Mahatvakansha - 3 in Hindi Moral Stories by Shashi Ranjan books and stories PDF | महत्वाकांक्षा - 3

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महत्वाकांक्षा - 3

महत्वाकांक्षा

टी शशिरंजन

(3)

मैने कहा जरूरी नहीं कि हर वो आदमी जो तुम्हारे कहने के अनुसार काम करता है वह तुम्हें प्यार भी करता हो । पति पत्नी के बीच प्यार के लिए पैसे की नहीं आपसी समझ की आवश्यकता है । मैने फिर पूछा तुम्हें इस्तीफा कब देना है । उसने कहा आज मैने भेज दिया है । मैने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा - क्या ?

उसने कहा –हां, बॉस को फैक्स कर दिया है । कल शाम को जाना है । पूरा दिन तैयारी में लगी रहूंगी इसलिए तुमसे मुलाकात नहीं होगी यही सोच कर अभी आ गयी हूं । मैने कहा कि तुम उससे नहीं मिलोगी जिससे शादी करोगी । यह समय तुम्हे उसके साथ व्यतीत करना चाहिए न कि मेरे साथ । उसने कहा कि उसी ने तो ये नौकरी दिलवायी है और मैं उसी के साथ जा रही हूं और हम दोनों अब वहां लिव इन में रहेंगे । उसकी यह बात मुझे और भी अजीब लगी । मैं सोचने लगा कि वाराणसी जैसे शहर में रहने वाले लोग क्या अपने बच्चों ऐसे संस्कार देते हैं ।

यह लड़की महात्वाकंक्षी हैं यह तो पता चलता था, लेकिन इतनी महत्वाकांक्षी है इसका आभास नहीं था । लोगों को यही अतिमहत्वाकांक्षा उस मुकाम पर पहुंचा कर छोड़ती है जहां के बारे में उन्होंने कभी सोचा नहीं होता है और वहां से सब कुछ गंवा कर लौटते हैं या फिर ऐसे दलदल से लौटना उनके लिए मुश्किल हो जाता है ।

थोड़ी ही देर बाद प्रियंका के पास किसी का फोन आया । फोन पर बात करने के बाद वह तुरत उठी और बोली - चलो । मैने कहा- तुम जाओ । मैं पीछे से आता हूं । तुम्हें दूसरी तरफ जाना है मुझे दूसरी ओर जाना है । हम दोनों के रास्ते बिल्कुल अलग और विपरीत दिशा में है ।उसने कहा - साथ में चलो । मैने कहा- नहीं । उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने की कोशिश की लेकिन मैं नहीं उठा।

इसी दौरान उसका फोन दोबारा बजा । बात करने के बाद मेरी और देखा और फिर चली गयी, लेकिन जाते जाते उसने तीन बार पलट कर मुझे देखा । मैं लगातार उसकी तरफ ही देखे जा रहा था । मैंने देखा कि वह अगले ही पल वह वापस आ गयी और बोली तुम्हें छोड़ कर जाने का मन नहीं कर रहा है । ऐसा लग रहा है मानों कुछ छूट रहा है । मैने कहा तो रूक जाओ न । उसने कहा – नहीं, जीवन में आगे बढने के लिए कुछ चीजों को छोड़ना पड़ता है । यह बोल कर उसने मेरा हाथ फिर खींचा और कहा - चलो । मैं उठ कर उसके साथ चल पड़ा, फिर हम दोनों अपने अपने रास्ते चल पड़े ।

इस वाकये के बाद उससे मेरी मुलाकात नहीं हुई । हां, फोन पर अवश्य बातचीत होती रही । फोन उसी का आता था, घंटो वह मुझसे बात करती, अधिकतर समय बातचीत में वह मेरी तारीफ करती और कहती वह लड़की बहुत नसीब वाली होगी जिसे आप मिलेंगे । मै तुम से आप बनता गया, फिर आप से सर बन गया और धीरे धीरे उसका फोन आना भी बंद हो गया । मैं भी अपने काम में मन लगाने लगा था । मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैने क्या खोया है और क्या पाया है । मुझे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा प्यार की वजह से था या किसी और वजह से ।

बातचीत बंद होने के लगभग एक साल बाद मैं अपने कार्यालय की कैंटीन में अकेला बैठा था कि एक अज्ञात नंबर से फोन आया । आवाज किसी लड़की की थी ।

उसने कहा - पंकज ?

मैने कहा- हां, आप कौन ?

उसने कहा - नहीं पहचाना ?

