The Author आयुषी सिंह Follow Current Read मुझे याद रखना - 1 By आयुषी सिंह Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 81 अब आगे,अब अर्जुन जैसे ही अपने विला से बाहर निकला तो दिनेश, अ... शून्य से शून्य तक - भाग 49 49=== अचानक आशी टेबल से उठ खड़ी हुई| &ldquo... इश्क दा मारा - 40 गीतिका की भाभी की बाते सुन कर गीतिका का भाई बोलता है, "तुम्ह... अपराध ही अपराध - भाग 24 अध्याय 24 धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र... स्वयंवधू - 31 विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश... 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" यह इंस्पेक्टर अमन की आवाज़ थी। मैंने कहा " कल ही आया हूँ " कुछ देर हम दोनों कुछ केस पर चर्चा करने लगे। अभी हमें इस बारे में बात करते ज्यादा समय नहीं हुआ था इतने में एक लड़की का फोन आया वह बोली " यहाँ हाइवे पर कुछ है आप जल्दी आइए " मैं सोचने लगा आज ही तो आया हूँ आज ही यह आफत मिल गयी। जब हम हाइवे पर पहुंचे तो देखा जिस लड़की ने हमें फोन करके बुलाया था वह वहाँ थी ही नहीं। वहाँ रोड के एक तरफ गड्ढे में पानी भरा हुआ था और दूसरी तरफ झाड़ियां और कुछ छोटे बड़े पेड़ पौधे थे, आसपास एकदम सन्नाटा था। हम उन झाड़ियों में आगे बड़े ही थे कि वहाँ का नजारा देखकर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई........उन झाड़ियों के बीच में एक लड़की की लाश मिली जिसका चेहरा पूरी तरह से बिगड़ा हुआ था, पहचानना मुश्किल था, पहनावे और कद काठी से वह कोई 20-25 साल की लग रही थी। मैंने कॉन्स्टेबल रागिनी से कहा कि उस लड़की की लाश से कुछ आइ. डी. वगरह की तलाशी करे और इंस्पेक्टर अमन और कॉन्स्टेबल अर्जुन को आसपास जाकर देखने के लिए कहा। पर मैं खुद भी जानता था कि यह अंधेरे में तीर चलाने जैसा है क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था न कोई इंसान, न कोई परिंदा, न कोई दुकान, न कोई मकान सब कुछ सुनसान..... रागिनी ने बताया उस लड़की के पास न कोई आइ. डी. प्रूफ था और न ही कोई फोन या पर्स।अब हालात ऐसे थे कि उस लड़की के बारे में पता चलना नामुमकिन सा हो गया था। अभी मैं आसपास का जायजा कर ही रहा था कि अमन और अर्जुन आ गए, अमन ने कहा " सर सीसीटीवी तो दूर की बात है यहाँ तो कोई इंसान, घर, दूर दूर तक कुछ भी नहीं है। पता नहीं किसी ने इसका खून कर दिया है या फिर इसने खुदखुशी कर ली कुछ भी कहना मुश्किल है। सर मुझे तो लगता है इसने खुदखुशी ही करी है वरना अगर इसके साथ चोरी, लूटपाट या कुछ भी गलत हुआ होता तो इसके हाथ में यह महंगी घड़ी और उंगली में यह गोल्ड की रिंग न होती " एक पल के लिए मैं भी अमन की बात से सहमत हुआ पर अगले ही पल मैने कहा " नहीं अमन यह कोई आत्महत्या नहीं है यह एक मर्डर है " " सर आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? " अर्जुन और रागिनी एकसाथ बोले। तब मैंने कहा " ऐसा इसलिए क्योंकि पहली बात तो यह कि कोई भी इंसान अपनी पहचान छुपाकर खुदखुशी क्यों करेगा? कोई तो आइ. डी. प्रूफ होता इसके पास। चलो मान लो इसने अपनी पहचान छिपाई इसका भी कोई करण हो। दूसरी बात कि अगर इस लड़की ने आत्महत्या की है तो देहरादून में मरने के लिए कई जगह हैं जैसे यह किसी पहाड़ी से कूद सकती थी, अपनी छत से कूद सकती थी, या फिर जहर खा सकती थी, फाँसी लगा सकती थी, जब ऐसे हजारों तरीके हैं मरने के तो कोई अपने चेहरा बिगाड़ के क्यों मरेगा? " अमन ज्यादा देर तक चुप नहीं रह पाता है और आखिर बोल ही पड़ा " सर यह भी तो हो सकता है कि यह किसी वाहन के सामने आ गई हो और टक्कर लगने से इसकी मौत हो गई और ड्राइवर डर कर भाग गया " एक बार फिर मैं अमन की बात से सहमत हुआ पर कुछ देर बाद मैंने आगे कहा " नहीं अमन अगर यह किसी वाहन के सामने आती तो क्या सिर्फ इसका चेहरा खराब होता वो भी इतनी बुरी तरह से..... नहीं बल्कि इसके चेहरे के साथ साथ बाकी शरीर पर भी चोट या घाव के निशान होते और आसपास कहीं न कहीं खून के निशान भी होते पर देखो पूरी सड़क साफ है और तो और जहाँ इसकी लाश है वहाँ पर भी खून का कोई निशान तक नहीं है.......