Ahesano ki kimmat in Hindi Moral Stories by Divya Sharma books and stories PDF | एहसानों की कीमत

Featured Books
Categories
Share

एहसानों की कीमत



आज पूरे दो साल बाद वह वापस उस घर की दहलीज पर लौटी थी।

कभी इस घर में अरमानों को मन में बहाए दुल्हन के वेश में आई थी।दो साल, दो साल तक खुद को तलाशती सीमा आज फिर से वहीं थी।

उसके हाथों से लगी फूलों की बेल अभी भी वहीं थी।सड़क पर कुछ फूल झड़े हुए थे।सीमा ने वह फूल उठाए और हथेली पर रख लिए।दो आँसू गाल पर ढुलक गए।

"अरे मेमसाब आप!नमस्ते.. कैसे हो आप?"

"ठीक हूँ बद्री ।तुम कैसे हो और...."कुछ अधूरा छोड वह घर की तरफ देखने लगी।

"मैं ठीक हूँ मेमसाब और साब भी।"आँखों को चुराते हुए वह बोला।

"अपने साहब को बता दो मैं आई हूँ।"गेट के अंदर घुसते हुए सीमा ने कहा।

"जी !"कहकर बद्री तेजी से अंदर चला गया।सीमा लॉन में रखी कुर्सी पर जाकर बैठ गई।चारों तरफ फूल खिले थे।इन फूलों से कितना प्यार था उसे।यह उसका घर था.....था शायद ।यादों का पहिया उल्टा घुमने लगा।वह लाल लिबास में फूलों से महकते कमरें में सुकुचाई सी बैठी थी।थकान के कारण नींद से पलकें बोझिल हो रही थी

"सीमा... सीमा!"किसी ने जोर से झिंझोडा।

अचानक अजनबी चेहरे को बिल्कुल नजदीक देख वह डर कर सिमट गई।जाने कब आँख लग गई थी उसे पता नहीं चला।

"वो..वो..नींद...।"

"लगता है नींद काबू में नहीं तुम्हारे!"कुर्ता उतार कर एक ओर फेंक कर वह अजनबी बोला।

सीमा का शरीर पसीने से भीग गया।वह अजनबी उसका पति था फिर भी न जाने कैसा भय।उसके बाद जो गुजरा वह सीमा के डर को और बढा गया।

कमरें में हल्की सिसकियां आने लगी जिन्हें कोई नहीं सुन रहा था।

"साब अभी आ रहे है मेमसाब।"बद्री ने आकर कहा तो सीमा हकीकत में वापस आ गई।वह वहीं चहल कदमी करने लगी।

"आप अंदर चलो ना मेमसाब!"बद्री ने कहा।

"मैं यहीं ठीक हूँ।"सीमा ने जवाब दिया और वापस यादों में पहुंच गई।

"तुम अपने रहन सहन को बदल नहीं सकती!मेरी सोसायटी में बैठने लायक भी नहीं लगती हो तुम।"

"पर शादी से पहले तो यही रहन सहन तुम्हें अच्छा लगता था.. अब क्या बदल गया?"सीमा ने सुधीर से सवाल किया।

"तुम्हारी पहचान।जाओ चेंज करके आओ।"वह बोला।

"पर...पर इसमें दिक्कत क्या है सुधीर!"सीमा ने पूछा।

"सवाल बहुत करती हो।इतना समझ लो कि मेरी बीवी सबसे खूबसूरत लगनी चाहिए.. सबसे खूबसूरत।"सीमा के गालों को थपथपा कर उसनें कहा।

"चाय ले आऊं मेमसाब?"बद्री की आवाज से वह फिर हकीकत में लौट आई।

"नहीं,रहने दो....अच्छा बताओ,माँ कहाँ है?"सीमा ने बद्री से अपनी सास के लिए सवाल किया।

"वह लंदन चली गयी।"बद्री ने जवाब दिया।

"कब?"सीमा के माथे पर बल पड़ गया।

"आपके जाने के छ:महीने बाद।"

"ओह... फिर... क्या इन्होंने दूसरी...।"सीमा ने हकलाते हुए कहा।

"नहीं....।"बद्री ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

वह बेसब्री से सुधीर का इंतजार कर रही थी।पर उसे मालूम था वह इतनी जल्दी नहीं आयेगा।

यह इंतजार क्यों उसे पीछे धकेल रहा था।वह वापस वहीं क्यों खड़ी थी।

शादी से पहले उसके लिए पागल सुधीर शादी के बाद इतना बदल जायेगा। वह दिन सीमा आजतक नहीं भूल पाई थी

"सीमा..... सीमा.....।"

अचानक एक तेज आवाज उसके कानों से टकराई।

"आई सुधीर....क्या हुआ?"

