इस कहानी की शुरुआत अमेरिका के सेना हैडक्वार्टर से हुई , जहां पर सेना की रेसक्यू टीम (बचाव दल ) के एक खास दस्ते को हैलीकाप्टर की मदद से अजीब ढंग से गायब हो चुके पुरातत्व - वैज्ञानिको को खोज निकालने के लिए अफगानिस्तान से करीब 870 किलोमीटर दूर छोटे से शहर मकरना मे भेजा गया । दोपहर का समय -12:30 मकराना के नगर से 150 किलोमीटर दूर तपती रेगिस्तान मे सारे जवान को वहाँ पर छोड़कर हैलीकाप्टर वापस लौट गया । अभी कुछ दूर चले ही थे कि रेगिस्तान के मैदान मे मजदूरो की बिखरी पड़ी सात लाशे दिखायी दी । यह देखकर वहाँ पर मौजूद सारे लोग हैरान हो गये । क्योकि उनकी लाशे बिल्कुल सूख चुकी थी । कमांडर गिलहड़ी डॉक्टर लिजा से कहते है कि “ इन सब लाशों की जांच करके पता लगाइए कि इनकी मौत कैसे हुई ? बाकी सब कैम्प लगाने की तैयारी करे ; आज रात हम सब यही रुकेगे ”। अपने कमांडर की बात सुनकर सारे जवान कैम्प लगाने मे जुट गये । दूसरी तरफ – डॉक्टर लिजा अपने कैम्प मे मरे हुए शवो की जांच कर रही थी । देखते ही देखते रात हो गयी और किसी को पता भी नहीं चला । शाम का समय 5:59 सेम , सोनिका और रोन अपने कैम्प के बाहर कॉफी पीते हुए आपस मे बातचीत कर रहे थे कि अचानक डॉक्टर लिजा रिपोर्ट वाली फ़ाइल लेकर अपने कैम्प से बाहर निकली । उन दोनों को वही पर छोड़कर रोन कॉफी से भरा कप लेकर उसके पास गया । कॉफी वाला कप डॉक्टर लिजा को देकर उनसे मरे हुए शवो के बारे मे पूछने लगा । तब डॉक्टर लिजा रोन को बताती है कि “ मरने वालों के शरीर पर जाहिराले नाखून के निशान पाये गये है । ये जहर इतना खतरनाक था कि मरने वालों का शरीर सूखकर नीला पड़ा गया । ” यह कहकर डॉक्टर लिजा कमांडर गिलहड़ी के कैम्प मे चली गयी । अचानक पूरे आकाश का रंग लाला हो गया । यह देखकर वहाँ पर मौजूद सारे सैनिक एक –दूसरे से पूछने लगे कि “ यहाँ पर हो क्या रहा है ? ” मगर इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था । सब लोग अपनी−अपनी मशीन गन लड़ाई के लिए तैयार कर ली । अचानक उन सब को डॉक्टर लिजा के कैम्प से अजीबो – गरीब आवाज़े सुनायी देने लगी । इस से पहले की वो सब कुछ समझ पाते । कैम्प को कागज की तरह फाड़ते हुए हुए सात लाशे उनकी तरफ तेजी से बढ़ने लगी । मर चुके लाशों को एकबार फिर से जिंदा देखकर सारे जवान हैरान होकर उन सब पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी । कैम्प के बाहर गोलियो की आवाज सुनते ही अंदर बातचीत कर रहे कमांडर गिलहड़ी और डॉक्टर लिजा तुरंत ही बाहर आकर देखते है कि उनके सारे सैनिक चलती –फिरती लाशों से डटकर सामना कर रहे थे। कमांडर गिलहड़ी मशीन गन उठकार डॉक्टर लिजा से कहते है कि “ ये लाशे जिन्दा कैसे हो गयी ? ” डॉक्टर लिजा भी रिवाल्वर निकालते हुए कमांडर गिलहड़ी से कहती है कि “ यही बात तो मुझे भी समझ मे नहीं आ रही है सर ; कि आखिरकार ये चल कैसे रहे है । इन्हे तो मरे हुए लगभग एक महीना हो चुका है । ” कमांडर गिलहड़ी जवानो के साथ मिलकर चलती –फिरती लाशों के ऊपर लगातार