DHRNA - 5 in Hindi Classic Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | धरना - 5

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धरना - 5

दो दिन के लम्बे सफर के बाद निखिल, प्रिया और पवन शासकीय स्कूल पहुंचे थे....
आप लोग जिस शख्स की जानकारी लेने आये हैं वो शख्स आज से तीन साल पहले तक तो इस स्कूल में अतिथि शिक्षक था... फिर कलेक्टर के नये रूल के हिसाब से अतिथि शक्षकों को मना कर दिया गया था...
उसके बाद से पता नहीं... इससे ज्यादा मैं आपको और कोई जानकारी नहीं दे सकती हूं.... प्रिंसिपल ने थोड़ा टालते हुए से अंदाज़ में कहा था...
मेम आप सूरज के एड्रेस के बारे में तो बता ही सकती हैं... प्रिया ने थोड़ा खीजते हुए अंदाज़ में पूछा था...
नहीं इस बारे में हम किसी को भी किसी की जानकारी नहीं दे सकते हैं... प्लीस मुझें मज़बूर मत करिये... प्रिंसिपल के लहजे में थोड़ा रुखा पन था..
निखिल ने प्रिया को समझते हुए कहा... कोई बात नहीं प्रिया... रहने दो... ये सरकारी मुलाज़िम हैं... ये कुछ नहीं कर सकते... चलो... यहां से चलते हैं...
और तीनो वहां से उठ कर बाहर निकल आते हैं...
अब क्या करेंगे... कैसे पता चलेगा... सूरज का...?
प्रिया... अभी बहुत रास्ते हैं सूरज को खोजने के... इतना नर्वस क्यों हो रही हो...
नर्बस नहीं हो रही हूं... सूरज को लेकर मन में कुछ अजीब से ख्याल आ रहे हैं....
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भैया जी आप क्या कहना चाह रहे हैं मैं समझ नहीं पा रहा हूं ....
बात सीधी सी हैं सूरज.... अब तुम ही बताओ पिछले दो सालों से तुम लोग ये धरना दें रहे हो... कौन नेता आया कौन अधिकारी आया किसी ने आकर पूछा तुम से... नहीं ना यहां तक कि ना कोई मिडिया और अखबार वाले ने एक शब्द तक तुम्हारे लिए नहीं छापा... 15-20 दिन धरने पर बैठते हो और थक हार कर घर लौट जाते हो ऐसे धरने प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं निकलने वाला..
मंगेश भाई फिर हम क्या करें...?
शर्माजी अब आप लोग ही समझाओ अपने इस लीडर को...
सूरज भाई नेता जी बात तो ठीक ही कह रहे हैं... हमारे इस धरना प्रदर्शन से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला हैं.... सरकार ने तो फिर से नये अतिथियों की नियुक्ति कर रही हैं... कुछ समय बाद उनके भी साथ वही हाल होगा जो हमारे साथ हुआ हैं....
तो फिर हमें क्या करना चाहिए शर्मा जी....
मुझे तो लगता हैं भईया जी ठीक ही कह रहे हैं.. ऐसे में तो कोई मंज़िल ही दिखाई नहीं दें रही हैं...
देखो सूरज भाई मैं तुम लोगों का हितेषी हूं कोई दुश्मन नहीं हूं... इसीलिए कह रहा हूं इस धरने को कुछ अलग ही रंग देना होगा जिससे सरकार तुम्हारी मांगो के आगे झुके...
तो फिर हम क्या करें आज ये धरना यही खतम करे..
अब इसमें कोई आप लोगों को शंका हो तो मैं क्या कह सकता हूं... मेरा काम था आप लोगों को सही रास्ता दिखाना... बाकी आपकी मर्ज़ी...
अरे भईया जी... आप तो नाराज़ हो कर जा रहे हैं... दो मिनट रुकिए तो... अरे बताओ ना सूरज भाई क्या करना हैं...?
ठीक हैं भईया जी जैसा कह रहे हैं एक बार वैसा ही धरना करके देख लेते हैं...
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देखो प्रिया इतनी भाभुक मत बनो.... सूरज को कुछ नहीं होगा...
तभी निखिल स्कूल के गार्ड से कलेक्टर ऑफिस का पता पूछता हैं... गार्ड निखिल को बताता हैं... और तीनो कर में बैठ कर कलेक्टर ऑफिस की तरफ निकल जाते हैं...
हम कलेक्टर ऑफिस क्यों जा रहे हैं... निखिल..?
प्रिया हमें सारी इनफार्मेशन वही से मिलेगी... सूरज के बारे में...
क्या आपको लगता हैं वहां से जानकारी निकालना आसान होगा...?
उसकी चिंता मत करो इन सरकारी दफ्तरों से कैसे जानकारी निकाली जाती हैं मैं वखूबी से जानता हूं...
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कंटीन्यू -पार्ट 6