Yogini - 11 in Hindi Moral Stories by Mahesh Dewedy books and stories PDF | योगिनी - 11

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योगिनी - 11

योगिनी

11

सायंवेला में मंदिर के अंदर एवं आसपास झुरमुटों में अंधेरा छा रहा है, परंतु मंदिर की छतरी पर आकाशीय वातावरण से प्रत्यावर्तित होकर पड़ने वाली रवि-किरणें उसे स्वर्णिम आभा प्रदान कर रहीं है। योगी आरती की थाल में रखे दिये की बाती को प्रज्वलित कर थाल को हाथों में उठा रहे हैं। योगिनी मीता एवं भक्तगण प्रणाम मुद्रा ग्रहण कर चुके हैं। फिर एक गोरा व्यक्ति चुपचाप मीता के पीछे आकर प्रणाम मुद्रा में खड़ा हो जाता है। किसी का ध्यान उसकी ओर नहीं जाता है क्योंकि आरती प्रारम्भ हो चुकी है एवं भक्तगण नेत्र मूंदकर शंख-घड़ियाल की कर्णमोदक ध्वनि सुनने एवं योगी के साथ साथ आरती गाने में मग्न हैं। आरती समाप्त करने के पूर्व योगी थाल को हाथों में लिये हुए अपने स्थान पर वृत्ताकार घूमते हैं। अर्धवृत्त पूरा होने पर जैसे ही योगी भक्तगण के सम्मुख होते हैं, वह स्तम्भित हो जाते हैं, उनकी भृकुटि चढ़ जाती है एवं क्रोध के कारण दिये की लौ की प्रतिच्छाया उनकी भृकुटि पर त्रिनेत्र के समान दमकने लगती है। बड़ी कठिनाई से अपने पर नियंत्रण कर वह वृत्त को पूरा करते हैं और थाल के दीपक को भक्तों के समक्ष दीपक से आरती लेने हेतु प्रस्तुत करते हैं। उनकी थाल जब उस गोरे व्यक्ति के सामने आती है तो वह आरती लेने से पूर्व मुस्कराकर योगी को प्रणाम करता है जिसका उत्तर योगी अपरिचय की मुद्रा बनाकर देते है, परंतु इसी बीच योगिनी का ध्यान माइक की ओर आकृष्ट हो जाता है और वह प्रसन्न होकर आत्मीयता से बोलती है,

‘हलो माइक!’

योगी की अपने प्रति प्रतिक्रिया देखकर माइक अप्रकृतिस्थ हो रहा था। यद्यपि वह मीता को पीछे से देख चुका था परंतु अभी तक उससे बोला नहीं था। मीता के मुख पर उत्सुकतापूर्ण स्वागत का भाव देखकर वह सहज हो जाता है और मुख एवं नेत्रों में मुस्कराहट लाकर मीता को ‘हाय’ कहता है। कुछ अन्य स्थानीय साधक भी माइक को पहिचान लेते हैं और उसकी ओर देखकर मुस्करा रहे हैं। माइक को देखकर मीता के मुख पर आने वाली प्रसन्नता की आभा को योगी भांप लेता है और योगी के मानस में उफनते क्रोध का स्थान क्षोभ ले लेता है। क्रोधित व्यक्ति के मन में क्षोभ का आधिपत्य हो जाने पर नेत्र स्वतः अश्रुपूरित होने लगते हैं- योगी अपने अश्रुओं को अनियंत्रित होते देख आरती का थाल मूर्ति के समक्ष रखकर अपने शयनकक्ष में प्रवेश कर जाते हैं। माइक एवं मीता सहज भाव से वार्तालाप में लिप्त हो जाते हैं। भक्तगण अपने अपने घरों केा प्रस्थान करते हैं- इनमें हेमंत चायवाला भी है जो माइक के आगमन के उपरांत की घटनाएं देखकर बड़े खट्टे मन से अपने घर की ओर धीरे धीरे चल देता है।

