Tarika in Hindi Philosophy by Dr. Vandana Gupta books and stories PDF | तरीका

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तरीका


मैं फ्री होकर बैठी ही थी कि एक महीन सी आवाज़ आयी... "मैडम..! मे आई गेट इन?" वह कॉमर्स की एक स्वीट सी छात्रा थी, मुझे नाम नहीं पता था, पर चेहरा पहचानती थी।
"हाँ बेटा आ जाओ, बोलो क्या काम है?"
"आपसे बात करनी है, जरूरी और.... "
उसने जरूरी शब्द चबाकर बोला और झुकी हुई आँखों ने पोल खोल दी कि समस्या गम्भीर और गोपनीय है।
"बेटा खुल कर बोलो क्या प्रॉब्लम है, मैं क्या कर सकती हूँ तुम्हारे लिये?"
"मैडम मेरा नाम निकिता है और वो जो आपने उस दिन साइबर क्राइम एंड सिक्योरिटी पर लेक्चर के बाद कहा था न, उस बारे में आपकी मदद चाहिए.."

मेरे पूछने पर उसने बताया कि किस तरह गौरव उसे कोचिंग पर देखते ही लट्टू हो गया था, फेसबुक पर सर्च कर दोस्ती की.. फिर मिलने भी लगे और घनिष्ठता इतनी बढ़ी कि प्यार हो गया.. उसने शादी के सब्ज बाग दिखाए.. मम्मी से मिलवाया.. कच्ची उम्र और गौरव के आकर्षक रंग रूप का असर ये हुआ कि अपने न्यूड फोटो उसे भेज दिए.. पर एक दिन उसे पता चल ही गया कि वह एक दिलफेंक लड़का है और अन्य कई लड़कियों से भी ऐसी दोस्ती है उसकी... अब वह उससे ब्रेकअप करना चाहती थी, पर पहले उसके मोबाइल में से अपने फोटो डिलीट करवाना...

डाँटने या समझाने का न तो फायदा था न ही समय.. मैंने पूछा... "घर पर पता है?"
"जी नहीं, और पता चलने पर पिटाई के साथ पढ़ाई छूट जाएगी.."
"गौरव से बात की तुमने?"
"हाँ.. वो कहता है कि फोटो डिलीट कर देगा, पर ब्रेकअप मत करो.."
"फोटो तो वो कहीं और भी सेव कर सकता है, डिलीट करने से पहले.."
"जी मैडम इसीलिए आपके पास आई हूँ, बहुत परेशान हूँ, गलती हो गई अब क्या करूँ मैं..." वो रुआंसी हो गई.
"क्या तुम 'वी केअर फ़ॉर यू' में शिकायत करना चाहोगी? वो मदद करेंगे और तुम्हारी पहचान भी उजागर नहीं होगी.."
"मैडम इससे तो गौरव की बदनामी होगी.."
उसके मन में सॉफ्ट कार्नर अब भी था..

मुझे गुस्सा ज्यादा आ रहा था और तरस कम, पर उसने मुझ पर जो विश्वास किया था, उसे भी बनाए रखना था..
मेरे कहने पर उसने फोन लगाया.. "हेलो गौरव..! मैं मैडम के सामने स्पीकर खोल कर बात कर रही हूँ और कॉल भी रिकॉर्ड हो रहा है.. मैं वी केअर फ़ॉर यू में शिकायत कर रही हूँ.. "
दस मिनट बाद वह हाज़िर था..
"आंटी प्लीज देखो मैंने सब डिलीट कर दिया, अब मैं कभी परेशान नहीं करूंगा, लीजिए आप मेरा फोन चेक कर लीजिए, शिकायत करने से मैं बर्बाद हो जाऊँगा.. मेरी मम्मी की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी..प्लीज माफ कर दीजिए..."
"देखो बेटा... तुम्हारी उम्र में ऐसी गलतियां हो जाती हैं, तुम निर्णय लो पर पहले उस लायक तो बनो... इन बातों से तुम्हारा ध्यान भटकेगा और कैरियर प्रभावित होगा..."
"आप सही कह रही हो, हमसे गलती हो गयी" दोनों एक साथ बोले..
" समय के साथ विचार, पसंद सब बदल जाता है, ये सिर्फ आकर्षण है और कुछ नहीं, मुझसे वादा करो कि अभी के लिए तुम सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करोगे..."
दोनों ने हाँ में सिर हिलाया.. संयोग से गौरव मेरी परिचित का बेटा ही था..
"अगली बार कुछ गड़बड़ हुई तो तुम्हारी मम्मी से बात करूँगी.."
वह चला गया पर निकिता मेरे सामने बैठी रो रही थी, आँसुओं के साथ बह रहा था.. उसका पछतावा, उसकी गलती और उससे उपजी मानसिक यंत्रणा... मैंने उसे रो लेने दिया....!

©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक