Vivek aur 41 Minutes - 12 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक और 41 मिनिट - 12

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विवेक और 41 मिनिट - 12

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 12

“बॉस.............! ये ही है व्यास जी की कॉलोनी मार्ग 22 घर का न: 63 कहाँ है ढूँढना पड़ेगा |”

विवेक ने कार पेड़ के नीचे खड़ी करके कार की खिड़कियों के काँच ऊपर चढ़ाये | वायरलेस को बंद कर विवेक और विष्णु नीचे उतरे | गली लंबी थी व दोनों तरफ नीम के पेड़ थे |

“विष्णु.........”

“बॉस..........”

“63 नंबर किस तरफ आएगा इस किराने के दूकान के भैया से पूछो |”

“भैया- भैया............ सब नहीं चाहिए बॉस, वो ! पातिया बापू चैसिल में से एक मामी आ रही है | उस मामी से पूछ के देखते हैं |”

विवेक के घूरने की परवाह किए बिना ही विष्णु छाता पकड़ कर आ रही उस मामी के पास गया |

“मामी.......”

मामी ने खड़े होकर क्या है जैसे देखा |

“63 नंबर का घर किस तरफ आएगा ?”

“पुराना नंबर है या नया नंबर ?”

“पुराना नंबर............”

“पुराना नंबर है तो और अंदर जाना पड़ेगा | वहाँ किससे मिलना है |”

“क़ारूँणया नाम की लड़की से |”

“इस नाम के किसी को मैं नहीं जानती ? आप अंदर जाकर पूछ कर देखो | वहाँ एक दूध का बूथ है | उस बूथ में पूछोगे तो वे बताएँगे |”

“धन्यवाद मामी |”

“दोनों चलने लगे |”

“बॉस.......... मामी......... को.........”

“रे........ नहीं चुपचाप चल | तुझे लेकर आने के बदले एक पुलिस के कुत्ते को लेकर आ सकते थे |

“भौ... भौ....” बोला विष्णु | बॉस ! टेलीफोन विभाग में पुलिस कोन्फ्रेंस डी. जी. पी. क्या बोले पता है ?”

“बोल........”

“पुलिस डिपार्टमेन्ट में सिर्फ डॉग दस्ता ही ठीक से काम कर रहा है ऐसा बताया |”

“सच ही तो बोले | आजकल पुलिस डिपार्टमेन्ट में 70% अधिकारी कोई न कोई एक राजनैतिक दल के नेता के विश्वास पात्र होते हैं | वे राजनेता कोई गलत काम करें तो उनका पक्ष लेना ही पड़ेगा |

“दूध का बूथ आ गया बॉस |”

“जामालूम कर |”

विष्णु ने बूथ के पास स्टूल पर बैठे एक बुजुर्ग से पूछा |

“यहाँ 63 नंबर का घर कौन सा है ?”

“क़ारूँणया......?”

“हाँ........”

“वो वही घर है |वो जो घर के चौखट में बैठ कर दांतों को खुरच रहे हैं वही है | वही उस घर के मालिक हैं | क़ारूँणया घर में नहीं है मैं सोचता हूँ | जाकर पूछ कर देखो |”

वे गए |

विवेक और विष्णु को देख दांतों को खुरच रहे सज्जन उठे | विवेक ने पूछा |

क़ारूँणया का यही मकान है क्या ?”

“हाँ,……………. वो वाला........... पोर्शन है |” ताला लगे घर को दिखाया उन्होंने |

“क्या ?”

“वे यहाँ नहीं है ?”

“बाहर गई क्या ?”

“बाहर नहीं विदेश गई है |”

“विदेश ?”

“हाँ अमेरिका |”

“कब गई......?”

“एक साल हो गया होगा.........|”

“अमेरिका क्यों गई ?” उस आदमी ने संदेह की नजर से पूछा “आप कौन है ?”

“हम क़ारूँणया के नजदीकी है |”

“नजदीकी........?”

“उस लड़की के तो कोई भी नाते-रिश्तेदार नहीं है |”

“ओह ! अनाथ लड़की ? ठीक है क़ारूँणया अमेरिका क्यों गई है ?”

“आप कौन हो बताया नहीं ?”

“पुलिस” विवेक बोला |

उस आदमी का तुरंत चेहरा बदला तो विष्णु “क्राइम ब्रांच” बोला | उस आदमी का चेहरा और भी काला हो गया |

“सा...... साहब क्यों......... आप......... क़ारूँणया को ढूंढने आए हैं| सर मैं इसका कारण जान सकता हूँ ?”

“बताते हैं ! पहले हमारे सवालों का जवाब दो | क़ारूँणया अमेरिका क्यों गई |”

“वहाँ कोई नौकरी मिल गई ऐसा बोली |”

“कौन सी नौकरी ?”

“मुझे नहीं मालूम साहब |”

“ठीक है........ क़ारूँणया को अमेरिका गए एक साल हो गया | फिर मकान खाली क्यों नहीं किया.......?”

“ घर में सामान है | उन सबको डिस्पोस कर जाने का समय नहीं था | सब सामानों को यहीं रहने दो | अमेरिका से वापस आते ही ले लूँगी ऐसा कहकर दो साल के किराये के रुपयों को देकर गई है क़ारूँणया साहब.............”

“क्या दो साल का हिसाब...............?”

अमेरिका में दो साल ही रहूँगी | फिर भारत ही वापस आ जाऊँगी ऐसा बोला था | शायद कोई समझौते का काम था |”

“वह कौन सा काम है आपको नहीं पता ?”

“नहीं मालूम साहब |”

“ठीक है............ क़ारूँणया ने अमेरिका जाने के बाद इस एक साल में आपको कोई पत्र डाला क्या ?”

“नहीं साहब |”

“फोन पर बात की क्या ?”

“नहीं साहब |”

“उनको ढूंढते कोई आए क्या ?”

“नहीं साहब |”

“क़ारूँणया की घर की चाबी किसके पास है ?”

“वह ही लेकर चली गई साहब |”

“विष्णु...........!”

“बॉस..........”

“तुम्हारे पास जो मास्टर चाबी का बंच है उसे निकाल कर उसका उपयोग कर क़ारूँणया के कमरे का ताला खोलो |”

विष्णु अपने पास जो मास्टर चाबियों का गुच्छा था उसे लेकर ताले के पास गया |

दो ही मिनिट में ताला खुल गया | दरवाजे को धकेल कर अंदर गए विवेक और विष्णु |

कमरे में धूल और मकड़ी के जाले दिखाई दीये | टी. वी., डाइनिंग टेबल, तिपाई, मेज सभी धूल से भरे हुए थे |

विवेक ने रुमाल से नाक को ढक कर मेज की दराज खोलकर देखा |

अंदर |

गट्टे के गट्टे ? उसे देखने लगा | विष्णु तो घर के दूसरी तरफ खंगाल रहा था |

करीब-करीब दस मिनिट ही हुए होंगे विवेक ने बुलाया “विष्णु......”

“बॉस.........”

“इसे थोड़ा देखो |”

विष्णु पास में आया विवेक ने अपने हाथ में लिए पुराने लंबे कागज को उसको दिया |

“इस पत्र को थोड़ा पढ़ कर देख |” आँखें आश्चर्य से फैल गई |

“बॉस....... ये क्या है.........?”

“विश्वास कर पा रहे है क्या विष्णु ?”

“बिल्कुल अविश्वसनीय बॉस.........”

“परंतु ये सच है........”

“क्या करें बॉस.......?”

“क्या करें क्या ! चल कर पत्र को दिखा कर इन्क्वायरी करनी पड़ेगी..........”

***