किसी कहानी में अगर आपको बढ़िया कथानक, रोचक संवाद, धाराप्रवाह लेखनशैली, अपने आसपास के दिखते माहौल में रचे बसे विषय तथा खुद में रमे हरफनमौला टाइप के किरदार मिल जाएँ तो मेरे ख्याल से कुछ अच्छा पढ़ने का हमारा औचित्य पूरा हो जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ जब इस बार के पुस्तक मेले में मैंने प्रज्ञा रोहिणी जी का कहानी संकलन "मन्नत टेलर्स" खरीदा।
इस संग्रह की पहली कहानी "लो बजट" ही उनकी लेखनशैली की व्याख्या करने में पूरी तरह सक्षम है। ये कहानी आम मध्यमवर्गीय आदमी के शहर में उसका अपना घर होने के सपने को ले कर है। कहानी को लिखते वक्त विषय को ले कर किया गया उनका शोध इस कहानी में और इसकी भाषा में साफ दिखाई देता है। एक पाठक की हैसियत से अगर कहूँ तो इस कहानी के अंत में कहानी को अप्रत्याशित तरीके से अलग मोड़ देने का प्रयास मुझे सही नहीं लगा या यूँ कहना ज़्यादा सही रहेगा कि थोड़ा अखरा। अंत में उठाए गए विषय पर मेरे ख्याल से एक अलग कहानी या फिर एक पूरा उपन्यास लिखा जाना चाहिए तभी उस महत्वपूर्ण विषय के साथ पूरी तरह न्याय हो पाएगा।
इस संग्रह में भिन्न भिन्न किरदारों के माध्यम से समाज में फैले अलग अलग बुराइयों पर उन्होंने अपनी लेखनी के ज़रिए किसी ना किसी बहाने चोट की है। किसी कहानी में युवा होते बच्चों की मन में दबी इच्छाओं और उनके सपनों का जिक्र है और उनके पूरा ना हो पाने पर डिप्रेशन की जद में आने का वर्णन है तो किसी रचना में उलझी यादों के ज़रिए बुज़ुर्गों के दिक्कतों, उनकी खोती यादाश्त और उससे पैदा हुई परेशानियों से झूझने की कहानी है। किसी कहानी में तथाकथित प्रगति के चक्कर में उजड़ते हाट बाज़ारों में ठिय्या लगाने वालों के विस्थापित होने को ले कर पूरी कहानी का ताना बाना रचा गया है तो किसी कहानी में लड़कियों के उच्च शिक्षा प्राप्त करने को ले कर समाज में फैली तरह तरह की भ्रांतियां को लेकर सारा प्लॉट स्थापित किया गया है। शीर्षक कहानी मन्नत टेलर्स रेडिमेड कपड़ों और मॉल संस्कृति के ज़रिए समाज में फैली आधुनिकता और इसके चक्कर में फँस तबाह होते गरीब कारीगरों की कहानी है। कुछ कहानियों के अंत ज़रूर लीक से हट कर और थोड़ा चौंकाने वाले लगे। जिन्हें खैर..थोड़ा और करारा..थोड़ा और क्रिस्प किया जा सकता था।
एक खास बात और, इस पूरे संकलन में मुझे दो कहानियां लीक से हट कर एक अलग ढर्रे पर चलती हुई दिखाई दी उनमें से एक है " एक झरना ज़मींदोज़" और दूसरी है "बतकुच्चन" । इस तरह के प्रयोग सराहनीय हैं। इसी किताब में एक कहानी
"तबाह दुनिया की दास्तान" पूरी तरह सीरियस नोट पर चलती है लेकिन उसका अंत हास्यात्मक है। खुद के एक हास्य व्यंग्य का लेखक होने के नाते यही कहानी मुझे सबसे कमज़ोर लगी। इस कहानी को और अधिक मज़ेदार होना चाहिए था।
एक आध कहानी में मुझे लगा कि लेखिका से ज़्यादा लंबे पैराग्राफ लिखे हैं। यहाँ पर एक पाठक की हैसियत से मुझे लगता है कि छोटे पैराग्राफ पढ़ने वाले को बाँधने की क्षमता रखते हैं जबकि बड़े पैराग्राफ रचना को बोझिलता की तरफ ले जाते हैं। ये खैर छोटी छोटी कमियां है जिन्हें आसानी से अगली किताबों एवं नए संस्करणों में आसानी से दूर किया जा सकता है।
उनके इस 148 पृष्ठीय बढ़िया कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है साहित्य भंडार ने और इसका मूल्य ₹125/- मात्र है। कम दाम होने के बावजूद भी कागज़ तथा छपाई की क्वालिटी निराश नहीं करती है। वाजिब दामों पर एक अच्छी एवं सहेज कर रखी जाने वाली किताब देने के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत बधाई।
राजीव तनेजा