गोलियां बरसा रहे थे । मगर ये गोलियां भी उन के बढ़ते कदमो को रुक नहीं पायी । यह देखकर कमांडर गिलहड़ी तुरंत ही रोन , सेम , सोनिका , और डॉक्टर लिजा को दस सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ वहाँ से निकल जाने का आदेश दिया । अपने कमांडर का आदेश मानकर सब पहाड़ी की दरारों से एक –एक करके निकालने लगे । ठीक उसी समय चलती –फिरती लाशे जवानो को अपने पैने नाखूनो से मारना और काटना शुरू कर दिया । उन सब की चीख– पुकार से पूरी पहाड़ी गूँज उठी । सेम अपने दोस्तो की आवाज सुनकर उनकी मदद करने के लिए वापस जाने लगा । लेकिन रोन और सोनिका सेम उसको पकड़ते हुए कहते कि “ तुम्हारे वहाँ जाने से कोई फायदा नहीं होगा क्योकि अब तक उन शैतानो ने हमारे सभी दोस्तो को मार डाल होगा । ” सेम गुस्से का घूँट पीकर रहा गया , वह मन ही मन मे कहता है कि “ मै उन शैतानो को जिंदा नहीं छोडूगा । जिन्होने मेरे दोस्तो को बड़ी बेरहमी से मार है । ” इसके बाद सब लोग धीरे -धीरे आगे बढ़ने लगे । सेना की छोटी सी टुकड़ी पहाड़ियो को पार करते हुए एक झील के पास पहुंची । रात भर चलते रहने की वजह से सब लोग बुरी तरह से थक चुके थे । इसलिए आराम करने के लिये सब लोग वही पर बैठ गये । सोनिका अपने बैग से मैप निकालकर देखने लगी । तभी रोन सोनिका के पास जाकर पूछता है कि “ मकरना शहर यहाँ से कितना दूर है ? ” सोनिका रोन से कहती है कि “ इस पहाड़ी पार करते मकराना शहर की सीमा शुरू हो जाएगी । ” दूसरी तरफ - सेम को पानी मे पत्थर मारता देखकर डॉक्टर लिजा उस से कहती है कि “ लगता है अभी तक तुम्हारा गुस्सा शांत नहीं हुआ । ” सेम डॉक्टर लिजा से कहता है कि “ जब तक मै उन दरिंदों को मार नहीं दूँगा । तब तक चैन से नहीं बेठूगा । ” अभी एक मुश्किल से बाहर निकले ही नहीं थे कि मकराना की सीमा मे कदम रखते ही कुछ नकाब पॉश घुडसवारों ने उन सब को चारो तरफ से घेरा लिया और तुरंत ही सब की मशीन गन एक - दूसरे पर तन गयी । डॉक्टर लिजा उन सब नकाब से पूछती है कि “ कौन हो तुम सब और हम से क्या चाहते हो ? ” सफेद घोड़ा पर बैठा एक शख्स सामने मे आकर उस से कहता है कि “ हम कोई खून खराब नहीं चाहते । बस तुम सब यहाँ से चले जाओ क्योकि इन सब घटनाओ के जिम्मेदार तुम अजनबी हो । यह पर आकर तुम सब ने शैतान को दुबारा जिंदा किया । जिससे मौत का खूनी खेल एक बार फिर से शुरू हो गया है । ” सोनिका आगे आकर कहती है कि “ तुम कौन होते हो ? हमे आदेश देने वाले । ” वह शख्स अपना नकाब हटाते हुए कहता है कि “ कि मेरा नाम शीरा है , लोकोटाव पुजारियों की आखिरी वशंज । ” रोन शीरा से कहता है कि “ उन शैतानो ने हमारी आंखो के सामने ही हमारे सब दोस्तो को मार डाला । जब – तक उन सब को मार नहीं डालेगे । तब तक यहाँ से बिल्कुल नहीं जायेगे । ” शीरा घोड़ा पर से उतरकर उन सब से कहती है कि “ दरअसल वो शैतान लोशान की शापित गुलाम सेना है जब ये किसी को मारती है तो वो भी श्राप के कारण शैतान बन जाते है । जो हमेशा चाँदनी रात मे जिन्दा हो जाती