स्टॉकर
(27)
सूरज सिंह ने उस फुटेज में जो कुछ सुना वह उससे भी अधिक विस्फोटक था जो कुछ उनके बीच हुआ था।
अपने आप को तृप्त कर लेने के बाद मेघना और रॉबिन बिस्तर पर लेटे बातें कर रहे थे। मेघना ने रॉबिन के सीने पर सर रख कर कहा।
"आखिर कब तक हम यूं ही छिप छिप कर मिलेंगे ?"
"मैं कुछ सोंच रहा हूँ ? वैसे भी शिव को अब मुझ पर शक होने लगा है। मैंने अपने टी स्टेट के लिए उससे एडवांस लिया था। उसी से रामलाल गंज में अपना फार्म हाउस खरीदा था। पर वह फार्म हाउस पहले ही मैं किसी और को बेंच चुका था।"
"तो अब....?"
"अब एक ही रास्ता है। अगर शिव टंडन की मौत हो जाए तो तुम उसकी जायदाद की मालकिन बन जाओगी। फिर हम कहीं दूर जाकर खुशियों का संसार बसाएंगे।"
"मझे तो नहीं लगता है कि वह शिव इतनी जल्दी मरेगा।"
रॉबिन उसकी बात सुन कर हंस दिया।
"मेघना तुम सचमुच मेरी बात का मतलब नहीं समझीं। अगर कोई रास्ते से हटे ना तो हटाना पड़ता है।"
मेघना के चेहरे पर एक डर उभरा।
"ऐसा करना खतरनाक होगा। हम पकड़े गए तो ?"
"तो मैं कब कह रहा हूँ कि ये काम हम खुद करें।"
"तो कौन करेगा ?"
"हम किसी और से करा सकते हैं।"
"मतलब हम किसी और को मारने का कांट्रैक्ट दे सकते हैं। किसी पेशेवर किलर को।"
"किसी पेशेवर की जगह किसी ऐसे को जिसे तुम अपने हिसाब से नचा सको।"
"ऐसा कौन है ?"
"है ना....वो अंकित जिसे तुमने झांसा दे रखा है कि तुम उसे जिम खुलवा कर दोगी।"
"हाँ.... पर वो ये काम कर सकेगा।"
"कर सकेगा। याद है जब तुमने मुझे रेस्टोरेंट में तमाचा मारा था। उसके बाद मैं तुमसे नाराज़ हो गया था। तब मैंने उसे अपने फार्म हाउस पर बुलाया था। शिव के उसे पीटने के बाद वह मेरे पास आया था। तब मैं और वो दोस्त बन गए थे। तब मैंने उससे कहा था कि क्या वह शिव की हत्या कर सकता है। पहले तो वह झिझका था। पर बाद में उसने कहा कि पैसे के लिए वह कुछ भी कर सकता है।"
"तो तुमने उससे ये काम क्यों नहीं कराया।"
"मैंने कहा ना कि वह पैसों के लिए काम करता। मेरे पास पैसे नहीं थे। तुम्हारे पास पैसे हैं। कुछ पैसे खर्च कर तुम करोड़ों की मालकिन बन सकती हो।"
"ठीक है मैं उससे बात करती हूँ।"
इस बातचीत को सुनने के बाद सूरज सिंह ने अपना वही आदमी मेघना के पीछे लगा दिया। वह मेघना और अंकित की रेस्टोरेंट में मुलाकात पर नज़र रखने लगा।
जिस बॉक्स में मेघना और अंकित मिलते थे वहाँ भी बग लगा कर उनकी सारी बातें रिकॉर्ड कर लीं। सूरज सिंह के पास अब मेघना को ब्लैकमेल करने का अच्छा खासा सामान था।
सूरज सिंह अपनी कहानी सुना कर चुप हो गया। एसपी गुरुनूर ने कहा।
"तो तुम चेतन या मिस्टर टंडन की हत्या में शामिल नहीं हो।"
