Kashish - 7 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कशिश - 7

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कशिश - 7

कशिश

सीमा असीम

(7)

आ रही हूँ बुआ !

चल रुही अब बाहर चलें बुआ बुला रही हैं !

हाँ चल ! वे दोनों हँसती मुसकुराती बाहर आ गयी !

तुम दोनों तो कहीं मिल जाओ तो तुम दोनों के पास बस बातों के सिवाय कुछ भी नहीं होगा ? बुआ बोली !

अरे बुआ, कितने दिनों बाद तो मिले हैं !

वो तो मिलोगी ही, जब मिलने नहीं आओगी ?

आपलोग भी कब से नहीं आए हैं पारुल ने शिकायती लहजे में कहा !

बेटा बुआ से बराबरी न किया कर !

ठीक है बुआ ! अब से कोई शिकायत नहीं !

वापस घर लौटते समय वो रास्ते भर सोचती रही कि राघव के बारे में रुही को बता देती ! उसकी हर बात उसे पता रहती है दोनों में से कोई एक भी अपने पेट में बात पचा ही नहीं पाती हैं बिना एक दूसरे को बताए चैन ही नहीं पड़ता है फिर आज ऐसा क्या डर या भय तथा कि वो राघव के बारे में रुही को कुछ बता ही नहीं पायी ! क्या उसके मन में कोई डर समा गया है कि कहीं कोई उसे उसके राघव से दूर न कर दे या उसे कहीं छीन न ले ?

पता नहीं क्या था लेकिन कुछ तो ऐसा था जो मन में कुछ छिप गया था !

उसका न्यूज़पेपर के जॉब का इंटरव्यू तो हो गया था पर उसका रिजल्ट नहीं आया था इतने दिन हो गए जबकि यह उन लोगों के हाथ में ही था जब चाहें घोषित कर दे पर वे लोग ढील डाले हुए थे ! कहते हैं न हमें जिस बात का बेसब्री से इंतजार होता है वो हमें सबसा ज्यादा इंतजार कराती है !

वो बहुत बेसब्री से दो चीजों का इंतजार कर रही थी एक राघव से मिलने का और दूसरा अपने जॉब का !

पापा अपने ऑफिस में पूरी तरह व्यस्त थे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि जिस जॉब के लिए तन मन से पूरा जीवन दे दिया तो अब कुछ महीने बचे हैं तो उनमें कोई कमी रह जाये या कोई गलती निकाल पाये !

वो कभी कभी मन में सोचती कि आज के दौर में भी उसके पापा जैसे शांत और सज्जन लोग हैं ! लेकिन उसके ख्याल से आज के दौर मे सीधा इंसान नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगो को सब बेवकूफ़ समझते हैं और उनके सीधेपन का फायदा उठाते हैं वो अक्सर पापा को समझने की कोशिश करती लेकिन वे कहते नहीं बेटा ऐसा नहीं हैं तुम हमेशा एक बात ध्यान रखना कि सरल और सच्चे लोगों मे ईश्वर रहता है और ऐसे लोगों को जो सताता या परेशान करता है उनसे ईश्वर खुद बदला ले लेता है ! मैं तभी तो अपनी इस एक अच्छाई को खोना या छोडना नहीं चाहती !

सही ही तो कह रहे हैं पापा ! उसे याद है एक दिन पड़ोस वाले अंकल उससे जरा सी बात पर डांटने लगे थे तो उसने पापा से उनकी शिकायत की !

कोई बात नहीं बेटा वे तुमसे बड़े हैं अगर उनने कुछ कह दिया तो बुरा मत मानों !

खूब अच्छी सीख दी है न तुमने अपनी बेटी को तभी तो मेरा अपमान का रही थी ! बिना किसी बात के वे घर तक आ गए और फिर पापा को भी अपशब्द कह कर चले गए !

अरे पापा आपने उनसे कुछ नहीं कहा !

क्या कहता ! लड़ाई करता ! देखो बेटा अगर हम कीचड़ में कंकड़ उछलेंगे तो छिनते हमारे ऊपर ही आएंगे इसलिय एक चुप सौ सुख !

पापा सही ही कह रहे थे क्योंकि अगर हम बर्राइया के छत्ते में हाथ डालेंगे तो वे हमे ही लिपट जाएंगी !

और सबसे खुशी की बात कह लो या दुख की कि जिस दिन अंकल उसे और पापा को बुरा भला कह कर गए उसी दिन ही उनका एक्सीडेंट हो गया और उनके पाँव में फ्रेक्चर भी ! उसने मन में सोचा कि उसने या उसके पापा ने तो उन्हें कोई बददुआ भी नहीं दी थी फिर कैसे उनको सजा मिल गयी ! आज उसे इस बात का अहसास हो गया था कि दुनियाँ में सच में ईश्वर है और वो इन्सानों के मन में बसता है सच्चे इन्सानों के मन में !

अब वो कभी न तो झूठ बोलेगी और न ही कभी किसी को परेशान करेगी ! वो भी अपना मन एकदम सच्चा और पवित्र बना लेगी जैसे उसके पापा का है !

तभी तो उसके पापा का कोई काम किसी भी तरह से रुका नहीं चाहें दीदी और भैया को पढ़ना हो या उनकी शादी करनी हो बल्कि खूब अच्छे सब हुआ था ! वो भी पूरी ईमानदारी और मेहनत करती हुई सच की राह पर चलेगी फिर देखना उसका भी कोई काम न तो रुकेगा और न ही कोई व्यवधान आएगा !