है और सुबह होते ही लाश मे बदल जाती है । सेम अपनी मशीन को गन नीचे करके शीरा से पूछता है कि “ कौन है लोशान ? ” शीरा उन सब को बताती है कि “ लोशान पहले लोकोटाव पुजारियो मे से एक थे । लेकिन उनकी महत्वाकांशा और सर्वशक्तिमान बनने की भूख ने उसको शैतान बन दिया । दरअसल वह ज्ञान के उस प्रकाश पुंज को पाना चाहते थे । जिसमे जीवन और मृत्यु के रहस्य के साथ विज्ञान की अदूभूत ताकत की कहानी छिपी हुई थी। जिसका इस्तेमाल देवता लड़ाई मे किया करते थे । उस पूंज को पाने वाला शख्स जीवन – मरण के चक्र से आजाद होकर हमेशा-हमेशा के लिए देवता की तरह अमर हो जाता । हमारे वंशज ये नहीं चाहते थे कि कोई भी शख्स उस ताकत का गलत इस्तेमाल करे । इसलिए उन्होने उन सब ग्रंथो को जला दिया जो उस प्रकाश पूंज तक पहुंचाने का रास्ता बताते थे । लोशान काली ताकत का इस्तेमाल करके उस प्रकाश पूंज करीब पहुँच मे सफल हो गया । लेकिन पूंज की रोशनी ने उसका शैतान मे बदल दिया । दरअसल पूंज मे ऐसी ताकत थी कि वो उस शख्स के अंदर छिपी भावना को देखकर उसको उसी रूप मे बदल देती थी । उसी समय लोकोटाव पुजारियों का दल वहाँ पर पहुँचकर उसको पकड़ लिया और पूंज की ताकत का इस्तेमाल करके लोशान को पत्थर की मूर्ति मे बदल दिया । फिर लोशान की मूर्ति को देवता की मूर्ति के अंदर छिपाकर लाऊटन के पवित्र मंदिर मे रखा दिया गया । ताकि कोई भी लोशान को आजाद ना करवा पाये । कई सदियो से देवता की मूर्ति ने उस शैतान को अपने अंदर कैद करके रखा था मगर वह मर नहीं ब्लकि उस मूर्ति के अंदर काली शक्तियों की कड़ी साधन करके अपने आपको कई हजारो साल तक जिंदा रखा । इस उम्मीद से की एक ना एक दिन उस मूर्ति से वो जरूर आजाद होगा । प्रथम व दितीय विश्व युद्ध मे दुनिया भर के तानशाह अपने- अपने देश को शक्तिशाली बनाने के लिये उस प्रकाश पूंज की खोज मे सेना की एक टुकड़ी चोरी- छिपे अफगानिस्तान भेजी गयी । जिसमे ट्रोलन नाम का एक सनकी जर्मन कमांडर भी था । जो उस पूंज की शक्ति के बारे मे अच्छी तरह जानता था । क्योकि उसकी नानी लोकोटाव पुजारियों मे से एक थी । उसने उस प्रकाश पूंज की शक्ति के बारे मे एक पूरी किताब लिखी थी । जो उनके मरने के बाद ट्रोलन को उनके पुरानी लाइबेरी से मिली । उसको पूरा पढ़ने के बाद ट्रोलन के अंदर सर्वशक्तिमान बनने की चाह जाग उठी और इसलिए वह जर्मन सेना भर्ती हुआ । बस उसका एक ही मकसद था उस प्रकाश पुंज को हासिल करना और उसी ने यह बात अडोल्फ़ हिटलर को बतायी । अडोल्फ़ हिटलर ने तुरंत ही इस काम के लिए सेना की एक छोटी सी उसको टुकड़ी दी । ट्रोलन ने बड़ी चालाकी से सेना की टुकड़ी को उस प्रकाश पुंज की शक्ति के बारे बताया और सब को दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनाना देना का वादा किया । लालच मे आकर सेना की टुकड़ी उसके साथ हो गयी । इसी बीच अडोल्फ़ हिटलर ने जहर खाकर आत्म हत्या कर ली और उसकी सेना मित्र राष्ट्रो के सामने हार गयी । लेकिन ट्रोलन ने अपना मिशन नहीं छोड़ा। ट्रोलन अपनी सेना की