Desh Virana - 31 in Hindi Motivational Stories by Suraj Prakash books and stories PDF | देस बिराना - 31

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देस बिराना - 31

देस बिराना

किस्सा इकतीस

मेरा वहां यह तीसरा दिन था। ये तीनों दिन वहां मैंने एक मेहमान की तरह काटे थे। जब घर के मालिक की हालत ही मेहमान जैसी हो तो मैं भला कैसे सहज रह सकती थी। हम आम तौर पर इस दौरान चुप ही रहे थे। इन तीन दिनों में मैंने उससे कई बार कहा था, चले शो रूम देखने, वकील से मिलने या विजय के यहां शो रूम के पेपर्स देखने लेकिन वह लगातार एक या दूसरे बहाने से टालता रहा।

मैं तीन दिन से उसकी लंतरानियां सुनते सुनते तंग आ चुकी थी। हम इस दौरान दो एक बार ही बाज़ार की तरफ गये थे। सामान लेने और बाहर खाना खाने और दो एक बार फोन करने। मम्मी को अपनी पहुंच की खबर भी देनी थी। कब से टाल रही थी। मैंने मम्मी को सिर्फ यही बताया कि यहां सब ठीक ठाक है और मैं बाकी बातें विस्तार से पत्र में लिखूंगी। बलविन्दर की अब तक की सारी बातें उसके खिलाफ़ जा रही थीं लेकिन फिर भी वह बताने को तैयार नहीं था कि उसकी असलियत क्या है। वह हर बार एक नया बहाना बना देता। एकाध बार फोन करने के बहाने बाहर भी गया लेकिन लौट कर यही बताया कि वो घर पर नहीं है, बाहर गया है, कल आयेगा या परसों आयेगा। आखिर तंग आ कर मैंने उसे अल्टीमेटम दे दिया था - अगर कल तक तुमने मुझे अपनी असलियत का कोई सुबूत नहीं दिखाया तो मेरे पास यह मानने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा कि तुम और कोई नहीं, बिल्ली वैल्डर ही हो और तुम मुझसे लगातार झूठ बोलते रहे हो। तब मुझे यहां इस तरह रोकने का कोई हक नहीं रहेगा।

पूछा था उसने - कहां जाओगी मुझे छोड़ कर..।

जवाब दिया था मैंने - जब सात समंदर पार करके यहां तक आ सकती हूं तो यहां से कहीं और भी जा सकती हूं।

- इतना आसान नहीं है यहां अकेले रहना। मैं आदमी हो कर नहीं संभाल पा रहा हूं...।

- झूठे आदमी के लिए हर जगह तकलीफें ही होती हैं।

- तुम मुझे बार बार झूठा क्यों सिद्ध करने पर तुली हुई हो। मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं,..

- दुकान के, घर के, काराबार के पेपर्स दिखा दो.. मैं यकीन कर लूंगी और न केवल अपने सारे आरोप वापिस लूंगी बल्कि तुम्हें मुसीबतों से बाहर निकालने के लिए अपनी जान तक लड़ा दूंगी। पता नहीं तुम्हारा पासपोर्ट भी असली है या नहीं। कहीं चोरी छुपे तो नहीं आये हुए हो यहां ?

- वक्त आने दो। सारी चीजें दिखा दूंगा।

- मैं उसी वक्त का इंतजार कर रही हूं।

- यू आर टू डिफिकल्ट ।

लेकिन तीसरी रात वह टूट गया था। हम दोनों अलग अलग सो रहे थे। रोजाना इसी तरह सोते थे। मैं उसे अपने पास भी नहीं फटकने दे रही थी। वह अचानक ही आधी रात को मेरे पास आया था और मेरे सीने से लग कर फूट-फूट कर रोने लगा था। उसका इस तरह रोना मुझे बहुत अखरा था लेकिन शायद वह भी थक चुका था और अपना खोल उतार कर मुक्त हो जाना चाहता था। चलो, कहीं तो बर्फ पिघली थी। मैंने उसे पुचकारा था, चुप कराया था और उसके बालों में उंगलियां फिराने लगी थी।

