Kaun Dilon Ki Jaane - 41 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | कौन दिलों की जाने! - 41

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कौन दिलों की जाने! - 41

कौन दिलों की जाने!

इकतालीस

रानी ने अंजनि और संजना से फोन पर बात की। उन्हें बताया कि पच्चीस मार्च को एक छोटा—सा कार्यक्रम रखा है, जिसमें गैट—टू—गैदर के अतिरिक्त पुस्तकालय का उद्‌घाटन व नेत्रदान की शपथ ली जायेगी। दोनों ने सीधे मना तो नहीं किया, किन्तु यह कह दिया कि मम्मी—पापा (सास—ससुर) से बात करके बतायेंगी। जो अपेक्षित था, वही उत्तर अर्थात्‌ वे नहीं आ पायेंगी, दूसरे दिन रानी को मिल गया। विनय ने भी फिर कभी आने की कह कर पला झाड़ लिया।

आलोक ने भी सौरभ और पूर्णिमा को सूचित किया। सौरभ ने कहा कि वह अस्पताल से छुट्टियों के हिसाब से प्रोग्राम बना पायेगा, लेकिन पूर्णिमा ने अपने पति जो उस समय उसके साथ ही बैठा था, से बात करके आने की स्वीकृति दे दी। जब आलोक ने रानी को बताया कि पूर्णिमा और जयन्त आ रहे हैं तो रानी बड़ी प्रसन्न हुई और बोली — ‘आलोक जी, मैं यह सुनकर कि पूर्णिमा बिटिया और जयन्त बाबू आ रहे हैं, बहुत—बहुत खुश हूँ। छोटे—से दोहते को देखने के लिये मन उछल—उछल पड़ रहा है। कम—से—कम अपने परिवार की बेटी और दामाद तो ंफक्शन में रहेंगे। आने वाले लोगों को भी अच्छा लगेगा। पूर्णिमा के विवाह की एलबम या फोटो पड़ीं हो तो दिखाओ!'

आलोक पूर्णिमा के विवाह की एलबम अलमारी से निकाल लाया। दोनों ने मिलकर एलबम देखी। रश्मि को विवाह की विभिन्न रस्में निभाते हुए देखकर आलोक यादों में खो गया। रानी से आलोक की मनःस्थिति छिपी न रही। उसने आलोक को बगलगीर करते हुए पूछा — ‘रश्मि की याद आ गई?'

एलबम बन्द करते हुए आलोक ने निःसंकोच स्वीकार किया — ‘हाँ रानी, ऐसा होना स्वाभाविक है। जीवन के सुखद पलों के चित्र जब आँखों के सामने आते हैं तो उनसे जुड़ी यादों से मन में एक टीस—सी तो उठती ही है।'

रानी ने स्थिति को सामान्य करने के इरादे से कहा — ‘पूर्णिमा बिटिया बिल्कुल रश्मि की कॉपी लगती है। रश्मि भी अपने विवाह के समय पूर्णिमा जैसी ही रही होगी!'

एक बार तो आलोक का मन किया कि अपने विवाह के समय की एलबम निकाल लाये, किन्तु इस विचार को दबा कर उसने इतना ही कहा — ‘उस समय और आजकल के मेकअप और शृंगार आदि में दिन—रात का अन्तर आ गया है। उस समय इतना तामझाम कहाँ हुआ करता था?'

होली जा चुकी थी। प्रातःकाल की ठंड भी कम हो चुकी थी। यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि ठंडी हवा शरीर को अच्छी लगने लगी थी। सूर्य अभी उदय हो रहा था और उसका प्रकाश नीचे से ऊपर की ओर आकाश में अपनी आभा बिखेर रहा था। लॉन में रखे झूले पर बैठे आलोक और रानी मॉर्निंग टी की चुस्कियाँ ले रहे थे कि आस्ट्रेलिया से पूर्णिमा का फोन आया। उसने बताया कि वे 21 मार्च की रात को ग्यारह बजे दिल्ली एयरपोर्ट पहुँचेंगे। आलोक ने उसे कहा कि वह उन्हें लेने के लिये समय पर दिल्ली एयरपोर्ट पहुँच जायेगा।

