Koun tha wo in Hindi Motivational Stories by DINESH DIVAKAR books and stories PDF | कौन था वो

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कौन था वो

दिन भर के थकान से मैं उस रेस्टोरेंट के बाहर बने चबूतरे पर बैठ गया मेरे आंखों में मुझे आज दिन भर के दृश्य याद आने लगे सुबह उठ कर मैं अपनी पत्नी सुरभि से बोला- अरे यार एक कप चाय पिला दो सर दर्द से फटा जा रहा है

तब सुरभि खींचते हुए बोली- चीनी खत्म हो गई है आज ऑफिस से आते हुए लेते आना और हां मेरे मोबाइल का रिचार्ज भी करवा देना कब से बोल रही हूं लेकिन आप तो कभी कोई काम समय पर करते ही नहीं 5 दिन हो गए हैं मैंने अपने मां से बात नहीं किया..... अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं अपने मायके चली जाऊंगी सुरभि फुसफुसाते हुए बोली

मैं भी झल्ला कर बोला- मैं क्या करूं इतने सारे काम होते हैं आफिस में अब मैं घर को संभालूं या आफिस, अगर आफिस का काम नहीं होता तो बांस मुझ पर चिल्लाते हैं और अगर घर का कोई काम छूट जाए तो तुम मुझ पर बरस पढ़ती हो। सुरभि कुछ नहीं बोली चुपचाप अपने चेहरे पर आंसू लिए रसोई में घुस गई।

इधर ऑफिस में जाते ही बांस ने मुझे 10-15 फाइलें पकड़ा दिया और बोले देखो सुधीर यह सब फाइलेऊ मुझे आज शाम तक कंप्लीट चाहिए नहीं तो तुम्हें रात भर यही बैठकर इसे पुरा करना पड़ेगा।

नहीं सर मैं आज शाम तक सारी फैली पूरी कर दूंगा- मैं झल्लाते हुए बोला

हां यही सही रहेगा ऐसा कहकर वह खडूस वहां से चला गया और मैं मन ही मन उसे गालियां देने लगा दिन भर बिना रुके काम करता रहा फिर शाम को घर आने के लिए मैं निकल पड़ा काम करने की वजह से मैं लेट हो गया इसलिए मेरी आखिरी बस भी छूट गया मैं दिन भर के थकान की वजह से और दोपहर के नाश्ता ना होने की वजह से कमजोर हो गया था तभी सामने एक रेस्टोरेंट दिखाई दिया यह देखकर मेरी भुख और भी बढ़ गया मैं उसके अंदर गया सारी सीट खचाखच भरा हुआ था

मैं झुंझलाते हुए इधर-उधर देखने लगा सामने गरमा गरमा बुंदी के लड्डू बन रहे थे मेरे मुंह में पानी आ गया मैंने एक पैकेट में पांच लड्डू पैक करवाए और रेस्टोरेंट के बाहर बने चबूतरे में डिब्बे को रखा और अपने कोट उतारकर मैं भी वहीं बैठ गया कुछ समय तक मैं वहीं बैठ कर अपने शरीर को आराम देता रहा

तभी उसी चबूतरे में एक और आदमी मेरे पास आकर बैठ गया वह दिखने में अजीब था पुराने कपड़े जैसे वह कई दिनों से उसी कपड़े को पहना हुआ हो बाल भी बिखरे हुए थे लेकिन उसका चेहरा एकदम फ्रेश था जैसे किसी चीज की कोई चिंता न हो मैं उससे अपना ध्यान हटाया और फिर अपने मोबाइल पर लग गया।

फिर जो आगे हुआ वह मेरे सहनशक्ति से परे था वह आदि मेरे मिठाई के डब्बे को खोला और उसमें से एक लड्डू को निकालकर बड़े आराम से खाने लगा, उसे देख कर मैं पूरा अपसेट हो गया आखिर कोई मेरे इजाजत के बिना मेरे लड्डू कोई कैसे खा सकता है लेकिन मैं बोल नहीं पाया और एक लड्डू मैं भी निकाल कर खाने लगा

