Zee-Mail Express - 15 in Hindi Fiction Stories by Alka Sinha books and stories PDF | जी-मेल एक्सप्रेस - 15

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जी-मेल एक्सप्रेस - 15

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

15. मैं अचानक बड़ी हो गई...

क्वीना लिखती है, समीर की वह हँसी उसके दिलोदिमाग पर छाई रही। वह सोचने लगी, अब तक उसे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जो क्वीना की खुशी से खुश होता हो।

अब तक उसके जितने भी दोस्त बने थे, उन सबके प्यार में स्वार्थ था। वे क्वीना के माध्यम से खुद को संतुष्ट करते रहे, किसी ने भी क्वीना की मर्जी जानने की कोशिश नहीं की।

क्वीना लिखती है कि बेशक उन्होंने उस पर कीमती तोहफे लुटाए, मगर इसलिए नहीं कि क्वीना को उनकी जरूरत थी या वह उन्हें पसंद करती थी, बल्कि इसलिए कि इनकी खातिर क्वीना उनके संपर्क में बनी रहेगी।

तो क्वीना की नजर में यह एक तरह का प्रलोभन था? अगर ऐसा ही था तो वह उन सबसे कन्नी काट सकती थी। अगर क्वीना ने ऐसा नहीं किया और प्रलोभनों के गिरफ्त में आ गई तो क्या इसके लिए वह खुद भी दोषी नहीं?

क्वीना के अंतर्मन ने भी शायद उस पर यही लांछन लगाया होगा, तभी तो उसने अपने भावनात्मक अहसास को कन्फेशन के तौर पर दर्ज किया था।

यानी क्वीना का झुकाव, सहज आकर्षण न होकर किसी स्वार्थ के निहित था?

क्वीना आगे लिखती है कि अपने आपको इस तरह देखने-समझने का अवसर ही नहीं मिला कभी। जिंदगी सहजता से सुलभ होती रही और उसकी दिशा निर्धारित करती चली गई। सही-गलत, अच्छा-बुरा जानने की बहुत जरूरत ही नहीं लगी कभी। शुरू-शुरू में उसके मन ने उसे सचेत किया भी तो उसका आकर्षण इतना प्रबल था कि वह खुद को रोक नहीं पाई।

क्वीना लिखती है कि जब समीर ने निकिता के अड़ियल और अक्खड़ स्वभाव को उसकी खुद्दारी कहकर उसकी विशेषता बताई और कहा कि वह उसे बदलना नहीं चाहता, तब उसे अहसास हुआ कि उसके भीतर भी कुछ खूबियां-खामियां रही होंगी, जो उसके होने को भीड़ से अलग पहचान दिलाती होंगी। मगर किसी ने कभी भी उसके व्यक्तित्व की निजता की इस तरह पहचान नहीं की।

क्वीना महसूस कर रही है कि अब तक जिसे वह प्यार समझती रही, वह तो प्यार था ही नहीं। असल में तो उसने अब तक जाना ही नहीं कि प्यार होता क्या है। वह तो लड़की और लड़के के बीच स्वाभाविक आकर्षण को ही प्यार समझती रही। मगर जब समीर ने किसी भी लड़की और निकिता के बीच के फर्क को रेखांकित किया तब उसे पता चला कि यह लड़की और लड़के के बीच होने वाली कोई रासायनिक प्रक्रिया भर नहीं है, बल्कि एक नैसर्गिक भाव है जिसे समीर निकिता से ही प्राप्त कर सकता है, अन्य किसी भी लड़की से नहीं।

क्वीना लिखती है कि उसका मन ऐसे प्यार के लिए तड़प उठा, जो उसे उसकी तरह से जाने, समझे और पसंद करे। कोई उसके भी दुस्साहस को निडरता कहे, उसकी जिद को दृढ़ता और अहम भाव को स्वाभिमान की तरह परिभाषित करे।

वह पूरी रात आत्मविश्लेषण करती रही। अगली सुबह उसने जो लिखा, उसका अनुवाद कुछ इस प्रकार है--

बहुत फूंकीं मोमबत्तियां, फोड़े गुब्बारे अनेक

खाए बर्थ-डे बम्स और बेहतरीन केक

जोड़ती रही उम्र की रफ्तार उंगलियों के पोरों पर

एक खामोश लम्हा हंसता रहा बीतते वक्त के छोरों पर

जान नहीं पाई कि अच्छे थे कागज की कश्तियों के दिन

बात-बेबात झिड़कियों के दिन

एक दिन मस्तियों के आगे समझदारी खड़ी हो गई

मैं अचानक बड़ी हो गई...

मुझे याद आता है, एक बार पहले भी क्वीना ने उस लम्हे की पहचान की थी जिसकी छुअन से उसने जाना था कि वह अब बच्ची नहीं रही, ग्रोन अप हो गई है।

आज फिर उसने महसूस किया कि वह बड़ी हो गई है। मगर ये दोनों लम्हे एक-से नहीं थे, इनमें बहुत अंतर था। एक में बड़े हो जाने की धैर्यहीन तत्परता थी, तो दूसरे में खो गए बचपन के प्रति गहरी संलिप्तता...