जब 21 मार्च को आलोक दिल्ली एयरपोर्ट जाने की तैयारी करने लगा तो रानी ने कहा कि वह भी साथ चलेगी। फ्लाईट समय पर थी। लेकिन ईमीग्रेशन की औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद पूर्णिमा तथा जयन्त एक बजे के लगभग बाहर आये। सोनू पूर्णिमा के कंधे से लगा सो रहा था। जयन्त ने पहले आलोक की और फिर रानी की चरण—वन्दना की। जयन्त जब रानी के चरणों की ओर झुका तो रानी की आँखों से आँसू झर कर उसके सिर पर पड़े मानो रानी आशीर्वाद रूप में जयन्त का अभिषेक कर रही थी। तत्पश्चात्‌ रानी ने पूर्णिमा से सोनू को अपनी गोद में लेकर उसे भी अपने गले से लगाकर उसका माथा चूमा।

कार में बैठने के बाद यात्रा कैसी रही तथा एक—दूसरे का हालचाल पूछने के दौरान जब पूर्णिमा तथा जयन्त ने रानी को ‘छोटी मम्मा' कहकर सम्बोधित किया तो उसे बड़ी प्रसन्नता हुई, अंतःकरण में बड़ी स्निग्धता का अनुभव हुआ। सुबह जब घर पहुँचे तो पूर्णिमा को पहली नज़र में घर वास्तव में घर लगा। जब वह पिछली बार आई थी तो एक तो उसकी मम्मी का देहान्त हुए थोड़ा समय ही गुज़रा था, दूसरे उसके पापा भी तब तक स्वयं को सँभाल नहीं पाये थे, अतः घर घर न लगकर रैन—बसेरा सा लगा था। लेकिन इस बार घर में एक स्त्री के हाथों की छूअन हर ओर झलकती स्पष्ट दिखलाई दी। रानी की उपस्थिति से उसे घर भरा—भरा सा लगा। घर में एक स्त्री के होने न—होने से कितना अन्तर आ जाता है, पूर्णिमा ने स्पष्ट अनुभव किया। रानी ने भी बेटी और दामाद के स्वागत में बहुत अच्छी तरह साफ—सफाई करवाई थी। वैसे तो आलोक ने घर पूरी तरह से व्यवस्थित किया हुआ था, फिर भी रानी ने घर की साज—सज्जा में कोई कोर—कसर न छोड़ी थी। बेटी और दामाद के लिये बेडरूम स्वयं विशेष रूप से सुव्यवस्थित किया था। नन्हे सोनू के लिये कई तरह के खिलौने लेकर आई थी तथा रंग—बिरंगे गुब्बारे बेडरूम में लगाये थे। लम्बे सफर की थकावट के कारण चाय पीकर पूर्णिमा और जयन्त तो सो गये, किन्तु आलोक के कहने के बावजूद रानी सोने को तैयार नहीं हुई। आलोक मॉर्निंग वॉक के लिये चला गया और रानी रसोई में जुट गई।

जब पूर्णिमा और जयन्त उठ कर आये तो दोपहर के खाने का समय हो चुका था, फिर भी रानी ने उनसे नाश्ते के लिये पूछा। जयन्त बोला — ‘मम्मा, हम फ्रैश हो लें, फिर इकट्ठे बैठकर लंच ही करेंगे।'

लंच करने के बाद जयन्त और पूर्णिमा दोनों ने खाने की बहुत तारीफ की तथा पूर्णिमा बोली — ‘पापा, आपको खुश देखकर तथा छोटी मम्मा से मिलकर ऐसा नहीं लगता कि मम्मी हमारे बीच नहीं हैं। छोटी मम्मा के रूप में मम्मी ही हमारे बीच विचरती महसूस होती हैं।'

पूर्णिमा की बातें सुनकर रानी की आँखें भी खुशी के आँसुओं से छलछला उठीं। जब तक पूर्णिमा और जयन्त रहे, रानी का अधिकतर समय सोनू के साथ लाड़—प्यार में ही गुज़रा। पूर्णिमा और जयन्त द्वारा दिये गये आदर—सत्कार से रानी अभिभूत हो उठी।

***