जी-मेल एक्सप्रेस
अलका सिन्हा
6. रोज की दुल्हन
लगभग आधे घंटे बाद पूर्णिमा जीएम के साथ दाखिल हुई। लंबे कद के बावजूद जीएम मैडम ने ऊंचे हील वाली सैंडल पहनी हुई थी। ठक्-ठक् की आवाज उनकी चाल को और भी रोबदार बना रही थी। वे पूर्णिमा के साथ किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रही थीं। वैसे भी, जिस विषय पर जीएम से चर्चा की जाए, वह तो अपने आप ही महत्वपूर्ण हो उठता है।
वे दोनों हॉल के भीतर आ चुकी थीं। हम सभी अपनी-अपनी सीट पर खड़े हो गए। मगर मैडम ने कोई दिलचस्पी न ली, उनका पूरा ध्यान पूर्णिमा पर था। पूर्णिमा उन्हें अंदर वाले हॉल में ले गई।
‘‘गुड! गुड!’’ मैडम का रिएक्शन था, ‘‘थोड़ा मेरे कमरे की भी इंटीरियर देख लेना यार।’’
पूर्णिमा खुश हो गई, उसने हम सभी को भीतर आने का इशारा किया। बड़ी अवांछित-सी स्थिति में हम वहां जाकर खड़े हो गए। इस बार मैडम ने हमारी ओर देखा। पूर्णिमा ने पूरी अंतरंगता के साथ हम सबका परिचय कराया, ‘‘ये गीतिका है मैम, एच आर असिस्टेंट... शार्प एंड क्विक। ये सोनिया... कहने को सालभर की ट्रेनिंग पर आई है, मगर काम पर ऐसा कब्जा कर लिया है कि इसके जाने के बाद हम मुश्किल में पड़ जाएंगे, फुल ऑफ कॉन्फिडेंस...’’ अब पूर्णिमा मेरी तरफ घूम गई, ‘‘ये हैं देवेन त्रिपाठी... मोस्ट सिंसियर, सेल्फ मोटिवेटेड, किसी काम में ना नहीं, काम सौंपकर भूल जाएं...’’
मेरे कान गर्म हो उठे थे। अपने बारे में इतना तो मैं भी नहीं जानता था। मगर चौंकाने की बात इससे आगे थी।
‘‘ये है टेक्निकल ट्रेनी-- चरित प्रधान, हमारी युनिट का सबसेss छोटा बच्चा... आज इसका बर्थडे है मैम...’’ और उसने झट एक रंगीन पैकेट मैडम के हाथ में थमा दिया कि वे इसे चरित को अपनी ओर से प्रदान करें।
चरित बहुत झेंप रहा था, मगर सोनिया चहक रही थी, शायद इस सारी प्लानिंग में वह भी पूर्णिमा के साथ शामिल थी।
‘‘लेट्स सिंग, हैप्पी बर्थ-डे टू यू... मे गॉड ब्लेस यू......’’
पूर्णिमा और सोनिया ने लीड ले ली थी, मैडम भी धीरे-धीरे सुर मिला रही थीं और हम सब भी होंठ हिला रहे थे। फिर चाय-नाश्ता मंगाया गया।
‘‘मैम, आपको सबके बर्थ-डे पर आना होगा, वरना ये सब मुझसे नाराज हो जाएंगे।’’ पूर्णिमा लाड़ जता रही थी।
‘‘क्यों नहीं, मुझे सबकी बर्थ-डे की लिस्ट दे देना... वी मस्ट सेलिब्रेट!’’ मैडम उसके लाड़ पर मुग्ध हो रही थीं।
कोई बीस-पच्चीस मिनट का यह प्रोग्राम बहुत ही कामयाब रहा। हम सभी खुद को अहम महसूस कर रहे थे। आज तो ऑफिस में काम कहां हुआ, बस पूर्णिमा की धूम मची रही। वह इसकी हकदार भी थी। अब तक जो विभाग बिल्कुल उपेक्षित पड़ा था, आज केंद्र में आ गया मालूम पड़ता था। अब हमारे हॉल को भी सुधारने की बात हो रही थी। पूर्णिमा को हरियाली बहुत पसंद थी। उसका सुझाव था कि हर टेबल पर एक बैंबू प्लांट रखा जाए, इससे ताजगी बनी रहती है और पॉजिटिविटी भी आती है। वैसे, पॉजिटिविटी तो अभी से ही महसूस होने लगी थी। बस एक कसर थी, इतने अहम वक्त में धमेजा कहीं नहीं था। इसका अहसास भी उसके लौट आने के बाद ही हुआ।