उसने तब कहा था - हम सब कुछ भुला कर नये सिरे से ज़िंदगी नहीं शुरू कर सकते क्या। मैं मानता हूं, मैं तुमसे कुछ बातें छुपाता रहा हूं, लेकिन इस समय मैं सचमुच मुसीबत में हूं और अगर तुम भी मेरा साथ नहीं दोगी तो मैं बिलकुल टूट जाऊंगा। और वह फफक फफक कर रोने लगा था।

उस रात मैंने उसे स्वीकार कर लिया था और कहा था - ठीक है। तुम अब चुप हो जाओ। इस बारे में हम बाद में बात करेंगे।

बेशक उसमें अब पहले वाला जोश खरोश नहीं रह गया था। शायद उसकी मानसिक हालत और कुछ हद तक आर्थिक हालत भी इसके लिए जिम्मेवार थी। शायद यह डर भी रहा हो कि कहीं मैं सचमुच चली ही न जाऊं।

अगले दिन उसके व्यवहार में बहुत तब्दीली आ गयी थी और वह सहजता से पेश आ रहा था। कई दिन बाद उसने शेव की थी और ढंग से कपड़े पहने थे। मुझे घुमाने ले गया था और बाहर खाना खिलाया था। एक ही बार के सैक्स से और अपने झूठ से मुक्ति पा कर वह नार्मल हो गया था। मैं इंतज़ार कर रही थी कि वह अपने बारे मे सब कुछ सच सच बता देगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वह ऐसे व्यवहार कर रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो। इसके बजाये उसने रात को बिस्तर पर आने पर पहला सवाल यही पूछा - मैंने तुम्हें कुछ पैसों के बारे में लिखा था, कुछ इंतज़ाम हो पाया था क्या....।

मैं हैरान हो गयी थी। कल रात तो नये सिरे से ज़िंदगी शुरू करने की बात कही जा रही थी और अब..कहीं कल रात का नाटक मुझसे पैसे निकलवाने के लिए ही नाटक तो नहीं था।

फिर भी कहा था मैंने - अपने वकील से मिलवा दो। मैं उसकी फीस का इंतजाम भी कर दूंगी।

- नहीं, दरअसल मैं कोई नया धंधा शुरू करना चाहता था।

- क्यों, मैंने छेड़ा था - वो इम्पोरियम यूं ही हाथ से जाने दोगे?

- अब छोड़ो भी उस बात को। कहा न... कुछ नया करना चाहता हूं। कुछ मदद कर पाओगी।

अब आया था ऊंट पहाड़ के नीचे। मैंने उस वक्त तो उसे साफ मना कर दिया था कि बड़ी मुश्किल से हम किराये के लायक ही पैसे जुटा पाये थे। बस, किसी तरह मैं आ पायी हूं। वह निराश हो गया था। मैं जानती थी, अगर उसे मैं सारे पैसे सौंप भी दूं तो भी कोई क्रांति नहीं होने वाली है। बहुत मुश्किल था अब उस पर विश्वास कर पाना। अब इस परदेस में कुल जमा यही पूंजी मेरे पास थी। अगर कहीं ये भी उसके हत्थे चढ़ गयी तो मैं तो कहीं की न रहूंगी। मन का एक कोना यह भी कह रहा था पैसा पति से बढ़ कर तो नहीं है। अब जब उसने माफी मांग ही ली है तो क्यें नहीं उसकी मदद कर देती। आखिर रहना तो उसी के साथ ही है। जो कुछ कमायेगा, घर ही तो लायेगा। अब ये तो कोई तुक नहीं है कि पैसे घर में बेकार पड़े रहें और घर का मरद काम करने के लिए पूंजी के लिए मारा मारा फिरे ....।

