Kaun Dilon Ki Jaane - 24 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | कौन दिलों की जाने! - 24

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कौन दिलों की जाने! - 24

कौन दिलों की जाने!

चौबीस

रविवार की छुट्‌टी होने के कारण ड्राईवर तो आया नहीं था। रात को आये झक्कड़ व बारिश के कारण कार साफ करनी जरूरी थी, अतः रमेश ने लच्छमी से कार साफ करने के लिये कहा। रविवार को नाश्ता व लंच अलग—अलग न बनता था, वरन्‌ दोनों का मिश्रण ब्रंच ही बनता था, अतः आज भी रानी ने ब्रंच तैयार किया और टेबल पर लगा दिया। रमेश ने तैयार होकर ब्रंच किया और घड़ी देखी। ग्यारह बजने में दस मिनट थे। पिछले कुछ दिनों से दोनों में बोलचाल लगभग बन्द था। जब बिना बोले काम बिल्कुल सम्भव न होता था, तभी बोलते थे, वरना नहींं। रमेश ने पूछा नहीं कि रानी ने ब्रंच कर लिया है या नहीं, बस बाहर की ओर जाते हुए इतना ही कहा — ‘आओ चलें।'

रानी ने घर को ताला लगाया और कार में बैठ गई। घर से निकलते ही रमेश ने मिस्टर खन्ना को फोन करके अपने चलने की सूचना दी। मिस्टर खन्ना को रमेश सारी बातें तो बता ही चुका था, इसलिये मिस्टर खन्ना ने रानी को अलग केबिन में ले जाकर पूछताछ कुछ इस प्रकार आरम्भ की।

मिस्टर खन्ना — ‘मैडम, आपके दोस्त का क्या नाम है?'

‘जी, आलोक।'

‘बचपन में जब आपकी दोस्ती हुई, तब आप लोगों की उम्र क्या रही होगी?'

‘मैं छटी कक्षा में थी और आलोक सातवीं में।'

‘क्या आप एक ही स्कूल में पढ़ते थे?'

‘नहीं।'

‘यह दोस्ती कब तक रही?'

‘मतलब....?'

‘मेरा मतलब है कि बचपन में आलोक के साथ आपका साथ कब तक रहा?'

‘लगभग दो साल। फिर पापा की ट्रांसफर होने पर हम लोग जालन्धर चले गये थे।'

‘उन दो सालों में आप बचपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहे थे। क्या कभी ऐसा भी लगा कि आप महज़ दोस्ती से आगे भी बढ़ रहे हैं?'

मिस्टर खन्ना के प्रश्न ने रानी को द्वन्द्वात्मक स्थिति में डाल दिया। सोचने लगी, क्या बताऊँ और क्या न बताऊँ। अपने मनोभावों को नियन्त्रित करते हुए ‘नहीं' में उत्तर दिया।

‘उसके बाद आलोक से दुबारा कब मिलना हुआ?'

रानी ने जालन्धर से वापस बठिण्डा आने पर आलोक के घर पर उससे औपचारिक मिलन का जिक्र किये बिना कहा — ‘लास्ट ईयर नवम्बर में एक शादी में।'

‘तब से अब तक कितनी बार मिल चुके हैं?'

‘यही कोई चार—पाँच बार।'

‘इन मुलाकातों में कभी रात को भी इकट्ठे रहे होंगे?'

‘हाँ, एक बार।'

‘कब और कहाँ?'

‘पहली बार जब आलोक हमारे घर आये थे, तब वे रात को रुके थे।'

‘क्या तब रमेश जी घर पर थे?'

‘नहीं, वे मुम्बई गये हुए थे।'

‘आलोक का आपके घर आने का प्रोग्राम रमेश जी के मुम्बई जाने के बाद बना था या पहले से तय था?'

‘पहले से तय था।'

‘क्या रमेश जी को इसका पता था?'

‘नहीं। आलोक का हमारे घर आने का प्रोग्राम तो था, किन्तु पक्का नहीं था। इसलिये रमेश जी को पहले से नहीं बताया था। जब वे मुम्बई से वापस आये तो उनको बता दिया था कि आलोक इतवार को घर पर आये थे।'

मिस्टर खन्ना अगला प्रश्न, ‘एक ही बेडरूम में सोये था या अलग—अलग' पूछना चाहते थे, किन्तु टाल गये और पूछा — ‘आप अपने वैवाहिक जीवन से खुश हैं? मेरा मतलब है, रमेश जी के साथ आपके सम्बन्ध कैसे हैं?'

