Haivnali Hell - 2 in Hindi Women Focused by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | हैवनली हैल - 2

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हैवनली हैल - 2

हैवनली हैल

नीलम कुलश्रेष्ठ

(2)

उसे लगा था कि यदि वह रुककर विश्वास दिलाना भी चाहे कि उसे ज़िंदगी ने कभी इतनी मोहलत नहीं दी कि वह किसी पुरुष से डॉयलॉग सुने या सुनाये, इसलिए उसे हंसी आ गई थी, तो भी वे विश्वास नहीं करेंगे.

उस अंगारो से जलते क्रोध ने जन्म दिया था, उस चक्रव्यूह को. वह कैसे अजीब चक्रव्यूह मे फँसा दी गई थी. शहर के मेटल सप्लायर्स ने अचानक उसे कच्चा माल देना बंद कर दिया था, वह घबरायी सी हर दरवाज़ा ख़टख़टाती भागी थी,हर दरवाज़ा बंद होता जा रहा था. बस उसकी आखिरी उम्मीद श्री सेनगुप्ता ही बचे थे जिनके वयोवृद्ध व्यक्तितव की गरिमा व ईमानदारी की प्रतिष्ठा पूरे शहर में थी. बड़ी उम्मीद लेकर उनके पास गई थी, ``सर !अचानक मुझे सप्लायर्स ने कच्चा माल देना बंद कर दिया है. ``

``लेकिन ऎसा कैसे संभव है ?तुमने तो अपनी साख़ बना ली है. ``

``आज की दुनियाँ में कुछ भी संभव है. मेरी उम्र ऐसी तो नहीं है कि मै कहूँ समबडी वांट्स टु हेरेस मी. ``वह उन्हें विवरण देते देते सकुचा गई थी.

``ओ --नो प्रॉबलम . आप तो जानती हैं कि मेरे पास जो भी सहायता के लिये आता है मै उसे निराश नहीं करता. आप मुझे दस दिन बाद फ़ोन करिये ``

``सर !मै यही उम्मीद लेकर आपके पास आयी थी.

उसने दस क्या बारह दिन बाद फ़ोन किया. उनकी पी ए ने बताया किया कि वो तो एक हफ्ते के लिए बाहर गए है. वह लगातार एक महीना फ़ोन करतीं रही यही उत्तर मिलता रहा.

कुछ दिन बाद गुस्से से खीजती उनके ऑफ़िस चली गई थी.उसने अपना विज़िटिंग कार्ड रिसेप्शनिस्ट को दिया. वह भी कार्ड लेकर गायब हो गई और वह आधा घंटा इंतज़ार कर बोर होती रही. वह पता करने पी आर ओ के रूम में धड़दधड़ाती घुस गई, ये देख़कर हैरान रह गई कि वह उनसे ही गप्पें मार रही थी.

उसके आवाज़ तल्ख़ हो गई, ``आपने मिस्टर सेनगुप्ता को मेरा कार्ड क्यों नहीं दिया ?``

``दिया तो था लेकिन आपका कार्ड देख़ते ही उन्हें अर्जेन्ट काम याद आ गया और वे बैक डोर से बाहर चले गए. ``

``आपने मुझे बताया क्यों नहीं ?``

``सॉरी !.``वह शरारत से मुस्करा दी थी.

वह समझ गई थी कि कि ये हिदायत भी मालिक की होगी. वह हाँफती हुई लौटी थी. ऑफ़िस आकर लास्ट पस्त अपनी कुर्सी पर निढाल गिर गई थी. उसकी आस्थाओं व उसके विश्वास की भव्य इमारत तड़ाक से टूटकर उसके ऊपर आ गिरी थी. जब सामान ही नहीं होगा तो वह गियर्स कैसे बनवायेगी और किसी को बतायेगी कैसे कि वह अकेली है, वह बिचारी नहीं है.

वह आस पास के शहरो के सप्लायर्स की लिस्ट मंगवाकर फ़ोन मिलाती रह्ती. सबका उत्तर `ना `मे मिलता कि उनके पास माल नहीं है. काम ना मिलने से उसके कारीगर भी नौकरी छोड़कर जाने लगे थे.

