Stokar - 32 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | स्टॉकर - 32

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स्टॉकर - 32




स्टॉकर
(32)




लतिका से अभय की बस चंद मुलाकातें ही हुई थीं पर उन्हें ऐसा लगने लगा था जैसे वह अपने दिल की बात उससे आसानी से कर सकते हैं।
अभय ने भी लतिका को अपने शादीशुदा जीवन के बारे में सब कुछ खुल कर बता दिया। उन्होंने बताया कि उनका दस साल का एक बेटा है जिसे उन्होंने बोर्डिंग स्कूल भेज दिया है। क्योंकी अकेले उसे संभालना उनके लिए मुश्किल था। नम्रता अब स्थाई तौर पर अपने पिता के घर पर ही रह रही थी।
लतिका ने भी उन्हें बताया कि यूं तो उसके हुनर ने उसे कई कद्रदान दिए हैं पर दिल में वह बहुत अकेलापन महसूस करती है। उसकी माँ के अलावा उसके जीवन में और कोई नहीं है। पर वह अपने मन की हर बात उनसे नहीं कर सकती है।
उस शाम होटल के कमरे में बैठे लतिका और अभय दोनों ने ही महसूस किया कि दोनों भीतर से कितने अकेले हैं। अपने इस अकेलेपन को वो एक दूसरे के साथ बांट सकते हैं। उस शाम उन दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए चाहत पैदा हो गई।
उस मुलाकात के बाद तो अक्सर दोनों फोन कर बात करते थे। लतिका जब भी कहीं प्रोग्राम करने जाती थी तो अभय को खबर कर देती थी। अभय पूरी कोशिश करते थे कि वहाँ पहुँच कर उसका प्रोग्राम सुनें।
ऐसे ही एक प्रोग्राम के बाद लतिका ने अभय से इसरार किया कि आज की रात वो दोनों उस दिन की तरह फिर बातें करेंगे। वह उसके साथ गेस्टहाउस चलें। वहाँ वह उनके आराम के लिए एक कमरा दिलवा देगी।
अभय लतिका के साथ के लिए तरसते थे। इसलिए मना करने का सवाल ही नहीं था। वह उसके साथ गेस्टहाउस चले गए।
अभय को पीने का शौक था। आज लतिका ने उसका इंतज़ाम भी करके रखा था। उसने अभय के लिए अपने हाथ से एक ड्रिंक बनाया। उनकी तरफ बढ़ाती हुई बोली।
"मुझे पता है कि आप शौक रखते हैं। इसलिए मैंने इंतज़ाम करके रखा था।"
"पर अकेले पीने में क्या मज़ा है। आप तो साथ देंगी नहीं।"
लतिका हौले से मुस्कुराई। एक और ड्रिंक बनाते हुए बोली।
"कभी कभार का शौक तो मैं भी रखती हूँ। फिर आपके साथ के लिए तो मैं ज़हर भी पी लूँ।"
लतिका की ये अदा अभय के दिल को छू गई। उन्होंने उसके जाम से जाम टकरा कर चियर्स किया।
पीते हुए दोनों बातें करने लगे। आज की रात में एक अलग ही नशा था। जो शराब के नशे से भी अधिक था।
रात के नशे और शराब के सुरूर ने असर दिखाया। दोनों बहुत सी लकीरें पार कर एक दूसरे के नज़दीक आ गए। अगली सुबह अभय और लतिका की नींद एक ही बिस्तर पर खुली।
दोनों अपने अपने घरों को लौट तो गए थे पर उस रात का नशा अभी तक दोनों के सर पर चढ़ा हुआ था। दोनों फोन पर एक दूसरे से खूब बातें करते थे। पर मिलने की सूरत नहीं बन पा रही थी।
अभय चाहते थे कि वह किसी भी तरह से लतिका से मिल सकें। उनके पास लतिका के घर का पता भी था। पर यह सोंच कर संकोच करते थे कि घर पर लतिका की माँ भी होंगी। वह उनसे क्या कहेगा। पता नहीं लतिका ने अपनी माँ को उनके रिश्ते के बारे में बताया भी है कि नहीं। पहले एक बार लतिका से बात कर लें फिर उसके घर जाकर उससे मिलेंगे।
अभय लतिका के फोन की राह देख रहे थे। घर पर होने पर वही फोन करती थी। पर इधर पंद्रह दिन हो चुके थे लतिका ने उन्हें फोन नहीं किया। उन्हें लगा कि शायद इस बार बिना बताए वह कोई प्रोग्राम करने चली गई। हो। लेकिन इससे पहले कोई भी टूर इतना लंबा नहीं होता था।
अभय को याद आया कि लतिका ने उन्हें बताया था कि उसे शायद हैदराबाद जाकर प्रोग्राम करना पड़े। उन्हें यकीन हो गया कि ऐसा ही हुआ होगा। वहाँ आयोजकों ने दो तीन प्रोग्राम रखे होंगे। इसीलिए देर हो गई होगी।
