Kashish - 21 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कशिश - 21

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कशिश - 21

कशिश

सीमा असीम

(21)

अच्छा जी,सुना है कि आत्मकथा में एक एक शब्द सच होता है !

हाँ !

क्या आप अपनी आत्मकथा में मुझे भी लिखेंगे !

नहीं बस तुमको छोडकर सब ज्यों का त्यों लिख दूंगा !

लेकिन मुझे क्यों नहीं लिखेंगे ?

क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ और हम जिसे प्रेम करते हैं उसे जमाने से छिपा कर रखते हैं !

हम्म !

और तुमने मुझ पर विश्वास किया है तो तुम्हारे विश्वास को कैसे तोड़ सकता हूँ ! नहीं, मैं कभी नहीं तोड़ सकता जिस दिन तोड़ दिया उस दिन तेरा गुनहगार बन जाऊंगा !

ओहह ! कितना प्यार और सम्मान करते हैं राघव,,सच में मैंने किसी गलत इंसान पर भरोसा नहीं किया,,,राघव तुम बहुत अच्छे हो !!

वो एक बहुत छोटा सा पहाड़ी इलाका था लेकिन वहाँ पर कालेज काफी बड़ा बना हुआ था ! यह देखकर लगा कि यहाँ लोगों को पढ़ाई कि कदर है ! पढ़ाई उनका मकसद है और आगे बढ्ना उनकी लगन ! अच्छा लगा था यहाँ पर ! जहां पर लोगों को पता है कि आगे बढ्ने के लिए पढ्ना लिखना जरूरी है !

यहाँ बेहद ठंड थी ! तापमान माइनस में होने के कारण गरम इनर, गरम शर्ट, स्वेटर और जैकेट पहनने के बाद भी सर्दी का अहसास हो रहा था ! कालेज में पढ़ने वाले बच्चे जींस, जैकेट और जूते पहने खट खट करके उतार चढ़ाव पर चढ़ते उतरते जा रहे थे ! उनको देखकर अचरज हुआ हालांकि यह उनकी बचपन से आदत रही होगी फिर भी लडकियां इतनी ऊंची हील के सैंडील या बूट पहन कर कैसे चल पा रही हैं, यह बात समझ ही नहीं आई ! पारुल बड़े अचरज से उनको यूं देख रही थी कि राघव पास आकर बोले, अरे क्या हुआ यहाँ क्यों खड़ी हो ? चलो अंदर हाल में चलो, यहाँ बहुत ठंड हो रही हैं !

हाँ ! उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया !

हाँ क्या ? तुम इन बच्चों को देख रही हो न ? अरे यार यह तो इन लोगों की आदत में शुमार है !

पर इतनी हील पहन कर कैसे संभव होता है और वो भी इतनी तेजी से !

अरे बाबा तू क्यों टेंशन लेती है ये इनकी आदत है बाबा ! बस और कुछ नहीं !

ओके जी !

तुझे बहुत समझाना पड़ता है !

हाँ मैं ऐसी ही हूँ !

चल तू जैसी भी है, वैसी ही मेरी है !

कितने प्यारे शब्द राघव ने बोल दिये ! तू जैसी भी है, मेरी है ! हे ईश्वर मेरे प्रेम की रक्षा करना ! मेरे प्रेम को यूं ही बनाए रखना ! यह शब्द उसके दिल दिमाग में गूंजने लगे ! मन में खुशी की लहर सी आ गयी ! कितना अपनापन सा लगता है जब कोई यह कहता है कि तू मेरी है ! कितना प्यार सा उमड़ आता है ! और उसके मुंह से सुनना जिसे आपका दिल भी पसंद करता हो ! चेहरे पर मुस्कान आ गयी और गालों पर लालिमा !

अब क्या सोचने लगी तू ?

कुछ भी तो नहीं ! वो मुसकुराती हुई बोली !

अच्छा अब अंदर चलो यहाँ पर मुझे बहुत ठंड लग रही है !

चलो ! वो हल्के हल्के से ढलाव भरी सीढ़ियो से नीचे उतरने लगी क्योंकि हाल बेसमेंट में बना था !

हाल पूरा भरा हुआ था, दो सोफ़ों के बीच में एक सेंटर टेबल जिस पर पानी की तीन बोतल रखी हुई थी, उसके सामने लकड़ी की बेंचें जहां पर बच्चों के बैठने का इंतजाम था ! राघव सामने पड़े सोफ़ों पर बैठ गए, जहां पर पहले से ही दो लोग और बैठे हुए थे एक महिला और एक कुछ उमरदार सज्जन ! थोड़ी देर में एक महिला और आई जो इस कार्यक्रम की आयोजक थी ! धीरे धीरे पूरा हाल भर गया ! सबसे पहले इंटरोंड्यूसिंग राउंड हुआ ! अलग अलग प्रदेशों से आए हुए लोगों ने अपने अपने नाम और विवरण दिये ! पारुल भी उठ कर खड़ी हुई लेकिन इतनी भयंकर ठंड जो उस ने पहले कभी भी महसूस नहीं की थी ! ठंड से काँपते हुए अपने शब्दों को ज़ोर से कह भी नहीं पा रही थी !