और इस तरह मैंने उस पर एक और बार विश्वास करके उसे पांच सौ पाउंड दिये थे। नोट देखते ही उसकी आंखें एकदम चमकने लगीं थीं।

कहा था मैंने उससे - बस, यही सब कुछ है मेरे पास। इसके अलावा मेरे पास एक धेला भी नहीं है। अगर कहीं कल के दिन तुम मुझे घर से निकाल दो तो मेरे पास पुलिस को फोन करने के लिए एक सिक्का भी नहीं है।

- तुम बेकार में शक कर रही हो। मैं भला तुम्हें घर से क्यों निकालने लगा। तुमने तो आकर मेरी अंधेरी ज़िंदगी में नयी रौशनी भर दी है। अब देखना इन पांच सौ पाउंडों के कितने हज़ार पाउंड बना कर दिखाता हूं।

लेकिन इस बार भी मैंने ही धोखा खाया था। वह पैसे लेने के बाद कई दिन तक सारा सारा दिन गायब रहता लेकिन ये सारे पैसे पांच-सात दिन में ही अपनी मंज़िल तलाश करके बलविन्दर से विदा हो गये थे। कारण वही घिसे पिटे थे। जो काम हाथ में लिया था, उसका अनुभव न होने के कारण घाटा हो गया था। एक बार फिर वह नये सिरे से बेकार था।

इधर वह अब मुझे पहले की तरह ही खूब प्यार करने लगा था, इधर मैंने एक बात पर गौर किया था कि वह रात के वक्त लाइटें जला कर मेरा पूरा शरीर बहुत देर तक निहारता रहता और उसकी खूब तारीफ करता। मुझे बहुत शरम आती लेकिन अच्छा भी लगता कि मैं अभी उसकी नज़रों से उतरी नहीं हूं।

लेकिन इसकी सचाई भी जल्दी ही सामने आ गयी थी। एक दिन वह एक बढ़िया कैमरा ले कर आया था और अलग-अलग पोज में मेरी बहुत सारी तस्वीरें खींचीं थीं। जब तस्वीरें डेवलप हो कर आयी थीं तो वह बहुत खुश था। तस्वीरें बहुत ही अच्छी आयी थीं। एक दिन वह ये सारी तस्वीरें लेकर कहीं गया था तो बहुत खुश खुश घर लौटा था।

बताया था उसने - एक ऐड एजेंसी को तुम्हारी तस्वीरें बहुत पसंद आयी हैं। वे तुम्हें मॉडलिंग का चांस देना चाहते हैं। अगर तुम्हारी तस्वीरें सेलेक्ट हो जायें तो तुम्हें मॉडलिंग का एक बहुत बड़ा एसाइनमेंट मिल सकता है। लेकिन उसके लिए एक फोटो सैशन उन्हीं के स्टूडियो में कराना होगा। क्या कहती हो... हाथ से जाने दें यह मौका क्या....।

यह मेरे लिए अनहोनी बात थी। अच्छा भी लगा था कि यहां भी खूबसूरती के कद्रदान बसते हैं। अपनी फिगर और चेहरे मोहरे की तारीफ बरसों से देखने वालों की निगाह में देखती आ रही थी। एक से बढ़ कर एक कम्पलीमेंट पाये थे लेकिन मॉडलिंग जैसी चीज के लिए गुरदासपुर जैसी छोटी जगह में सोचा भी नहीं जा सकता था। अब यहां लंदन में मॉडलिंग का प्रस्ताव.. वह भी आने के दस दिन के भीतर.. रोमांच भी हो रहा था और डर भी था कि इसमें भी कहीं धोखा न हो। वैसे भी बलविन्दर के बारे में इतनी आसानी से विश्वास करने को जी नहीं चाह रहा था। बलविन्दर ने मेरी दुविधा देख कर तसल्ली दी थी - कोई जल्दीबाजी नहीं है.. आराम से सोच कर बताना.. ऐसे मामलों में हड़बड़ी ठीक नहीं होती। मैं भी इस बीच सारी चीजें देख भाल लूं।

