Vivek aur 41 Minutes - 8 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक और 41 मिनिट - 8

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विवेक और 41 मिनिट - 8

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 8

केल्मपाकम के अंदर एक कि.मी. दूर पेडों के बीच में जगज्योति स्वामी जी का आश्रम था | विवेक और विष्णु ने कार से ही देखा आश्रम के नजदीक आते समय पहले से ही बहुत सी गाडीयां पार्क करी हुई थीं | हरे रंग के कपड़े पहने स्वामी के भक्त लोग जहां तक निगाह जाए सभी जगह दिखाई देरहेथे |

“बॉस..........”

“हुम...........”

“इतनी भीड़ होने के बावजूद एक छोटी सी आवाज भी नहीं हो रही है | आपने देखा..............?”

“सुचमुच में ये मन को रमाने वाला सुंदर वातावरण है.......|” विवेक ने प्रवेश द्वार पर खड़े होकर दीवार पर लिखा हुआ पढ़ा |

मुक्ति का मतलब क्या है?

एक जिंदगी में बिना किसी बात के ध्यान की एक स्थिति सब में एक होकर एक स्थिति में हो जाना ही सच में मुख्य बात है

“विष्णु कुछ समझ में आ रहा है क्या...........?”

“बॉस ये सब समझने के लिए हाइटेक बुद्धि की जरूरत है | मेरा लेवल तो एल.के.जी. का है | इस तरह के वाक्यों को मुझे मत दिखाईएगा बॉस |” कह कर विष्णु बांयी ओर अपनी नजर मोड कर “अहा” बोला |

“क्या है रे...............?”

“जगज्योति स्वामी जी के बहुत से शिष्य भी हैं ऐसा लगता है बॉस.........”

“अबे अपनी पूंछ को समेट कर रख............!” विष्णु तो विवेक की बात पर ध्यान न देकर थोड़ी दूर पर पुस्तक के साथ हरे रंग की साड़ी पहने लड़की को “बहन” बुला रहा था |

उसने खड़ी होकर ‘क्या है’ जैसे पूछा | विष्णु ने पूछा –“सभी लोग झुंड के झुंड कहाँ जा रहे हैं बहन........?”

“वह ध्यान मंडप के लिए........”

“ध्यान मंडप में क्या होगा...........?”

“आज स्वामी जी सम्बोधित करेंगे |”

“सबको आने की अनुमति है क्या ?”

“है...........” कह कर वह लड़की चली गई तो विष्णु मन में हाय...... हाय......... दिलवाली कह कर गाने लगा |

“क्या है रे गाना ?”

“ आपने कैसे पहचाना ?”

“क्यों रे तुझे मैं नहीं जानता क्या ? अब तुम किसी से भी बात नहीं करोगे समझे, चलो |”

“कहाँ बॉस ?”

“ध्यान मंडप में..........”

दोनों चलने लगे उस तरफ जहां ‘ध्यान मंडप को जाने का रास्ता ’ ऐसा हाथ से इशारा करती तख्ती लगी थी |

दो सौ मीटर दूर चल कर गए तो ‘बहुत बड़ा टेंट लगा हुआ था वह दिखा तो उसमें सभी हरे रंग के कपड़े पहने महिलाएं और पुरुष लाइन से बैठे हुए थे ओम की ध्वनि लाउड स्पीकर से लगातार सुनाई दे रही थी |

तेज रोशनी वाले स्टेज पर सफ़ेद दाढ़ी के साथ, हरे रंग के कुर्ते में जगज्योति स्वामी जी ‘पद्मासन’ पर बैठे थे |

“बॉस...........! सिनेमा थियेटर में कोई 70 एम.एम. पिक्चर देख रहे हो जैसे ऐसा लग रहा है...............स्वामी जी सचमुच में पावर फुल हैं लगता है |”

“रे चुप कर..........” विवेक ध्यान मंडप में घुसते ही जो खाली जगह थी वहाँ जाकर बैठ गया |

दस मिनिट के गहरे मौन के बाद जगज्योति स्वामी जी ने बोलना शुरू किया |

“सभी लोगों को भगवान की कृपा और आशीर्वाद |

यह संसार सृष्टि की अद्भुत संरचना है इसमें मनुष्य ही है जो छ: तरह के ज्ञान के साथ पैदा हुआ है |

जैसी शक्ति, मनोभाव, आत्मविश्वास मनुष्य में हैं उन शक्तियों को ठीक से प्रयोग में न लाने के कारण ही उसका शरीर और मन दूषित होकर परेशानियाँ शुरू हो जाती हैं | इसे ठीक करने के लिए ही हमारे पूर्वज, सिद्ध पुरुष, योगी, ज्ञानी आदि योग का अभ्यास करके मन को साफ कर ध्यान का अभ्यास करने के लिए लोगों को कहते थे| एक मनुष्य गरीब हो या फिर राजा हो वह पूर्ण आनंद में रहे और उस आनंद को अनुभव करता रहे ऐसा नहीं कह सकते | इसका कारण है जो शरीर से अनुभव करता है वह संतोष है जो मन से अनुभव करता है वह खुशी है | ये दोनों ही तत्कालिक, क्षणिक होते हैं | किसी को सुचमुच की स्थायी खुशी चाहिए तो प्राण के सच को जानो जिससे ही हमें आनंद की प्राप्ति होगी |

