Desh Virana - 25 in Hindi Motivational Stories by Suraj Prakash books and stories PDF | देस बिराना - 25

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देस बिराना - 25

देस बिराना

किस्त पच्चीस

मालविका जी लंच के लिए जिस जगह ले कर आयी हैं, वह शहरी माहौल से बहुत दूर वुडफोर्ड के इलाके में है। भारतीय रेस्तरां है यह। नाम है चोर बाज़ार। बेशक लंदन में है लेकिन रेस्तरां के भीतर आ जाने के बाद पता ही नहीं चलता, हम लंदन में हैं या चंडीगढ़ के बाहर हाइवे के किसी अच्छे से रेस्तरां में बैठे हैं। जगह की तारीफ करते हुए पूछता हूं मैं - ये इतनी शानदार जगह कैसे खोज ली आपने? मुझे तो आज तक इसके बारे में पता नहीं चल पाया।

हंसती हैं मालविका जी - घर से बाहर निकलो तो कुछ मिले।

बहुत ही स्वादिष्ट और रुचिकर भोजन है। खाना खाते समय मुझे सहसा गोल्डी की याद आ गयी है। उसके साथ ही भटकते हुए मैंने बंबई के अलग-अलग होटलों में खाने का असली स्वाद लिया था। पता नहीं क्यों गोल्डी के बारे में सोचना अच्छा लग रहा है। उसकी याद भी आयी तो कहां और कैसी जगह पर। कहां होगी वह इस समय?

इच्छा होती है मालविका जी को उसके बारे में बताऊं। मैं बताऊं उन्हें, इससे पहले ही उन्होंने पूछ लिया है - किसके बारे में सोच रहे हैं दीप जी? क्या कोई खास थी?

बताता हूं उन्हें - मालविका जी, कल आप मेरे प्रेम प्रसंगों के बारे में पूछ रही थीं।

- मैं आपको यहां लायी ही इसलिए थी कि आप अपने प्रेम प्रसंगों के बारे में खुद ही बतायें। मेरा मिशन सफल रहा, आप बिलकुल सहज हो कर उस लड़की के बारे में बतायें जिस की याद आपको यह स्वादिष्ट खाना खाते समय आ गयी है। ज़रूर आप लोग साथ-साथ खाना खाने नयी-नयी जगहों पर जाते रहे होंगे।

- अक्सर तो नहीं लेकिन हां, कई बार जाते थे।

- क्या नाम था उसका?

- गोल्डी, वह हमारे घर के पास ही रहने आयी थी।

मैं मालविका जी को गेल्डी से पहली मुलाकात से आखिरी तय लेकिन न हो पायी मुलाकात की सारी बातें विस्तार से बताता हूं। इसी सिलसिले में अलका दीदी और देवेद्र जी का भी ज़िक्र आ गया है। मैं उनके बारे में भी बताता हूं।

हम खाना खा कर बाहर आ गये हैं। वापिस आते समय भी वे कोई न कोई ऐसा सवाल पूछ लेती हैं जिससे मेरे अतीत का कोई नया ही पहलू खुल कर सामने आ जाता है। बातें घूम फिर कर कभी गोलू पर आ जाती हैं तो कभी गुड्डी पर। मेरी एक बात खत्म नहीं हुई होती कि उसे दूसरी तरफ मोड़ देती हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं, वे मुझमें और मुझसे जुड़ी भूली बिसरी बातों में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रही हैं। वैसे एक बात तो है कि उनसे बात करना अच्छा लग रहा है। कभी किसी से इतनी बातें करने का मौका ही नहीं मिला। हर बार यही समझता रहा, सामने वाला कहीं मेरी व्यथा कथा सुन कर मुझ पर तरस न खाने लगे। इसी डर से किसी को अपने भीतर के अंधेरे कोनों में मैंने झांकने ही नहीं दिया।

मालविका जी की बात ही अलग लगती है। वे बिलकुल भी ये नहीं जतलातीं कि वे आपको छोटा महसूस करा रही हैं या आप पर तरस खा रही हैं।

जब उन्होंने मुझे घर पर ड्रॉप करने के लिए गाड़ी रोकी है तो मुझे फिर से गोल्डी की बातें याद आ गयी हैं।

मैंने यूं ही मालविका जी से पूछ लिया है - भीतर आ कर इस बंदे के हाथ की कॉफी पी कर कुछ कमेंट नहीं करना चाहेंगी?

