Huk - 2 in Hindi Moral Stories by Divya Shukla books and stories PDF | हूक - 2

Featured Books
Categories
Share

हूक - 2

हूक

(2)

तभी माँ ने कहा “ नीरू जल्दी नहा ले अभी तुमसे मिलने कमला और मालती भी आती होंगी सुबह सुबह ही सोना नाउन तुमको देख गई अब जै घर काम पर जायेगी खबर कर देगी बिटिया आई है अब करे भी क्यों न तुम आई ही हो इतने दिनों के बाद बहुत खुश थी अभी आती होगी वो भी “ मै अपने कपड़े ले नहाने चल दी | जैसे ही बाहर आई तो फूला बुआ सामने ही बैठी सरौते से सुपारी काट रही थी,,, उन्हें देख कर मै बहुत खुश हो गई

मुझे देखते ही बोली “ इंहा आवा बिट्टी हमरे पास “ लिपटा लिया पास बिठा कर स्नेह से हाथ पकड मेरी बांह सहलाती हुई बोली “ तुम्हें हम सब के तनिको सुधि नहीं आवत रही कसत पथरे का करेज हुई गवा बिटिया एतने बरस बाद सुधि भय ?” मेरी भी आँखे नम हो गई,, “ भला आप सब कैसे भूल सकती हूँ बुआ रघु और मिन्नी के जन्म के बाद उनकी परवरिश, पढ़ाई लिखाई में खुद को जरुर भूल गई पर मायका नहीं भूली

माँ और मायका इनकी याद तो हर औरत के आंचल में गाँठ सी बंधी होती है, यह गिरह न कभी खुलती है ना ही कभी ढीली पड़ती है

बुआ बहुत याद आती है यहाँ की और आपकी बात तो मिन्नी और रघु से अक्सर ही करते हैं हम, फिर मिन्नी के पापा नौकरी ऐसी है इसमें ट्रांसफर भी दूर दूर होते रहे अब जाकर पांच छह साल से दिल्ली में है दोनों को जरुरी काम न होता तो उन्हें भी साथ लाते वो दोनों नानी से भी नहीं मिले है बहुत दिनों से, अम्मा पहले आ जाती थी अब नहीं यह भी आ पाती “ तभी माँ बोल पड़ी “ फूला जब तक शरीर चलता था हम खुद बच्चो को देख आते रहे अब कई साल से नहीं जा पाते “ अरे अम्मा देखो न तभी तो हम आ गए न “ थोड़ी देर बाद मोहल्ले की चार पांच औरतें आ गई माँ का मायका होने के नाते सब हमारी मामी और मौसी ही लगती कमला श्रीवास्तव और मालती सिंह माँ की पक्की सहेलियां है यह तिकड़ी भी बड़ी मज़ेदार है बचपन से देखते आ रहे है अभी भी नहीं बदली यह तीनो | मेरी माँ और उनकी दोनों सखियाँ में आपस में बहुत स्नेह है | माँ तीनो में सबसे बड़ी है उनको दोनों ही दीदी कहती है और माँ भी कमला मौसी को दुलार से कमली कहती सबसे मज़ेदार मिसेज़ सिंह यानी मालती मौसी, जब वह आँखे नचा कर बोलती तो मुझे बहुत अच्छी लगती उनकी देखादेखी हमने भी बहुत कोशिश की आँखे चला कर बात करने की छुटपन में और अम्मा के हाथों खूब कुटाई भी हुई हमारी, मिसेज सिंह के पास जब मोहल्ले की ढेर सारी चटपटी मसालेदार खबरे जमा हो जाती तो आकर अम्मा से सब खुसफुसा कर बताती थी ..हम सब को भगा दिया जाता पर उनकी खुसफुसाहट भी इतनी तेज़ होती की सुनाई दे जाती इतना ऊँचा स्वर था तब भी और आज भी वही बरकरार है | यह दोनों भी बहुत सटीक श्रोत हैं पूरी खबर इनके पास होगी ही पर मसला ये है पूछें कैसे एक संकोच सा लग रहा था इसलिए बात नहीं बनी, ले दे कर सिर्फ फूला बुआ रह गई वो उधर दुसरे कोने में भाभी, भौजी इन सबके साथ मजमा लगाये थी, लेकिन मेरा दिमाग तो बस एकसूत्री कार्यक्रम में अटका था, सोच रही थी कैसे बात छेडू बिमला की,,,

माँ तो सब औरतों से बात करने लगी हुई थी मेरे आने से बहुत खुश थी अब तो तबियत भी संभली लग रही थी, मै धीरे से बुआ के पास सरक आई, और उनसे बात करने लगे बातों में ही उनसे बिमला की बात छेड़ दिया “ बुआ सीमा और सुधा कहाँ है कल आते समय बिमला तो मिली थी “ ---