आश्चर्य है। " "सर यह भी तो..... " अमन एक बार फिर चुप न रह सका और थक हार कर बिना सिर पैर की बातें करने वाला था पर इससे पहले वो बोलता, मैं समझ गया कि अब यह क्या कहने वाला है " प्लीज़ अमन अब यह मत बोलना कि इसने एक भारी पत्थर खुद उठाया और अपने आप अपने चेहरे पर मार लिया क्योंकि इसके लिए यह एक भारी पत्थर उठाती कैसे? और उठा भी लेती तो क्या इतने भारी पत्थर को अपने सिर के ठीक ऊपर तक लेकर जा पाती? और ले भी जाती तो इसका सिर फूटता, चेहरा न बिगड़ता और अगर इसे अपना चेहरा ही बिगाड़ना था तो यह लेट कर पत्थर उठाती फिर अपने चेहरे पर मारती पर यह तो किसी भी हाल में संभव नहीं है। और सबसे बड़ी बात अगर इसने खुद यह सब किया भी है तो वह पत्थर कहाँ है जिससे इसका चेहरा बिगड़ा, कोई जानवर तो इतना भारी पत्थर लेकर जाने से रहा। "अब तक हमें वहाँ पर तीन घंटे हो गए थे और हम चारों ने अपने अपने तरीके से कुछ न कुछ सुराग ढूँढने की कोशिश की पर सब बेकार रहा। अब हम सब बुरी तरह से परेशान हो चुके थे कि तभी रागिनी ने दूर, झाड़ियों के आगे इशारा करते हुए कहा " सर वो देखिए वहाँ कोई मकान है..... शायद कुछ पता चल सके " अब हमने अंधेरे में आखिरी तीर छोड़ा और चल दिए उस मकान की तरफ। पूरे रास्ते में झाड़ियां और पेड़ पौधे थे, शायद उस तरफ कई सालों से कोई नहीं गया था। अमन और अर्जुन झाड़ियां हटाते जा रहे थे और मैं और रागिनी उनके पीछे चल रहे थे। पंद्रह मिनट में हम उस घर के सामने थे। अर्जुन सबसे आगे था और जैसे ही उसने उस मकान में पहला कदम रखा बाहर तेज आँधी आ गई और न जाने कहाँ से एक बड़ा काला पत्थर आकर उसके उसी पैर ( जिस पैर से उसने घर में कदम रखा ) पर गिर पड़ा और वह दर्द से चिल्लाने लगा, शायद उसके पैर में फ्रैक्चर हो गया था पर इतनी दूर आकर हम ऐसे ही वापस नहीं लौट सकते थे इसीलिए अर्जुन को वहीं बाहर बैठा दिया अब मैं सबसे आगे था और जैसे ही मैंने उस मकान में पहला कदम रखा...... हम सभी हतप्रभ रह गए..... आँधी अचानक से शांत हो गई थी जैसे वो मेरे अलावा किसी और को अंदर नहीं जाने देना चाहती थी। खैर....... हम तीनों अंदर गए तो देखा उस मकान में दरवाजे के ठीक सामने दो कमरे थे और बांए तरफ की दीवार लगभग टूट चुकी थी उसके बगल में एक मिट्टी का टूटा हुआ चूल्हा था और दांयी दीवार पर एक बड़ा काला गोला बना हुआ था और उसके ठीक नीचे एक काली कपड़े की गुड़िया थी जिसके चेहरे पर एक काला पत्थर रखा हुआ था। यह सब देखकर रागिनी चिल्लाने लगी " सर यह उसका निशान है, व.....वो..... वो है य..... यहीं कहीं....... वो अ.... आ जाएगी...... किसी को नहीं छोड़ेगी...... स....सर जल्दी चलिए....जल्दी चलिए " मैंने अमन को रागिनी के साथ छोड़ा और खुद पूरा मकान देखा कहीं कुछ नहीं मिला रागिनी अब तक चिल्लाए जा रही थी " सर चलिए " मैंने पूछा " क्या हुआ किसका निशान है रागिनी, कौन आ जाएगी? " रागिनी डर के मारे जोर से चिल्लाकर बोली " चुडै़ल, अब प्लीज़ चलिए सर " रागिनी के इतना कहते ही बाहर तूफान आ गया और अब मुझे भी उसकी बात सही लगने लगी तो सबकी सुरक्षा की खातिर मैंने वापस चलने के लिए कहा। अमन अर्जुन को सहारा देकर चल रहा था और मैं रागिनी के साथ चल रहा था क्योंकि वो बहुत डरी हुई थी, पर सच तो यह है कि डर तो हम सब रहे थे। मैं मन ही मन सोचने लगा यार चोर, डकैत, आतंकियों से लड़ना तो समझ में आता है, पर अब क्या भूत चुड़ैलों से भी लड़ना पड़ेगा, क्या ये ही दिन देखना बचा था ? अबतक आँधी बहुत बढ़ गई थी और धूल की वजह से मैंने आँखें बंद कर ली पर जब चलने में दिक्कत आने लगी तो मजबूरन आँखें खोलनी पड़ी और जब सामने देखा तो लगा मैंने आँखें खोलकर जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी........ मेरे डर और आश्चर्य की कोई सीमा न रही, हर तरफ अंधेरा छा गया था, ऐसी बदबू आ रही थी लग रहा था जैसे कोई चिता जल रही हो इस अंधेरे में कुछ भी नहीं दिख रहा था सिवाय उन दो लाल आँखों के जो मुझे ही घूरे जा रही थीं। अब मेरी हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं, मेरे मुंह से आवाज निकलना तो दूर मेरी सांसे तक ठहर सी गई, मुझे अपने पैरों की सारी ताकत जाती सी लग रही थी, मेरे पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई......और जो रही सही हिम्मत थी वह भी उसके शब्दों को सुनकर, मेरा साथ छोड़ गई। " मुझे याद रखना " इतना कहकर वह गायब हो गई और यह सुनते ही मैं बुरी तरह से काँपने लगा और उस घने अंधेरे में भी मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और मैं बेहोश हो गया। आगे जानने के लिए पढ़ें “मुझे याद रखना - भाग 2” › Next Chapter मुझे याद रखना - 2 Download Our App