Yogini - 10 in Hindi Moral Stories by Mahesh Dewedy books and stories PDF | योगिनी - 10

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योगिनी - 10

योगिनी

10

यद्यपि योगिनी मीता योगी को बताकर अमेरिका गईं थीं तथापि उनके इस तरह योगी को छोड़कर चले जाने की घटना ने प्राचीन परम्पराओं वाले ग्राम मानिला में सब की आस्था को हिलाकर रख दिया था। योगी ने उूपर से निर्लिप्त बने रहने का दिखावा किया था, परंतु हेमंत चायवाले ने उन्हें अनेक बार सायं के धुधलके मे वृक्षों के झुरमुट के पीछे अश्रु पोंछते हुए देखा था। और फिर एक सायं अकस्मात योगिनी मीता मंदिर में पुनः आ गईं थीं। उनका पुनरागमन ग्रामवासियों में गुप्त पारस्परिक चर्चा का विषय अवश्य बना था, परंतु योगी द्वारा योगिनी के प्रति पूर्ववत अपनत्व का भाव प्रदर्शित करने के कारण कोई प्रकटतः कुछ भी नहीं बोला था।

योगिनी के पुनरागमन की घटना शनैः शनैः पुरानी पड़ने लगी है मानिला मंदिर की दिनचर्या- प्रातःकाल योगी के घ्यानस्थ अवस्था में साधकों के समक्ष विराजमान हो जाने पर योगिनी द्वारा साधकों को आसन-प्राणायाम कराना, अपरान्ह में योगी द्वारा व्याख्यान, सायंकाल योगी एवं योगिनी द्वारा वनभ्रमण एवं इस दौरान आरती में भाग लेने के उद्देश्य से मंदिर को आते हुए हेमंत चायवाले द्वारा यदा कदा उन्हें एकांत में कबूतर-कबूतरी की भांति गुटरगूं करते हुए देख लेना, आरती के उपरांत भोजन एवं विश्रांति- यथापूर्व हो गई है। यद्यपि प्रकटतः सब शांत है परंतु योगी के मन की अथाह गहराइयों में यदा-कदा सागर-तल पर प्रस्फुटित उष्णजल के स्र्रोत के समान उफान आते रहते हैं। रहीम ने सत्य ही कहा है,

‘‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,

टूटे से फिर न जुड़े और जुड़े गांठ पर जाय’’

योगिनी के माइक के साथ चले जाने से योगी के मन में गांठ अवश्य पड़ गई है, जो उनको मीता के प्रति अपने व्यवहार में सहजता लाने में बाधक बन रही है

ब्राह्मवेला का समय है। मानिला मल्ला मंदिर के सामने योगासन करने हेतु साधक एवं साधिकायें आ चुके हैं और उन्होंने मंदिर के बरामदे में रखी आलमारी से अपने आसन निकालकर हरी हरी घास पर बिछा लिये हैं। ग्रीष्म ऋतु की प्रातः बड़ी सुहानी है। आकाश स्वच्छ एवं नीला है परंतु पूर्व दिशा में रवि के उदय की सूचना देते हुए रक्ताभ हो रहा है। चीड़ के वृक्षों की नुकीली पत्तियों के बीच से होकर आने वाली मंद बयार की शीतलता शरीर को रोमांचित कर रही है एवं चीड़ की पत्तियों में कम्पन उत्पन्न कर ऐसी कोमल सरगम की घ्वनि निकाल़ रही है जैसे कोई कुशल वादक सितार के सातों तारों को एक साथ बहुत हल्के हल्के झंकृत कर रहा हो। मानिला मंदिर के चारों ओर पसरे वन में निद्र्वंद्व होकर रात्रि विश्राम करने वाले पक्षी अपने कलरव से प्रातःवेला का स्वागत कर रहे हैं। योगी भुवनचंद्र एवं योगिनी मीता के मंदिर से बाहर आने की प्रतीक्षा है और इस बीच साधक एवं साधिकायें हल्के-फुल्के वार्तालाप में निमग्न हैं।

धीर गम्भीर मुद्रा में योगी के आगमन के साथ पूर्ण शांति छा जाती है- ऐसा प्रतीत होता है जैसे पक्षी भी नित.-नित योगी के आगमन के साथ साधकों में व्याप्त हो जाने वाली शांति के अभ्यस्त हो चुके हैं और वे भी कुछ क्षण के लिये अपना अविरल वार्तालाप स्थगित कर देते हैं। योगी हरिओउम् का उच्चारण कर साधकों के समक्ष बने छोटे से चबूतरे पर विराजमान हो जाते हैं। फिर निशब्द पदचाप के साथ योगी के पीछे आने वाली येागिनी मीता चबूतरे के आगे की घास पर अपना आसन बिछा लेतीं हैं। योगिनी सबको पद्मासन, अर्धपद्मासन अथवा सुखासन में बैठ जाने का निर्देश देतीं हैं और स्वयं के साथ तीन बार ओउम् घ्वनि करने को कहतीं हैं। प्रकटतः योगी भी ध्यानस्थ हो जाते हैं, परंतु योगी वास्तविकता में एकाग्रचित्त नहीं हो पाते हैं। गत वर्ष योगिनी के माइक नामक अमेरिकन के साथ अमेरिका चले जाने की घटना के पश्चात योगी आज तक किसी भी दिन मन को पूर्णतः एकाग्र नहीं कर पाये हैं- योगिनी के अमेरिका में होने की अवधि में विरह की टीस एवं तिरस्कार के आभास के कारण तथा योगिनी के वापस आ जाने के उपरांत अनियंत्रित आसक्ति के कारण। योगी के मन में असुरक्षा की ऐसी भावना भर गई है कि कुछ क्षणों का अंतराल होने पर ही वह योगिनी को देखने को विह्वल होने लगते हैं।