‘पिछले कुछ समय को और परिवार के छोटे—मोटे मन—मुटावों को छोड़ दें तो हमारे सम्बन्ध मोटे तौर पर ठीक ही कहे जा सकते हैं। हाँ, इतना जरूर कहूँगी कि रमेश जी के पास मेरे साथ बिताने के लिये फुर्सत के पल न के बराबर ही होते हैं। जब तक बेटियों के विवाह नहीं हुए थे, उनके साथ तथा उनके लिये काम करने में वक्त गुज़र जाता था, किन्तु उनके जाने के बाद से मैं अधिकतर समय अपनी महिला—मित्रों के साथ बिताकर अकेलेपन को भरने का प्रयास करती हूँ या घर बैठकर कुछ पढ़—वड़ लेती हूँ। इतनी उपेक्षा होने पर भी मैंने अपने पारिवारिक कर्त्तव्य—पालन में कभी कोताही नहीं की है।'

‘क्या आप अपने पारिवारिक रिश्ते को बचाने के लिये अपनी दोस्ती को भूल सकती हैं?'

‘सर, आप भी एक पुरुष की भाँति ही सोच रहे हैं, एक इन्सान की तरह नहीं। आज दुनिया कहाँ—से—कहाँ तक पहुँच चुकी है, स्त्रियाँ हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं। हमारे शास्त्रों से लेकर संविधान तक में स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त है और देवी की तरह पूजनीय भी माना गया है, लेकिन यथार्थ में स्त्री के प्रति पुरुष का दृष्टिकोण सदैव ही संकीर्ण व संकुचित रहा है, उसे कभी बराबरी का हक नहीं दिया गया। विवाह के बंधन में बंधी स्त्री तो पुरुष की सम्पत्ति ही समझी जाती है। समाज भी स्त्रियों के अस्तित्व को बाबा आदम के ज़माने की दृष्टि से ही देखने का आदी है। क्या स्त्री एक पुरुष की पत्नी बनने के बाद और कुछ रह ही नहीं सकती, उसके अपने व्यक्तित्व का कोई अस्तित्व ही नहीं रहता? स्त्री स्वातन्त्रय का ढोल प्रतिदिन प्रत्येक प्लेटफार्म से पीटा जाता है, लेकिन वास्तविकता क्या है, मुझे कहने की ज़रूरत नहीं, आप भली—भाँति जानते हैं!'

यह सब कहने के पश्चात्‌ स्वयं रानी को लगा कि वह कुछ अधिक ही कह गई है, किन्तु अन्तर्मन में प्रसन्न थी कि अपने हृदयोद्‌गारों को सही शब्दों में अभिव्यक्त कर पाई।

मिस्टर खन्ना — ‘सॉरी मैडम। मेरे प्रश्न से आपकी भावनाओं को ठेस पहुँची, आय एम रियली सॉरी। लेकिन हमारे प्रोफेशन में हमें केस को सही ढंग से समझने के लिये कभी—कभी अनचाहे प्रश्न भी पूछने पड़ते हैं। रही आपके विचारों की बात, तर्क की कसौटी पर आपसे असहमत होना मुश्किल है। कृपया आप ऑफिस में बैठें और रमेश जी को भेज दें।'

प्रश्नों के उत्तर में जो—जो बातें रानी ने बताईं, मिस्टर खन्ना ने रमेश को बता दीं। रमेश रानी की स्वीकारोक्ति से अन्दर—ही—अन्दर प्रसन्न भी था और खीझ भी रहा था कि रानी ने कई बातें जो वकील के सामने स्वीकार कीं, वो मेरे द्वारा पूछने के बावजूद छिपा गई थी। फिर मन में सोचने लगा, मैंने जितना पूछा था, रानी ने उसके जवाब ही तो दिये थे। जो मैं पूछ या सोच नहीं पाया, उनके जवाब अगर रानी ने नहीं दिये तो इसमें उसका क्या कसूर है। मिस्टर खन्ना का रोज़ाना का काम है, उसने सिलसिले वार प्रश्न किये और सारी बातें उगलवा लीं। चलो अच्छा ही हुआ। अब ठोस कदम उठाने का आधार बन गया है। उसने मिस्टर खन्ना से पूछा — ‘खन्ना साहब, इतना कुछ बताने के बाद, क्या आपको लगता है कि रानी ने अभी भी कुछ बातें न बताई हों?'

‘रमेश जी, आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैडम ने अभी भी कुछ बातें न बताई होंगी?'

