Nagn Mansikta ke Mahilavadi in Hindi Moral Stories by Vijay Vibhor books and stories PDF | नग्न मानसिकता के महिलावादी

Featured Books
Categories
Share

नग्न मानसिकता के महिलावादी

हर जीव् का एक नैसर्गिक स्वभाव होता है.. ठीक वैसे ही पुरुष है।। चरित्र और काम वासना पुरुषो का नैसर्गिक रूप से सबसे अधिक कमज़ोर और संवेदनशील बिंदु है… और चालाक औरते पुरुषो के इसी पॉइंट पर प्रहार करके उन्हें अपना दास या भोगी बनाने का प्रयास करती है… इसीलिए तो प्राचीन काल में ऋषि मुनियो की तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओ की मदद ली जाती थी… और यही कारण था की पुरुषो के गुरुकुल के आस पास दूर दूर तक कोई वैश्यालय नहीं होता था जिस से पुरुष भटक न जाए…

फिल्म तरीकाये जिस प्रकार सिनेमा के पर्दे पर कला के नाम पर अपने जिस्म की नुमायस करती हैं और वर्तमान अधिकतर फिल्मों मे सारी हदे पार कर खुले रूप से भावभंगिमाओं से गैर मर्द के साथ सेक्स को अंजाम देती हैं कल को उनकी शादी होगी और बच्चे होंगे तो इन हेरोइन का बेटा बोलेगा.. “मोम काश आप मेरी माँ न होती काश मैं आपका बॉय फ्रेंड होता, क्योंकि मॉम आप जवानी में बहुत सेक्सी थी और आपका फिगर बम था”

जबसे टेलीविज़न घरों मे घुस गया है तब से ये फिल्मे इस पर भी सारा दिन चलती हैं, इन फिल्मों के गाने ना तो सुनने मे अच्छे हैं, फिर भी भूले भटके कोई गाना सुनने लायक आ भी जाये तो वो परिवार के साथ देखने लायक नही होते| ये गाने सीधे सीधे पुरुष मानसिकता पर प्रहार करते हैं और फिर बालक जो इन गानो या फिल्मों जैसी हरकते होती हैं वैसी ही बाहर निकल कर सामाजिक जीवन मे अपनाने की कौशिश करते हैं| संचार क्रांति और पूंजीवादी बाज़ारू व्यवस्था ने स्मार्ट फोन्स की सहज उपलब्धता ने जहाँ मानव को एकल बनाने में महत्ती भूमिका निभाई है वहीँ इसने मानव के मानसिक स्तर को गिराने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी है| टेलीविजन के सामने तो फिर भी शर्माशर्मी उठकर इधर उधर हो जाया जाता थे, किन्तु मोबाईल ने तो वह शर्म भी उतार फेंकी है| अब बलात्कार को जो घिनौनी घटनाएं सामने आ रही हैं उनकी भयावहता की कहानी अपने आप में जिन्दा इंसानो की रूह कंपा देने में कोई नहीं छोड़ती| इन स्मार्ट फोन्स में प्रचलित सोशल साइट्स पर ऐसे बेहूदा एप्स टक्कर मारते हैं की समाज की नीव ही खोखली और कामुक होने लगी है| अब छोटे-छोटे बच्चे भाई-बहिन नहीं बल्कि बॉय फ्रेंड गर्ल फ्रेंड होने लगे हैं| भाषा भी इतनी शालीन हो गयी है की नए नवेले पति पत्नी आपस में सम्मान जनक भाषा का प्रयोग न कर 'यार' बाज़ारू सम्बोधन इस प्रयोग करने लगे हैं| सरे बाजार गलबहियां तो अब आम बात हो गयी है| अब ऐसे भाषा का प्रयोग जब ऐसी हरकते खुले मे होंगी तो समाज गर्त मे जायेगा ही जायेगा| कामुकता से भरे पड़े हैं बाजार, क्या जनरल स्टोर, क्या परचून की दुकान सब जगह किसी न किसी बहाने से सामान की पब्लिसिटी से नाम पर नग्न महिलाओ के फोटो टंगे मिल जायेंगे| जिस्म की नग्न नुमाइस करने वाली महिला को हॉट और शरीर को पूर्ण रूप से ढककर रखने वाली महिलाओं को कबीलाई संस्कृति का मानने वाला बाजार कैसे समाज को तैयार करने पर तुला हुआ है|

जब समाज इतना बेशर्म हो चूका है.. फिर किस मुह से हम बलात्कार को कम करने की वकालत करते है… बलात्कार सिर्फ वही लोग करते है जिनकी जिस्मानी भूंख शांत नहीं होती …और जिस्म की भूंख को ये फिल्मी वैश्याएँ ही तो बढ़ा रही है…तभी तो इनके कारण एक 2 साल की बच्ची का भी रेप हो जाता है… पशु भी प्रकृति की पुकार पर संतति के लिए संसर्ग करते हैं, लेकिन अपने को सभ्य कहलाने का ढोंग करने वाला अपने को इंसान समझने वाला यह दोपाया किस तरफ जा रहा है…. आगे आगे देखते जाइये जनाब होता है क्या.. अभी तो शुरुवात है…

यदि कोई इनके आचरण के प्रति कुछ खुलकर लिखता भी है या कहता है तो तथाकथित महिला संगठन दकियानूसी सोच वाला, महिलाओं की आजादी पर कुठाराघात, मानसिक दिवालिया, गंदी सोच, गिरि हुई मानसिकता ना जाने क्या क्या उपाधिया दे कर शुशोभित कर दिया जाता है|


समाज शुतुर्गमुर्ग बनके बैठा है… मुह में गड्ढे में डालकर ये सोच रहे है लोग की कुछ हो ही नहीं रहा …. लेकिन जब कोई वहशी बलात्कार कर देगा तब लोग कहते है “हे भगवान ये क्या हो गया”

जब हम नैतिकता की बात करते है तब नग्न मानसिकता के महिलावादी भागते क्यों है? इस समाज को नैतिक शिक्षा की जरूरत है…एक और चाणक्य या अष्टावक्र की जरूरत है..एक और कुमारिल भट्ट की जरूरत है