छोटी सी टुकड़ी के साथ पुजारियों के पवित्र मंदिर लाऊटन पहुंचा । तब उनके शिष्यो ने बंदूक के साथ उन्हे मंदिर के अंदर जाने से रोका तो उस सनकी ट्रोलन ने सब को मार डाला । गोलियो की आवाज सुनकर सारे पुजारी मंदिर से बाहर आ गये और यहाँ पर खून-खराब करने का कारण पूछने लगे । ट्रोलन लोकोटाव के पुजारियों से कहता है कि “ इस पवित्र जगह पर खून-खराब करने का मुझे कोई शौक नहीं है ? बस मेरे एक सवाल का जवाब दो कि उस प्रकाश पुंज को कहाँ छिपाया है । ” लेकिन लोकोटाव के पुजारियों ने उस प्रकाश पुंज के बारे मे बताने से साफ –साफ इंकार कर दिया । यह सुनते ही ट्रोलन के अंदर सोया हुआ शैतान जाग उठा और देखते ही देखते उनके सामने तीन बड़े पुजारियों को गोली मार दी । लोकोटाव के पुजारियों ने सब की जान बचाने के लिए एक –दूसरे से बातचीत करके ट्रोलन को उस जगह पर ले जाने के लिए राजी हो गये , जहां पर प्रकाश पुंज रखा था । उसी समय मित्र राष्ट्रो की सेना ने वहाँ पर हमला कर दिया । इस अचानक हमले से ट्रोलन की सेना पूरी तरह से लड़खड़ा गयी और कुछ ही देर मे पूरा लाऊटन मंदिर मशीन गन और बम के धमाको से गूँज उठा । उस युद्ध मे ट्रोलन अपनी सेना के साथ वही पर मार गया । मरते समय ट्रोलन का आखिरी शब्द था – कि खेल तो अभी शुरू हुआ खत्म मै करूँगा और हसते हुए मर गया । इस तरह एक बार फिर से प्रकाश पुंज इतिहास के पन्नो मे दफन हो गया । लाऊटन मंदिर के तबाह होने के बाद बचे हुए पुजारियों का दल सत्य और शान्ति की खोज मे यहाँ से कही दूर चले गये और कुछ यही पर रुक गये । मै इस मंदिर की हिफाजत करीब पाँच साल की उम्र से कर रही हूँ । कुछ महीने पहले यहाँ पर तुम्हारे ही देश के कुछ पुरातत्व वैज्ञानिक ने लाऊटन मंदिर के अंदर तोड़-फोड़ का काम जारी रखा । जब हम लोग ने मना किया तो तुम्हारी देश की सेना ने हमारे पुजारियों को डर धमाका कर वहाँ से भाग दिया । आज तुम सब के कारण ही वो शैतान उस पत्थर की मूर्ति से आजाद हो गया । डॉक्टर लिजा शीरा से कहती है कि “ उस शैतान को मारने या हारने का तरीका जानती हो ? ” शीरा उस से कहती है कि “ सिर्फ एक ही रास्ता है इस से पहले की लोशान अमावस्या की काली रात मे अपनी खोयी हुई शक्ति दुबारा हासिल करके एकबार फिर से शक्तिशाली हो जाये । उस पहले ही खत्म करना होगा । सेना की बची हुई टुकड़ी (रेसक्यू –टीम ) शीरा के साथ मिलकर लोशान के आतंक को खत्म करने के लिए तैयार हो गयी । चार- दिन तक लगातार चलते रहने की वजह से सब सोलरी नदी के पास पहुंचे –जहां से लाऊटन मंदिर साफ साफ दिखायी दे रहा था । तभी दोपहर का समय काली रात मे बदल गया । मौसम मे आये परिवर्तन को देखकर सोनिका शीरा से पूछती है कि “ ये सब क्या हो रहा है अचानक रात कैसे हो गयी ? ” शीरा सोनिका से कहती है कि “ लोशान ने अपनी काली शक्तियों का इस्तेमाल करके प्राकार्तिक के नियमो मे हेर –फेर की है । जिसकी वजह से अमावस्या की काली रात कुछ ही घंटो मे शुरू हो जायेगी । उसे पहले हम सब को लोशान को रोकना होगा । वरना वह और