क्वीना और निकिता यानी दो अंतरंग सहेलियां, एक-दूसरे की राजदार, आपस में इतने करीब कि एक-दूसरे की जिंदगी में हस्तक्षेप तक कर सकें...

मगर नहीं, निकिता क्वीना के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं कर पाई और उसने क्वीना को अपनी निजता से बेदखल कर दिया। दोनों के बीच बोल-चाल तक नहीं रह गई।

क्वीना खुद को निकिता के इतने करीब महसूस करती रही है कि उसने शायद दोनों की जिंदगियों को अलग-अलग कर देखा ही नहीं। इसीलिए तो जब वह निकिता पर अपना गुस्सा या खीज नहीं उतार पाई तो खुद से ही नाराज होकर बैठ गई।

वह लिखती है, कौन होता है ये अपने भीतर बैठा ‘मैं’ जो जरा-जरा-सी बात पर, और कभी-कभी तो बिना बात ही रूठ जाता है। ऐसी चुप्पी साध लेता है कि फिर लाख कोशिशों से भी नहीं मानता।

क्वीना बिलकुल खामोश हो गई है।

वह किसी से मिलना, बात करना नहीं चाहती, जैसे वह हर किसी की उपेक्षा करने लगी हो, यहां तक कि खुद की भी। उसका मन है, खिड़की से बाहर देखती रहे तो उसने खिड़कियों पर भारी परदे गिरा दिए हैं। उसे मॉल में घूमना, शॉपिंग करना भाता है मगर उसने खुद को कमरे में कैद कर लिया है। जैसे वह खुद से ही रूठ गई है और न मानने को तैयार है, न मनाने को। क्यों उठाऊं इसके नखरे, क्यों करूं इसकी चिरौरी, छोड़ दूं इसे इसके हाल पर, भुगतो जो किया है। जैसे वह खुद को किसी भारी अपराध की सजा दे रही हो। समझ नहीं पा रहा, अपने ही प्रति ये कैसी बेरुखी है...

इन छुट्टियों में क्वीना को किसी कंपनी में ट्रेनिंग लेनी है। क्वीना के लगातार टॉपर रहने का लाभ उसे यह मिला कि उसे अपनी पसंद की कंपनी में ट्रेनिंग करने का मौका मिल गया। उसे उम्मीद है कि उसकी काबिलियत से प्रभावित होकर वे उसे यहीं स्थायी भी कर लेंगे।

क्वीना ही क्यों, अधिकतर छात्र इसी कोशिश में लगे होंगे। हमारे दफ्तर में भी तो लोग ऐसी ही उम्मीद के साथ आते हैं।

सेवन स्टार्स के सभी साथी बेहतर से बेहतर कंपनियों से इन्टर्नशिप की कोशिश में लगे हैं। इन सभी की प्राथमिकताएं व्यावसायिक स्थिरता पर केंद्रित हो गई है। यानी ये दोस्ती, ये मस्ती यहीं विराम पा लेगी। इसके बाद कॉलेज के दोस्त और इस मस्ती का यहीं पटाक्षेप हो जाएगा।

तो फिर क्वीना और निकिता की दोस्ती शिकायतों के साथ ही खत्म हो जाएगी?

क्वीना और निकिता के बीच लाख तरह के मतभेद रहे हों, भले ही दोनों की मौलिक सोच-समझ में काफी असमानता हो, फिर भी, दोनों इस तरह चुप्पी साधे एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे?

बेशक निकिता का व्यवहार बहुत हद तक रूखा था और क्वीना बहुत हद तक उच्छृंखल थी, फिर भी दोनों एक-दूसरे से गहरे संबद्ध थीं।

तो क्या इस खूबसूरत दोस्ती का अंतिम अध्याय इसी खामोशी के साथ लिखा जाएगा?

दोनों के बीच की फांस यूं ही चुभती रहेगी?

कॉलेज छोड़ने से पहले इन दोनों के बीच की गुत्थियों का सुलझना जरूरी है।

डायरी के पन्ने पलटते हुए मेरी नजर उस दृश्य पर जा ठहरी है जहां उनके बीच की खामोशी टूट पड़ने के लिए शब्द तलाश रही थी...

छुट्टियां शुरू होने से ठीक पहले, यानी अंतिम पेपर वाले दिन अधिकतर छात्र अपने सामान के साथ ही आए थे ताकि पेपर देने के बाद वे सीधे स्टेशन चले जाएं। क्वीना भी ऐसी ही तैयारी के साथ आई थी। यों, उसकी ट्रेनिंग शुरू होने में अभी समय था पर इस बीच वह अपने घर हो आना चाहती थी। इसलिए एक एअर बैग उसके भी हाथ में था।

अंतिम पेपर देते-देते इम्तहान का डर मन से निकल चुका होता है और प्रायः अंतिम पेपर के अच्छे या बुरे होने से ज्यादा इस बात की तसल्ली होती है कि पेपर खत्म हो गए। तो पेपर खत्म होने के इतमीनान के साथ सभी क्लास से बाहर निकल रहे हैं। ठंडी विदाई के साथ सब अपने-अपने रास्ते चल दिए हैं।

क्वीना भी कंधे पर अपना एअर बैग लटकाए बाहर निकल आई है। पैरों को लगभग घसीटते हुए, वह बगीचे की बाहरी पगडंडी पर चल रही है। रास्ते में पड़ने वाले पत्थरों को वह जूतों की नोक से इस तरह ठोकर मारती जा रही है जैसे सारी दुनिया को खारिज करती जा रही हो...