मैंने भी सोचा था - देख लिया जाये इसे भी.. बलविन्दर साथ होगा ही। कोई जबरदस्ती तो है नहीं। काम पसंद न आया तो घर वापिस आ जाऊंगी।

जर्मन फोटोग्राफर की आंखें मुझे देखते ही चमकने लगीं थीं। तारीफ भरी निगाहों से मुझे देखते हुए उसने कहा था - यू आर ग्रेट, सच ए प्रॅटी फेस एंड परफैक्ट फिगर.. आइ बैट यू विल बी एन इंसटैंट हिट। वैलकम माय डियर.. मुझे रोमांच हो आया था। अपनी तारीफ में आज तक बीसियों कम्पलीमेंट सुने थे लेकिन कभी भी किसी अजनबी ने पहली ही मुलाकात में इतने साफ शब्दों में कुछ नहीं कहा था।

मुझे अंदर स्टूडियो में ले जाया गया था। बलविन्दर देर तक उस फोटोग्राफर से बात करता रहा था। जब मुझे मेकअप के लिए ले जाया जाने लगा तो बलविन्दर ने मुझे गुडलक कहा था और बेशरमी से हँसा था - अब तो तुम टॉप क्लास मॉडल हो। हमें भूल मत जाना। मुझे उसका इस तरह हँसना बहुत खराब लगा था। लेकिन माहौल देख कर मैं चुप रह गयी थी।

फोटाग्राफर की असिस्टेंट ने मेरा मेक अप किया था। उसके बाद एक और लड़की आयी थी जिसने मुझे एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा - ये कॉस्ट्यूम है। चेंज रूम में जा कर पहन लीजिये। मैं कुछ समझी थी और कुछ नहीं समझी थी। लेकिन जब भीतर जा कर पैकेट खोल देखा तो मेरे तो होश ही उड़ गये थे। दो इंच की पट्टी की नीले रंग की ब्रा थी और तीन इंच की पैंटी। अब सारी बातें मेरी समझ में आ गयी थीं - बलविन्दर का मेरे शरीर को कई कई दिन तक घूरते रहना, उसकी हँसी, मेरे फोटो खींचना और यहां तक घेर-घार का लाना और उसकी कुटिल हँसी हँसते हुए कहना - अब तो तुम टॉप क्लास मॉडल हो। हमें भूल मत जाना।

मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि मेरा अपना पति इतना गिर भी सकता है कि अभी मुझे आये हुए चार दिन भी नहीं हुए और मेरी नंगी तस्वीरें खिंचवाने ले आया है। पैसों की हेराफेरी फिर भी मैं बरदाश्त कर गयी और उसे माफ भी कर दिया था लेकिन उसकी ये हरकत..मैं गुस्से से लाल पीली होते हुए चेंज रूम से बाहर आयी थी और बलविन्दर को पूछा था।

फोटोग्राफर ने बदले में मुझसे ही बहुत ही प्यार से पूछा था - कोई प्राब्लम है मैडम? लेकिन जब मैंने बलविन्दर को ही बुलाने के लिए कहा तो उसने बताया था - आपके हसबैंड ने यहां से एक फोन किया था। उन्हें अचानक ही एक पार्टी से मिलने जाना पड़ा। उन्हें दो एक घंटे लग जायेंगे। वे कह गये थे कि अगर उन्हें देर हो जाये तो आप घर चली जायें। डोंट वरी मैडम, वे घर की चाबी दे गये हैं। हमारी कार आपको घर छोड़ आयेगी।

यह सुनते ही मेरी रुलाई फूट पड़ी थी। यह क्या हो रहा था मेरे भगवान, मेरा अपना पति मुझसे ऐसे काम भी करवा सकता है। इससे तो अच्छा होता मैं यहां आती ही नहीं।