‘‘आप कहां रह गए थे सर?’’ गीतिका ने पूछा था। तब मेरी निगाहों ने सोनिया को ढूंढ़ा। मैंने पाया, सोनिया हॉल की डिजाइनिंग में पूर्णिमा का सहयोग कर रही थी।
‘‘कुछ जरूरी काम था।’’ धमेजा शायद कुछ उपेक्षित महसूस कर रहा था। उसने कुछ जानने या बताने की इच्छा नहीं दिखाई।
क्वीना ने एक स्टडी-प्लान बनाया है। कुछ विषय लिख रखे हैं जिनके बारे में उसे कुणाल से मदद लेनी है। अब वह पूरी तरह पढ़ाई पर केंद्रित है।
आजकल के बच्चे कैसे खुद को इस तरह नियंत्रण में रख पाते हैं, पता नहीं। आज के दौर में इश्क को निकम्मेपन के साथ गलियाना लाजमी नहीं लगता। अब तो हर बात का अपना एक अनुपात है। इन दिनों क्वीना की कुणाल से मुलाकात पढ़ाई के सिलसिले में ही हुई है, कोई तफरीहबाजी नहीं। दोनों ने मिलकर पढ़ाई की है।
रोहन भी तो इसी की क्लास में था न? खलबली-सी हो रही है। इस समय रोहन को कैसा लगता होगा? क्या उसने क्वीना के बदलते झुकाव को पहचाना नहीं होगा? उसकी इस संबंध में क्या प्रतिक्रिया रही होगी?
...मैं देख रहा हूं, रोहन उपेक्षित-सा एक कोने में खड़ा क्वीना को देख रहा है। क्वीना और कुणाल लंच के समय साथ बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। क्वीना का चेहरा कॉपी पर झुका है, कुणाल उसे लिखकर कुछ समझा रहा है। समझ आ जाने पर क्वीना ने सिर उठाकर हामी भरी तो दोनों के सिर आपस में टकरा गए। कुणाल शरारती नजरों से क्वीना को देख रहा है, क्वीना कुछ झेंप गई है। रोहन ने निगाहें खिड़की की तरफ कर ली हैं...
--क्या पता, मेरी तरह उसने भी सेक्शन बदल लिया होगा। मैंने एक लंबी सांस भरी।
धमेजा की भारी आवाज से वास्तविकता की दुनिया में लौटा। देखा, धमेजा अपने किसी दोस्त के साथ आ रहा है। कोई बाहरी व्यक्ति लगता है। धमेजा दबी जबान से उसे हर किसी के बारे में बता रहा है। उसके अंदाज से जाहिर है कि वह हर किसी की हंसी उड़ा रहा है।
दरअसल आजकल वह थोड़ा लो-प्रोफाइल हो गया है, इसलिए हर वक्त किसी-न-किसी का उपहास करता दिखाई पड़ता है। उसने अपने दोस्त का कंधा थपथपाकर वहीं इंतजार करने का इशारा किया और खुद ऐसे आगे बढ़ गया जैसे वह उसे कुछ दिखाने जा रहा हो।
अपने दोस्त को मेरी टेबल से कुछ दूरी पर खड़ा कर वह मिसेज विश्वास के पास चला आया। मिसेज विश्वास के बहुत करीब जाकर वह उससे कुछ कह रहा है, शायद किसी बात पर अपनी असमर्थता जाहिर कर रहा है। वह मिसेज विश्वास से बिलकुल सटकर खड़ा है। उसकी निकटता देखकर बदन में सिहरन महसूस कर रहा हूं।
मैंने जल्दी से अपनी निगाहें हटा लीं जबकि धमेजा बेहयाई से हंस रहा है।
कितना ढीठ है धमेजा! और ये औरतें भी तो कम नहीं। उठाकर एक जड़ नहीं सकतीं धमेजा के थोबड़े पर। क्या फायदा विमेन सेल वगैरह का? क्यों खामखा इनकी ज्यादतियां बरदाश्त करती हैं? इसे कौन-सा अपनी नौकरी पक्की करानी है?
