ye mausam ki baarish - 2 in Hindi Love Stories by PARESH MAKWANA books and stories PDF | ए मौसम की बारिश - २

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ए मौसम की बारिश - २





उसने कागज खोलकर पढा
'मुजे माफ् कर दो जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ नही है मेने ऐसा वैसा कुछ नही देखा ओर एक बात मुजे तुम्हारा डांस बहुत अच्छा लगा।'
कागज को पढ़ कर वो हसने लगी ओर वही से जोर से बोली
'ओये नाम क्या है तुम्हारा..?'
'ज..ज..जी जयदेव.. ओर आपका ?'
'मीरा.. , तुम यही रहते हो..?'
'हा.., लेकिन आप..'
'में दिल्ही से हु छुटिया चल रही है मामाजी के यह कुछ दिन आयी हु..'
'हम मिल सकते है..?'
'हा लेकिन सिर्फ छत पर..'

उसके बाद दो हमदोनो ने शाम ढलने तक काफी बातें की।
'तुम छत पर वापस कब आवोगी..?'
'जब बारिश आएगी तब।'
'लगता है तुम्हे मेरी तरह बारिश बहुत पसंद है'
'हा मोर की तरह में भी इन बारिश के बिना अधूरी हु। वैसे तुम्हे पता है बारिश में मोर क्यों नाचते है ?'
'नही तुम बतावो..?'
'ताकी बारिश के बिना मोर अधूरे है एक बारिश ही है जो मोर को अपनेआप में पूरा कर देते है। मेने बताया ना.. मेरी जिंदगी भी कुछ इस मोर की तरह ही है, बारिश मेरे अधूरेपन को भर देती है'
उसकी इस बात से में हँसा
'सुनो मीरा तुम्हारा नाम मीरा नही मयूरी होना चाहिए था'
मेरी इस छोटी सी मजाक सुनकर वो भी हँसने लगी। फिर छत पर आये उसे काफी देर हो गई थी तो उसने कहा।
'लगता है तुम फालतू हो जय लेकिन मुजे बहुत काम है में जा रही हु..'
ओर वो हसते हुवे खाली बाल्टी उठाकर नीचे की ओर चली गई।
* * *
हमारी उस मुलाकत के बाद दो दिनों तक ना बारिश आई ओर ना वो। मानो लगा की दोनो ने मुझसे मुह मोड़ लिया। अब ना बारिश आएगी ओर ना ही में मीरा से दोबारा मिल पाऊंगा।
तीसरे दिन भी में वैसे ही उससे मिलने के लिए छत पर खड़ा था। आखिर तीसरे दिन की शाम ने मुजे उसके इंतजार में ऐसे बेबस खड़ा देखकर मुझपर तरस खाया ओर अपनी बारिश की दो चार बूंदे मुझपर गिरा ही दी। उस पल मानो में तो खुशी से पागल सा हो गया। तभी पीछे से कोई दबे पाँव मेरी ओर आया उसके घुंघरू की वो छन छन मुझे कुछ जानी पहचानी सी तो लगी पर फिर भी में कुछ समझ पावु उससे पहले ही उसने मेरी आंखों पर अपने हाथ रख दिए।
मेने अपने हाथो से उस हाथो को आंखों से हटाने की कोशिश की। उस हाथो की नमी देखकर मुझे पता तो चल गया की कोन है फिर भी मेने कहा
'मुजे पता है राजु तु ही है हाथ हटा..'
तभी कानो के एकदम पास आकर उसने बड़े प्यार से कहा।
'में राजू नही कोई ओर ही हु'
वो मीरा ही थी।
'मीरा तुम..?'
उसने फ़ौरन मेरी आंखों से हाथ हटा लिए। ओर मेरी तरफ आकर कहा
'तुमने कैसे पहचाना.. की में मीरा हु'
'तुम्हारी इस प्यारी सी आवाज से जिसे सुनने के लिए में पिछले दो दिनों से बेताब था।
मेरी आंखों में देखकर उसने कहा
'तो तुम इंतजार कर रहे थे मेरा'
'हा.. दो दिन से ना बारिश आई ओर ना तुम..'
'क्या करु बारिश मेरी मजबूरी है'
'क्या..!' मेने हेरानी से पूछा
उसने बात को टालते हुवे कहा
'कुछ तुम नही.. छोड़ो तुम नही समजोगे।'
'लेकिन तुम यहां मेरी छत पर कैसे..?'
उसने बताते हुवे कहा
'हा वो दिव्या आंटी ने तुम्हारी मम्मी के पास सिलाई के कपड़े लाने भेजा था वही लेने आई थी।'
'तो तुम मेरी मम्मी से मिली.?'
'हा.., बहुत ही गुस्सेवाली है बचके रहना'
अचानक ही बादल गरजे ओर तेजधार बारिश बरसने लगी। उसने मेरा हाथ पकड़ा ओर अपनी ओर खींचते हुवे कहा।
'चलो जय इस बारिश का खुलकर मजा लेते है।
उसे रोकते हुवे कहा
'नही यार मम्मी ने ज्यादा भीगने से मना किया है।'
वो मुझपर हँसी
'फट्टू कही के.. अब भी मम्मी से डरते हो।'
थोड़ा शरमाते हुवे मेने कहा
'वैसा नही है.. शर्दी जुकाम है ना इसीलिए..'
उसने मेरे हाथो को चूमते हुए कहा
'सोच लो ये पल दुबारा नही आएगा मुजे ओर इस बारिश को बहुत मिस करोगे।'
उसकी बात सुनकर में मायूस हो गया
TO BE CONTINUE..