तरला दौड़ती भागती अपने बिज़नेस टूर से वापिस लौटते ही उसके पास चली आई थी, ``आप इतनी बड़ी समस्या में है और आपने मुझे ख़बर तक नहीं की ?आपका काम रुक क्यों गया है. ?`

उसने पस्त आवाज़ में बताया था, ``रुक नहीं गया, सब तरफ लोगो को ख़रीद कर रोका गया है. ``

``किसने ?``

उसने संक्षेप में सारी बात बताई थी. तरला ने उसके कन्धे पर हाथ रख़कर उसके बैठते हुए दिल को अपनी सांत्वना से थाम लिया था, ``नो प्रॉब्लम !आप चिन्ता क्यों करती हैं ?मै हूँ न, मै कहीं से कच्चा माल ख़रीद कर अपने इंडस्ट्रियल शेड में आपके गियर्स बनवा लूँगी. आपके मुझ पर इतने अहसान है, आपने ही मुझे बिज़नेस वर्ल्ड में उँगली पकड़कर चलना सिखाया है. ``

वह जैसे कहीं दूर से बोल रही थी, ``तुमने कभी जंगल में शिकार के समय हांके जाने वाले पशु को देखा है ?सब तरफ़ से वीभत्स आवाज़ निकालते लोग उसे जाल में कैद करने की कोशिश कर रहे हों. ``

``आप ऎसा क्यों सोचती हैं ?``

``भगवान करे तुम ऐसी पीड़ा कभी ज़िन्दगी मे ना भोगो. मैं हाड़ मांस की स्त्री, एक चेतन प्राणी शिकारियों से बच निकलने के लिए छटपटाती उस पशु की पीड़ा को समझ पा रही हूँ. ``

``आइ एम विद यू. आप तो मेरे लिए भगवान जैसी हो. आपने मेरे बुरे समय में साथ देकर मुझे जीवनदान दिया था. ``

आस्था के उन खंडहरों में कैसा विश्वास भर गया था. दुनियाँ में सब कुछ इतना वीभत्स घिनौना नहीं है. वह बीच बीच में तरला के शेड में चली जाती थी क्योंकि जानती थी कि वह अभी इतनी होशियार नहीं है कि ब्रिंद्रा ब्रदर्स जैसी इंडस्ट्री के स्तर के गियर्स बनवा सके. तरला भी प्रसन्न थी उन्हें शेड में बिठाकर बिंदास अपने शहर के काम ख़त्म करती रहतीं.जब चारों तरफ़ गियर्स बनकर तैयार हो गए थे तो उसने अहुत आत्मविश्वास से उन्हें फ़ोन किया था. उन्होंने आदतन उसकी खिल्ली उड़ाई थी, `` यू आर कॉलिंग मी आफ़्टर अ सेंचुरी. आप अभी तक इसी शहर में हो ?``

``किसी के डर से शहर छोड़कर भाग जाने वालों में से नहीं हैं. आपको एक खुशख़बरी दे रही हूँ. आपके कॉन्ट्रेक्ट का सामान तैयार है. कब गियर्स देने आऊँ ?``

``एनी टाइम. यू आर मोस्ट वेलकम. आप तो जानती है आपके लिए हमारे पास टाइम ही टाइम है फिर भी मै बिज़नेस टूर पर एक हफ़्ते के लिये बाहर हूँ. आप सोमवार को ग्यारह बजे आइए. ``

उसने फ़ोन पर इनसे समय तय होने की सूचना तरला को दे दे थी. तरला विजयी स्वर में चहकी थी, ``मै भी आपके साथ चलूँगी. मै ट्रांसपोर्ट कम्पनी से बात करके माल लोड करवा कर रखूंगी. मै देख़ना चाहती हूँ कि उनका चेहरा कैसा हो जाता है ये माल देख़कर. आप सोमवार को दस बजे यहां आकर सब चेक भी कर लीजिये. ``

वह उड़ते हुए पंखों से चलती सोमवार को दस बजे तरला के शेड के सामने ख़ड़ी थी.

--------``मैम !कम ऑन दिस वे. ``

वह चौंकती है. वह नाज़ुक सी रिसेप्शनिस्ट उसी से कह रही है. वह सोफ़े से उठकर उसके पीछॆ चल पड़ती है. सामने एक संकरा गलियारा है. उसे लगा है कि वह किसी गुफा में जा रही है. उस गलियारे को पार करते हुए एक हल्का भय मन को घेरे हुए है, एक रोमांच है. आश्चर्य है उस जैसी समझदार स्त्री अपने शिकारी के केबिन में चली जा रही है. उसे हमेशा से ऐसी क्यों ज़िद रही है कि वे उसका कभी कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे.उसने ज़िन्दगी में कुछ ग़लत काम नहीं किया.जानबूझकर किसी का दिल नहीं दुखाया.वह हतप्रभ भी है अंदर उसे क्या खींचे लिए जा रहा है ?एक अद्ववतीय रुप से कर्मठ व्यक्ति के साथ एक व्यावसायिक साथी की तरह काम करने का मोह जिसे मन एक बिगड़ा हुआ दोस्त मान बैठा था -----वह सोचना नहीं चाहती.

उसे देख़कर वह ऊँचे कद के व्यक्ति तह्ज़ीब से हाथ जोड़कर ख़ड़े हो जाते हैं, उसे सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हैं. उसके बैठने के बाद स्वयम्‌ बैठते हैं.