निगाह जबरन फिर उसी तरफ चली गई।
कमाल है, अब तो धमेजा और भी रोमांटिक मूड में आ गया है। वह मिसेज विश्वास की लहराती जुल्फों की तरफ झुककर लंबी सांस भरते हुए, खुशबू की तारीफ में मदहोश हो जाने का स्वांग करता है और वापस मुड़ जाता है। मिसेज विश्वास बनावटी गुस्से से देख रही है, उसकी आंखों में एक चमक उतर आई है... मुस्कराहट दबाते हुए उसके गालों में गड्ढे पड़ रहे हैं... वह शायद धमेजा को रोकती, मगर धमेजा खुद ही पलटकर अपने दोस्त की तरफ चल पड़ा है।
‘‘यार, मैं तो समझ रहा था कि अभी सैंडल खोलकर मारेगी तुझे, मगर यहां तो सीन ही उलटा है...’’ धमेजा के दोस्त ने हौले से अपनी बाईं आंख दबाई।
‘‘अरे ठर्की औरतें हैं सब... अतृप्त आत्माएं...’’ धमेजा लापरवाही से कह रहा है, ‘‘ये तो कुछ भी नहीं, जिनकी अगले छह महीने में रिटायरमेंट होने वाली है, उनमें तो और भी ज्यादा जोश है... ऐसे कपड़े पहनती हैं कि आधी दुनिया बाहर झलकती है।’’ धमेजा उसे साथ लेकर मेरी सीट के सामने से निकल गया।
वैसे, धमेजा की टिप्पणी भद्दी होने के बावजूद गलत नहीं कही जा सकती। मिसेज विश्वास के नखरे ही देख लो, जिन बातों पर आपत्ति होनी चाहिए, उन पर रीझ रही है। सजना-संवरना भी उम्र के अनुरूप ही अच्छा लगता है, मगर वह तो खुद को सोनिया की उम्र के बराबर समझती है। कभी चुस्त पजामी पर ऊंची कुरती पहनकर आ जाती है तो कभी झकास रंगों की साड़ी और भर-भर हाथ की चूड़ियां पहनकर।
‘रोज की दुल्हन’, धमेजा ने उसका नाम रख छोड़ा है।
ऐसे वातारण में मैं जरा भी बंध नहीं पाता। मेरी कलात्मक दृष्टि यहां संतुष्ट नहीं हो पाती और मैं दोबारा डायरी की दुनिया में गुम हो जाता हूं।
देख रहा हूं, क्वीना आजकल रात-रातभर जाग कर पढ़ाई कर रही है। किसी तरह का फोन, एसएमएस उसे उसकी साधना से डिगा नहीं सकता। कुणाल का फोन आता है तो यह जानने के लिए कि उसकी कितनी तैयारी हो गई है या फिर वही उसे फोन कर लेती है किसी विषय को समझने की खातिर।
उसने लिखा है कि अपना टार्गेट पूरा कर चुकने के बाद ही वह उसे फोन करती है या फिर तब करती है जब उसे कोई परेशानी आती है।
यानी कुणाल न केवल पढ़ने में उससे आगे है बल्कि उसके भीतर क्वीना को लेकर किसी तरह की प्रतिस्पर्धा का भाव भी नहीं है। वरना आज की पीढ़ी तो प्यार-मोहब्बत में भी व्यक्तिगत स्पर्धा से खुद को बचा नहीं पाती।
क्वीना ने साफ-साफ लिखा है कि कुणाल उसके लिए नोट्स तैयार कर देता है। कम-से-कम फिजिक्स में तो वह पूरी तरह उन्हीं नोट्स पर आश्रित है। वह अपना समय दूसरे विषयों के नोट्स बनाने पर लगाती है।
कुणाल की निष्ठा देखकर मन खुश होता है। उसे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहीं क्वीना के नंबर उससे अधिक आ गए तो? बल्कि कभी-कभी तो लगता है कि वह अपने से अधिक क्वीना के करियर के प्रति सजग है।
(अगले अंक में जारी....)