फोटोग्राफर यह सीन देख कर घबरा गया था। उसने तुरंत अपनी असिस्टैंट को बुलाया था। वह मुझे भीतर ले गयी थी। पूछा था - आपकी तबीयत तो ठीक है। मैं उसे कैसे बताती कि अब तो कुछ भी ठीक नहीं रहा। वह देर तक मेरी पीठ पर हाथ फेरती रही थी। जब मैं कुछ संभली थी तो उसने फिर पूछा था - बात क्या है। मैं उसे अपनी दोस्त ही समझूं और पूरी बात बताऊं। वह मेरी पूरी मदद करेगी।

तब मैंने बड़ी मुश्किल से उसे सारी बात बतायी थी। यह भी बताया था कि यहां आये हुए मुझे दस दिन भी नहीं हुए हैं और मेरा पति मुझसे झूठ बोल कर यहां ले आया है। मुझे जरा सा भी अंदाजा होता कि मुझे स्विमिंग कॉस्ट्यूम्स के लिए मॉडलिंग करनी है तो मैं आती ही नहीं। उसने पूरे धैर्य के साथ मेरी बात सुनी थी और जा कर अपने बॉस को बताया था। उसका धैर्य देख कर लगता था उसे इस तरह की सिचुएशन से पहले भी निपटना पड़ा होगा। फोटोग्राफर ने तब मुझे अपने चैम्बर में बुलाया था और उस लड़की की मौजूदगी में मुझसे कई कई बार माफी मांगी थी कि कम्यूनिकेशन गैप की वजह से मुझे इस तरह की अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ा। तब उसी ने मुझे बताया था कि बलविन्दर खुद ही उनके पास मेरी तस्वीरें ले कर आया था और इस तरह का प्रोपोजल रखा था कि मेरी वाइफ किसी भी तरह की मॉडलिंग के लिए तैयार है।

- अगर हमें पहले पता होता मि. बलविन्दर ने आपसे झूठ बोला है तो...खैर.. डोंट वरी, हम आपकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं करेंगे। बस, एक ही प्राब्लम है कि मिस्टर बलविन्दर जाते समय हमसे इस एसाइनमेंट के लिए एडवांस पैसे ले गये हैं। वो तो खैर कोई बहुत बड़ी प्राब्लम नहीं है। फिर भी मेरा एक सजेशन है। अगर आपको मंजूर हो। आप एक काम करें मैडम। जस्ट ए हम्बल रिक्वेस्ट। आप इसी साड़ी में ही, या इस एलबम में जो भी कपड़े आपको ग्रेसफुल लगें, उनमें कुछ फोटोग्राफ्स खिंचवा लें। जस्ट फ्यू ब्यूटीफुल फोटोग्राफ्स ऑफ ए ग्रेसफुल एंड फोटोजेनिक फेस। ओनली इफ यू लाइक। हमारा एसाइनमेंट भी हो जायेगा और आपकी मॉडलिंग भी। हम इस बारे में मि. बलविन्दर को कुछ नहीं बतायेंगे। आइ थिंक इसमें आपको कोई एतराज नहीं होगा।

उसने तब मुझे कई एलबम दिखाये और बताया था कि `उस` तरह की फोटोग्राफी तो वे कम ही करते हैं, ज्यादातर फोटोग्राफी वे नार्मल ड्रेसेस में ही करते हैं। उस लड़की ने भी मुझे समझाया था कि मेरे जैसी खूबसूरत लड़की को इस प्रोपोजल के लिए ना नहीं कहनी चाहिये।

और इस तरह मॉडलिंग का मेरा पहला एसाइनमेंट हुआ था। तकरीबन तीस चालीस फोटो खींचे गये थे। कहीं कोई जबरदस्ती नहीं, कोई भद्दापन नहीं था, बल्कि हर फोटो में मेरे भीतरी सौन्दर्य को ही उभारने की कोशिश की गयी थी। फोटोग्राफर की असिस्टैंट हँस भी रही थी कि रोने के बाद मेरा चेहरा और भी उजला हो गया था। मुझे वहां पूरा दिन लग गया था लेकिन बलविन्दर वापिस नहीं आया था।