योगिनी एवं साधक नेत्र मूंदकर सूर्य नमस्कार करने में व्यस्त हैं परंतु योगी पद्मासन में बैठकर अर्धनिमीलित नेत्रों से योगिनी के नखशिख का अवलोकन कर रहे हैं। योगिनी द्वारा हस्तउत्तान आसन करने पर योगी का घ्यान योगिनी द्वारा पहने हल्के आसमानी रंग के कुर्ते एवं श्वेत शलवार मंे उभरते योगिनी के अंगों एवं शिर के पीछे लटकते काले केशों पर विचरण करता है। योगी को योगिनी अतीव आकर्षणयुक्त सुंदरी लग रही हैं और वह रोमांचित हो रहे हैं। यद्यपि योगिनी के अमेरिका जाने के पूर्व भी योगी का योगिनी के प्रति आकर्षण किसी क्षण न्यून नहीं होता था, परंतु अब योगी के मन में व्याप्त यह भय, कि कहीं योगिनी उससे पुनः न बिछड़ जाये, योगिनी का पल दो पल का वियोग भी योगी को असहज कर देता है। योगिनी द्वारा सूर्य नमस्कार के आगे की क्रिया- पादहस्त आसन, अश्वसंचालन आसन, पर्वतासन, साष्टांग प्रणाम आसन और फिर उनसे वापसी की प्रक्रिया- के दौरान भी योगी लुकछिपकर अपना कोई नेत्र खोलकर योगिनी के अ्रंगसंचालन का अवलोकन करते रहते हैं। योगी अब ेंसभी पुरुष साधकों के प्रति ईष्र्यालु हो गये हैं। वह नहीं चाहतंे हैं कि कोई पुरुष साधक योगिनी के अंगसौष्ठव को भरपूर देखे। अतः वह यदा कदा उन पर भी सशंकित निगाह डाल लेते हैं। कहते हैं कि नारी जाति में किसी पुरुष के आकर्षण को भांप लेने एवं सचेत हो जाने के लिये छठी इंद्रिय होती है। योगिनी मीता साधकों की ओर मुंह करके बैठी हैं एवं योगी के सामने उनका पृष्ठभाग है, तथापि उन्हें योगी द्वारा अर्धनिमीलित नेत्रों से अपने अंगों को अवलोकित किये जाने का भान हो रहा है जिससे एक उत्तेजक स्पर्श का आभास हो रहा है। योगिनी को यह आशंका भी हो रही है कि यद्यपि योगी एवं योगिनी के सहवास की बात जग जाहिर है, तथापि योगी द्वारा सबके सामने इस प्रकार का नित-नित आसक्ति प्रदर्शन साधकगण के नेत्रों में किरकिरी उत्पन्न कर सकता है। वह कई दिनों से योगी को इस विषय में सावधान करने की सोच रही थीं, परंतु स्वयं के अमेरिका चले जाने से योगी के मानस में उत्पन्न वेदना का घ्यान कर समुचित शब्द नहीं ढूंढ पाती थीं। आज योगिनी अनुभव कर रही थीं कि योगी अपनी विह्वलता का प्रदर्शन कुछ अधिक ही कर रहे थे। अतः उन्होंने योगासन की समाप्ति के उपरांत योगी को इस विषय में सीधे न सही तो अप्रत्यक्ष रूप से सचेत करने का निश्चय कर लिया। साधकों के चले जाने के उपरांत योगी के साथ एकाकी होने पर योगिनी ने योगी से कहा,

‘‘अब इस गांव के लोग भी कितने मुंहफट हो गये हैं- आज हास्यासन के उपरांत मनोहर श्याम द्वारा सेक्स सम्बंधों के विषय में सुनाया गया चुटकुला कुछ वर्ष पूर्व तक कोई व्यक्ति अपने संगी-साथियों के अतिरिक्त अन्य किसी के सामने सुनाने की बात सोच भी नहीं सकता था।’’

‘‘हां, सच कहती हो।’’

योगी के मुंह से यह उत्तर सुनकर मीता आगे बोली,

‘‘भुवन! तुम्हें ज्ञात है कि कुछ दिन से गांव के कुछ मनचले लड़के तुम पर क्या फ़ब्ती कसने लगे हैं- ‘सूरत है भोली-भाली, पर दिल का बेईमान है’?’’

यह सुनकर योगी कुछ बोलते नहीं हैं, परंतु इसके अर्थ पर विचार कर उनके मन में गुदगुदी अवश्य उठती है और एक धृष्ट स्मितरेखा उनके अधरों पर बिखर जाती है। योगिनी मीता उन्हें प्रेमपूरित नेत्रों से देखती रह जाती हैं।

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