उसके बाद वो आदमी फिर एक लड्डू निकाल कर खाने लगा अब यह मेरे बर्दाश्त से बाहर था मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आने लगा अखिर कोई मेरी इजाजत के बिना मेरे लड्डू खा कैसे सकता है इतना गुस्सा मुझे पूरे दिन में नहीं आया होगा जितना मुझे उस समय आ रहा था वह भी उस आदमी पर,

लेकिन मैं अब भी चुप था और गुस्से से मैं भी एक लड्डू निकाल कर खा गया फिर बचे एक लड्डू को उसने पुनः उठाया और कुछ देर सोचते हुए उसके दो टूकडे कर दिए और एक टूकडा मुझे देते हुए दूसरा टूकडा खूद खा गया।
फिर मुस्कुराते हुए वह वहां से जाने लगा

मेरे मन में अब गुस्से का सैलाब आने लगा था मैं वहां से जाने के लिए अपना कोट उठाया तो मेरा सर चकरा गया वो मिठाई का डिब्बा जिसे मैंने उस रेस्टोरेंट से खरिदा था वो तो मेरे कोट के नीचे पड़ा था

मैं वहीं अपना सर पकड़ कर बैठ गया तो क्या मै इतने देर से उस आदमी के लड्डू को खा रहा था और वो बिना किसी हिचकिचाहट के मुझे लड्डू खाने के लिए दे रहा था और आखिरी में अपना आधा लड्डू भी दे दिया वो चाहता तो मुझे लड्डू खाने से रोक सकता था लेकिन वह तो प्रसन्न पूर्वक मुझे अपना लड्डू खाने के लिए दे रहा था।

मेरी आंखें आत्मग्लानि से भर गया मैं अमिर होते हुए भी एक लड्डू के कारण इतना गुस्सा कर रहा था मेरे पत्नी पर मेरे परिवार पर गुस्सा करता था लेकिन वो गरिब जिसके कपड़े पुराने थे लेकिन उसके चेहरे पर गुस्से की एक लकीर भी नहीं था और उसके अंदर इतना बड़प्पन

मैं उसके तरफ देखने लगा और वो मुझे मुस्कुराते हुए देख कर मेरे नज़रों से ओझल हो गया कौन था वो ? जिसने मुझे जीवन का असली मतलब समझा दिया कि जिंदगी गुस्सा करने के लिए नहीं प्यार करने का है अब मैंने भी आगे से कभी गुस्सा नहीं करने की कसम खाया और खुशी खुशी आगे बढ़ने लगा

तभी मैंने देखा कि सामने चार पांच भुखे बच्चे सड़क किनारे बैठे अपने मां का इंतजार कर रहे थे कि कब वो खाना ले कर आए मैं उनके पास जाकर मुस्कुराते हुए अपना डिब्बा उनके सामने कर दिया लड्डू को देखकर उनके मन में खुशी छा गए और मैं मन ही मन खुश होते हुए अपने घर की चल पड़ा

आज भी मुझे उस आदमी का याद आता है कि कौन था वो ?

सीख:- जीवन को प्यार से जीने की कोशिश करें क्योंकि जिंदगी कब साथ छोड़ दें पता नहीं चलेगा इसलिए जब तक जी रहे हो अपने परिवार के साथ खूशी और प्यार से रहे......

®®® Dinesh Divakar'stranger'

काफी समय के बाद मैं आप सभी के लिए एक सीख वाला कहानी लेकर आया हूं मुझे उम्मीद है आपको पसंद आएगा कमेंट करके बताएं और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें जिससे वह भी अपने गुस्से को कम कर सकें और गुस्से से होने वाले नुक़सान से बच सके और ऐसे ही कहानियों को पढ़ने के लिए मुझे फालो करें।
धन्यवाद।।।