योगिनी माइक के लिये आश्रम का एक कमरा खुलवा देती है एवं उसके भोजन एवं सुखसुविधा हेतु निर्देश भी देती है। योगी अपने कमरे मंे ही रहते हैं, परंतु उनका ध्यान मीता एवं माइक के बीच होने वाले वार्तालाप एवं उस पर मीता की प्रतिक्रिया पर केंद्रित रहता है। उनकी छठी इंद्रिय मीता एवं माइक के मन को भी बांचने का प्रयत्न कर रही है एवं स्वयं के मन मंे व्याप्त ईष्र्या उसके स्वनिर्मित अर्थ बुन रही है।

उस रात्रि योगी को नींद नहीं आई, उनकी पलकें यदा कदा कुछ क्षणों को ही झपकीं। साल के वृक्ष में घोंसला बनाये हुए उल्लू के बोलने की आवाज़ भी उन्हें और अधिक अशांत करती रही। ब्राह्मवेला में योगासन के दौरान योगी की निगाह मीता के नखशिख का अवलोकन करने के बजाय माइक के नेत्रों से टकरातीं रहीं। रात्रि मंे मीता को भुवनचंद्र अनमना अवश्य लगा था और उसने भुवनचंद्र से उसके स्वास्थ्य के विषय में पूछा भी था परंतु भुवनचंद्र के ‘ठीक है’ कहने पर वह यह सोचकर कि सम्भवतः यह माइक के आकस्मिक पुनरागमन की क्षणिक प्रतिक्रिया होगी, शांतिमना होकर सो गई थी।

किसी कवि ने सही कहा है, ‘आंखें ज़ुबां नहीं होतीं हैं, पर बेज़ुबां नहीं होतीं है।’ योगासन की समाप्ति पर शांतिपाठ के उपरांत सूर्य के प्रकाश में भुवनचंद्र के नेत्र देखकर मीता को यह समझते देर न लगी थी कि भुवन की चुभन न तो क्षणिक है और न उूपरी, वरन् हृदय के अंतस्तल तक है। माइक के प्रति योगिनी के हृदय में मित्रभाव के अतिरिक्त कुछ न था, अतः योगी के नेत्र पढ़कर उसे क्रोध आने लगा था, पंरतु योगी की मनोदशा पर विचार कर उसने स्वयं को शांत कर लिया, तथापि एक अंतद्र्वंद्व का अंकुर अवश्य उसके मन में भी प्रस्फुटित होने लगा था।

छुई मुई के समान व्यक्तित्व के मन का अंतद्र्वंद्व उसकी हताशा एवं अवसाद का जनक बनता है, परंतु योगिनी के समान दृढ़मना व्यक्ति के मन का अंतद्र्वंद्व उसमें स्वयं द्वारा सही समझे जाने वाले मार्ग पर चलते रहने की ज़िद उत्पन्न करता है। योगिनी ने योगी की प्रतिक्रिया की परवाह किये बिना माइक से पूर्ववत निकटता का व्यवहार करते रहने का मन बना लिया। अतः सायंकाल माइक ने जब योगिनी से वनभ्रमण हेतु चलने को कहा, तो योगिनी ने योगी से पूछे बिना ’हां’ कर दी। योगी यह वार्तालाप सुन रहा था और मन ही मन कुढ़ रहा था, अतः चलते समय जब योगिनी ने उससे साथ चलने को कहा तो उसने मना कर दिया। उनको जाते हुए योगी उनके पृष्ठभाग को देखता रहा- उसके मन में तिरस्कृत किये जाने का भाव जाग्रत हो रहा था और उसमंे उफनते हुए क्षोभ की सीमा नहीं थी।

वन का एकांत मिलते ही माइक ने मीता से पूछा,

‘मीता तुम अमेरिका से अकस्मात क्यों चलीं आईं? जिन दिनों तुम लास वेगस गईं हुईं थीं, उन दिनों मैं जापान गया हुआ था। वहां से लौटने के बाद फुरसत मिलने पर जब मैं तुम्हारे होस्टल गया, तब ज्ञात हुआ कि तुम बिना कुछ बताये ही इंडिया वापस चली गई हो। यह सुनकर मेेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अब की बार तो मैं केवल तुम्हारे चुपचाप चले आने का कारण जानने ही यहंा आया हूं।’ फिर कुछ क्षण रुककर खिलंदड़ेपन से एक आंख मिचकाकर आगे बोला,

‘साथ में तुम्हारे सान्निघ्य में कुछ पल और बिता पाने का लालच तो ऐसा था जैसे गेंहूं के साथ बथुए को पानी लग जाता है।’

माइक चुप होकर मीता की ओर देखने लगा, तब मीता व्यंग्यवाण छोड़ती हुई बोली,

‘तुम्हारे देश का विमेन्स लिबरेशन मूवमेंट क्या किसी को धोखे से नशे की दवा खिलाकर उसके विवश हो जाने पर विमेन द्वारा उसके शरीर से खिलवाड़ करने की अनुमति देता है?’