आवाज कुछ जानी पहचानी सी लगी । मैने पहचानने की कोशिश की तो उसने कहा मैं इंडिया गेट पर हूं जल्दी आ जाओ। ये प्रियंका थी । मुझे लगा कि शायद मजाक कर रही है ।

उसने कहा कि सचमुच मै इंडिया गेट पर हूँ आ जाओ । मेरा मन हुआ कि मैं नहीं जाऊं, लेकिन वहां से उठ कर न चाहते हुए भी इंडिया गेट चला गया । इंडिया गेट मेरे ऑफिस के पास ही था, संसद भवन के पीछे । जब हम मिले तो मुझे लगा कि उसमे एक बड़ा बदलाव हो गया है । मुझे देखते ही वह दौड़ के मेरे पास आई और गले लग गयी। वह दो तीन मिनट तक मुझसे चिपकी रही । उसने जोर से मुझे पकड़ रखा था । मुझे एकदम यह अच्छा महसूस नहीं हुआ । मैंने कहा तुम हटो, छोड़ो । जैसे जैसे मै कहता गया कि छोड़ो उसकी पकड़ उतनी ही मजबूत होती जा रही थी । फिर मैंने उसे धक्का देते हुए जोर से कहा -छोड़ो, तो वह सॉरी बोलते हुए पीछे हट गयी ।

उसने कहा कि बहुत रूखे हो गए हो, लड़की के साथ कैसे पेश आते हैं सब भूल गए हो । फिर उसने उसी पेड़ के पासचल कर बैठने को कहा तो इस बार मैंने मना कर दिया । इस पर उसने कहा - सेंट्रल पार्क चलो । मैं उसके साथ हो लिया ।

वहां पहुँचने पर जब मै ऑटो वाले को पैसे दे रहा था तो उसने कहा रुको । उसने फिर कहा - इंद्रप्रस्थ पार्क चलो । उसकी बेचैनी मैंने इंडिया गेट पर ही महसूस की थी । मैने फिर हामी भरी और वहां जाने के लिए उसके साथ आटो में बैठ गया । इस दौरान हम दोनों चुप थे ।

उसने हमारे बीच पसरे सन्नाटे को भंग करते हुये पूछा -एक साल बाद मुलाकात हो रही है न । मैंने कहा – हाँ । उसने फिर पूछा -इंडिया गेट पर बैठना हो रहा है कि नहीं । मैने कहा किसके साथ । तुम हो नहीं तो अब किसके साथ जाउं । फिर कई तरह की बातें होती रही । हम जल्दी ही इंद्रप्रस्थ पार्क पहुंच गए ।

वहां एक अच्छी सी जगह देख कर बैठ गए । हम इधर उधर देखने लगे । एक दूसरे को देख कर हंसने लगे । दोनों तरफ एक अजीब सी खुशी दिख रही थी । दोनों के बीच उत्पन्न शब्दों के निर्वात को फिर उसी ने तोड़ा और कहा कि उसे मुझसे कुछ जरूरी बात करनी है । मैने कहा -तो करो जरूरी बात । उसने कहा कि मजाक मत करो । मैं काफी सीरियस हूं । मैने कहा - मैं कब कह रहा हूं कि तुम गंभीर नहीं हो ।

उसने कहा – पंकज, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं और तुमसे शादी करना चाहती हूं । क्या तुम इसके लिए तैयार हो । उसकी बात सुन कर मैं निरूत्तर हो गया । मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कह रही है । वह ऐसा कहेगी इसके लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं था ।

मैने कहा कि ये अचानक तुम्हें क्या हो गया है । तुम तो उस इंजीनियर से.......... । उसने बात बीच में ही काट कर मेरी ओर खिसकते हुए कहा कि मुझे उत्तर केवल हां और ना में चाहिए । अचानक उसकी आजमाने वाली बात मेरे जेहन में घूम गयी। मुझे लगा कि ये क्या कह रही है और क्या पूछ रही है ...... मै अभी कुछ बोल पाता कि उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर कहा - अधिक सोचने की जरुरत नहीं है, मुझे बताओ –हाँ या ना।

मैने बिना सोचे समझे कहा- हां बिलकुल तैयार हूं ।तुम बताओ क्या करना होगा ।

फिर कुछ सोच कर इस पर वह खूब जोर जोर से हंसने लगी । हँसते हँसते उसकी आँखें नम हो आई । मुझे पता था कि किसी बेचैनी के कारण वह जबरदस्ती हंस रही थी।

उसने कहा मैं मजाक कर रही थी । मेरी इस बात पर तुम कैसे रिएक्ट करते हो यह देखना चाहती थी । मैने कहा कमाल है तुम मजाक कर रही थी । उसने हंसते हुए कहा - हां । मैने फिर कहा लेकिन मैं मजाक नहीं कर रहा हूं । मैं सचमुच तुमसे प्यार करता हूं और तुम्ही से शादी करना चाहता हूं । मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, बहुत बहुत बहुत, तब से जब ...... । बीच में मेरी बात काटते हुए अचानक गंभीर होकर रुधे गले से बोली –जो बात तुम आज मुझे कह रहे हो पंकज बाबू , काश ये बात तुमने एक साल पहले कही होती तो शायद आज मै इस दल दल में .....फिर चुप हो गयी। मै अभी सोच ही रहा था कि मै उससे दोनों में से कौन सी बात पूछूं ।

क्रमशः