महत्वाकांक्षा
टी शशिरंजन
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तभी प्रियंका ने अचानक अपने चेहरे का भाव बदलते हुए कहा - जिंदगी के मजे ऐसे नहीं होते हैं पंकज बाबू । इसके लिए पैसों की आवश्यकता होती है और आपकी जितनी सैलरी है उतने पैसे मैं केवल अपने कपड़ों पर ही खर्च कर देती हूं । उसकी बात सुन कर मै सन्न रह गया था की पैसों को लेकर उसकी सोच कितनी विकृत हो गयी थी ।
मैने फिर पैसों के बारे में अपनी बात समझाने की कोशिश की लेकिन वह मुझे चुप करा गयी । मैने दोबारा कहा कि मैं सचमुच तुमसे प्यार करता हूं । उसने कहा तुम पागल हो गए हो और जा कर अपना इलाज करा लो । यहीं शाहादरा में पागलखाना है। मैं यहां तुम्हें यह बताने आयी थी कि पिताजी की असहमति के बावजूद मैं अगले महीने उस इंजीनियर से शादी करने जा रही हूं और शादी का कार्ड निकल कर दे दिया सरसराती हुई निकल गयी ।
बता कर पंकज रोने लगे । मैने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि कोई बात नहीं है । यह जीवन बहुत बड़ी है । वह महत्वाकांक्षी थी चली गयी । ईश्वर जो करता है वह अच्छा ही करता है । मुझे लगता है कि उससे कहीं अच्छी लड़की है जो आपके लिए प्रार्थना कर रही है और जिसे ईश्वर ने केवल आपके लिए ही बनाया है ।
तभी केबिन के दरवाजे पर दोबारा दस्तक हुई । वेटर खाना लेकर आया था । मैने खाना लिया और उसे कुछ आवश्यक निर्देश देकर भेज दिया । मैने फिर पूछा आगे क्या हुआ । पंकज ने कहा -
इस बीच मैने पहले वाली नौकरी छोड दी । मानवसंसाधन विकास मंत्रालय से मुझे एक फेलोशिप मिल गयी थी । इसमें मुझे वेश्याओं पर काम करना था । नौकरी छोड़ने और फेलोशिप का काम शुरू करने के बीच मेरे पास एक महीने का वक्त था, मैं अपने घर चला गया । इस बीच मैने वाराणसी में इस काम के सिलसिले में कुछ चक्कर लगाए । इसी दौरान एक दिन मैं बीएचयू परिसर में स्थित बाबा विश्वनाथ मंदिर में बैठा कुछ सोच रहा था कि तभी पीयूष का फोन आया, उसने बताया कि “दो दिन बाद उसकी शादी है । वह मुझे शादी का कार्ड देने आई थी, और जितनी देर रुकी तुम्हारे बारे में ही पूछ रही थी । तुम्हारे घर का नंबर दे दिया है फोन करे तो इंकार मत करना बात कर लेना और शादी में चले आना । मैने कहा ठीक है ।“
मैं पीयूष की इस बात से थोड़ा बेचैन हो गया । हालांकि न तो प्रियंका का फोन आया और न ही मैं उसकी शादी में शामिल हुआ। पीयूष से पता चला कि उसकी शादी में उसके मां बाप भी मौजूद नहीं थे । उनलोगों ने इस विवाह का विरोध किया था । पीयूष और कई अन्य लोग उसके घर भी गए थे । उसके पिता से कहा भी कि कम से कम चल के कन्यादान कर दें लेकिन उसके पिता ने मना कर दिया । पिता और परिवार के अन्य सदस्य इस विवाह में इसलिए शामिल नहीं हुए थे क्योंकि उसने सामाजिक रीतियों को तोड़ते हुए ब्राहमणेतर लड़के के साथ केवल पैसों की खातिर विवाह करने का फैसला लिया था ।