"नहीं मैडम.....मैं बस मेघना को ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठ रहा था। उसने बीस लाख दे दिए थे। मैं उस पर दबाव बना रहा था कि तीस लाख रुपए और दे नहीं तो सारे सबूत मीडिया को बेंच दूँगा।"
"तुम्हें चेतन और मिस्टर टंडन की हत्या की खबर कब लगी।"
"पहले मीडिया में शिव टंडन की हत्या की खबर सुनी। फिर कुछ दिन बाद खबर आई कि एक फार्म हाउस में शिव की कार में चेतन की लाश मिली। फार्म हाउस का जो पता था उससे मैं यह जान गया कि यह रॉबिन का है।"
एसपी गुरुनूर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली।
"तुम किसी ऐसे आदमी को जानते हो जिसके लंबे खिचड़ी बाल हों। जिन्हें वह पोनीटेल में बांध कर रखता हो। चश्मा लगाता हो। सावले रंग और मझोले कद का हो।"
एसपी गुरुनूर ने उस आदमी का हुलिया बताया जिसने अंकित को कैद किया था। सूरज सिंह कुछ सोंचने के बाद बोला।
"जो हुलिया आप बता रही हैं उसके हिसाब से तो यह पूरन सिंह हो सकता है।"
"पूरन सिंह ? ये पूरन सिंह कौन है ?"
"मैडम ये पूरन सिंह एक प्राइवेट डिटेक्टिव है। लोगों के कहने पर किसी की भी जासूसी करता है। जैसे मैं करता हूँ। फर्क यह है कि मैं ब्लैकमेल करने के लिए करता हूँ। वह दूसरों के कहने पर उनके लिए करता है।"
एसपी गुरुनूर सोंचने लगी कि अगर पूरन दूसरों पर नज़र रखता है तो किसने उसे अंकित के पीछे लगाया ? उसने अंकित को कैद कर क्यों रखा ?
उसने कुछ सोंचने के बाद कहा।
"तुम्हारे पास मेघना के खिलाफ जो कुछ है वह हमें चाहिए।"
"मैडम मैं अपने साथी मुन्ना का नंबर दे रहा हूँ। आप उससे बात कर लीजिएगा। वह सब दे देगा।"
एसपी गुरुनूर ने मुन्ना का नंबर लिया और वापस लौट गई।
सब इंस्पेक्टर गीता अंकित की हर गतिविधि पर नज़र रखे हुए थी। अभी तक उसकी गतिविधि में कुछ भी संदिग्ध नज़र नहीं आया था। वह अधिकतर समय अपने फ्लैट में ही रहता था। बहुत हुआ तो आसपास के इलाके में थोड़ा घूम आता था। पर उसे किसी से मिलने जाते नहीं देखा गया। ना ही इस बीच कोई उससे मिलने आया।
सब इंस्पेक्टर गीता उसकी कॉल्स पर भी नज़र रखे थी। इस बीच उसने सिर्फ एक बार अपनी बहन से बात की थी।
सब इंस्पेक्टर गीता को सूचना मिली कि अंकित कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहा है। वह फौरन अंकित से मिलने के लिए निकल पड़ी। जब वह बिल्डिंग में पहुँची तो अंकित लिफ्ट से निकल रहा था। उसके कंधे पर बैग लटका था।
"कहाँ जा रहे हो अंकित ?"
इस सवाल से अंकित झुंझला गया।
"मैं कहीं आ जा नहीं सकता हूँ क्या ?"
"ज्यादा तैश में आने की ज़रूरत नहीं। तुमने हमें बहुत सी झूठी कहानियां बताई हैं। तुम पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।"
"तो ऐसा कीजिए कि मुझे बेगुनाह होने पर भी फांसी चढ़ा दीजिए।"
"कानून अपना काम जानता है। हमें मत समझाओ। कहाँ जा रहे थे ?"