उन्होंने हँसते हुए गाड़ी का इंजन बंद कर दिया है और कह रही हैं - मैं इंतज़ार कर रही थी कि आप कहें और मैं आपके हाथ की कॉफी पीने के लिए भीतर आऊं। चलिये, आज आपकी मेहमाननवाज़ी भी देख ली जाये।

वे भीतर आयी हैं।

बता रही हैं - गौरी के मम्मी पापा वाले घर में तो कई बार जाना हुआ लेकिन यहां आना नहीं हो पाया। आज आपके बहाने आ गयी।

- आपसे पहले परिचय हुआ होता तो पहले ही बुला लेते। खैर, खुश आमदीद।

जब तक मैं कॉफी बनाऊं, वे पूरे फ्लैट का एक चक्कर लगा आयी हैं।

पूछ रही हैं वे - मैं गौरी के एस्थेटिक सैंस से अच्छी तरह से परिचित हूं, घर की ये साज-सज्जा कम से कम उसकी की हुई तो नहीं है और न लंदन में इस तरह की इंटीरियर करने वाली एजेंसियां ही हैं। आप तो छुपे रुस्तम निकले। मुझे नहीं पता था, आप ये सब भी जानते हैं। बहुत खूब। ग्रेट।

मैं क्या जवाब दूं - बस, ये तो सब यूं ही चलता रहता है। जब भी मैं अपने घर की कल्पना करता था तो सोचता था, बैडरूम ऐसे होगा हमारा और ड्राइंग रूम और स्टडी ऐसे होंगे। अब जो भी बन पड़ा...।

- क्यों, क्या इस घर से अपने घर वाली भावना नहीं जुड़ती क्या?

- अपना घर न समझता तो ये सब करता क्या? मैंने कह तो दिया है, लेकिन मैं जानता हूं कि उन्होंने मेरी बदली हुई टोन से ताड़ लिया है, मैं सच नहीं कह रहा हूं ।

- एक और व्यक्तिगत सवाल पूछ रही हूं, गौरी से आपके संबंध कैसे हैं?

मैं हँस कर उनकी बात टालने की कोशिश करता हूं - आज के इन्टरव्यू का समय समाप्त हो चुका है मैडम। हम प्रोग्राम के बाद की ही कॉफी ले रहे हैं।

- बहुत शातिर हैं आप, जब आपको जवाब नहीं होता तो कैसा बढ़िया कमर्शियल ब्रेक लगा देते हैं। खैर, बच के कहां जायेंगे। अभी तो हमने आधे सवाल भी नहीं पूछे।

मालविका जी के सवालों से मेरी मुक्ति नहीं है। पिछले महीने भर से उनसे बीच-बीच में मुलाकात होती ही रही है। हालांकि उन्होंने इलाज या योगाभ्यास के नाम पर अभी तक मुझे दो-चार आसन ही कराये हैं लेकिन उन्होंने एक अलग ही तरह की राय देकर मुझे एक तरह से चौंका ही दिया है। उन्होंने मुझे डायरी लिखने के लिए कहा है। डायरी भी आज की नहीं, बल्कि अपने अतीत की, भूले बिसरे दिनों की। जो कुछ मेरे साथ हुआ, उसे ज्यों का त्यों दर्ज करने के लिए कहा है। अलबत्ता, उन्होंने मुझसे गौरी के साथ मेरे संबंधों में चल रही खटास के बारे में राई रत्ती उगलवा लिया है। बेशक उन सारी बातों पर अपनी तरफ से एक शब्द भी नहीं कहा है। इसके अलावा ससुराल की तरफ से मेरे साथ जो कुछ भी किया गया या किस तरह से शिशिर ने मेरे कठिन वक्त में मेरा साथ दिया, ये सारी बातें मैंने डायरी में बाद में लिखी हैं, उन्हें पहले बतायी हैं। डायरी लिखने का मैंने यही तरीका अपनाया है। उनसे दिन में आमने-सामने या फोन पर जो भी बात होती है, वही डायरी में लिख लेता हूं। मेरा सिरदर्द अब पहले की तुलना में काफी कम हो चुका है। गौरी भी हैरान है कि मात्र दो-चार योग आसनों से भला इतना भयंकर सिरदर्द कैसे जा सकता है। लेकिन मैं ही जानता हूं कि ये सिरदर्द योगासनों से तो नहीं ही गया है। अब मुझे मालविका जी का इलाज करने का तरीका भी समझ में आ गया है। मैंने उनसे इस बारे में जब पूछा कि आप मेरा इलाज कब शुरू करेंगी तो वे हँसी थीं - आप भी अच्छे-खासे सरदार हैं। ये सब क्या है जो मैं इतने दिनों से कर रही हूं। ये इलाज ही तो चल रहा है आपका। आप ही बताइये, आज तक आपका न केवल सिरदर्द गायब हो रहा है बल्कि आप ज्यादा उत्साहित और खुश-खुश नज़र आने लगे हैं। बेशक कुछ चीज़ों पर मेरा बस नहीं है लेकिन जितना हो सका है, आप अब पहले वाली हालत में तो नहीं हैं। है ना यही बात?

- तो आपकी निगाह में मेरे सिरदर्द की वज़ह क्या थी?