“वाराणसी जैसे शहर में हालांकि ऐसे रिश्तों को मान्यता मिलना बड़ा मुश्किल है । इस स्थान की सामाजिक परिस्थितियों में अभी वह उन्मुक्तता नहीं आयी है जो बड़े बड़े महानगरों में है । हालांकि, दुर्घटनावश कथित रूप से कामरेड बन गए कुछ लोग अपने घरों में तो इसका विरोध करते हैं पर बाहर जोर शोर से हल्ला कर इसका समर्थन करते हैं ।“
उसकी भी शादी हो गयी । पीयूष ने मुझे सारा हाल कह सुनाया । पड़ोस के एक व्यक्ति ने पिता की जगह उसका कन्यादान किया था । फिर उसकी विदाई भी हो गयी ।
शादी के करीब छः महीने बीतने के बाद पीयूष के पास उसका फोन आया था । पीयूष से उसने मेरे बारे में पूछा था और खुद के बारे में बताया था कि वह कोलकाता में रह रही है। हालांकि उसकी आवाज में उदासी भी थी । उसने बताया था कि उसके पति ने दबाब देकर उसकी नौकरी छुडवा दी है और ......सिसकते हुए उसने फोन काट दिया था ।
इसके बाद वेश्याओं पर शोध के सिलसिले में मेरी यात्रायें शुरू हो गयी । लगभग छह महीने बीतने के बाद मेरी मुलाकात दिल्ली में खैराती लाल नामक एक बुजुर्ग से हुई । वह वेश्याओं को उस दलदल से बाहर निकालने के लिए काम करते थे । उन्होंने मुझे मुंबई और कोलकाता जाने की सलाह दी । उन्होंने बताया कि कोलकाता में सोनागाछी नामक इलाके में वेश्यायें ही रहती हैं । उन्होंने कहा कि जब कोलकाता जाओ तो इकबाल से मिलो वह तुम्हारी मदद करेगा । मैने इकबाल का नंबर लिया और मुंबई जाने की बजाए पहले कोलकाता जाना जरूरी समझा ।
मैं चार दिन पहले ही यहां आया था । खुद से मुआयना करने और जरूरी सामग्री एकत्रित करने तथा अधिकारियों से मिलने के बाद मैने इकबाल से मुलाकात की । मैंने उसे बताया कि मुझे कुछ वेश्याओं से बातचीत करनी है । उसने आज दिन में 11 बजे बुलाया था । मैं स्थानीय पुलिस अधिकारी को सूचित करके वहां गया था । इकबाल ने बताया कि साहब दो तीन महिलाओं से आपको मिलवाता हूं लेकिन आप कौन हैं ये उनके अड्डे पर पता नहीं चलना चाहिए । ये नयी नयी इस पेशे में आयी हैं । इक़बाल दरअसल खैराती लाल के साथ कम करता है और वेश्याओं को इस नारकीय जीवन से निकलने में उनकी मदद करता है खास तौर से उनलोगों को जो किसी करणवश इसमें नयी नयी आती हैं ।
इकबाल मुझे एक शानदार हालनुमा कमरे में ले गया जहां तीन महिलायें पहले से घूंघट काढ कर बैठी थी । मैं एक से बातचीत कर ही रहा था कि तीसरी महिला उठ कर चली गयी । मैने उसे बुलवाया तो उसने आने से मना कर दिया । इसके बाद इकबाल से कहा तो उसने एक भद्दी सी गाली दी और उसकी चुन्नी खींच कर फेंक दी, जिससे उसने घूंघट किया था ।
मैने उसे देखा तो सन्न रह गया । मेरे पैर के नीचे की जमीन खिसक गयी थी । ये वही थी- प्रियंका, जिसने पैसों और अच्छे जीवन स्तर के लिए उस इंजीनियर से विवाह किया था और जो उसके इशारे पर काम करता था । बेहद दुर्बल और कमजोर । मैं तेजी से उठा और उसके पास गया । उसने कातर दृष्टि से इशारा किया दो दिन से और अंदर चली गयी । मैं वहां से तेजी से वापस रेलवे स्टेशन की ओर लौट आया ।
समाप्त
टी शाशिरंजन
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