Zee-Mail Express - 12 in Hindi Fiction Stories by Alka Sinha books and stories PDF | जी-मेल एक्सप्रेस - 12

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जी-मेल एक्सप्रेस - 12

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

12. ‘‘एडवेंचर कुड़िये... एडवेंचर...’’

क्वीना की परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। परीक्षाओं के बीच ही निकिता का जन्मदिन भी है। निकिता ने साफ शब्दों में पार्टी न करने का ऐलान कर दिया है। क्वीना जानती है कि निकिता की मर्जी के खिलाफ जाना ठीक नहीं रहेगा, इसलिए इस उत्सव को आगे के लिए मुल्तवी कर दिया है। बहरहाल, रात बारह बजे सभी ने दनादन फोन किए और निकिता को ‘विश’ किया।

‘कम आउट इन योर बैलकनी।’ निकिता के मोबाइल पर क्वीना का संदेश आया।

निकिता हैरानी से बालकनी की तरफ लपकी।

देखा, नीचे समीर अपनी बाइक पर बैठा, गिटार बजा रहा था।

निकिता ने सोचा था कि जरूर उसके पीछे पूरा ग्रुप होगा जो अभी प्रकट हो जाएगा। मगर नहीं, समीर अकेला ही गिटार बजा रहा था, ‘‘समबॉडी नीड्स यू, समबॉडी लव्स यू...’’

धीमी होने पर भी, रात के सन्नाटे में उसकी आवाज साफ सुनाई पड़ रही थी।

निकिता बहुत असहज हो गई। वह भागकर अपने कमरे में चली गई, उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया और बत्ती बुझा दी।

अंधेरे में ही उसने क्वीना को फोन मिलाया, ‘‘ये क्या तमाशा है?’’

‘‘क्यों, तुझे समीर का इजहार पसंद नहीं आया?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं...’’ वह लगभग चीख पड़ी, ‘‘तू भी शामिल थी इस साजिश में?’’

क्वीना लिखती है कि वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि कोई प्यार के लिए इनकार भी कर सकता है। ये सारी दुनिया प्यार के पीछे ही तो पागल है। कितना कुछ पाकर भी दुनिया खाली है तो इसलिए कि इन्सान की जिंदगी में प्यार का अभाव है।

समीर ने क्वीना से निकिता के प्रति अपना झुकाव जाहिर करते हुए जानना चाहा था कि निकिता कहीं और ‘कमिटेड’ तो नहीं। क्वीना ने उसे आश्वस्त किया था, तभी तो वह निकिता के जन्मदिन पर अपने गिटार समेत वहां जा पहुंचा था।

‘‘आइ हैव नो इंटरेस्ट इन गायज, ओके...?’’ निकिता ने क्वीना को साफ तौर पर यह बात समझा दी है कि उसे इस तरह के रिश्तों में कोई दिलचस्पी नहीं और क्वीना दोबारा ऐसी गलती न करे।

‘‘आर यू नॉर्मल?’’ क्वीना हैरान है।

तो क्या विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण न होना, सचमुच असामान्य है? यानी अभिषेक के प्रति विनीता की चिंता को एकबारगी खारिज नहीं किया जा सकता है। मैं धीरे से चारों तरफ निगाह घुमाता हूं, फिर आश्वस्त भाव से कंप्यूटर पर गूगल सर्च में टाइप करता हूं- ‘ब्वायज हैविंग नो इंटरेस्ट इन गर्ल्स।’

कंप्यूटर का सुदर्शन चक्र घूमता ही जा रहा है... फिर कुछ कॉमन शब्दों वाले शीर्षक दिखाई पड़ते हैं... जल्दी से एक मिलते-जुलते शीर्षक पर क्लिक करता हूं। पांच-छः पेज का आर्टिकल है। इतनी देर तक इस साइट का खुले रहना ठीक नहीं, आते-जाते लोगों की निगाह इस पर पड़ सकती है।

प्रिंट कमांड देकर, कागज समेट लेता हूं। जल्दी से कंप्यूटर की विंडो बंद करता हूं और फाइल के बीच रखकर आर्टिकल को पढ़ने लगता हूं... हेडिंग्स और सबहेडिंग्स पढ़कर ही समझता जाता हूं कि इसमें लड़कियों को आकर्षित करने के बारे में टिप्स दिए गए हैं, न कि लड़कियों के प्रति उदासीन लड़कों के बारे में बताया गया है।

यानी जल्दीबाजी में मैंने सही विषय का चुनाव किए बगैर ही प्रिंट ले लिया। इसीलिए मैं हड़बड़ाकर कोई काम नहीं करता, मगर विनीता मेरे शांतचित्त होकर किए जाने वाले काम की कोई कद्र नहीं करती। वैसे, यह बात तो ऑफिस में भी है, बिना शोर-शराबे किया गया काम किसी गिनती में नहीं आता, उलटे लोग कहते हैं कि इसे काम देकर भूल जाओ। पूर्णिमा ने भी यही कहकर तो जीएम से मेरा परिचय कराया था। पता नहीं, उसने मेरी कार्य-निष्ठा की तारीफ की थी या धीमी रफ्तार की खिल्ली उड़ाई थी।

