विवेक और 41 मिनिट..........
तमिल लेखक राजेश कुमार
हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा
संपादक रितु वर्मा
अध्याय 9
वेदनायकम अस्पताल में |
बीमारी कुछ ठीक होने पर, जनार्दन ने बैठ कर अपने सामने बैठे डी. जी. पी. शर्मा पर एक चकित नजर डाली |
“साहब मेरे पुत्र विनोदकुमार को छुड़वाने के लिए एक हाई कोर्ट जज को धमकी देने लायक मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूँ | मेरा बेटा जानते बूझते या अनजाने में एक हत्या के केस में फंस गया | सच में उसका उस हत्या से कुछ भी संबंध नहीं है | संदर्भ और साक्ष्य उसके विपरीत होने के कारण ही पुलिस ने उसे कैद कर लिया | सेशन कोर्ट में केस चला | केस का फैसला करने वाले जज ने फैसला दिया इस हत्या में मेरे बेटे विनोद कुमार का कोई भी भूमिका नहीं है | कहकर उसकी रिहाई कर दी | परंतु सरकार ने नहीं छोड़ा वे हाईकोर्ट गए | हाईकोर्ट में भी विनोद कुमार के पक्ष में ही फैसला आएगा | ऐसा मुझे विश्वास है | ऐसी स्थिति में मेरे विरोधी कोई इस केस में फैसला विनोद कुमार के विपरीत हो ऐसा चाहते हैं | उन्होंने हाईकोर्ट के जज को ब्लेक मेल किया है | उनके ड्राइवर को भी अगवा कर लिया |
“इसका मतलब है ये सब आपने नहीं किया………………?”
“मैं पागल हो जाऊँ फिर भी ऐसा नहीं करूंगा साहब.......... मेरे पास धन है | लाखों में नहीं, करोड़ों के हिसाब से है | ऐसे ही मेरा राजनैतिक प्रभाव भी बहुत है | दिल्ली के दो मंत्री मेरे बहुत ही समीप और मेरे मिलने वाले अपने है | फिर भी मैं अपने बेटे विनोद कुमार के लिए सेशन कोर्ट से रिहाई के लिए किसी से नहीं मिला | एक रुपया अधिक खर्चा नहीं किया | मैं भगवान पर विश्वास करने वाला हूँ | विनोद कुमार इस केस से रिहा हो जाना चाहिए | इसलिए केस के चलते पाँच वर्षों में मैं तिरुपति जाकर दस बार अपना मुंडन करवाया | मेरे पक्ष में न्याय और भगवान हैं फिर किसलिए डरना चाहिए साहब ?”
डी. जी. पी. शर्मा जनार्दन को ही देखते रहे| फिर पूछा- “आपके बेटे का फैसला पक्ष में नहीं होना चाहिए उसके लिए कोई मि ‘एक्स’ हाईकोर्ट के जज सुंदरपांडियन को ऐसा ‘टॉर्चर’ कर रहे है इस बारे में आप क्या सोचते हैं ?”
“अभी जो आपने बोला ना.............. वही सत्य है |”
“ठीक है............ ये कोई ‘एक्स’ कौन...........?”
“मुझे कैसे मालूम साहब ?”
“आप सोचकर देखिएगा.............. विनोद कुमार यदि छूटता है तो किसे बुरा लगेगा ? इसे मालूम करो |”
“विनोद कुमार ने हत्या की है ये कहने वाले मंजुला के तीन भाई भी इसी चेन्नई में ही रहते हैं | उनका काम भी ये हो सकता है |”
“आपको ऐसा संदेह क्यों हुआ...............?”
“केस के शुरू में वे तीनों मुझे आकर मिले और बोले “केस को खत्म कर सकते है | यदि कुछ रुपये खर्च करोगे | मैंने उन्हें भगा दिया | उसके बाद भी दो बार मुझे फोन करके रुपये मांगा | पर हमारे पक्ष में न्याय है” कहकर मैंने रिसीवर रख दिया |
“उन तीनों का पता है क्या ?”
“हमारे वकील से पूछे तो मालूम होगा साहब | फोन पर लेकर दूँ क्या............?”
“प्लीज...............” कहकर शर्मा कुर्सी पर आराम से पीछे सहारा लेकर बैठ गये | “इक्सक्यूज मी” कह कर अपने मोबाइल से बात करने लगे |
“साहब मैं अमरनाथ...............”
“कहिएगा |”
“जज सुंदर पांडियन के ड्राइवर दुरैमाणिकम की हत्या कर ‘बेसिन ब्रिज’ के नीचे उनका शव पड़ा है ऐसी खबर है |
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