‘बस, यूँ ही।'

‘रमेश जी, मैं एक प्रश्न पूछना चाहता था कि जब आलोक आपके घर आया और रात को रुका, तो क्या उन्होंने बेड ‘शेयर' किया था, किन्तु इतना तीखा प्रश्न मैं जानबूझ कर टाल गया।'

‘खन्ना साहब, यदि आपने अपना प्रश्न जो आप टाल गये, पूछ लिया होता तो मुझे आपसे प्रश्न करने का सबब ही नहीं रहता। खैर, अब मैं अपने तौर पर इस प्रश्न का उत्तर पाने की कोशिश करूँगा। पता नहीं क्यों, मेरा मन कहता है कि आप द्वारा न पूछे गये प्रश्न का उत्तर ‘हाँ' ही होता। अब जबकि आपने बड़े अच्छे ढंग से सारे केस को समझ लिया हैे, मुझे बताइये, मैं क्या करूँ?'

‘पहले आप बताइये कि आप क्या चाहते हैं, क्या आप चाहते हैं कि आपका वैवाहिक जीवन पहले की तरह चलता रहे?'

‘आपके सामने रानी ने जो तथ्य स्वीकार किये हैं, क्या अभी भी आपको लगता है कि हमारा वैवाहिक जीवन पहले की तरह चल सकता है? मैं तो समझता हूँ, नहीं। मुझे तो बस इतना बता दीजिए कि आपके समक्ष आये तथ्यों के आधार पर क्या मैं रानी से तलाक ले सकता हूँ?'

‘रमेश जी, हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत तलाक के लिये दो सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं। पहला सिद्धान्त है — प्रार्थी द्वारा आरोप लगाकर तलाक की फरियाद करना। इसके अनुसार पति—पत्नी में से कोई भी पक्ष जो स्वयं को पीड़ित मानता है, प्रार्थी हो सकता है तथा आरोप सिद्ध होने पर उसे तलाक मिल सकता है। दूसरा सिद्धान्त है — पति—पत्नी की आपसी सहमति से तलाक। आप जानना चाहते हैं कि जो बातें आपके केस में सामने आई हैं, उनमें से किस आधार पर आप तलाक ले सकते हैं, यही बात है ना?'

‘हाँ, मैं यही जानना चाहता हूँ।'

‘जो बातें सामने आई हैं, उनके मद्देनज़र आप धरा 13(1)(क) के तहत तलाक की अर्जी लगा सकते हैं।'

‘धारा 13(1)(क)क्या है?'

‘यह धारा पहले सिद्धान्त के तहत आती है। यह उस स्थिति में लागू होती है जब विवाहोपरान्त पति अथवा पत्नी स्वेच्छा से किसी अन्य व्यक्ति से हमबिस्तर होता / होती है। क्या आप यह आरोप सिद्ध कर पायेंगे?'

‘खन्ना साहब, दूसरे सि(ान्त की तपफसील भी बताने की कृपा करें।'

‘धरा 13(बी) के तहत पति—पत्नी की आपसी सहमति से तलाक हो सकता है। इसके अनुसार पति—पत्नी यदि एक साल या इससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं या उनका मानना है कि उनके लिये इकट्ठे रहना सम्भव नहीं है और वे परस्पर सहमत हैं कि उनका वैवाहिक सम्बन्ध—विच्छेद होना चाहिये।'

‘जो कानूनी नियम आपने बताये हैं और जिन हालात में से मैं इस समय गुज़र रहा हूँ, मेरे लिये आप कौन—सा रास्ता बेहतर समझते हैं?'

‘रमेश जी, मैं तो यही चाहता हूँ कि तलाक की नौबत ही न आये और यदि इसके बिना और कोई हल न निकले तो कानूनी पेचदगियों में पड़ने की बजाय आप आपसी सहमति से अलग हों तो अधिक श्रेयस्कर होगा। आप घर जाकर शान्त मन से सारी स्थिति का विवेचन करें और हो सके तो किसी विश्वासपात्र रिश्तेदार अथवा मित्र का भी सहयोग ले लें। कई बार तात्कालिक परिस्थितियों में हमें लगता है कि पानी सिर के ऊपर से गुज़र रहा हैं, किन्तु थोड़ा कूलिंग पीरियड निकलने के बाद समस्या का हल निकल आता है। आपको एक बार फिर मैं यही राय दूँगा कि हालात को ठंडा होने दें, फिर पुनःविचार करें और पुनःविचार के बाद भी यदि आप सोचें कि हालात नहीं बदल रहे तो जो निर्णय आप लेंगे, उसके अनुसार जो मदद मुझसे चाहेंगे, आपकी सेवा में हाज़िर हूँ। बेस्ट ऑफ लक्क।'

रमेश और रानी मिस्टर खन्ना के ऑफिस से घर आ गये। रानी को घर छोड़कर रमेश अपनी ताश—पार्टी के लिये निकल गया।

***