वह ऊपर से शांत अन्दर से भौंचक है. इस एम्पायर का स्वामी उसके लिए वही ज़िद्दी मासूम बन रहा है. तो इस ऑफ़िस के आगे गलियारे में वॉश बेसिन में मुँह धोया रहा था, चेहरे पर पाउडर की पर्त अभी लगाई गई है. यह मौसम ऎसा नहीं है कि कोई सूट पहने उसे मन हे मन हँसी आ गई थी ब्लू सूट पर उनकी लाल टाई को देख कर. ये तो बाद मे पता लगा कि आजकल इसी रंग की टाई का फैशन है. लाल टाई में वही अकड़ी हुई गर्दन है लेकिन सभ्य मुलामियत लिए हुए. उसे याद आता है चलते समय उसने तो अपनी साज सज्जा पर अधिक ध्यान नहीं दिया था. नौ दस वर्ष पहले ही वह कौन सी युवा थी ?इतने वर्षो में उम्र और बदनी थी क्या और को छिपाना ? अन्दर से कतर होने लगती है, सब कुछ जब्त किए बैठीं रहती है.

वही पुरानी, `हाउ आर यू ? ``

`` फ़ाइन, वॉट अबाउट योर फ़ैमिली ?``

बरसों पहले भी वह हर बार उनके परिवार के बारे में पूछ्कर उनके दिलफेंक दिल को याद दिलाती रहती थी कि वे एक परिवार वाले व्यक्ति हैं.

``एक्सट्रीमली फ़ाइन. ``

`` सॉरी सर !आई गॉट लेट. ``उसकी कुर्सी के पीछे से किसी लड़की की आवाज़ आती है.

वह पीछॆ सिर घूमकर देख़ने के लोभ का संवरण नहीं कर पाती. पीछॆ ख़ड़ी है तेईस चौबीस वर्ष की गोल चेहरे वाली स्मार्ट लड़की.

``नेवरमाइंड !कल टाइम से आइए. ``

तो ये भी इनका उम्दा कलेक्शन है, वह सोचती है. कैसी होती है इन मदों की दुनियाँ जो बेहतरीन फ़र्नीचर, कालीन, कंप्यूटर्स की तरह बेहतरीन लड़कियां अपने एम्पायर के लिये जुटा लेते हैं. फिर क्यों उस जैसी उम्र की स्त्री पर दूर से मानसिक दवाब बनाय हुए हैं ?जिससे घबरा कर वह उन्हें फ़ोन कर बैठीं.

उन्हें फ़ोन करने का एक दूसरा बहुत बड़ा कारण था जिसे वह स्वर्ग समझकर अपने आस पास बसाये बैठीं थी वह तो नर्क से भी बदतर निकला. उसके ऑफ़िस का पाँच वर्ष पुराना चपरासी ऑफ़िस में रक्खा दस हज़ार रुपया लेकर भाग गया.

उस ख़ास सोमवार को दस बजे वह तरला के शेड पर ताला देख़कर हैरान राह गई थी. उसने बेवजह शेड के दो चक्कर लगाये थे कि कहीं कोई खिड़की खुली हो. पास के शेड से एक आदमी कोई छोटी मशीन लिए बाहर निकला था. उसने उसी से पूछ लिया था, ``आज तरला मैडम नहीं आई ?``

``ये शेड तो तीन दिन से बंद है. ``

``क्या ?``उसने गश खाकर अपने को गिरने से बचाया था. उसने जल्दी जल्दी मोबाइल पर तरला के घर का नंबर डायल किया. फ़ोन की घंटी बजती रही, उत्तर नदारद था. कहाँ गायब हो गई वह ?वह घबराहट में अपने ऑफ़िस पहुँच गई, दो तीन गिलास पानी पीया. तभी मोबाइल पर एक नाम चमका. डायल टोन बज उठी. बड़ी मुश्किल से उसके गले से आवाज़ निकली थी, ``हलो !``

दूसरी तरफ़ वही मर्दाना दम्भ भरी आवाज़ थी, `गुड़ मॉर्निंग मैडम !आज तो आप हमारे ऑफ़िस आने वाली थी. आई एम ईगरली वेटिंग फ़ॉर यू. ``

``वो----तो ----बात ये है ---.``गला साथ नहीं दे रहा था.