माइक आश्चर्य से मीता की बात सुन रहा था और उसका भावार्थ समझकर बोला,

‘अरे! यह तो रेप हुआ? तुमने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई?’

‘लास वेगस के होटल के कमरे में जब मुझ पर ड्ग का प्रभाव कम हुआ, तब मेरी शारीरिक एवं मानसिक दशा सामान्य नहीं थी और मुझे इतनी ग्लानि हो रही थी कि ऐसे में अविलम्ब इंडिया वापस आने के अतिरिक्त कुछ और करने का विचार ही नहीं आ रहा था।’

माइक ने वास्तविकता में दुखी होकर कहा,

‘आई एम रियली सौरी फ़ौर बीइंग इंस्ट्ूमेंटल इन पुटिंग यू इन सच ए ट्ेजिक सिचुएशन। आई डिड नौट नो दैट दोज़ विमेन वेयर वूल्व्ज़।’

माइक द्वारा की जा रही क्षमायाचना को देखकर मीता का कोमल हृदय द्रवित हो गया और उसके हृदय में सूज़न एवं शेली के प्रति दहकती प्रतिशोध की ज्वाला कुछ शांत हो गई। लगभग पूर्णतः सहज होकर उसने माइक से प्रश्न किया,

‘क्या तुम्हारे देश में प्यार का अर्थ केवल सेक्स ही होता है?’

माइक इस आरोपयुक्त प्रश्न से कुछ देर के लिये हतप्रभ हो गया, परंतु शीघ्र ही अपने को सम्हालकर उसने उत्तर दिया,

‘मीता, यह सच है कि हमारे यहां लव शब्द का प्रयोग इतना लूज़्ली होने लगा है कि यह लगभग अर्थहीन रहता है जब तक बांहों में भरकर होठों पर कामुक चुम्बन लेने एवं समुचित परिस्थिति हो तो काम-क्रिया में लिप्त होने जैसे विशेषण से इसे प्रमाणित न किया जावे। ‘सौरी, माई लव’, ‘हाय डार्लिंग’ ‘लव यू’’ जैसी अभिव्यक्तियां तो हर किसी के द्वारा किसी भी जाने अनजाने के लिये कर दी जाती हैं। हो सकता है कि इन अभिव्यक्तियों में छिपे भावबोध की अनुभूति टीनएजर प्रथम प्रेम के समय करता हो, परंतु टी. वी., सिनेमा, इंटरनेट एवं समाज में व्याप्त लैंगिक सम्बंधों की स्वच्छंदता ने लव की परिणति को सेक्स में सीमित कर दिया है। यह भी वास्तविकता है कि वहां की फ़ास्ट-लाइफ़ में लव भी इतना फ़ास्ट हो गया है कि भारतीय कपुल्स की तरह स्थायी इमोशनल-बौंडिंग कम ही कर पाता है और एक व्यक्ति के जीवन में अनेक पार्टनर्स आते रहना सामान्य बात हो गई है। अन्मैरिड ऐडल्ट के लिये तो सेक्स सम्बंधी कोई बंधन है ही नहीं। मीरा किर्शेनबौम नामक एक सायकोलोजिस्ट ने तो मैरिज के स्थायित्व के लिये औकेज़नल-एक्स्ट्ामैरिटल-ऐफ़ेयर को संजीवनी बूटी की संज्ञा ही दे डाली है। इन कारणों से किसी को निश्चिंतता नहीं रहती है कि किस दिन उसकी पत्नी अथवा पति काम से लौटने के बाद उससे कह दे ‘यू हैव बीन ए गुड हस्बैंड/वाइफ टु मी, बट सौरी डार्लिंग, आई विल हैव टु लीव यू टुमौरो ऐज़ आई हैव फ़ौलेन इन लव विद बिल/मिषेल, बट वी शैल कौंटीन्यू टु रिमेन गुड फ़्रेंड्स’। इस तरह के सम्बंध-विच्छेद का दुष्प्रभाव बच्चों के लालन-पालन एवं चिंतन पर अवश्य पड़ता है परंतु धीरे धीरे वे भी समझने लगे हैं कि ऐसा तो होना ही है और पहले की अपेक्षा अब अधिक शीघ्रता से नई परिस्थितियों एवं स्टेप-पेरेंट्स को स्वीकार करने लगे हैं। परंतु हमारा समाज एवं हमारा कानून प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व की महत्ता एवं स्वतंत्रता को बहुत सम्मान देता है और किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उससे किसी प्रकार के शारीरिक सम्बंध स्थापित करने पर कठोर दंड देता है।’