"अपने एकाउंट से पैसे निकाले तुमनें?"वह लगभग चिल्लाते हुए बोला।

"हाँ.....।"सीमा ने कहा।"तुम्हें बताने वाली थी लेकिन तुम बिजी थे और फोन भी नहीं उठा रहे थे।

"ऐसी क्या जरूरत आ गई थी जो पचास हजार रुपए निकालने पड़ गए?"

"माँ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।अचानक तबीयत बिगड़ गई।आपरेशन करवाना पडेगा।"सीमा ने सुधीर को बताया।

"तबीअत खराब हो गई थी तो तुम्हारा भाई क्या मर गया है!वह नहीं दे सकता था पैसे?"वह सीमा पर चिल्लाते हुए बोला।

"तुम उसकी हालत जानते तो हो!बाकी पैसे तो उसनें ही भरे हैं।"सीमा ने लगभग रोते हुए कहा।

"तुम्हारी माँ उसकी जिम्मेदारी है हमारी नहीं।क्यों फालतू में चक्कर में पड़ती हो?"जूते उतारते हुए वह बोला।

सीमा खामोशी से खड़ी रही।

"चलो ठीक है दे दिए तो एहसान ही हो गया और मायके में तुम्हारा दबदबा।"हँसते हुए वह बोला

दिल में कुछ फंस सा गया सीमा के।खुद को इतना लाचार कैसे बना लिया उसनें जो माँ के इलाज के लिए भी सुधीर के पैसे..।

सब कुछ उसकी आँखों के सामने आ कर गुजर गया।

"सुधीर, माँ के इलाज में मदद करना एहसान है?"

"अरे छोडो यह सब।तुम चाय बना लाओ और देखो तैयार हो जाओ जल्दी से।हमें एक पार्टी में जाना है।"वह अपनी ही रो में बोला।

"पार्टी!माँ बीमार है सुधीर।हमें वहाँ होना चाहिए।"सीमा ने कहा।

"हमारे जाने से ठीक हो जायेंगी क्या?ड्रामा न करो।पार्टी में शामिल होना जरूरी है।तुम चाहो तो और पैसे भेज दो।मैं तुम्हारे भाई के एकांउट में ट्रांसफर कर देता हूँ।"सुधीर ने कहा।

"क्या पैसा हमारी जगह भर देगा?"वह चिढ़ते हुए बोली।

"तुम बेकार की बहस कर रही हो।पैसे में बहुत बड़ी ताकत है।जाओ यार चाय ले आओ वरना बद्री को बोल दो।"लापरवाही से वह बोला और सोफे पर पसर गया।

पार्टी की रौनक में सीमा खुद को असहज महसूस कर रही थी दिमाग माँ के पास था।

"सीमा!तुम कुछ परेशान लग रही हो?"सुधीर के दोस्त की पत्नी ने निकट आ कर कहा

"नहीं बस ऐसे ही।"संक्षिप्त सा उत्तर दे सीमा चुप हो गई।उसकी आँखों में एक नमी उतर आई।

"नहीं जरूर कोई बात है।बताओ मुझे।"वह पुनः बोली।

"माँ अस्पताल में है।हार्ट का आपरेशन है।"सीमा की आँख से पानी बहने लगा।

"ओह..फिर तुम यहां क्या कर रहे हो।उनके पास होना चाहिए था।"वह बोली।

सीमा खामोश हो गई और आँखों के कोर पोछने लगी।तभी सुधीर आ गया और सीमा को ऐसे देखकर चिढ गया।

"सुधीर भैया! सीमा की माँ अस्पताल में है और आप यहाँ!"

"वो भाभी बस इसके बाद वहीं जाने वाले हैं।पैसे भिजवा दिए हैं और जरूरत पड़ने पर दूंगा।मैं जिम्मेदारी समझता हूँ।"सुधीर ने सीमा के चेहरे को घूरते हुए कहा।

"यह तो बहुत अच्छी बात है।सच में सीमा तुम बहुत लक्की हो जो सुधीर भैया मिले।"वह फिर बोली और सीमा की पीठ को सहला कर चली गई।

सुधीर जल्दी पार्टी से वापस आ गया।पूरे रास्ते वह खामोश रहा।

घर के अंदर पहुंचते ही सीमा पर फट पड़ा।

"बिल्कुल जाहिल हो तुम!इस तरह से मुझे बेज्जत करके क्या हासिल करना चाह रही थी?"

"पर मैंने क्या किया?"सीमा बोली।

"तुमनें क्या किया!तुम पूछ रही हो।वहाँ रो रो कर नौटंकी की क्या जरूरत थी।क्या जरूरत थी माँ बीमार है बताने की!!!सच कहा हैकिसी ने कि अपनी हैसियत देखकर ही रिश्ता जोड़ना चाहिए।"सुधीर गुस्से में चिल्लाया।

"क्या बकवास कर रहा है सुधीर!"पीछे से सुधीर की माँ ने उसे टोका।

"और क्या कहूँ माँ।इस जाहिल को पूछो कि क्या जरूरत थी पार्टी में रोने की!"