चलते समय फोटोग्राफर ने मुझे डेढ़ सौ पाउंड दिये थे। एसाइनमेंट की बाकी रकम। उन्होंने तब बताया था कि कुल तीन सौ पाउंड बनते थे मेरे जिसमें से डेढ़ सौ पाउंड बलविन्दर पहले ही ले चुका है। उन्होंने यह भी पूछा था कि वह इनकी कॉपी मुझे किस पते पर भिजवाये। मैंने उनसे अनुरोध किया था कि पहली बात तो वह इनकी एक भी कॉपी बलविन्दर को न दें और न ही उसे इस फोटो सैशन के बारे में बतायें। दूसरे इनकी कॉपी मैं बाद में कभी भी मंगवा लूंगी। उन्होंने मेरी दोनों बातें मान ली थीं और एक रसीद मुझे दे दी थी ताकि मैं किसी को भेज कर फोटो मंगवा सकूं। जब मैं चलने लगी थी तो उन्होंने एक बार फिर मुझसे माफी मांगी थी और कहा था कि मैं उनके बारे में कोई भी बुरा ख्याल न रखूं और उन्हें फिर सेवा का मौका दूं। उन्होंने एक बार फिर अनुरोध किया था कि वे मुझे दोबारा अपने स्टूडियो में एक और फोटो सैशन के लिए देख कर बहुत खुश होंगे।

चलते चलते उन्होंने झिझकते हुए मुझे एक बंद लिफाफा दिया था और कहा था - इसे मैं घर जा कर ही खोलूं। यही लिफाफा लेकर बलविन्दर आया था और वे पूरा का पूरा पैकेट मुझे लौटा रहे हैं। उन्होंने हिन्दुस्तानी तरीके से हाथ जोड़ कर मुझे विदा किया था। मैं आते समय सोच रही थी कि एक तरफ यहां ऐसे भी लोग हैं जो सच्चाई पता चलने पर पूरी इन्सानियत से पेश आते हैं और दूसरी तरफ मेरा अपना पति मुझे बाज़ार में बेचने के लिए छोड़ गया था.. मैंने सोच लिया था अब उसके घर में एक मिनट भी नहीं रहना है।

मैंने घर पहुंचते ही लिफाफा खोल कर देखा था - लिफाफा खोलते ही मेरा सिर घूमने लगा था - बलविन्दर फोटोग्राफ्स के जो पैकेट वहां दे कर आया था उसमें मेरी सोते समय और नहाते समय ली गयी कुछ न्यूड तस्वीरें थीं। मेरी जानकारी के बिना खींची गयी नंगी और अधनंगी तस्वीरें। मुझे पता ही नहीं चल पाया कि उसने ये तस्वीरें कब खींची थीं। छी मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि मेरा अपना पति इतना नीच और घटिया इन्सान हो सकता है कि मेरी दलाली तक करने चला गया। मैं ज़ोर ज़ोर से रोने लगी थी।

हम हनीमून में भी और यहां संबंध ठीक हो जाने के बाद हम ऐसे ही बिना कपड़े पहने सो जाते थे। नये शादीशुदा पति पत्नी में ये सब चलता ही रहता है। इसमें कुछ भी अजीब नहीं होता। अपनी ये तस्वीरें देखते हुए मुझे यही लगा था कि उसने ये तस्वीरें मेरे सो जाने के बाद या नहाते समय चुपके से ले ली होंगी। सच, कितना घिनौना हो जाता है कई बार मरद कि अपनी ही ब्याहता की नंगी तस्वीरें बाहर बेचने के लिए दिखाता फिरे।

