Kaun Dilon Ki Jaane - 42 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | कौन दिलों की जाने! - 42

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कौन दिलों की जाने! - 42

कौन दिलों की जाने!

बयालीस

तेईस मार्च को आलोक, रानी और प्रोफेसर गुप्ता (गवाह के रूप में) वकील साहब के साथ एडीएम कार्यालय गये। जब उनकी फाईल एडीएम साहब के समक्ष प्रस्तुत की गई तो उन्होंने औपचारिक दो—चार बातें पूछकर आलोक व रानी को अपने सामने हस्ताक्षर करने को कहा तथा प्रोफेसर गुप्ता के गवाह के रूप में हस्ताक्षर करवा कर मैरिज़ रजिस्ट्रेशन की कार्रवाई पूरी कर दी। कार्रवाई पूरी होने पर एडीएम साहब ने मैरिज़ सर्टिफिकेट आलोक को देते हुए कहा — ‘प्रोफेसर आलोक, जीवन के इस पड़ाव पर अकेलापन सबसे अधिक कष्टदायी होता है। ऐसे में साथी का मिलना न केवल अकेलेपन को दूर करता है, वरन्‌ जीवन की संध्या को स्वर्ण—संध्या बना सकता है। आप दोनों को बहुत—बहुत बधाई!'

प्रोफेसर गुप्ता ने भी आलोक व रानी को उनके रिश्ते को कानून द्वारा स्वीकृति मिलने पर बधाई दी।

एडीएम कार्यालय से बाहर आकर वकील साहब आलोक और रानी को बधाई देकर अपने चैम्बर में चले गये। प्रोफेसर गुप्ता ने जब जाने के लिये कहा तो रानी ने उन्हें घर चलने के लिये विनती की, किन्तु प्रोफेसर साहब यह कहकर कि परसों तो मिलना ही है, अपने घर की ओर चल दिये। अकेले होने पर आलोक ने रानी की ओर मुख कर यह शे'र कहाः

‘मुझे सहल हो गईं मंज़िलें, वो हवा के रुख भी बदल गये

तेरा हाथ हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गये।'

‘आलोक जी, मेरे मन में एक विचार आ रहा है!'

‘कहो, संकोच किस बात का?'

‘मैं सोच रही हूँ कि अपने रिश्ते को कानूनी मान्यता मिलने के इस अवसर पर क्यों न हम अपने घर के लॉन में एक ‘स्मृति—वृक्ष' आरोपित करें!'

‘क्या बात कही है रानी! हम अभी नर्सरी होते हुए चलते हैं।'

‘आपके विचार में कौन—सा वृक्ष लगाना ठीक रहेगा?'

‘मेरे विचार में तो ‘पारिजात' (हरसिंगार) की पौध लगाना बेहतर होगा, क्योंकि पारिजात वृक्ष का धार्मिक तथा औषधीय महत्त्व है। इसके सफेद फूल लक्ष्मी—पूजन में उपयोग में लाये जाते हैं तथा इसके फूलों या फूलों के रस का सेवन हृदय—रोग से बचाता है। कहते हैं कि इसे छूने मात्र से सारी थकान मिट जाती है।'

आलोक द्वारा पारिजात वृक्ष के महत्त्व को जानकर रानी ने चुहलबाज़ी की — ‘फिर तो बढ़िया रहेगा। उम्र के इस पड़ाव पर थकान तो हुआ ही करेगी, पारिजात को छू लिया करूूँगी और थकान छूमंतर हो जाया करेगी।'

आलोक ने रानी द्वारा की गई मज़ाकिया टिप्पणी पर हँसते हुए कहा — ‘तुम्हारा सेंस ऑफ ह्‌यूमर बड़ा सटीक है।'

