Dil ki zameen par thuki kile - 24 in Hindi Short Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 24

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 24

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

24-मैं क्यों झुकूँ ?

जागृति की सात वर्षीय पोती सलोनी बड़ी प्यारी है | उसे उस नन्ही सी बच्ची में सभी गुण दिखाई देते हैं | खाना खाने की चोर सलोनी को उसकी माँ बहुत बहला-फुसलाकर खाना खिलाती |

कभी कोई कहानी सुनाती तो कभी अपने साथ हुई घटना को चटखारे लेकर सुनाती | वह अपना इतना रौब मारती कि बच्ची को अपनी माँ की हर बात सही लगने लगी थी |

सलोनी की माँ हर बात में अपना हाथ ऊपर रखना चाहती इसलिए सलोनी के स्वभाव में भी वही अकड़ होती जा रही थी | एक दिन सलोनी अपनी माँ के साथ खाना खा रही थी, दोनों माँ-बेटी बातें कर रही थीं | जागृति वहां बैठी सुन रही थी |

"मम्मा ! आज पता है, अनेरी से मेरी लड़ाई हो गई ---" सलोनी स्कूल से आकर रोज़ अपनी माँ को

सारी स्कूल की बातें शेयर करती थी | जागृति को बहुत अच्छा लगता, बच्चे जब घर में बातें शेयर करते हैं तब उन्हें सही मार्गदर्शन मिल सकता हैं | अन्यथा वो बाहर से जो सीखते हैं, हमेशा सही नहीं होता |

"क्यों हो गई लड़ाई --?" जागृति ने उत्सुकतावश पूछा |

"अरे दादी ! वो कह रही थी कि उसकी मम्मी मेरी मम्मी से ज़्यादा सुन्दर हैं ---"

"मैंने कहा, नहीं मेरी मम्मा ज़्यादा सुंदर हैं ----बस हममें लड़ाई हो गई ---"

"अरे ! बेटा, माँ तो सबकी सुन्दर होती हैं --पर --हाँ, उसकी मम्मी तो वाक़ई बहुत सुंदर हैं न ? फिर तुमने क्यों नहीं माना?"जागृति ने पूछा |

"अरे दादी ! मैं क्यों झुकूँ ? एक बार मुँह से जो बात निकल गई तो निकल गई | मैं क्यों झुकूँ ?" सलोनी ने अकड़कर कहा |

जागृति सोच रही थी कि सलोनी की माँ को यह समझाने की ज़रुरत थी कि यह सब बात झगड़ा करने की नहीं होती किन्तु वह यह समझाने में असफ़ल रही और इस बात से सलोनी के मन का अहं और पक्का हो गया | जागृति ने अधिक कुछ नहीं कहा किन्तु उसके मन में यह प्रश्न उमड़-घुमड़ रहा था कि इस प्रकार की बातों पर अकड़ना क्या सही है ? भविष्य में बच्ची को इस प्रकार की आदतें क्या दुःख नहीं दे सकतीं ?

***