"झांसी अपने घर।"
"अपने फ्लैट में चलो।"
"मेरी ट्रेन का टाइम हो रहा है।"
"जो कह रही हूँ वो करो।"
सब इंस्पेक्टर गीता ने कड़े स्वर में निर्देश दिया। अंकित उसके साथ अपने फ्लैट में आ गया। सब इंस्पेक्टर गीता सोफे पर बैठ गई।
"अब बताओ....झांसी क्या करने जा रहे थे ?"
"अपने घर वालों से मिलने के लिए।"
"इस बैग में क्या है ?"
"अब ट्रैवेल करने वाला बैग में क्या रखेगा। अपनी ज़रूरत का सामान और कपड़े।"
सब इंस्पेक्टर गीता ने उसे घूर कर देखा।
"पंद्रह लाख रुपए भी हो सकते हैं। जिन्हें लेकर तुम कहीं और भाग रहे हो।"
पंद्रह लाख की बात सुन कर अंकित कुछ सकपका गया।
"तुमने पंद्रह लाख फर्ज़ान को दिए थे। ये झूठ तो हमने पहले ही पकड़ लिया था।"
अंकित कुछ नहीं बोला। सब इंस्पेक्टर गीता ने कहा।
"सही बताओ....कहाँ भाग रहे थे ?"
"कहीं नहीं भाग रहा था। अपने घर ही जा रहा था।"
अंकित ने मोबाइल पर अपना टिकट दिखाया। सब इंस्पेक्टर गीता ने टिकट देखने के बाद कहा।
"पंद्रह लाख तो हैं तुम्हारे बैग में। हो सकता है कि तुम पहले झांसी जाते। उसके बाद वहाँ से कहीं और निकल जाते।"
अंकित कुछ पल तक नीचे फर्श को ताकता रहा। फिर बोला।
"हाँ मेरे बैग में पंद्रह लाख हैं। पर मैं भाग नहीं रहा था। मैंने अपने घरवालों को बहुत दुख दिए हैं। इसलिए चाहता था कि उन्हें ये पैसे दे दूँ। मेरे माता पिता की कुछ मदद हो जाएगी।"
सब इंस्पेक्टर गीता उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देख रही थी। पुलिस की नौकरी में अब तक उसने जो अनुभव प्राप्त किया था उसके द्वारा वह कह सकती थी कि इस समय अंकित झूठ नहीं बोल रहा था।
"मैम....मैंने भले ही नादानी में घर छोड़ा था पर जब मुझे एहसास हुआ तो मैंने ठान लिया कि अब मैं कुछ बन कर ही घर वापस जाऊँगा। ऐसा कुछ करूँगा कि मेरे घरवालों को मुझ पर गर्व हो। मैं इसके लिए मेहनत भी कर रहा था। पर मेघना ने मेरे जीवन में प्रवेश किया। मैं उसकी बातों में आ गया। जल्दी सफलता पाने के लिए उसके गुनाहों में साथ देने को तैयार हो गया।"
अंकित भावुक हो गया। उसकी आवाज़ में कंपन सा आ गया। वह चुप होकर खुद को संभालने की कोशिश करने लगा। जब वह संभला तो बोला।
"मैंने भले ही उसके साथ साजिश रची हो। मैं भले ही कत्ल के इरादे से रॉबिन के फार्म हाउस पर गया था। पर मैंने कोई कत्ल नहीं किया। एक ना एक दिन यह बात सामने आ ही जाएगी। मैंने जो गलत किया है उसकी सज़ा मैं भुगत लूँगा। पर कत्ल मैंने नहीं किए हैं।"
सब इंस्पेक्टर गीता गंभीरता से उसकी बात सुन रही थी। उसे आज उसकी बातों में सच्चाई लग रही थी। पर एक सवाल उसके मन में था।
उसने अंकित की तरफ देखा। अंकित ने महसूस किया कि कुछ है जो सब इंस्पेक्टर गीता को परेशान कर रहा है। वह प्रतीक्षा करने लगा कि सब इंस्पेक्टर गीता अपना सवाल पूँछे।