“ अरे बिटिया ऊ नगिनियाँ कहाँ मिल गई अरे का बताई बच्ची तुम्हे, सुधा तो अपने ससुरे मा रहत है कभो आवत नाहीं सुना है दुई बेटवा है, पर सीमा की तो बहुत दुरदशा है, उस बिचारी के साथ बहुत अत्याचार हुआ जबकि सबसे सीधी साधी बैलनी वही रही पति हरामी शराबी कबाबी है बहुत मार पीट करत है “

-- मुझे बड़ा अजीब लगा और पूछ बैठे “ अरे ऐसे कैसे शादी कर दिए उसकी मौसा बिना देखे भाले ही ये कौन सी बात हुई ?”

फूला बुआ ने जो बताया मै दहल गई काँप गया ह्रदय उन्होंने कहा - “अरे बिटिया अब क्या बताएं पहले वाला तो और दुर्दशा किये था सास ननद आदमी सभी मिल के एक दिन बेचारी को मिटटी का तेल उड़ेल के फूंकेय जात रहेन बड़ी मुश्किल से जान बचाय के भाग कर आई सीमा “ -बुआ ने बताया सुधा की शादी तो अच्छी हुई उसका आदमी अच्छी नौकरी पर है पर विदा के बाद वह कभी पलट कर मायके नहीं आई न ही बाप और बहन का मुंह देखा बड़ा अजीब लगा सुन कर “आखिर ऐसा क्यों बुआ ?”

उन्होंने बताया सुधा की शादी तो रिश्तेदारों ने तय करवा दी लड़की तो अच्छी सुंदर थी ही पढ़ी लिखी भी थी पर दरोगा मिसिर ने शादी में एक पाई खर्च करने से मना कर दिया था पर लड़के वाले भले लोग थे मन्दिर में शादी कर के लिवा ले गये अपनी बहू ---

“ बिटिया ऊ दिन और आज का दिन कब्बो नहीं आई सुधा पलट के, ऊ दरोगा इतना बीमार है सब कहिन बाप का मुंह देख जाव कुछ बोली नाही पर नही आई “ -- “ और सीमा कहाँ है वो भी नहीं आती? “

“ अरे बेटा जब जान बचाय के वो यहाँ बाप के पास आई तो कुछ दिन बाद ही यहाँ भी बेचारी के दुर्दिन शुरू हो गए “ कह कर चुप हो गई | “ काहे यहाँ क्या हुआ यहाँ तो बहन और बाप के पास थी अरे एक बात समझ में नहीं आई ये बिमला की शादी मौसा क्यों नहीं किये अब तक पैंतीस चालीस की हो रही होगी न ? “

फूला बुआ कुछ बोलती तभी माँ ने हम दोनों को बुला लिया |

“ यहाँ आओ नीरू सब यहाँ तुमसे मिलने आई है उधर कहाँ बैठी हो तुम दोनों “ – हम दोनों इधर आ गए भाभी ने कहा “ का हुआ बुआ हुआ का बतिया रही थी हमको भी बताइए न “ ... “ अरे कुछ नहीं दुलहिन हम बस नीरू बिटिया से कहत रहिन ई हमरे लवकुश बहुत परेसान करत है हमका गर्मी भर इनके कौनो इलाज़ होई तो बताना बिटिया “इतना सुनते ही सब औरते मुंह में आंचल दबा कर हंसने लगी और माँ ने तो बुआ को देख आँख तरेरी --- बात अधूरी छूट गई थी -

मैने सोचा भले ही दो दिन और रुकना पड़े पर पूरी बात सुन कर ही जायेंगे | आज यह भी पता चला दरोगा की हालत बहुत खराब है बस कुछ दिन के मेहमान है टट्टी पेशाब बिस्तर पर ही हो रहा है, लकवा मार गया है अब घर पर केवल बिमला ही है सीमा को उसका पति आने नहीं देता और सुधा खुद ही नहीं आती, नाते रिश्ते में कोई ख़ास आना जाना नहीं जब चलते फिरते थे तो अम्मा बाबू जी के पास आ कर कभी कभी बैठते या एक दो लोग और थे जो उनके यहाँ आते जाते, बाकी किरायेदार है तो, पर उन्हें क्या पड़ी है जो देखभाल करे जितना कर दे रहें है वही बहुत है वरना बाप बेटी का व्योहार बहुत खराब है सबसे तुरंत ही थाना पुलिस करने लगते दोनों, अब जब से सूबेदार बिस्तर पर पड़े तब से तो बिमला एकदम हंटरवाली हो गई है, डी.एम,, एस .पी –सब जगह पहुँच जाती एप्लीकेशन ले कर सब से गोहार लगाती हमारी माँ हैं नहीं बाप बिस्तर पर है और लोग हमको तंग कर रहे है, हमारे पैसे और जायजाद की लालच में,