मेरी किस्मत अच्छी थी कि वह उस भले फोटोग्राफर के पास ही गया था जिसने न केवल मेरा मान रखा बल्कि ईमानदारी से पूरा का पूरा कवर भी लौटा दिया है। मैंने रोते-रोते सारे के सारे फोटो फाड़ कर उनकी चिंदियां बना दी थीं।

तभी मैंने घड़ी देखी थी। पांच बजने वाले थे। हरीश अभी ऑफिस में ही होगा। मैं तुरंत लपकी थी। मेरी किस्मत बहुत अच्छी थी कि हरीश फोन पर मिल गया था। वह बस, निकलने ही वाला था। मैंने रुंधी आवाज में उससे कहा था - यहां सब कुछ खत्म हो चुका है। मुझे घर छोड़ना है। अभी और इसी वक्त। मुझे तुरंत मिलो।

उसने तब मुझे दिलासा दी थी - मैं ज़रा भी न घबराऊं। सिर्फ यह बता दूं कि मेरे घर के सबसे निकट कौन सा ट्यूब स्टेशन पड़ता है। मुझे इतना ही पता था कि हम जब भी कहीं जाते थे से ही ट्रेन पकड़ते थे। मैंने होंस्लो वेस्ट स्टेशन का ही नाम बता दिया था। हरीश ने मुझे एक मिनट होल्ड करने के लिए कहा था। शायद अपने किसी साथी से पूछ रहा था कि उसे मुझ तक पहुंचने में कितनी देर लगेगी। हरीश ने तब मुझे एक बार फिर आश्वस्त किया था कि मैं होंस्लो वेस्ट स्टेशन पहुंच कर साउथ ग्रीनफोर्ड स्टेशन का टिकट ले लूं और प्लेटफार्म नम्बर एक पर एंट्री पांइट पर ही उसका इंतज़ार करूं। उसे वहां तक पहुंचने में पचास मिनट लगेंगे। वह किसी भी हालत में छः बजे तक पहुंच ही जायेगा। ओके।

मैं लपक कर बलविन्दर के अपार्टमेंट में पहुंची थी। संयोग से वह अभी तक नहीं आया था। कितना शातिर आदमी है यह!! मैंने सोचा था, मुझे अंधी खाई में धकेलने के बाद मुझसे आंखें मिलाने की हिम्मत भी नहीं हैं उसमें। मैंने अपने बैग उठाये थे। दरवाजा बंद किया था और एक टैक्सी ले कर स्टेशन पहुंच गयी थी। कितनी अभागी थी मैं कि हफ्ते भर में ही मेरा घर मुझसे छूट रहा था। मैंने ऐसे घर का सपना तो नहीं देखा था। रास्ते में मैंने बलविन्दर के घर की चाबी टैक्सी में से बाहर फैंक दी थी। होता रहे परेशान और खोजता रहे मुझे।

स्टेशन पहुंच कर भी मेरी धुकधुकी बंद नहीं हो रही थी। कहीं बलविन्दर ने मुझे देख लिया तो गजब हो जायेगा। घर तो खैर मैं तब भी छोड़ती लेकिन मैं अब उस आदमी की शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी और न ही उसे यह हवा लगने देना चाहती थी कि मैं कहां जा रही हूं। एक अच्छी बात यह हुई थी कि उसने न तो हरीश से मिलते वक्त और न ही बाद में ही उसके बारे में ज्यादा पूछताछ की थी।

हरीश वक्त पर आ गया था। उसके साथ उसका वही कलीग था जिसने उसे पेइंग गेस्ट वाली जगह दिलवायी थी। हरीश ने मेरे बैग उठाये थे और हम बिना एक भी शब्द बोले ट्रेन में बैठ गये थे।

और इस तरह मेरा घर मुझसे छूट गया था। मेरी शादी के सिर्फ सात महीने और ग्यारह दिन बाद। इस अरसे में से भी मैंने सिर्फ सैंतीस दिन अपने पति के साथ गुज़ारे थे। इन सैंतीस दिनों में से भी

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