लग रहा है पारुल को बहुत ठंड लग रही है ? राघव ने मुसकुराते हुए कहा !

वो भी मुस्कुरा कर रह गयी बिना कुछ बोले ! वाकई बहुत ठंड हो रही थी और बेसमेंट होने के कारण कुछ ज्यादा ही ठंडक थी ! उसे लग रहा था कि अगर वो यहाँ पर थोड़ी देर और बैठी तो उसकी तो कुल्फी ही बन जाएगी ! उसने देखा कि एक लड़का वहाँ बैठे सभी लोगों के लिए छोटे छोटे डिस्पोजल गिलास मे चाय दे रहा था ! वो कभी चाय नहीं पीती लेकिन आज उसका मन कर रहा था कि उसे भी जल्दी से चाय मिल जाये ताकि शरीर में थोड़ी गर्माहट तो आ जाये !

मैडम जी चाय !

अरे हाँ ! वो चौंकते हुए बोली ! न जाने कहाँ खो गयी थी वो ! उसने चाय पी कोई भी स्वाद ही नहीं था चाय में ! उसे फ्लाइट की चाय याद आ गयी जो राघव ने उसे अपने हाथ से बना कर दी थी ! क्या स्वाद था उसका ! वो स्वाद अभी भी मुंह में घुल गया !

चाय इतनी थी कि दो घूंट में ही खत्म हो गयी ! शरीर में जरा भी गर्माहट का नामोनिशां नहीं आया ! उसने अपने दोनों हाथ अपनी जैकेट की जैब में डाल दिये !

हाल में तालियों की गूंज और उसका सोचना जारी रहा ! वहाँ पर बैठे सज्जनों ने क्या कहा, क्या नहीं ? उसका ध्यान इन सब बातों की तरफ गया ही नहीं ! वो तो सिर्फ राघव के ख्यालों में ही खोयी रही ! क्या प्रेम ऐसा ही होता ? क्या प्रेम में हम दुनियाँ जहां को भूल जाते हैं ? क्या प्रेम हमें हवा में रहना सिखा देता है मतलब ख्यालों में !

थोड़ी ही देर के बाद सब लोगों की टेबल पर दो चार पकोड़ियाँ और एक एक गुलाब जामुन कागज की प्लेट में रख दी गयी ! गुलाब जामुन का आकार इतना छोटा था जैसे बड़े आकार का जामुन ! खैर कुछ खाने से शायद शरीर में गर्माहट का अहसास हो !

सभी लोगों ने खाना शुरू कर दिया था, वो भी खाने लगी, चाय भी फिर से आ गयी, उन्हीं छोटे छोटे गिलासों में लेकिन इस बार चाय का स्वाद थोड़ा अलग था उसमें अदरक काली मिर्च और मसाले पड़े हुए थे ! वो भले ही दो घूंट चाय थी पर उसका बहुत ही बेहतर स्वाद था !

चाय के बाद अब राघव ने बोलना शुरू किया ! वो उनको एकटक देखती हुई मंत्रमुग्ध सी सुनने लगी ! कितना अच्छा बोलते हैं और बोलते समय न सोचना, न कुछ सिर्फ बोलते चले जाना बहुत ही खासियत की बात होती है ! पूरा हाल शांत था सब बड़े ध्यान से उनको सुन रहे थे ! कितनी अच्छी पकड़ है इनकी इस विषय पर, एक एक शब्द में गहराई ! उसने सोचा !

जब तक वो बोलते रहे पूरा हाल शांत रहा ! सिर्फ राघव के बोलने की आवाज के अलावा अगर सुई भी गिरे तो उसकी आवाज आए !

उनकी स्पीच खत्म होते ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया ! उसने सबसे तेज ताली बजाई और देर तक बजती रही ! प्रेम हमें किसी के लिए इतना आकर्षित कर देता है कि उसकी अच्छी बात तो अच्छी लगती ही है पर बुरी बात भी बेहद अच्छी लगने लगती है ! हमें दुनियाँ में सिर्फ वही अच्छा नजर आने लगता है ! उससे अच्छा या भला कोई भी नहीं लगता ! प्रेम हमें खींच लेता है, बांध लेता है, आकर्षित और सम्मोहित कर देता है !

जब हम किसी को प्रेम करते हैं तो हमें उसके अवगुण भी गुण लगते हैं और जब नफरत तो फिर गुण भी अवगुण में बदल जाते हैं ! इसलिए उसकी हरेक बात पर वो फिदा हो रही थी ! उसे प्रेम जो हो गया था, वो उसके प्रेम में जो आ गयी थी !

***