एक तो सुंदर शक्ल सुरत उस पर पहनावा ऐसा अधिकारी भी कम उमर जान कर तरस खाते बेचारी अकेली लड़की को तंग कर रहे है |

अब ऐसे में कौन मदद को आएगा,, अब खुद करती होगी या किसी बुला कर सफाई कराती है राम जाने --- दिन तो बस पलक झपकते ही कब गुजर गया पता ही न चला दिन में हम अपनी बचपन की सहेली से मिलने गए वापस आते समय अचानक ख्याल आया फूला बुआ के घर चलें अभी बहुत सी बातें अधूरी रह गई थी दरवाज़ा खटखटाया तो बुआ ने ही खोला और बोली“ हम जानत रहे नीरू जरुर आई लेकिन का बतायें बेटी कोई कोई बात ऐसी भी होती है जो न निगली जाय न उगली जाय, तुम अंदर आओ बैठो “ कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने मौसी से पूछा आपने कल सीमा की बात अधूरी छोड़ दी थी क्या हुआ उसको कहाँ है वह – तब उन्होंने बताया ससुराल से आने के बाद यहाँ भी बहुत मार खाती थी बेचारी अक्सर हाथ पैर में निशान मुंह पर सूजन जैसे कोई घूंसे से मारा हो – “ क्यूँ मारते थे उसे वो तो बहुत सीधी साधी थी ....“ हां बहुत सीधी रही अब क्या कहें तुमसे आस पड़ोस वाले भी कानाफूसी करते थे जितने मुंह उतनी बातें होती दरोगा के घर से रोज रात को सीमा के चीखने चिल्लाने की आवाज़ आवत रही फिर लगे कोई उसका मुंह दबाये भीतर घसीट के लई जात है अब बेटा कौन बोले जो समझावे उस पर बिमला और बपवा दरोगवा दूनो फालेन होई जात रहेन तुमका याद है ऊ मेहता पाठशाला वाले चच्चा की वो एक बार दरोगा को बहुत फटकारे और बिमली की शादी के लिए लड़का भी बताये बहुत दबाव डाले की अब ब्याह करो इसका और सीमा की दूसरी शादी भी करो जानती हो बेटा उन पर ई छिनार बिमली छेड़छाड़ के रिपोर्ट लिखवा के बंद कराय दिहिस अब बुढौती में वो भला आदमी रात भर थाना में बंद रहे फिर जब टोला मोहल्ला वाले गयें तब जा के छोड़े उनका, कुछ दिन बाद सीमा का बियाह कर दिये वो शराबी है बहुत मारत है अब ब्याह कैसा बस घर से भेजने की खानापूरी भर किहिन, दुई चार जने घरेन पै आ गएँ बस माला बदलवा के सिंदूर भरवा दिहिन् अउर विदा कय दिहिस आपन बिटिया ई मुंहझौंसा, मरीगाड़ा ई दरोगवा “ सब बात सुन कर मुझे तो यही लगा सीमा के पति ने सोचा था पैसा जायजाद के साथ नौकरानी मुफ्त में मिल रही तो हर्ज़ क्या है दो रोटी खाएगी काम करेगी और पड़ी रहेगी, उसे बार बार मार पीट कर भेजता जाओ अपने बाप से पैसा लाओ और यहाँ से बाप और छोटी बहन पीट कर उल्टा लौटा देते बहुत दुःख हुआ सुन कर | फूला बुआ ने ही बताया आखिर बार जब वह वापस जा रही थी तो उनसे मिली थी | वो पागल बेवकूफ नहीं बहुत संतोषी लड़की है बता रही थी सुधा के पास गई थी पर वो उसको साथ नहीं रख सकती थी कोई मज़बूरी रही होगी अब इस महंगाई के ज़माने में एक प्राणी का रहना बोझ ही तो हुआ न सुधा पढ़ाती है स्कूल में उसका पति क्लर्क है किसी सरकारी विभाग में दो बेटे हैं उन के चार प्राणी तो वही लोग है फिर सुधा की सास भी साथ ही रहती है छोटे से दो कमरे के घर में जवान बड़ी बहन को कहाँ रखती कुछ पैसे दे कर लौटा दिया अब कहीं और ठिकाना तो है नहीं पर फिर यही बाप बहन के पास आ गई पर नहीं रहने दिया बिमला ने -हमने फिर से फूला बुआ को तनिक सा कुरेदा “ एक बात बताइए आप लोगों ने नहीं समझाया कभी दरोगा मौसा को आखिर तीनों बेटियां उनकी है तीनों बराबर हुई न फिर ऐसा क्यूँ ? और इस बिमला को कभी नहीं टोकी आप ये अपनी बहन पर ज्यादती आखिर क्यों उसे तो बाप से झगड़ जाना चाहिए “ बुआ तमक के बोल पड़ी “ अरे बिट्टी का बात करत हो ऊ पक्ष लेइ वही तो सब बातन की जड़ है कबो कवनो बात पर टोकाटाकी भर कर दिहिन तुरंत बाप बिटिया के पैरवी माँ खड़ा होई जात रहन हम गय रहे सीमा के जाने के पहले तुम्हरे फुफ्फा के साथ समझावे बाप बिटिया को जैसन बतिया शुरू किहे दरोगा भड़क गएन “----- “ आप लोग हमारे घरेलू मामले में न पड़े तो अच्छा होगा, कभी कोई आ जाता है सलाह देने छोटकी की शादी करो कब करोगे अरे किसी से क्या अब उसे नहीं करना शादी ब्याह तो लोग काहे चिंता में मरे जा रहे है, अब आप लोग आये है हम क्या करे क्या न करे समझाने हमें बिमला छोटी है सबसे हमारा सारा ख्याल भी यही रखती है अब जो कुछ है सब इसी का है, बाकी दोनों की शादी ब्याह कर दिया वो अपने ससुराल में रहें क्या जरूरत है भाग भाग के आने की “ ----- “ अरे कैसन बात करत हो आप बाप हो या कसाई बिटिया को मार मार के भुरकुस कई दिहिन सब आपको तनिको रोआं नहीं कांपा, बिटिया है तुम्हार अब हमका देखो हम दोनों परानी एक बिटिया को तरस के रहि गए देवी मईया हमार कोरा सून रखी पर आप की आँखी मा परदा पड़ गया है बस बिमली सब दे देंगे अरे बराबर नहीं तो कुछ तो सीमा और सुधा को भी दे का चाहि एतना कहतय मान अगिया बैताल होई गएँ दरोगा बाबू कहेन – “ कोई हक नहीं किसी साली का वो हरामजादे पैसे की लालच में यह नाटक करते है मारपीट का आयेदिन की नौटंकी है यह सब लालची है कानी कौड़ी नहीं दूंगा किसी साले को “