"सुधीर,माँ बीमार है उसकी।उसके दुख को समझो!"सुधीर की माँ ने कहा।

"समझ तो रहा हूँ इसलिए तो जो पैसे इसने वहाँ भिजवाए उनके लिए कुछ नहीं कहा।

"तो क्या हो गया?"तुम्हें कमी है क्या किसी चीज की जो इन छोटी बातों पर ध्यान दे रहे हो।

"कौन ध्यान दे रहा है माँ।इन छोटे छोटे एहसानों को मैं याद नहीं रखता।"सुधीर ने कहा।

सीमा के कानों में एहसान शब्द पिघले हुए शीशे की तरह पड़ने लगा।

वह गुस्से और अपमान से जल उठी।वह खुद को इस घर की मालकिन समझ रही थी लेकिन नहीं जानती थी कि वह तो सुधीर के एहसानों पर पल रही है।

बेड पर पड़ी वह करवटें बदल रही थी।सुबह माँ के पास जाना था लेकिन सुधीर के शब्दों से उसकी नींद उड़ चुकी थी।तभी पीछे से सुधीर ने बाँहों का घेरा डालकर उसे अपनी ओर खींचा।वह निर्जीव सी पड़ी रही।

उसके होंठो पर अपने होठ रखकर वह अपनी इच्छा उस पर उढेलने लगा।

"प्लीज सुधीर आज नहीं।"वह बोली।

"क्यों नहीं?"कहकर वह.उसके गाउन के बटन खोलने लगा।

"मैंने कहा ना आज नहीं!"धकेलते हुए सीमा ने कहा।

"अब नाराजगी छोड भी दो।तुम्हें पता है ना कितना प्यार करता हूं तुमसे!"वह बोला।

"प्यार!!"सीमा व्यंग्य के साथ हँसी।

"शक है तुम्हें!"वह बोला और फिर एक बार सीमा के ऊपर झुक गया।

"मैं होती कौन हूँ शक करने वाली।"सीमा ने कहा।

"पत्नी हो मेरी और कौन!"इतना कह सुधीर उसके शरीर के साथ खेलने लगा।सीमा बिना प्रतिक्रिया के पड़ी रही।अपनी इच्छा पूर्ति के बाद सुधीर एक ओर लुड़क गया।

सीमा की आँखों से नींद कोसों दूर थी।आज उसे अपने शरीर से बदबू आने लगी।घृणा से मन विरक्त हो गया।वह उठी और आईने के सामने बैठ गई।कुछ देर खुद को देखती रही।

उठी और कुछ लिखने लगी।इसके बाद कपडे बदल कर घर से निकल गई सुधीर के सिरहाने नोट छोडकर।
"तुम...।आखिर लौट आई ना!"आवाज सुन सीमा की तिन्द्रा भंग हो गईऔर हकीकत में लौट आई।सामने सुधीर खड़ा था।

"आ गई आखिर तुम!"उसने दोबारा कहा।उसके चेहरे पर अभी भी घमंड दिखाई दे रहा था।

"हाँ आ गई।कैसे हो तुम?"सीमा ने शांति से पूछा।

"मजे में।अपनी बताओ,कहाँ कहाँ धक्के खाए इन दो सालों में?"वह बोला।

उसके जहर जैसे शब्दों में उसकी लाचारी ही दिख रही थी सीमा को।

"इतनी चिंता थी तो पता कर लेते।"सीमा ने उसकी आँखों में देखकर कहा।

"तुम अपनी मर्ज़ी से गई थी।अकारण ही।पूरे समाज में मेरा मखौल उड़ाने के लिए लेकिन तुम इसमें सफल नहीं हो सकी।"उसने घृणा से कहा।

"हाँ अपनी मर्ज़ी से ही गई थी" और आई भी अपनी मर्जी से ही हूँ।"सीमा ने विवाद को खत्म करने की कोशिश की।

"जब चली गयी थी तो आई क्यों?"सुधीर ने पूछा।

"तुम्हारे एहसानों की कीमत चुकाने के लिए।"इतना कहकर सीमा ने पर्स से पैसे निकाल कर सुधीर के सामने रख दिए।

"पूरे दस लाख है।तुम्हारे लग्जरी घर में रहने के एवज में।जिसमें मेरी माँ की इलाज के पैसे भी शामिल है।"

कहकर वह उठ चली।फिर रूकी और आवाक बैठे सुधीर को बोली।

यह सब पैसा ब्याज सहित लौटा रही हूं लेकिन तुमने जो मेरे जिस्म को इस्तेमाल किया उसकी कीमत मैंने तुमसे नहीं ली।यह मेरा तुम पर एहसान रहेगा।"

सुधीर को वैसा ही छोड वह गेट से बाहर निकल गई।एहसानों का हिसाब कर आज वह हर बंधन से मुक्त हो गई थी।

दिव्या राकेश शर्मा।