इस बीच उनका मन किया कि लतिका के घर फोन कर पूँछ लें कि बात क्या है। पर उन्होंने कुछ और दिन इंतज़ार करने का फैसला किया।
इंतज़ार करते करते एक महीना बीत गया। अब अभय परेशान हो गए थे। क्या लतिका किसी बात को लेकर नाराज़ हो गई। उस रात जो कुछ हुआ क्या इसीलिए उसने उनसे दूरी कर ली। पर वह खुद को समझाते कि यदि ऐसा होता तो उसके बाद उनके बीच कई बार बातचीत हुई। तब तो लतिका ने कोई संकेत नहीं दिया।
अभय ने अपने दफ्तर से लतिका के घर फोन किया। पहले तो फोन उठा नहीं। पर जब फोन उठा तो कोई और ही बोल रहा था। अभय को लगा कि शायद रांग नंबर लग गया। इसलिए उन्होंने काट कर दोबारा फोन मिलाया। इस बार भी उसी व्यक्ति ने फोन उठाया। अभय नंबर बताते हुए पूँछा कि क्या आप इस नंबर से बोल रहे हैं। उस व्यक्ति ने हामी भरते हुए बताया कि उसे ये नंबर एक हफ्ते पहले ही मिला है।
यह खबर परेशान करने वाली थी। नंबर किसी और को मिलने का मतलब था कि लतिका ने फोन कनेक्शन कटवा दिया था। आखिर उसने ऐसा क्यों किया होगा ? क्या वह किसी मुसीबत में है ? इन सवालों ने उनके दिल में हलचल मचा दी।
अभय अगले दिन ही लतिका के घर पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर पता चला कि वह किराए का मकान था। कुछ दिन पहले ही खाली हो गया। लतिका और उसकी माँ कहाँ चली गईं किसी को भी कुछ पता नहीं था।
लौट कर आने के बाद अभय ने अपने स्तर पर लतिका को तलाश करने के प्रयास किए। लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं आई।
समय बीतने लगा। अभय अपने काम में मशरूफ हो गए। लेकिन लतिका की याद उनके दिल में बनी हुई थी। एक बात उनके दिल को बहुत कचोटती थी कि आखिर उनसे क्या खता हो गई कि लतिका बिना कुछ कहे दूर चली गई।
पाँच साल बाद एक दिन उनके पास एक फोन आया। फोन करने वाली कोई महिला थी।
"आप अभय टंडन बोल रहे हैं ?"
"जी हाँ....आप कौन ?"
कुछ देर खामोश रहने के बाद उस महिला ने कहा।
"मैं लतिका की माँ हूँ। मुझे आपसे मिलना है। बहुत ज़रूरी है।"
"इतने सालों के बाद अचानक.... मैं कितना परेशान था।"
"सब बताऊँगी। मैं आने में असमर्थ हूँ। पता लिखा रही हूँ। आप आ जाइए। बहुत ज़रूरी है।"
अभय ने पता लिख लिया।
नम्रता को गुज़रे दो साल हो चुके थे। अभय ने फैसला किया कि इस बार वह लतिका से शादी की बात करेंगे। दोनों एक रिश्ते में बंध जाएंगे। लेकिन उसकी माँ की बात सुन कर लग रहा था कि बात कुछ खास है। अगले ही दिन वह लतिका की माँ द्वारा दिए गए पते पर पहुँच गए।
लतिका की माँ बहुत कमज़ोर व बीमार थीं। अभय ने पूँछा कि उन्हें बताए बिना लतिका अचानक क्यों चली गई। अब वह कहाँ है। जवाब देने की बजाए लतिका की माँ ने बिट्टू को आवाज़ दी।
नौकरानी का हाथ थामे एक मासूम सा बच्चा बाहर आया। अपना हाथ छुड़ा कर वह लतिका की माँ के पास आकर खड़ा हो गया। बिट्टू बड़े ध्यान से अभय को देख रहा था। अभय के मन में उस बच्चे के लिए अपनापन जागा। फिर खयाल आया कि यह लतिका का बच्चा होगा। इसका मतलब उन्हें बताए बिना उसने किसी से शादी कर ली। उसके अचानक गायब हो जाने का यही कारण था। यह बात मन में आते ही उन्हें बुरा लगा।
"लतिका अगर मुझे यह बता देती कि वह किसी से शादी कर रही है तो क्या मैं उसे रोक लेता। बिना बताए संबंध तोड़ लेने का क्या मतलब था।"
लतिका की माँ ने बिट्टू को वापस अंदर जाने को कहा। वह नौकरानी के साथ चला गया।
"लतिका ने किसी से शादी नहीं की। पर यह बच्चा उसी का है।"
अभय को कुछ पल लगे समझने में। बात समझ आने पर वह बोले।
"बिट्टू मेरा बेटा....."
