'सच.., तुम मुजे छोड़कर चली जावोगी'
'हा.. लेकिन अभी कहा जा रही हु अभी तो में तुम्हारे साथ हु ना'
उसके बाद उसके हाथो में हाथ लेके हमने तब तक सालसा (डांस) किया जब तक बारिश ना थमी। बारिश के वो कुछ पल मानो मेरे लिए अनमोल थे उस वक़्त बस में, मीरा ओर बारिश हमारे अलावा मानो सारा जहाँ थम सा गया।
उस दिन के बाद ऐसे ही बारिश हमे हररोज मिलाती रही ओर हम मिलते रहे। लेकिन एक दिन अचानक ही बारिश का आना बंध हो गया ओर जैसे बारिश का मौसम खतम ओर शर्दिया शुरू हो गई। सर्दी के आते ही बारिश खो गई ओर उसके साथ वो भी।
* * *
एक हप्ते तक वैसे ही दिनभर छत पर बैठकर उसका इंतज़ार किया पर वो नही आई। मुजे लगा की वो शायद दिल्ही वापस चली गई। वैसे उसका ओर बारिश ये जो कनेक्शन था ये में उस वक़्त समझ ही नही पाया। उसके इंतज़ार में ही दिन पर दिन बीते आखिर एक दिन में उसके मामाजी के घर पोहच गया।
दरवाजा खटखटाया अंदर से एक गंजेबाल वाले बुजुर्ग आदमी ने दरवाजा खोला।
'अंकल अंकल.. आपकी भांजी कहा है.. मुजे उससे मिलना है'
मेने उससे उसकी भांजी मीरा के बारे में पूछा उस आदमी को मानो कुछ पता ही ना हो ऐसे हैरानी से वो बोला।
'भाई कोन सी भांजी..'
'वही जो दिल्ही से आई थी मीरा..'
उसने मना करते हुवे कहा
'ए किसकी बात कर रहे हो तुम.. देखो मेरी कोई भाजी है ही नही'
'ऐसे कैसे हो सकता है आप जुठ बोल रहे है कुछ दिनों पहले आपके यहां मीरा नामकी एक लड़की आयी थी हम रोज छत पे मिला करते थे।'
उसने गुस्से में मुजे डांटते हुवे कहा
'लगता है तुम पागल हो गए हो कितनी बार बताऊ की में किसी मीरा को नही जनता'
ओर उसने गुस्से में मुहपर ही जोर से दरवाजा बंध कर दिया।
वहाँ से घर आते वक़्त में पूरे रास्ते यही सोचता रहा
ऐसा कैसे हो सकता है या तो मीरा जुठ बोल रही थी या तो वो अंकल। अचानक ही मुजे मीरा की कही एक बात याद आयी।
'हा वो दिव्या आंटी ने तुम्हारी मम्मी के पास सिलाई के कपड़े लाने भेजा था वही लेने आई थी''
में फ़ौरन घर आया ओर मम्मी से भी इसबारे में पूछा।
'मम्मी तुम दिव्या आंटी को जानती हो?'
उसने हेरानी से मेरी ओर देखकर कहा
'नही तो तुम क्यो पूछ रहे हो ?'
मैंने मम्मी को मीरा के बारे में बताते हुवे कहा
'ठीक से याद करो मम्मी उनकी भांजी कुछ दिन पहले आपसे सिलाई किये कपड़े लेने आयी थी'
'नही तो यहां तो कोई कपड़े लेने नही आया था लगता है की तु पागल हो गया है आजकल कैसे कैसे सवाल करता है'
* * *
अगले साल पहेली बारिश के साथ ही फिर मीरा मेरी जिंदगी में वापस आई उसके आते ही में उससे लिपट गया।
'कहा कहा थी तुम.. मेने कहा कहा नही ढूंढा तुम्हे..?'
वो वैसी ही खामोशी से मुझे देखती रही।
'मत पूछो.. में नही बता सकती..'
फिर मेने उससे इसबारे में उससे कभी कुछ नही पूछा। उसके बाद हम हर साल बारिश के उन चार महीनो में मिलते थे। वक़्त के साथ हम एकदूसरे के काफी अच्छे दोस्त बन गए। दिनभर की बाते, मजाक मस्ती में ही वक़्त बीतता गया ओर ऐसे ही पांच साल हो गए।
पांच साल बाद
पांच साल बाद मेरे अंदर काफी बदलाव आये सत्रह साल का वो बावरा छोरा जयदेव अब शहर का जानामाना युवा लेखक ययबाबु बन गया। पूरा शहर मुझे जयबाबु के नाम से जनता था। हाल ही में मेरी कम्प्यूटर की पढ़ाई भी पूरी हुई ओर मुजे मेरे ही शहर में एक अच्छी सी सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब भी मिल गई। अब बारिश के मौसमो में बारिश तो आती है पर वो नही आती।
पिछले साल रिमझीम बारिशवाली एक बहेतरीन शाम को मेने अपनी छत पर उससे शादी के लिए प्रपोज़ किया।
तब उसने कहा
'जय में तुमसे प्यार करती हु बहोत प्यार करती हु।'
उसकी इस बात पर खुशी से मेने उसे गोद में उठा लिया।
तभी उसने कहा
'पर तुजसे शादी नही कर शकती..'
इस बात पर हमारे बीच काफी बहस हुई ओर आख़िर गुस्से में मेने उससे कह दिया
'तुम मुझे खभी समजोगी ही नही। बाय आज के बाद खभी मत मिलना।'
TO BE CONTINUE..