- अब आप सुनना ही चाहते हैं तो सुनिये, आपको दरअसल कोई बीमारी ही नहीं थी। आपके साथ तीन-चार तकलीफ़ें एक साथ हो गयी थीं। पहली बात तो ये कि आप ज़िंदगी भर अकेले रहे, अकेले जूझते भी रहे और कुढ़ते भी रहे। संयोग से आपने अपने आस-पास वालों से जब भी कुछ चाहा, या मांगा, चूंकि वो आपकी बंधी बंधायी जीवन शैली से मेल नहीं खाता था, इसलिए आपको हमेशा लगता रहा, आप छले गये हैं। आप कभी भी व्यावहारिक नहीं रहे इसलिए आपको सामने वाले का पक्ष हमेशा ही गलत लगता रहा। ऐसा नहीं है कि आपके साथ ज्यादतियां नहीं हुईं होंगी। वो तो हुई ही हैं लेकिन उन सबको देखने-समझने और उन्हें जीवन में ढालने के तरीके आपके अपने ही थे। दरअसल आप ज़िंदगी से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा बैठे थे इसलिए सब कुछ आपके खिलाफ़ होता चला गया। जहां आपको मौका मिला, आप पलायन कर गये और जहां नहीं मिला, वहां आप सिरदर्द से पीड़ित हो गये। आप कुछ हद तक वहम रोग जिसे अंग्रेजी में हाइपोकाँड्रियाक कहते हैं, के रोगी होते चले जा रहे थे। दूसरी दिक्कत आपके साथ यह रही कि आप कभी भी किसी से भी अपनी तकलीफें शेयर नहीं कर पाये। करना चाहते थे और जब करने का वक्त आया तो या तो लोग आपको सुनने को तैयार नहीं थे और जहां तैयार थे, वहां आप तरस खाने से बचना चाहते हुए उनसे झूठ-मूठ के किस्से सुना कर उन्हें भी और खुद को भी बहलाते रहे। क्या गलत कह रही हूं मैं?

- माई गॉड, आपने तो मेरी सारी पोल ही खोल कर रख दी। मैंने तो कभी इस निगाह से अपने आपको देखा ही नहीं।

- तभी तो आपका यह हाल है। कब से दर-बदर हो कर भटक रहे हैं और आपको कोई राह नहीं सूझती।

- आपने तो मेरी आंखें ही खोल दीं। मैं अब तक कितने बड़े भ्रम में जी रहा था कि हर बार मैं ही सही था।

- वैसे आप हर बात गलत भी नहीं थे लेकिन आपको ये बताता कौन। आपने किसी पर भी भरोसा ही नहीं किया कभी। आपको बेचारा बनने से एलर्जी जो थी। है ना..।

- आपको तो सारी बातें बतायी ही हैं ना..।

- तो राह भी तो हमने ही सुझायी है।

- उसके लिए तो मैं आपका अहसान ज़िंदगी भी नहीं भूलूंगा।

- अगर मैं कहूं कि मुझे भी सिर्फ इसी शब्द से चिढ़ है तो..?

- ठीक है नहीं कहेंगे।

*

मालविका जी से जब से मुलाकात हुई है, ज़िंदगी के प्रति मेरा नज़रिया ही बदल गया है। मैंने अब अपने बारे में भी सोचना शुरू कर दिया है और अपने आबजर्वेशन अपनी डायरी में लिख रहा हूं। मैं एक और चार्ट बना रहा हूं कि मैंने ज़िंदगी में कब-कब गलत फैसले किये और बाद में धोखा खाया या कब कब कोई फैसला ही नहीं किया और अब तक पछता रहा हूं। ये डायरी एक तरह से मेरा कन्फैशन है मेरे ही सामने और मैं इसके आधार पर अपनी ज़िंदगी को बेहतर तरीके से संवारना चाहता हूं।

बेशक मुझे अब तक सिरदर्द से काफी हद तक आराम मिल चुका है और मैं अपने आपको मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ भी महसूस कर रहा हूं फिर भी गौरी से मेरे संबंधों की पटरी नहीं बैठ पा रही है। जब से उसने देखा है कि मुझे सिरदर्द से आराम आ गया है मेरे प्रति उसका लापरवाही वाला व्यवहार फिर शुरू हो गया है। मैं एक बार फिर अपने हाल पर अकेला छोड़ दिया गया हुं। स्टोर्स जाता हूं लेकिन उतना ही ध्यान देता हूं जितने से काम चल जाये। ज्यादा मारामारी नहीं करता। मैं अब अपनी तरफ ज्यादा ध्यान देने लगा हूं। बेशक मेरे पास बहुत अधिक पाउंड नहीं बचे हैं फिर भी मैंने मालविका जी को बहुत आग्रह करके एक शानदार ओवरकोट दिलवाया है।

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