“ तब से तुम्हरे फुफ्फा ने आपन कसम धरा दी अब कभी इन बाप बेटी के कोई मामले मा न पड़ना अउर हमरे मुंह पर ताला लग गवा बिट्टी, हां सीमा का हाल देख के बहुत पीड़ा होत रही मुला कुछ नहीं कर सकत रहे, फिर ऊ हो चली गई बेटा उसको घर से निकाल दिहिस बिमला, रात भर ऊ बिटिया बाहर बरामदे में पड़ी रही भोर में हमरे पास आई भेंट के बहुत रोई जात बखत जब देहरी पर माथा टेकी तबही हम समझ गए अब न आई जात समय बस इतना ही बोली “ “अब हम कभी नहीं आयेंगे इस नरक में हम बिमला की तरह पढ़ी लिखी और सुंदर तो नहीं है लेकिन उसकी तरह नहीं रह सकते “ --- सब कहते थे सीमा कुछ मंद बुद्धि की थी, पर मुझे लगता है वह औरों से बहुत अच्छी थी कम से कम सही गलत तो समझती थी ---

बुआ बुदबुदा रहीं थी “जिंदा परेत है यह पापी सब समझत है लोग पर मुंह पर ढकना लगाये है अब बिमली कुलक्षणी की को देखो न तो कबो उमिर ही बढ़ी उसकी अपने रूप पर बड़ा घमंड है जैसे उनके आकास से इन्द्रासन की परी उतरी है उस पर ब्यूटी पार्लर और सीख लिए है और खूब रंगी चोंगी घूमत है और सैंडिल देखी थी जब मिली रही तुम्हे देखा न कैसे खट खटात चलत है माने कठघोड़वा पै सवार हो रूप का गुमान इतना राम राम का बतायें तुम्हे एक दिन दुपहरिया में आई और हमसे बोली “ -----“ बुआ आप को तो अम्मा की सूरत अच्छी तरह याद है न बताइये अम्मा ज्यादा सुंदर थी या हम उनसे ज्यादा खूबसूरत हैं ?” बताते हुए बुआ का गोरा चेहरा तमतमा कर लाल हो गया बोली

“ बेटा देह जरि गय हमार भला महतारी से कौन मुकाबला लेकिन हम कहे ये कौन सी बात है बिमला बहिन बहिन और देवरानी जेठानी मा ऐसन कम्पटीसन होए तो समझ में भी आये पर महतारी बिटिया में तो शोभा नाही देत हम इतना कहे वो बस तुनक के चल दी “

***