मीता बड़े घ्यान से माइक को सुन रही थी और माइक के चुप होते ही बोल पड़ी,

‘प्लेटोनिक लव के विषय में आप का क्या विचार है?’

‘मैं बचपन से लिटरेचर में इंटेरेस्टेड रहा हूं और प्लेटोनिक लव पर कितने नौविल, कहानियां एवं काव्यग्रंथ मैने पढे़ हैं। अतः मैं जानता हूं कि प्लेटोनिक लव का न केवल अस्तित्व है, वरन् अधिकतर व्यक्तियों का प्रेम प्लेटोनिक लव से ही प्रारम्भ होता है। पश्चिमी समाज में भी भूतकाल में सामाजिक बंधनों के कारण अनेक प्रेम सम्बंध प्लेटोनिक लव तक ही सीमित रह जाते थे। उन दिनों सम्बंधों के स्थायित्व का बड़ा महत्व था, अतः लोग प्लेटोनिक लव मात्र की सुखानुभूति एवं तद्जनित वियोगानुभूति में जीवन बिता देते थे। कतिपय प्रकरणों में यह वियोगानुभूति असह्य भी हो जाती थी, परंतु अपनी प्रेमिका/प्रेमी के मान-सम्मान का ध्यान रखकर लोग इसे प्रकट नहीं होने देते थे। अब हमारे समाज का दर्शन है कि मुझे जो जीवन मिला है, वह अधिक से अधिक सुख प्राप्त करने हेतु है। अतः प्लेटोनिक लव या तो शीघ्र ही स्पर्श-सुख में परिवर्तित हो जाता है और यदि किसी कारणवश ऐसा सम्भव नहीं हो पाता है, तो लोग नवीन सम्बंध स्थापित कर उसकी प्राप्ति अन्यत्र करने लगते हैं। यह कहना सचमुच कठिन है कि इस विषय में हमारे पूर्वज अधिक सही थे अथवा हम सही हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हे कि सुखानुभूति के पीछे दौड़ना प्रकृति द्वारा प्रदत्त मनुष्य की मूल प्रवृत्ति है। मेरी समझ में यदि ऐसा करने से कोई अन्य व्यक्ति हर्ट न होता हो, तो इसमें कोई हानि भी नहीं है।’

‘पर सेक्स सुख हेतु भिन्न भिन्न पार्टनर्स केा बदलते रहने का परिणाम स्वयं एवं पार्टनर हेतु भी तो दुखदायी हो सकता है?’ मीता प्रश्नवाचक दृश्टि से माइक को देखती हुई बोली।

‘बिल्कुल सही है। ऐेसे उदाहरण हमारे यहां भी प्रायः सुनने में आते रहते हैं।’ माइक ने सहमति जताई।

‘अंधेरा हो रहा है। अब वापस चलें।’ मीता ने कहा और दोनों मंदिर की ओर लौट पड़े।

वापसी में दोनों शांत रहे। दोनों में से किसी को यह पता नहीं चला कि योगी कहीं दूर से छिपकर उनके खुले पारस्परिक व्यवहार को देख रहा था और उनकी बातों को आधा-अधूरा सुन भी रहा था। कहते हैं कि ‘भय का भूत बन जाता है’- सो योगी जो भी सुन पा रहा था, उसका अर्थ मीता और माइक मंे प्रेमालाप होना लगा रहा था। उसकी उद्विग्नता चरम सीमा पर पहुंच रही थी।

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