``आपकी आवाज़ क्यों काँप रही है ?``

उसने अपनी ताकत जुटाकर अपनी आवाज़ को संयत किया था, ``दरअसल तरला कंस्ट्रक्शन की ओनर `तरला के साथ मै आने वाली थी लेकिन ----`

`ओ ! तरला दैट यंग एंड स्मार्ट लेडी. शी इज़ सिटिंग इन फ्रंट ऑफ़ मी.शी इज़ मोर इंटैलिजेंट एंड प्रोग्रेसिव दैन यू. मुझे समझ में नहीं आता कि इतनी छोटी उम्र में इनके काम में इतना परफ़ेक्शन कैसे है ?``

वह फ़ोन पर ज़ोर से चीखी थी, ``तरला आपके ऑफ़िस में है ?``

``सो वॉट ?हमे ज़रा जल्दी थी इसलिए दस्स गुना दाम देकर इनके गियर्स ख़रीद लिए हैं. बात डो`नट वरी आप हमारी पुरानी सप्लायर हैं. हम आपका कॉन्ट्रेक्ट कैंसिल नहीं कर रहे. आई एम स्टिल वेटिंग फ़ॉर यू. ``

उस ढीठ की सधी आवाज़ से कहीं नहीं लग रहा था वो उसे हताहत करने के लिये नए जाल बिछाये जा रहे हैं. पता नहीं उसके ख़ुद के स्वर में कैसी अकड़ भर गई थी, ``मै आपका काम ज़रूर पूरा करूँगी लेकिन मुझे कुछ समय और चाहिये. `

``नो प्रॉब्लम !आपने जो काम पहले करके दिया है उससे बिंद्रा ब्रदर्स व हम पूरे हिंदुस्तान में मशहूर हो गए हैं. हा---हा---हा--बाय द वे डु यू वॉन्ट टु टॉक योर क्लोज़ एंड डीयरेस्ट फ्रेंड त-----र---ला----.``

``नो.``उसे लगा वह मोबाइल ज़मीन पर फेंक दे. तरला ने तो उसी के बनाये गियर्स से कोंच कोंच कर उसे मार डाला है. ये बात बात में `नो प्रॉब्लम `कहने वाली दुनियाँ ही भयंकर समस्याये पैदा करती रहती है.

वह घर पर जब होती तो सुन्न होती जाती. विवेहीन -सी, पागल हो जाने की स्थितियों की सीमा पर निढाल. बिज़नेस चौपट पड़ा था. भाई बहिन. माँ उसकी हालत देख़कर परेशान घूमते. उन्हें उसकी चिन्ता थी या घर कैसे चलेगा, ये चिन्ता थी.

इस बीच उनकी पी ए फ़ाईलो के ढेर पर उनके साइन लेने आ गई थी. उन्होंने कहा था, ``आप देख़ नहीं रही कि यहा मेरी गेस्ट बैठी है ?``

``सर ! बाहर पटेल ब्रदर्स का पी ए बैठा है और वो आज ही अब्रॉड जाने वाले हैं. यदि आप साइन कर देंगे तो डील आज ही फ़ाइनल हो जायेगी वर्ना वो सात महीने बाद वापिस आयेंगे.``

``ओ ----.``फिर उन्होंने उससे कहा था, ``सॉरी मैम ! ये काम ज़रूरी है. ``

``नेवर माइंड. `` अपने लिए `गेस्ट `शब्द सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई थी.

वे फाईल के बारे में पूछते व साइन करने में व्यस्त हैं और वह सोच रही है कि इस बीच वे मानसिक रुप से लड़ते रहे थे. व्यावसायिक घात प्रतिघात में उलझे हुए. कितना मर्मांतक होता है स्त्री पुरुष के अहं का टकराव. निरंतर घात प्रतिघात करना और सहना, आसान नहीं होता दूसरे को चोट देना. इस चोट की प्रतिक्रिया स्वयम्‌ पर भी होती है. मन लहूलुहान हो जाता है. तनाव में नसों से खून टपकने को हो जाता है, बस टपक नहीं पाता. उसे कहीं से गियर्स बनाने का आश्वासन मिलता, वह उन्हें बता देती कि जल्दी काम पूरा हो जायेगा लेकिन उस स्थान को सूँघते हुए उनकी थैली पहुँच जाती. वह भी ज़िद पर आ गई थी, नया संपर्क खोज लेती. तब दो व्यव्सायी स्त्री पुरुष अहं म्यान में से निकली तलवार बन चुके थे. एक दूसरे को भूलने की कोशिश में और भी उलझते हुए.

उसने सुन लिया था कि उन्होंने किसी दोस्त के सामने उसका मजाक उड़ाया था. उस भंकर महाभारत के दौरान वह उनसे मिली थी उन्हें जताने लिए कि वह युद्ध में पीछॆ नहीं हटी है. उन्होंने बहुत हल्के दंग से बेपरवाह होकर कहा था, ``क्या पुरानी बात लेकर बैठ गए हो ?इस काम की चिन्ता छोड़ो. हम दूसरा कॉन्ट्रेक्ट दिलवा देंगे. ``

``पहले जो ज़िम्मेदारी ली है उसे तो पूरा कर दें. ``उसकी आवाज़ तल्ख हो गई थी. वह जाने के लिये उठ ख़ड़ी हुई थी.

***