Bhadukada - 7 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 7

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भदूकड़ा - 7

सुमित्रा जी के घर का माहौल पढ़े-लिखे लोगों का था, जबकि तिवारी के परिवार में अधिकांश महिलायें बहुत कम या बिल्कुल भी नहीं पढ़ी थीं. सो सुमित्रा जी का पढ़ा-लिखा होना यहां के लिये अजूबा था. इज़्ज़त की बात तो थी ही. सगी-चचेरी सब तरह की सासें अपनी इस नई दुल्हिन से रामायण सुनने के मंसूबे बांधने लगीं. सुमित्रा जी की ससुराल का रहन-सहन भी उतना परिष्कृत नहीं था जितना सुमित्रा जी के घर का था


सुमित्रा जी की ससुराल का रहन-सहन भी उतना परिष्कृत नहीं था जितना सुमित्रा जी के घर का था. .
ये वो ज़माना था, जब दोमंज़िला मकान भी कच्चा ही हुआ करता था. घर तो खूब बड़ा था तिवारी जी का. सभी सगे-चचेरे एक साथ रहते थे. हां उन सबका हिस्सा-बांट हो गया था सो उसी घर के अलग-अलग हिस्सों में अपनी-अपनी गृहस्थी बसा ली थी सबने. तीन बड़े-बड़े आंगनों वाला घर था ये जिस का विशालकाय मुख्य द्वार पीतल की नक़्क़ाशी वाला था. खूब खेती थी. हर तरह का अनाज पैदा होता था, लेकिन रहने का सलीका नहीं था. हां, सुमित्रा जी के बड़े जेठ बहुत पढ़े-लिखे थे. स्वभाव से भी एकदम हीरा आदमी. घर में उनकी ही सबसे अधिक चलती थी. परिवार के बड़े जो ठहरे. सगे-चचेरे सब मिला के चौदह भाई और तीन बहनें थे तिवारी जी.
सुमित्रा जी का रहन सहन सब शुरु में ही जान गये थे. बड़े भाईसाब ने ताकीद कर दिया था सबको कि इतने बड़े अफ़सर के घर की पढ़ी-लिखी लड़की है सो कोई भी उल्टी-सीधी बात न हो उससे. तहसीलदार साब ने बड़े नाज़ों से पाला है अपनी बेटियों को, इस बात का भी ख़याल रखा जाये. उसे रसोई के अलावा और कोई काम न दिया जाये. आदि-आदि. इतने बड़े काश्तकार थे तिवारी जी, लेकिन जैसा कि मैने बताया इनके परिवार के रहन-सहन का स्तर शुद्ध देहाती था, अपने ही खेतों पर काम करने वाले ढेरों मजदूरों के होते हुए भी घर की लिपाई-पुताई का काम बहुएं करतीं. दोपहर में कंडे पाथने का काम भी बहुएं ही करतीं, घर के पीछे बनी गौशाला में जा के. भगवान की दया से गौशाला में पच्चीस दुधारू गाय-भैंसें थीं. सो घर में घी-दूध पर्याप्त था, लेकिन दूध पीने के लिये केवल घर के मर्दों को या छोटे बच्चों को दिया जाता. बाकी जमा दिया जाता. रोज़ दही मथता, लेकिन क्या मज़ाल कोई मक्खन की एक डली उठा ले. सबका घी बना के बड़े-बड़े मटकों में सहेज दिया जाता. खेतिहर परिवारों में आय का ज़रिया केवल फ़सल होती है. उसी से शादी-ब्याह और अन्य कार्यक्रम सम्पन्न होते. ऐसे में घी इकट्ठा करना ज़रूरी था. वो समय बाज़ार से घी आने का नहीं था न. डालडा और रिफ़ाइंड तेल भी नहीं चलते थे. हर काम शुद्ध घी में ही होता था.



रोज़ रात के खाने में घर के पुरुषों को एक-एक कटोरा दूध दिया जाता, खूब पका हुआ. छोटे बच्चों को पिलाने के लिये भी दूध मिलता लेकिन निकाल के देतीं छोटी काकी ही. बहुएं दूध-घी नहीं निकाल सकती थीं. इतने सबके बाद भी सुमित्रा जी को कोई शिक़ायत नहीं थी अपनी ससुराल से.


(क्रमश:)