छुट्टी का समय हो चुका था और फिलहाल मैं दोबारा सर्च-रिसर्च में नहीं जा सकता था। हालांकि ऐसे विषयों पर काम करने का यही उपयुक्त समय होता है। मगर मैं ऑफिस में रुककर व्यक्तिगत काम करूं, इससे तो बेहतर है कि घर पर बैठकर यह सब करूं। क्या पता विनीता को भी तसल्ली हो जाए कि मैं घर-परिवार से इतना भी बेजार नहीं।

घर पहुंचकर कंप्यूटर खोलकर बैठ गया। विनीता चाय के लिए आवाज दे रही थी। मुझे कप थमाते हुए चिढ़ के साथ बोल पड़ी, ‘‘दफ्तर ही काफी नहीं है तुम्हारे ज्ञान संवर्धन के लिए।’’

गुस्से में विनीता भारी-भरकम हिंदी बोलने लगती है और जब वह शब्दों को चबा-चबाकर बोलती है तब उसका उच्चारण इतना साफ और शुद्ध होता है कि लगता है, वह कहीं लेक्चर दे रही हो।

‘‘अरे भई, तुम्हारा ही काम कर रहा हूं।’’

मेरे स्टेटमेंट से जैसे उसे बिच्छू का डंक लगा हो। उसने झटके से कंप्यूटर पर निगाह डाली।

‘‘तो यह मेरा काम है?’’

समझ गया, अब मेरी खैर नहीं।

‘‘ठीक कह रहे हो देवेन, घर-परिवार की चिंता... मेरा काम है। ...और मेरा यह काम जिस तरह तुम कर रहे हो, तुम्हें क्या लगता है ये परेशानियां ऐसे हल की जाती हैं... कंप्यूटर का दिमाग कितना ही तेज क्यों न हो, वह इन्सानी साथ और जज्बात के अभाव को कभी दूर नहीं कर सकता।’’

विनीता कमरे से बाहर निकल गई।

मैं उसे बताना चाहता था कि कंप्यूटर तो मशीन है, इसका दिल-दिमाग तो होता ही नहीं। इन्सान ने ही इसकी प्रोग्रामिंग की है और इसका अपना ‘आइ क्यू’ तो ‘जीरो’ है। मगर किसे बताता, वह तो जा चुकी थी।

मैं चाय का कप उठाए उसके पीछे बाहर बालकनी में चला आया। मुझे आता देखकर वह उठकर भीतर जाने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया, ‘‘बैठो, बताओ, तुम्हारे हिसाब से इसे कैसे टैकल किया जाए?’’

ईश्वर की कृपा से वह बैठ गई।

‘‘मैं समझती हूं, हमें इसकी काउंसलिंग करानी पड़ेगी।’’

‘‘ठीक है, मगर कैसे कराओगी, वह समझेगा कि वह एक मनोरोगी है।’’

‘‘वही तो मुश्किल है।’’

उसकी असमंजस की स्थिति देखकर मैंने अपनी सफाई दोहराई, ‘‘तभी कह रहा हूं, मुझे थोड़ा स्टडी करने दो।’’

‘‘और स्टडी करने के लिए तुम कंप्यूटर पर जा बैठोगे?’’ स्वर में एक परास्त समर्पण था, ‘‘पता लगे कि तुम स्टडी ही करते रह गए और हमारा बेटा ‘गे’ निकल गया।’’

‘‘आजकल की फिल्मों और टीवी सीरियलों ने तुम लोगों का दिमाग खराब कर दिया है।’’

विनीता मेरी बात को अनसुना कर खामोशी से चाय की चुस्कियां भरती रही।

कंप्यूटर पर सर्च करते हुए मैं सोचने लगा, अधिक जानकारी भी इन्सान को पागल बना देती है और आजकल का तंत्र समाज को इसी तरह पागल बना रहा है। डॉक्टर के पास खांसी की शिकायत लेकर जाओ तो वह आपको टी.बी. की सारी जानकारी दे देगा और फिर दुनिया भर के टेस्ट और एक्स-रे कराएगा। सबके साथ रेशियो बंधा है इनका। मैं तो इसीलिए इनके चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहता। मगर इनकी किलेबंदी से बच पाना इतना आसान भी तो नहीं होता। मेरे लाख मना करने पर भी विनीता पिछले इतवार ‘फ्री हेल्थ कैम्प’ में रजिस्ट्रेशन करा आई और अपने बारे में ‘ऑस्टिओपोरोसिस’ की जानकारी बटोर लाई। देख रहा हूं कि जानकारी मिलने के बाद से उसके पैरों का दर्द थोड़ा ज्यादा ही बढ़ गया है।

‘‘कुछ पता चला?’’ मैं कमरे से बाहर निकला ही था कि उसने गोली दाग दी।

‘‘अपना सवाल लिखकर छोड़ा है, दो-एक दिन में जवाब आएगा।’’

‘‘कमाल है, एक सवाल फ्रेम करने में तुम्हें इतना समय लग गया?’’

