विवेक और 41 मिनिट..........
तमिल लेखक राजेश कुमार
हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा
संपादक रितु वर्मा
अध्याय 18
“ये कौन सा रोड है |”
कार के काँच ऊपर चढ़े होने की वजह से गोकुलवासन पहचान न सका | उसका शरीर पसीने से भीग गया |
गर्दन के पीछे पिस्टल दब रहा था पीछे की सीट में बैठा पुष्पवासन शराब की बदबू से गरजा |
“तुम्हारी उम्र और 41 मिनिट ही है | पुलिस के साथ खेलना मुझे बहुत पसंद है | विवेक क्राइम ब्रांच में बड़ा सुपर शेर है.......? 41 मिनिट के अंदर इस स्पॉट पर आकर तुम्हें बचाएगा क्या देखते हैं |”
गोकुलवासन ने हाथों को जोड़ा | “ये ..............ये......... मुझे कुछ मत कर...........! मैंने कोई गलती नहीं करी फिर मुझे क्यों दंड............?”
पुष्पवासन हंसा “क्या बोला ? तूने कोई गलती नहीं करी.......! तुमने जो बड़ी गलती की वह मालूम है ? कामुक भूत सुंदर पांडियन का बेटा होकर पैदा होना...........”
“तुमने जो बोला उसे मैं मानता हूँ......... मेरे पिता जी एक बड़े जानवर थे | सुंदर लड़कियों को बिस्तर पर बुलाते | सामने के पक्ष वालों के विपरीत फैसला सुनाने के लिए उस पक्ष से लाखों के हिसाब से रुपये लेते थे| वैसे ही जो पक्ष जीतता उसके विपरीत फैसला देने के लिए उस पक्ष से भी पैसे वसूलते | न्याय, नीति आदि में उन्होंने जो भ्रष्ट काम किया उसका हिसाब ही नहीं | उनके जैसा खराब आदमी हो नहीं सकता |”
“इस तरह तुम अपने अप्पा के बारे में खराब बातें बोलने से तुम्हें जिंदा छोड़ देंगे ऐसा सोच रहे हो क्या ? ठीक 11 बजे तुम्हारे पीछे वाले सिर के अंदर दो गोलियां दौड़ेगी |”
“प्लीज मुझे मत मारना |”
“मेरी क़ारूँणया ने भी तुम्हारे अप्पा से ऐसे ही तो भीख मांगी होगी............. अपने जीवन के लिए कितनी तकलीफ पाई होगी.......”
“मैं.......... बोल रहा हूँ.......... उसे थोड़ा..............”
“बोल मत........ अभी 10.25 हुए है अब तुम्हारी जिंदगी 35 मिनिट ही है | अच्छी तरह झुक रे कुत्ते” बोलते हुए गोकुलवासन के सिर के पीछे एक मुक्का मारा पुष्पवासन ने |
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