an Autobiography of Dr Vashistha Singh in Hindi Book Reviews by व्योमेश books and stories PDF | व्योमवार्ता - आत्मकथा मे समाहित डॉ० वशिष्ठ सिंह के कर्मयोग की भगवद्गीता

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व्योमवार्ता - आत्मकथा मे समाहित डॉ० वशिष्ठ सिंह के कर्मयोग की भगवद्गीता

व्योमवार्ता /आत्मकथा मे समाहित श्रीमद्भागवत गीता, डॉ0 वशिष्ठ सिंह की आत्मकथा : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 20 फरवरी 2017, सोमवार

पिछले दो सप्ताह से परम आदरणीय डॉ0 वशिष्ठ सिंह जी आत्मकथा पढ़ रहा हूँ, बल्कि पढ़ने के साथ साथ समझने व आतमसात करने का प्रयास कर रहा हूँ. डॉ0 वशिष्ठ सिंह हमारे अध्यापक व गुरू रहे है अध्यापक के ऱूप मे उन्होने हम लोगो को विषय ज्ञान दिया तो गुरू के रूप मे जीवन के गूढ़तम समस्याओं से निपटने व सरलता सहजता व संयमता से जीने का व्यवहारिक सोच व दृष्टिकोण. वशिष्ठ सर आज के उन कुछेक गिनेचुने लोगो मे से है जिनकी कथनी व करनी मे कोई अंतर नही है. मऊ जनपद के पलिया गॉव के एक समृद्धिशाली परिवार मे जन्म लेने के बावजूद विमाता के हस्तक्षेप के कारण हाईस्कूल के बाद से ही पढ़ाई के लिये लगातार संघर्ष में मित्रों, शुभचिंतको के सहयोग से एम ए गणित तक की शिक्षा फिर मऊ से कलकत्ता से लेकर यूपी कालेज मे नौकरी प्राप्त करने तक उनकी संकल्पशक्ति हमेशा हम सब के लिये प्रेरणादायक रहेगा. डॉ0 वशिष्ठ सिंह के आत्मकथा को पढ़ कर उनके जीवन व कार्योे के पीछे छिपे बेहद निजी रहस्यों का पता चलता है जैसे उनके द्वारा बनारस मे वाईएमसीए कोचिंग की शुरूआत क्यों की गई और कई एक वर्षों तक सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुँच कर बंद कर दी गई? सर द्वारा कालेज मे क्यो कभी लाभ का पद नही लिया गया? और सर हमेशा समयपाबंदी को ले कर इतना कठोर क्यों रहते थे? इन सब के पीछे छिपे कारणों को उन्होने स्वयं जीया है, उसका सुख एवं पीड़ा महसूस किया है. बेहद सहज भाव से गॉव के संपत्ति संघर्ष मे स्वयं के अंदर अहंकार आने की स्वीकरोक्ति, फिर कालेज के भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष मे योगदान, आजादी बचाओ आंदोलन मे प्रो0 बनवारी लाल शर्मा जी के आदेश को सिरोधार्य कर अपने स्तर से योगदान व नेतृत्व सब कुॉछ बेहद ईमानदारी से पिरोते गये है सर. कहीं पढ़ा था कि व्यक्ति स्वयं के बारे मे लिखते समय थोड़ा सा संकीर्ण व आत्ममुग्ध हो ही जाता है पर वशिष्ठ सर के आत्मकथा मे ऐसा कही बोध नही होता. हमने उनसे खुद के बारे मे जो सुना है वही देखा है और वही आत्मकथा ने पढ़ा भी है. सही अर्थो मे उनके कथनी व करनी मे कोई अंतर नही है. मनसा वाचा कर्मणा एक ही वास्तविक जीवन को जीते हुये उन्होने स्वयं को जीया है, वही बताया है, वही लिखा है. एक उदाहरण देना चाहूगॉ, बहुतेरे लोग कहते है कि जीवन के इस पड़ाव पर सन्यास ले लूगॉ, या यह कर्तव्य पूर्ण होने पर सांसारिक जीवन के आपाधापी से स्वयं को विमुख कर लूगॉ, पर उनका वह पड़ाव कभी नही आता, एक के पश्चात दूसरी मृगतृष्णायें उन्हे बॉधी रहती है पर वशिष्ठ सर ने अपने कहे अनुसार 75 वर्ष की आयु होने पर स्वयं को मृगतृष्णाओं व जिजीविषाओं से निर्विकार कर लिया है. श्रीमद्भागवत गीता को आदर्श ही नही जीवनदर्शन व कर्तव्य के रूप मे स्वीकार करते हुये संपूर्ण जीवन वशिष्ठ सर ने ईश्वर की ईच्छा व निर्देशन मान कर जीया है कदाचित् इसीलिए उन्होने अपनी आत्मकथा के परिचय मे लिखा भी है कि " व्यहार मे ऐसा देखा जाता है कि कुछ व्यक्ति स्वप्न ही देखते रहते हैं, कुछ व्यक्ति स्वपनो को साकार करने के लिये प्रयत्नशील रहते है, परन्तु कुछ भाग्यशाली व्यक्ति स्वप्नो को साकार भी कर लेते हैं. मेरी स्थिति इन सभी से बिलकुल भिन्न है क्योकि मैने इस प्रकार के कार्य की न तो कभी पहले योजना बनाई थी और न तो कभी इसका स्वप्न ही देखा था. यह ईश्वर का मेरे ऊपर अनुग्रह ही कहा जा सकता है कि उन्होने मेरी क्रियाशीलता, अभिरूचि और आन्तरिक भावनाओं को लक्ष्य कर मुझे इस कार्य के लिये प्रेरित किया .