लगा जैसे वह मुझे दी गई इजाजत का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा रही हो।

‘‘अब तुम्हें क्या समझाऊं? कभी बैठो कंप्यूटर पर तो पाओगी कि कितने ही लोग अपने सवाल यहां पूछते हैं। क्या पता तुम्हारे सवाल का जवाब वहां पहले से ही मौजूद हो! अगर तुम्हें उन्हीं जवाबों से संतुष्टि मिल जाती है तो बहुत अच्छा, वरना तुम और सवाल कर सकती हो।’’

मेरी दलील से पता नहीं विनीता कितनी संतुष्ट हुई, पर उसने और बहस नहीं की।

धमेजा के कमरे में मजमा लगा है। आज मिसेज विश्वास भी सोनिया और गीतिका के साथ वहां बैठी है। धमेजा की आवाज तो वैसे ही दमदार है और फिलहाल तो वह और भी जोश में है। वह अपने लड़कपन की यादें सुना रहा है। वह बता रहा है कि अपने छात्र जीवन में वे कैसे-कैसे एडवेंचर किया करते थे।

उसका पिटारा भरा रहता है ऐसी बातों से। पता नहीं, मन से बनाता है या सच की घटनाएं होती हैं, पर होती हैं इंटरेस्टिंग। इसी सबसे तो उसके इर्द-गिर्द मेला लगा रहता है। पूरी महिला मंडली दिलचस्पी से उसकी कहानी सुन रही है।

धमेजा अभिनय सहित बता रहा है--

“दिसंबर की कड़कती ठंड में हम चारों दोस्त पढ़ाई के बहाने, अपनी-अपनी साइकिल पर रजाई-गद्दे बांधकर अपने घरों से निकल आए और फिरोजशाह कोटला मैदान के सामने इकट्ठे हुए।” धमेजा ने बात रोककर बताया, “तब बड़ा सुनसान हुआ करता था वह इलाका,” एक सांस भरकर उसने सबकी तरफ देखा, फिर कहानी आगे बढ़ाई, “हमने अपनी साइकिलें लोहे की जंजीरों से बिजली के खंभे के साथ बांध दीं और रजाई-गद्दे बिछाकर फुटपाथ पर सो गए।”

सभी महिलाएं बड़े ध्यान से सुन रही थीं। सांस रोके, जैसे फिर कोई भूत आया होगा या धरती फटी होगी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

‘‘ऐसा कुछ नहीं होता, यही जानने के लिए तो हम वहां रातभर रुके थे...’’ धमेजा विजयी गर्व से बता रहा है।

‘‘मगर इसके लिए कड़कती ठंड का मौसम ही क्यों चुना आपलोगों ने?’’

लो, पूर्णिमा भी शामिल है इस मंडली में।

‘‘एडवेंचर कुड़िये... एडवेंचर...’’ धमेजा अपनी रौ में हर महिला को ऐसे ही संबोधित करता है और महिलाएं भी इसे अपनेपन में लेती हैं।

लो भला, अब इसमें एडवेंचर वाली क्या बात है? आप अपने घर में न सोकर बाहर सड़क पर सो गए तो एडवेंचर हो गया? मगर धमेजा की यही तो खासियत है, मामूली-सी बात भी ऐसे बताता है जैसे पता नहीं कौन-सा किला फतह कर आया हो और महिलाएं भी ऐसे दम साधे सुन रही हैं जैसे सच में कोई बड़ी घटना घटी हो।

मेरा एडवेंचर तो ये डायरी है जहां मैं अपनी एक दुनिया रच रहा हूं, कुछ गुप्त रहस्यों से परदा हटा रहा हूं, कुछ पद्चिन्हों के जरिये किसी मंजिल तक पहुंचने की कोशिश कर रहा हूं। किसी के कोड्स को डि-कोड कर रहा हूं, किसी के जीवन की घटनाओं को जोड़ कर एक कहानी गढ़ रहा हूं।

मेरा एडवेंचर मुझे उस परिदृश्य में लिए जा रहा है जहां क्वीना और निकिता तो पहले की तरह सामान्य हैं मगर समीर बहुत कटा-कटा रहने लगा है। उसके भीतर एक तरह की चुप्पी आ समाई है।

परीक्षाओं का रिजल्ट निकल आया है।

क्वीना के नंबर सातों साथियों में सबसे अधिक हैं। उसने पिछले सेमेस्टर से तीन प्रतिशत अधिक अंक हासिल किए हैं, जबकि ज्यादातर स्टूडेंट्स अपने पिछले रिजल्ट से नीचे उतर आए हैं।

(अगले अंक में जारी....)