Subah aese aati hai - anju sharma in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | सुबह ऐसे आती है - अंजू शर्मा

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सुबह ऐसे आती है - अंजू शर्मा

किसी कवियत्री को कहानीकार के रूप में सफलतापूर्वक परिवर्तित हो किस्सागोई करते देखना अपने आप में एक अलग एवं सुखद अनुभव से आपको रूबरू करवाता है। वर्तमान साहित्य जगत में अंजू शर्मा जी का नाम उनकी कविताओं के ज़रिए पहले से ही किसी पहचान या परिचय का मोहताज नहीं है। पहले उनकी अलग कलेवर से संचित कविताएं मन मोहने के साथ अलग ढंग से सोचने पर मजबूर भी करती थी और अब..अब तो साहित्य की अन्य विधाओं जैसे कहानी एवं उपन्यास के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण दखल रहने लगा है।

भावनाओं से लबरेज़ उनकी कहानियाँ बिना किसी झिझक, दुविधा अथवा परेशानी के पाठकों को अपने साथ लंबी सैर पर चलने के लिए तुरंत राज़ी कर लेती हैं। किसी भी कहानी के साथ, उसे किस तरह का ट्रीटमेंट मिलना चाहिए, ये वह भलीभांति जानती हैं। जहाँ एक तरफ उनकी कहानी की धाराप्रवाह लेखनशैली पाठकों को अपने साथ अपनी ही धुन में बहाए ले चलती है, वहीं दूसरी तरफ उनकी कहानी को कहने की भाषा कहानी के किरदारों, माहौल, स्तिथि परिस्थिति एवं परिवेश के हिसाब से अपने आप स्थानीय एवं भाषायी कलेवर अपना बदलती रहती है जिससे कहानी को और अधिक विश्वसनीय होने में तार्किक ढंग से मदद मिलती है।
उनके पास विषयों तथा विषयानुसार बर्ताव करने वाले किरदारों की कमी नहीं है। जितनी आसानी से वो अपनी कहानी को फ्लैशबैक में ले जाती हैं, उतनी ही सहजता से वे उससे बाहर भी आ जाती हैं। अभी फ़िलहाल में मुझे उनका दूसरा कहानी संग्रह "सुबह ऐसे आती है" पढ़ने का मौका मिला। इस संकलन की कहानियों में से कुछ को मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ। इस संकलन की कहानियों में जहाँ एक तरफ तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों का प्रभावी रूप से जिक्र है तो दूसरी तरफ कैरियर की अंधी दौड़ में टूटते परिवारों की भी दिक्कतें एवं परेशानियां हैं। किसी कहानी में अपनी मंज़िल तक ना पहुँच पाने पर अवसाद ग्रसित हो आपसी रिश्ता जुड़ने से पहले ही टूटने की कगार पर है तो किसी कहानी में कश्मीर के विस्थापितों के दुख दर्द को समेटते हुए उनके फिर से उबरने का जिक्र है।

किसी कहानी में पुरुषात्मक सत्ता के कट्टरपंथ से विरोध जता महिलाओं के आगे बढ़..उभरने की कहानी है। तो किसी कहानी में पुराने दकियानूसी अंधविश्वासी विचारों पर भी प्रभावी ढंग से चोट की गयी है। किसी कहानी में सम्मानपूर्वक ढंग से विधवाओं के उत्थान की कहानी है तो किसी कहानी में नॉस्टेल्जिया से गुज़रते हुए गांव, घर, कस्बों से जुड़े रिश्तों के टूटने और फिर जुड़ने की कहानी का प्रभावी ढंग से ताना बाना बुना गया है।

इस संकलन को पढ़ते हुए हमारा सामना कहीं ईश्वर के प्रति आस्था- अनास्था से गुज़रती हुई कहानी से होता है तो किसी कहानी में वर्जित फल को चखने के तमाम प्रलोभनों से दृढ़ निश्चयी स्त्री के बच निकलने की कथा को विस्तार दिया गया है। किसी कहानी में हम जेल जा चुके व्यक्ति के सज़ा काट..जेल से छूटने पर उसके परिवार द्वारा उसे ही भुला दिए जाने की मार्मिक घटना से रूबरू होते हैं तो किसी कहानी में अनैतिक रिश्तों के भंवर में डूबे व्यक्ति के ठोकर खा.. वापिस घर लौटने को लेकर तमाम प्लाट रचा गया है। एक तरह से हम कह सकते हैं कि इस पूरे कहानी संकलन में एक आध कहानी को छोड़ कर हर कहानी अवसाद से उबर कर हम में एक तरह से ऊर्जा एवं साकारात्मकता का संचार करती है।

अंत में एक पाठक की हैसियत से कुछ सुझाव कि मुझे इस किताब को पढ़ते वक्त कुछ जगहों पर शब्दों के रिपीट होने की ग़लती दिखाई दी और पूरी किताब में जायज़ जगहों पर भी नुक्तों का प्रयोग ना के बराबर दिखाई दिया।

आने वाले संस्करण/पुनर्मुद्रण तथा आने वाली नई किताबों में इस तरह की छोटी छोटी कमियों को आसानी से दूर किया जा सकता है।

उम्दा क्वालिटी के इस 135 पृष्ठीय कहानी संकलन को छापा है भावना प्रकाशन ने और इसके पेपरबैक संस्करण का मूल्य ₹195/- रखा गया है जो कि किताब की क्वालिटी और कंटैंट को देखते हुए ज़्यादा नहीं है। लेखिका तथा प्रकाशक को इस संग्रहणीय किताब के लिए बहुत बहुत बधाई तथा आने वाले भविष्य के लिए अनेकों अनेक शुभकानाएं।

***राजीव तनेजा***