अमन बिक रहे हैं
अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।
लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।
म्ंत्रियों को देखा है खुले आम बिकते
दारोगा, वकील भी हो रहे नंगे
मार ले डुबकी ... हर - हर गंगे ।
घोटाले पर घोटाले रोज़ हो रहें हैं ।
अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।
लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।
मान बिक रहा है , ईमान बिक रहा है
मसूम ब़िच्चयों का सम्मान बिक रहा है ।
आन बिक रही है , शान बिक रही है
लूट लो कोयले की खान बिक रही है ।
पद बिक रहे हैं , मद बिक रहे हैं
कौडियों में अफसरों के कद बिक रहे हैं ।
रेल बिक रहा है , खेल बिक रहा है
सटटे पर सटटे रोज़ लग रहे हैं ।
अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।
लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।
महंगाई का आलम देखो तो ।
बाज़ार में चल कर देखो तो
प्याज़ से लेकर रोटी तक
शर्ट से लेकर लंगोटी तक
झोपड़ों के दाम भी बढ़े जा रहे हैं ।
अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।
लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।
दया ,प्रेम व सहानुभूति हो रहे बेमानी
नफरत, हिंसा हो गई जानी - मानी ।
दिल मंहगा पर मौत सस्ती
लहू के समुद्र में डूब रही कश्ती ।
ममता के घरोंदे उड़े जा रहे हैं ।
अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।
लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।।
आओ सब मिलकर मीत बना लें
भाईचारे का नया कोई गीत बना लें ।
जति , धर्म व माया को एक ओर रखकर
मन में प्रेम की गंगा बहा लें ।
म्ंदिर - मस्ज़िदों को छोड़कर
घर - घर प्रभू स्वयं चले आ रहे हैं
अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं ।
लाशों से लेकर कपन बिक रहे हैं ।
डा. नरेंद्र शुक्ल
रावण युग आ रहा है ।
देखो - देखो -
वर्तमान सभ्यता को , पैरों तले रौंदता
मानवता पर भयंकर अटटाहस करता हुआ
रावण युग आ रहा है ।
बूढ़ें इश्क फरमा रहे हैं ।
भीतरी कुंठा , उछालें मार रही है ।
जवानी की अतप्त उमगें -
नौकरानी के अर्धनग्न वक्षों को देखकर , लार टपका रही हैं ।
नफरत का ज़हर भर रहा है ।
आपसी भेदभाव रोज़ बढ़ रहा है ।
सुहागिने विधवा हो रही हैं ।
कुत्सा , अवज्ञा , अपमान का तम छा रहा है ।
सांय - सांय
ठांय - ठांय -
गोलियों से भ्ुानते , छिलते मासूम बिलबिला रहे हंै।
शहर क्या , गांव तक वीरान हो रहे हैं ।
लाशें लावारिस हो रही हैं ।
पुलिस , मालदार केस की तलाश कर रही है ।
मीडिया खबरों से खिलवाड़ कर रहा है ।
मानवीयता का सरेआम हनन हो रहा है ।
श्रद्धा , सम्मान और प्रेरणा जैसे शब्द
कोड़ियों के भाव बिक रहे हैं
गोधी , नेहरु रोज़ मर रहे हैं ।
शिक्षा आज , बेकार और व्यापार बन गई है ।
फिल्में आज़ प्रधान हो रही हैं ।
विद्यार्थी पढ़ाई में बोरियत अनुभव कर रहा है ।
चैटिंग में रस ले रहा है ।
हीरो , हीरोइनें पथ-प्रदर्शक हो रहे हैं
माता - पिता व शि़क्षक पथभ्रष्ट हो गये हैं
नौकरियां , दासी हैं ।
निर्धनता , फटेहाली और भ्ुूखमरी सांझाी है ।
शोषण , उनका हक हो गया है ।
भ्रश्टाचार फल - फूल रहा है ।
इस पर -
सुनते हैं -
पुल बनाये जायेंगे
सेनायें तैयार होंगी
मारे जायेंगे रावण
और -
मनुष्यता विजयी होगी ।
मगर -
वायदे और भविष्यवाणियां
हवा हो रही है।
और वर्तमान -
लोगों को खुले आम , चेतावनी दे रहा है
कंदराओं में छिप जाओ
रावण युग आ रहा है ।
रावण युग आ रहा है ।।