अब वह पगडंडी से उतरकर घास पर आ गई है। घास गीली है, चलने पर चप्-चप् की आवाज, किसी के पीछे-पीछे चले आने का भ्रम पैदा कर रही है।

वह जानती है पीछे कोई नहीं।

फिर भी कानों को क्यों लगता है, जैसे कोई आवाज दे रहा है?

क्यों लगता है, जैसे कोई हाथ पकड़कर राह रोक लेगा, ‘‘सुनाई नहीं देता, कब से आवाज दे रही हूं...?’’

और निकिता सचमुच रास्ता रोके बीच में खड़ी थी, ‘‘तूने क्या सोचा था, बिना मिले निकल जाएगी?’’

क्वीना खामोश है। एक पल ठिठक कर, क्वीना ने एकाएक अपनी चाल तेज कर दी और इशारा दे दिया कि उसकी निकिता से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं।

निकिता ने भी अपनी चाल तेज कर दी, जैसे उसकी ढिठाई से टक्कर ले रही हो।

‘‘घर जा रही है?’’ वह क्वीना से बेमतलब के सवाल पूछ रही है।

क्वीना ने बिना कोई जवाब दिए नजर घुमा ली।

‘‘ट्रेनिंग शुरू होने से पहले के दिनों का क्या करूं, फालतू बच गए हैं?’’ निकिता एकतरफा संवाद बोल रही है, ‘‘मेरे काम की तो हैं नहीं ये छुट्टियां, तुझे चाहिए तो बता?’’ निकिता क्वीना के ठीक सामने आकर खड़ी हो गई।

क्वीना रास्ता बदलकर बढ़ने लगी तो निकिता दूसरी तरफ आकर खड़ी हो गई, ‘‘उधार चुकाए बिना ही चल देगी?’’ निकिता की आवाज में हल्का-सा कंपन है।

‘‘क्या समझती है तू अपने आप को?’’ क्वीना ठहर गई, ‘‘जब चाहती है मौन व्रत धारण कर लेती है, जब चाहती है तोड़ देती है...?’’

‘‘शिकायत ही सही, बोली तो,’’ निकिता खुश हो गई, ‘‘तू भी तो ये पहल कर सकती थी?’’

पता नहीं, मेरी कल्पना क्वीना के हकीकत के कितने करीब थी, मगर इतना तो तय था कि दोनों के बीच का अबोला टूटा था क्योंकि क्वीना ने लिखा है कि उसने सोचा भी न था कि इतनी बड़ी दूरी इतने जरा-से यत्न से पाटी जा सकती थी। वह मानती है कि उसके भीतर घिर आई निराशा और अपने ही प्रति उभर आई उपेक्षा का मुख्य कारण निकिता से मिसअंडरस्टैंडिंग ही थी जिसके खत्म हो जाने के बाद दोनों फायर एंड आइस रेस्तरां में बैठे इस सुलह का जश्न मना रहे थे।

‘‘मैं कोल्ड ड्रिंक लेकर आती हूं।’’ अपना बैग निकिता की बगल में रखकर क्वीना काउंटर पर चली गई।

क्वीना लिखती है कि उस वक्त उसे एक ड्रिंक की बड़ी तीव्र इच्छा हुई।

ड्रिंक की जरूरत को मैं रोहन के साथ जोड़कर देखता हूं क्योंकि स्कूल के जमाने में रोहन के साथ ही उसने ड्रिंक का जिक्र किया है। यानी ड्रिंक की इच्छा में रोहन की सघन याद भी समाई है।

अपनी कैम्पा में व्हिस्की का एक पैग डलवाकर, उसने निकिता के लिए साधारण कैम्पा ली और निकिता के पास वापस लौटी।

‘‘चियर्स, हमारी दोस्ती के नाम...’’ जब तक क्वीना निकिता को उसका गिलास थमाती, तब तक निकिता ने क्वीना का व्हिस्की वाला गिलास उठा लिया।

क्वीना उसे रोकना तो चाहती थी, मगर ठहर गई। सोचने लगी, कारण जानने पर निकिता उस पर अविश्वास भी कर सकती थी। पहले ही वह उसकी दोस्ती पर काफी इलजाम लगा चुकी है। बीते दिनों में वह कई बार निकिता की गलतफहमियों का शिकार होती रही है। एक लंबे समय के बाद दोनों उसी आत्मीयता के साथ बैठे थे और अब वह इसमें किसी तरह की खटास बरदाश्त नहीं कर सकती थी।

“चियर्स,” कहते हुए क्वीना ने झटक कर कैम्पा वाला गिलास थाम लिया।

(अगले अंक में जारी....)