वैसे वो भी तो पूरी सच्ची और ईमानदारी के साथ राघव को पाना चाहती है और अपने जॉब को भी ! उसे अब पूरा विश्वास हो गया था कि एक दिन उसके यह दोनों ख्वाब जरूर पूरे हो जाएंगे ! वैसे यह ख्वाब नहीं बल्कि उसके जीवन की सच्चाई हैं !

पारुल ! मम्मी ने बाहर से आवाज लगाई तो वो फौरन बाहर निकल कर आ गयी !

बेटा आजकल हर समय कमरे में क्या करती रहती हो ?

कुछ भी तो नहीं !

फिर जब देखो तब अपने कमरे में अकेले क्यों ?

हे भगवान, अब इनको कौन समझाये हर बात पर आजकल टोंकने लगी हैं ! क्योंकि मां से ज्यादा बेटी के मन को कोई नहीं समझ सकता !

अरे मम्मी बस अपने जॉब को लेकर ही परेशान हूँ कि किसी तरह से उनका काल आ जाए !

बेटा जब आना होगा तब आ जाएगा यूं अकेले बैठ कर सोचने या परेशान होने से कभी कोई काम बना है ?

मम्मी का कहना सही है लेकिन उसे तो यूं ही अकेले अपने कमरे में बैठ कर राघव के बारे में सोचना बहुत पसंद है !

उसकी एक एक बात यूं याद आती है जैसे न जाने वो उसे कब से जानती है पहचानती है ! वैसे कोई भी अचानक से मिल जाए और उसके साथ दिल भी मिल जाये यह एकदम से नहीं होता बल्कि सदियों से हमारा रिश्ता होता है और वो हमे इसी तरह से अचानक ही कहीं न कहीं मिल जाता है !

पारुल क्या सोचने लगी ? तुझे यह क्या कोई सोचने की कोई बीमारी हो गयी है ! पहले हर समय टीवी देखने के लिए पागल रहती थी, अब उसे कभी खोलकर भी नहीं देखती !

माँ आप मुझे इस तरह सवालों के घेरे में लेकर परेशान न करो ! मैं अब बड़ी हो गयी हूँ, समझने लगी हूँ अपना भला और बुरा भी ! वो नाराज होती हुई अपने कमरे में आ गयी !

इस लड़की को न जाने क्या हुआ है या तो कभी इतना खुश होगी या कभी इस तरह से नाराज !! मम्मी के बड़बड़ाने की आवाज उसके कानो में साफ सुनाई दी थी !

अब जिसे जो सोचना हो सोचने दो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता ! उसकी भी कोई लाइफ है औए उसे अपने हिसाब से जीना है ! क्या प्यार हमे इस तरह से तन्हा कर देता है ? क्या वो वाकई उसके प्रेम में है ? क्या राघव भी उसके बारे में ऐसा ही सोचता है ?

कहीं उसका प्रेम एकतरफा तो नहीं ? एकतरफा प्रेम बहुत दुख देता है ! लेकिन वो तो सच में राघव को चाहने लगी है अगर राघव न चाहें तब भी वो उसे इसी तरह आजीवन चाहेंगी क्योंकि प्रेम पर कोई ज़ोर नहीं ! यह हमारे हाथ में नहीं कि कब यह दिल किसे पसंद करने लगे या कौन इसे भा जाये ! वो तो अपनी जान देकर भी उसे चाहेंगी ! वो मिले न मिले यह उसकी किस्मत ! जैसे जैसे सेमिनार के दिन करीब आते जा रहे थे वैसे वैसे उसके दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी ! उस दिन फोन पर राघव से बात करते समय उसने कहा था !

राघव तुम बहुत बुरे हो तुम्हें हमारी बिलकुल भी परवाह नहीं है कि कभी हाल पूछ लो कि कैसी हो ?

हम्म्म मैं तो बुरा ही हूँ और अब जैसा भी हूँ वैसा ही हूँ और तुम्हारा ही हूँ और तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हारा हाल नहीं पूछता हर पल तो पूछता रहता हूँ !

अच्छा कब ?

पारुल शब्द ब्रह्म होते हैं इसलिए जब कभी बोलना या कहीं भी लिखना पड़े तो बहुत अच्छे से ध्यान रखना क्योंकि जैसा बोलेंगे वही ब्रह्मांड में गूंजेगा और वही सच हो जाएगा !

अच्छा !

हाँ !

चलो फिर ठीक है मैं यह बात हमेशा ध्यान रखूंगी !

राघव तुम बहुत प्यारे हो, इस दुनियाँ में सबसे प्यारे इंसान ! उसने मन ही मन दोहराया !

अरे क्या बुदबुदा रही हो ? मुझे कुछ भी सुनाई नहीं पड़ा ! जरा ज़ोर से बोलो !

कुछ भी तो नहीं ! वो खिलखिला कर ज़ोर से हंस दी और फोन काट दिया था !

वो कितना कुछ तो कहना चाहती थी लेकिन कह ही नहीं पाती थी चलो अब जब कभी मिलेंगे तब बात कर लेंगे ! लेकिन क्या वो सब बातें कर पाएगी, कह पाएगी अपने मन की बात !

***