बीच में थोड़ा चुप रह कर स्वामी जी ने फिर से अपने गंभीर स्वर में बोलना शुरू किया |

ब्रह्मांड ,जो आकाश में है जिसे पिंड कहते हैं हमारे शरीर में है ........... ये ज्ञानी लोगों का कथन है | पानी, मिट्टी, आग, हवा, आकाश ये चार भूत है | इन पांचों के प्रतिरूप ही हम हैं | इस संसार में जो भी प्राणी जमीन पर रहने वाले हैं वे वनस्पति खाकर जीने वाले प्राणी हो या मांसाहारी जंगली जानवर हो सभी इन्ही पंच तत्व से ही निर्मित हैं | इन पाँच तत्व में कोई कमी होने पर ही मानसिक रोग, शारीरिक रोग आदि हमें लग जाते हैं | इनसे अपना बचाव करने के लिए ही अपनी शारीरिक शक्ति, चिंतन शक्ति को आरोग्य रखना ही योगी, ज्ञानी, सिद्धर (जिन्हें सिद्धि मिल गई हो) सिखाते हैं जिन्होंने ध्यान, प्राण की शक्तियों स्वयं से आगे बढ़ कर संसार को अच्छा रास्ता दिखा रहेहैं | हमारे शरीर में 72 नाड़ी और नसें हैं | ये नसें जहां जमा होती हैं उस स्थान पर केंद्रीय चक्र होते है | केंद्रीय चक्रों के ध्यान के अभ्यास के द्वारा ये ठीक रहते है और संपूर्णता को प्राप्त होते हैं | पंच तत्व शक्ति को संग्रहीत करता है | उसके द्वारा पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है | याददाश्त बढ़ता है, मन निर्मल होता है | शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहता है, आनंद की प्राप्ति जो घटना घटने वाली है उसे महसूस करने का ज्ञान वह सब बिना किसी रुकावट के पाने का मार्ग है | इसलिए ध्यान एक वर है प्रसाद है | ध्यान के अभ्यास में पाँच स्थिति होती है | प्रथम.......... ध्वनि ओंकार का अभ्यास | दूसरा चार आसन याने चार मुख्य आसन | तीसरा प्राण के बंधन के साथ मंत्र का अभ्यास, चौथा (बीज) ॐ के उच्चारण के साथ मंत्र का अभ्यास, पाचवां नाद का संगम ऐसा बीज ध्वनि जो अपने पूरे शरीर के अंदर पहुंच........”

“बॉस.......”

“क्या है रे.........?”

“एक चटाई और तकिया मिलेगा क्या देखो ! स्वामी जी की बातें खत्म होने तक एक नींद निकालने की सोच रहा हूं |”

“ये बेवकूफ ! स्वामी जी विषय का ज्ञान रखने वाले हैं | उनकी बातों में बिजनेस नहीं है............. एक बात को नोट किया क्या ?”

“क्या है बॉस ?”

“यहाँ खाना वैगरह कुछ नहीं है | दान का व्यापार भी नहीं......... ये एक शुद्ध आश्रम मार्ग है |”

विवेक बोल रहा था उसी समय अपने समीप आकर बैठे एक सज्जन को महसूस कर विवेक ने मुड़ कर देखा |

हरे रंग का कुर्ता लूँगी पहने वह पचास साल का आदमी सफ़ेद दाढ़ी और मूछों के बीच से मुस्कुराया | पूछा - “आप ही मिस्टर विवेक.........?”

“हाँ........”

“और आधे घंटे बाद स्वामी जी से आप मिलकर बात कर सकते हैं |”

“आप.......”

“मेरा नाम नित्यानन्द है | मैं स्वामी जी का पी. ए. हूं |”

“हम आए हैं आपको कैसे पता...........?”

“कमिश्नर ने फोन करके बताया था | कोई पारस मणिमाला है जो आपको मिला है उसके बारे में स्वामी जी से इंक्वायरी आप चाहते हैं बताया |”

“हाँ.......”

“कमिश्नर की बात को मैंने स्वामी जी को बताया | वे उसके लिए राजी हो गए |”

“ये ध्यान की बातों का प्रसंग कब तक चलेगा ?”

“आधे घंटे के अंदर खत्म हो जाएगा | रोजाना होने वाला प्रसंग व भीड़ ही है ये.............”

“रोजाना इतनी भीड़ होती है क्या ?”

“आज भीड़ कम है...... ये पूरा मंडप भर कर और बाहर भी लोग खड़े रहने की नौबत भी आती है |”

“मैं एक बात पूछूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना ?”

“पूछिये..........”

“स्वामी जी की सुचमुच में 99 साल के है.........?”

“हाँ..........”

“देखने से ऐसा नहीं लगता………….?”

नित्यानन्द हँसे | “ये संदेह सिर्फ आपको ही नहीं | यहाँ आने वाले सभी को होता है | स्वामी जी की उम्र 99 साल है आप उसे माने उसका एक ही रास्ता है |”

“क्या ?”

नित्यानन्द बोलना शुरू किया |

***