पच्चीस मार्च को कार्यक्रम का समय सुबह दस बजे था। मौसम खुशनुमा था। गर्मी अभी इतनी नहीं थी कि पंखे से काम न चलता। कार्यक्रम घर के लॉन में ही किया गया था। पचास—साठ मेहमान उपस्थित थे। प्रोफेसर गुप्ता ने कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुए प्रोफेसर आलोक के जीवन में रानी के प्रवेश का संक्षिप्त परिचय दिया तथा उन द्वारा समाजकल्याण हेतु लिये गये निर्णयों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें बधाई दी। तदुपरान्त रेजिडेंट्‌स वेल्पफेयर एसोसियेशन के प्रधान श्री हरनाम सह व सचिव श्री कृष्ण चन्द्र ने प्रोफेसर आलोक के व्यक्तिगत गुणों की चर्चा करते हुए उनके द्वारा उठाये गये कदमों की सराहना की व उन्हें उनके मंगलमय जीवन के लिये बधाई दी। जयन्त ने कार्यक्रम के अन्त में सभी मेहमानों का पधारने पर अभिनन्दन किया तथा इस दिन को यादगार दिन बनाने के लिये सबका धन्यवाद व आभार प्रकट किया तथा सभी मेहमानों से जलपान करके जाने का अनुरोध किया।

रात के खाने के समय टेबल पर सभी — आलोक, रानी, जयन्त तथा पूर्णिमा इकट्ठे बैठे थे। सोनू भी जाग रहा था। पूर्णिमा ने कहा — ‘पापा, आज का दिन हमेशा याद रहेगा। इस समय मैं एक सेल्फी लेना चाहती हूँ।'

रानी — ‘टेबल पर खाना खाते हुओं की सेल्फी तो ले ही लो। बाद में ग्रुप फोटो भी ले लेना।'

रात को सोने से पूर्व आलोक और रानी दिनभर की गतिविधियों की चर्चा कर रहे थे। रानी ने कहा — ‘आलोक जी, फंक्शन बहुत अच्छा रहा। जयन्त बाबू द्वारा गुप्ता भाई साहब से माईक लेकर आये हुए मेहमानों का धन्यवाद करना बड़ा अच्छा लगा। पूर्णिमा ने जो ग्रुप—सेल्फी ली है, उसे डाउनलोड करके बड़ी फोटो बनवाकर बेडरूम में लगायेंगे।' कुछ देर बाद कहा — ‘कल तो राम नवमी की बैंकों की छुट्टी होगी! परसों सुबह नाश्ते के बाद थोड़ी देर के लिये मेरे साथ बैंक चलना।'

‘बैंक में क्या करना है, पूर्णिमा और जयन्त के जाने के बाद किसी दिन जा आयेंगे।'

‘नहीं, परसों ही चलेंगे। मुझे सोनू के लिये गले की चेन और पूर्णिमा बिटिया के लिये एक सेट लॉकर से निकालना है। मैरिज़ सर्टिफिकेट भी ले चलना, बैंक अकाऊँट में केवाईसी भी अपडेट करवा लेंगे।'

‘सोनू के लिये चेन और पूर्णिमा के लिये सेट की क्या जरूरत है?'

‘बिटिया और दोहता पहली बार मिले हैं, उन्हें खाली हाथ थोड़े—ना जाने दूँगी?'

‘अरे! मैंने तो इस विषय में सोचा ही नहीं था। ठीक ही है, ऐसी बातें तो औरतों को ही सूझती हैं। जो तुम्हारा मन चाहता है, करो। परसों सुबह एक बार याद दिला देना।'

कार्यक्रम के चार दिन पश्चात्‌ जयन्त और पूर्णिमा अपने माता—पिता को मिलने लखनऊ चले गये। लखनऊ जाने से पूर्व जयन्त ने आलोक से कहा — ‘पापा, मम्मा का वीजा जल्दी लगवा लेना, फिर हमारे पास आना। भइया और भाभी इस अवसर पर आ नहीं पाये, मम्मा उनसे भी मिल लेंगी।'

पूर्णिमा ने रानी से कहा — ‘मम्मा, इस एक हफ्ते में सोनू आपसे इतना घुल—मिल गया है कि वहाँ जाकर आपको बहुत ‘मिस' करेगा। इसलिये जल्दी ही प्रोग्राम बनाना।'

आलोक और रानी ने समवेत स्वर में कहा — ‘हम जल्दी ही आने की कोशिश करेंगे।'

***