मालूम हुआ की जिसे वो ले जा रहे थे वो पारधी था, जिसने हमारे पास वाले जंगल से बहुत पंछी को फंसाकर पकडकर बेचने वाला था और उसने चार हिरन को भी मार डाले थे । एसा भी सुना की उसने कही से मोरनी पकडी हूई थी जो हमारा राष्ट्रीय पंखी है शायद वो वही मोरनी हो मगर वो भी मर चुकी थी। सुनकर दुःख हुआ और तुम्हारी याद आई तो में तेरे पास वो बताने आ गया।करींकु को गुस्साआ मगर खुद को संभालते हुए कहने लगी, "चाचाजी एसे को सजा मिलनी ही चाहिए वर्ना ऐसे बहुत जीव जिससे हमारा भी अच्छा संबंध बना हैं उसके साथ ही मीट जाएगा मगर अच्छा हुआ जो आपने मुझे यह बताया की पारधी को सजा मिल चुकी हैं और उसी समय पैड से मोरपंख रींकु के पुस्तक पर आ गीरता हैं, रींकु उसे लेकर चुमति हैं और पेड पर मोर को देखकर खुश हो उठती है। मोर वहा से उड जाता है और रींकु भी पढाई खत्म करके घर चली जाती है।
उसके बाद भी रींकु गार्डन मे पढने आती, अनार दाना भी लाती उसी ही तरह मोर भी हंमेशा आ जाता, वहीं पेड पर बैठता, एक मोरपंख अचूक खेरता, नीचे आ कर अनार दाना खाता, और अपने पंख भी फैलाता और उड जाता। ना जानते हुए भी रींकु और मोर के बीच दिल से संबंध जुड गया था।
- संकेत व्यास (ईशारा)