"हाँ.... ये आपके और लतिका के बीच बीती उस रात की निशानी है। लतिका ने मुझे बताया था।"
"मुझे बच्चे के बारे में क्यों नहीं बताया ?"
लतिका की माँ कुछ पल चुप रहीं। फिर बोलीं।
"वो नहीं चाहती थी कि आप बच्चे को लेकर परेशान हों। आप शादीशुदा थे। लतिका नहीं चाहती थी कि आपके वैवाहिक जीवन पर कोई असर पड़े।"
"उसे तो मेरे और मेरी पत्नी के रिश्ते का सच मालूम था। नम्रता तो अपने मायके में ही रहती थी।"
"पर थी तो आपकी पत्नी। उसे तलाक दिए बिना आप लतिका से विवाह नहीं कर सकते थे। आपको कुछ बताती तो आप परेशान ही होते। वह यह नहीं चाहती थी।"
अभय अपना चेहरा अपने हाथों में लिए कुछ देर बैठे रहे। यह सब जान कर उनके मन में एक तूफान सा उठा था। कुछ देर तक वह उसे शांत करने की कोशिश करते रहे।
"जो हो गया सो हो गया। आप लतिका को बुलाइए। दो साल पहले नम्रता की मृत्यु हो गई। अब मैं उसे अपनी पत्नी बना सकता हूँ।"
"लतिका भी अब इस दुनिया में नहीं है। बिट्टू को जन्म देने के कुछ घंटों के बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।"
अभय के लिए यह एक बड़ा आघात था। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। लतिका की माँ समझ नहीं पा रही थीं कि उन्हें तसल्ली कैसे दें। उन्होंने नौकरानी से पानी लाने को कहा। पानी पीने के बाद अभय कुछ शांत हुए।
"उसके जाने के बाद तो आप मुझे बच्चे के बारे में बता सकती थीं। आपने छिपाया क्यों ?"
"मुझसे गलती हो गई। या यूं कहें कि लालच था। मुझे लगा कि बेटी तो गई। अब नाती मेरे जीने का सहारा बनेगा। लतिका ने कुछ जमा पूंजी छोड़ी थी। मैंने सोंचा था कि उसके सहारे बिट्टू को पाल लूँगी। पर अब स्वास्थ ठीक नहीं रहता है। लगता नहीं है कि अधिक जी पाऊँगी। इसलिए आपको बुलाया। आप कृपया बिट्टू को अपना लीजिए। मेरे बाद वह अकेला रह जाएगा।"
लतिका की माँ ने अभय के सामने हाथ जोड़ दिए। अभय उठ उनके पास गया। उनके दोनों हाथ थाम कर बोला।
"आप ऐसा ना करें। बिट्टू मेरी औलाद है। मैं उसे अपने साथ ले जाऊँगा। आपको और किसी सहायता की ज़रूरत हो तो हुक्म कीजिए।"
"बस बिट्टू की फिक्र ही मरने नहीं दे रही है। आप उस चिंता को दूर कर दीजिए। मैं चैन से मर सकूँगी।"
अभय बिट्टू को अपने साथ ले आए। उसकी देखभाल के लिए एक दाई रख ली। बिट्टू के आने के कुछ ही दिनों के बाद लतिका की माँ की भी मौत हो गई।