वशिष्ठ सर ने अपनी जीवन यात्रा के तीन प्रकार से देखते हुये यह आत्मकथा लिखी है और यह तीन महत्वपूर्ण भाग है उनके आत्मकथा के. व्यक्तिगत जीवन मे उन्होने अपने पारिवारिक जीवन का संघर्ष, अध्ययन के लिये संघर्ष व इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र जीवन, नौकरी के लिये कलकत्ता से वाराणसी तक की यात्रा, यू पी कालेज मे अध्यापन के दौरान काहिविवि से शोधकार्य, फिर टाटा इंस्टिट्यूट आफ फण्डामेण्टल रिसर्च मे ओरियेण्टेशन कार्यशाला, पारिवारिक जिम्मेदारियोंं को पूरा करने ते लिये वाईएमसीए कोचिंग का संचालन फिर उन पारिवारिक जिम्मेवारियो के पूरा होते ही लोकप्रियता के शिखर पर चल रही कोचिंग को बंद कर देना जैसे कार्यो के वर्णन वशिष्ठ सर ने बेहद ईमानदारी से करते हुये अपने निष्काम कर्मयोगी होने काे दर्शाया है. यद्यपि वे कहीं भी मनसा वाचा कर्मणा स्वयं को कर्मयोगी होने का दावा नही करते पर उनको करीब से जानने वाले उनके निष्काम कर्मयोग से भली भॉति परिचित है.
दूसरे भाग मे उन्होने अपने व्यवहारिक जीवन मे आये उन महान व्यक्तियों के बारे मे चर्चा व संस्मरण किया है जिनसे वे प्रभावित रहे है. इन महान व्यक्तित्वो मे प्रो0 बनवारी लाल शर्मा, प्रो0 जानकीप्रसाद द्विवेदी, रामअशीष सिंह, जगदीश सिंह के साथ साथ अपने जीवन को आध्यात्मिक दिशा देने वाले वाले स्वामी स्वतंत्रानन्द, स्वामी कृष्ण प्रेमानन्द सरस्वती, स्वामी परमानन्द, श्री श्यामचरण दास, स्वामी धर्मनीधि, स्वामी सुरेशानन्द, श्री नरेन्द्र रामदास व राष्ट्रसंत श्री रामेश्वर जी के साथ बिताये संस्मरण व जिग्यासा समाधान का वर्णन है.
आत्मकथा के तीसरे भाग मे श्री मद्भागवत व उससे प्रेरित हो कर विभिन्न जीवन मूल्यो का उल्लेख है. वशिष्ठ सर ने संपूर्ण जीवन मे श्री मद्भागवत का अनुशीलन ही नही किया बल्कि उसे जीया भी है. जीवन के दैनिन्दिन कार्यों से लेकर जीवन मूल्यों के संघर्षो मे, चाहे वह यू पी कालेज प्रबंधन का मसला रहा हो या आजादी बचाओ आंदोलन उनके नित कार्यों मे श्री मद्भागवत की प्रेरणा परिलक्षित होती है. उसी प्रेरणा के अन्तर्गत अपने आत्मकथा के तीसरे व आध्यात्मिक खण्ड मे उन्होने गुरू : गुरुतत्व, गीता के संबध मे स्वामी विवेकानंद, डा0 ऐनी वेसेण्ट, लोकमान्य तिलक, हक्सले,महात्मा गॉधी, अरविंद के साथ महामना मालवीय के विचारो के साथ गीता , उपनिषद, मनुस्मृति के परिप्रेक्ष्य मे धर्म, मानवधर्म, मन,योग, बुद्धियोग, कामना, ईच्छा, स्वभाव तथा स्वधर्म, कर्म - विकर्म- अकर्म, कर्ता, अनासक्ति-असंगता, यग्य भावना, ग्यान विग्यान,स्थितप्रग्य -दर्शनव परम पुरूषार्थ, परम लक्ष्य को वैग्यानिक तरीके से सरलतम शब्दों मे समझाया है.
इन आयामों को सहज भाव से समझने व समझाने के पश्चात लगभग 105 पृष्ठों मे श्रीमद्भागवतगीता को सार रूप मे समझाते हुये सार रूप मे उन्होने गीता को जिस सहज भाव से समझा है वही लिखा है. पुन: गीता के व्यवहारिक प्रयोग के रूप मे ऊँ की साधना, भागवत पुराण, गीता व भागवत का लक्ष्य, भगवान की बाल लीलाओं का रहस्य का वर्णन करते हुये वे स्वयं बालहृदय भाव से भक्तिरस मे डूब गये हैं और इसी लिये उनकी आत्मकथा परम्परागत रूप से समाप्त न हो कर भक्ति रस के पात्रो के उपाख्यानों से समाप्त होती है.
कुल मिला जुला कर डॉ0 वशिष्ठ सिंह जी की आत्मकथा " मेरी जीवन यात्रा : एक सुखद संस्मरण" एक सहज सरल व सत्य अभिव्यक्ति है जो आत्मकथा लिखने मे स्वाभाविक सहज दोष, आत्मप्रवंचना, आत्मप्रशंसा से दूर दोष रहित कृति है. यह हम सबको उनके विद्यार्थी होने के साथ साथ शिक्षार्थी होने का भाव जगाती है. आज भी वे अपनी प्रवृत्ति के अनुसार समाज पर उनका विशेष ध्यान है और वे कई ट्रस्ट स्थापित कर सामाजिक विविध कार्यो मे योगदान दे रहे हैं.
(बनारस, 20 फरवरी 2017, सोमवार)
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