भी शक्तिशाली हो जायेगा और साथ ही उसकी शापित सेना की शक्ति इतनी बढ़ जायेगी कि वो दिन मे भी जिंदा रहा पायेगी । अगर ऐसा हुआ तो उसकी सेना आबादी वाले इलाको मे पहुँचकर वहाँ पर मौत का खूनी खेल शुरू कर देगी । फिर उन सब को रोक पाना बहुत नामुमकिन होगा । ” रोन सेम और सोनिका एक – दूसरे से कहते है कि “ तो फिर इंतजार किसका ? चलो उस पागल शैतान को खत्म करके अपने घर चले । ” यह बात सुनते ही सब अपनी थकान और दर्द को भूलाकर एक बार फिर से शैतान को टक्कर देने के लिए तैयार हो गये । जैसे ही सेना के साथ लोकोटाव के पुजारियों का दल सोलरी नदी मे उतारा । वैसे ही पानी के अंदर छिपे शैतानो ने अचानक उन सब पर हमला कर दिया । इस हमले से सब एक पल के लिए हैरान हो गये और देखते ही देखते वहाँ पर युद्ध का मौहल बन गया । चारो तरफ से चीख पुकार और मार काट की आवाज़े सुनायी देने लगी । लोकोटाव के पुजारियों का दल शीरा से कहते है कि “ सेना की बची हुई टुकड़ी को अपने साथ लेकर यहाँ से निकल जाओ । हम सब मिलकर इन शैतानो को संभाल लेगे । ” सोलरी नदी को पार करते ही सेम सोनिका और रोन कमांडर गिलहड़ी को शैतान के रूप मे खड़ा देखकर हैरान हो गये । सब अपने मन मे सोचने लगे कि “अब उन्हे अपने दोस्तो से लड़ना होगा । ” डॉक्टर लिजा और शीरा उन सब को समझाते हुए कहती है कि “ शैतान ना तो किसी के दोस्त होते है और ना ही किसी के सगे संबंधी । अगर तुम सब ने इन्हे नहीं मार तो ये तुम्हें मारने मे जरा भी देर नहीं लगायेगे । ” रोन सोनिका और सेम कहता है कि “ तुम सब मंदिर मे जाकर लोशान को रोको बाकी तो हम सब संभाल लेगे । ” यह कहकर रोन बची हुई सेना की टुकड़ी को साथ लेकर शैतानो से टक्कर लेने के लिए उनकी तरफ दौड़ पड़ा । सही मौका पाकर शीरा , डॉक्टर लिजा , सोनिका और सेम लाऊटन मंदिर के अंदर दौड़ते हुए चले गये । मंदिर की सीमा खत्म होते ही सब एक खाली मैदान मे पहुंचे । जहां पर एक बहुत ही बूढ़ा और कमजोर व्यक्ति शाही वस्त्र पहनकर हांथ मे राजदंड लिए हुए पत्थर के बने ऊंचे मीनार की सीढ़ियो पर चढ़ा रहा था । शीरा ज़ोर से चिल्लाकर सोनिका से कहती है कि “ वो रहा लोशान उसको मीनार पर चढ़ने मत दो । क्योकि कुछ ही पलो मे ग्रहण के लगते ही ग्रह – नाशत्र से निकली दिव्य रोशनी सीधा वहाँ पर आयेगी और रोशनी के अंदर के जाते ही वो एकबार फिर से से शक्तिशाली हो जायेगा । ” सोनिका और सेम अपने कमर मे लटके बमो का पिन निकालकर शीरा से कहते है कि “ समझो काम हो गया । ” इतना कहकर दोनों लोशान की तरफ बम फेक कर नीचे झुक गये । उस जबरदस्त धमाको से लोशान का शरीर हवा मे उछलकर जमीन पर जा गिरा । उसको मर हुआ समझकर सेम और सोनिका उसके पास गये । लोशान के शरीर मे कोई हरकत ना देखकर दोनों इस बात से बहुत खुश हो गये कि अब इसका आतंक खत्म हुआ । लेकिन उनकी खुशी तब भाप बनकर उड़ गयी । जब शीरा और डॉक्टर लिजा चिल्लाकर उन दोनों से कहती है कि “ वो अभी मरा नहीं है बल्कि जिंदा है अपने पीछे देखो । ” इस से पहले की सोनिका और सेम कुछ समझ पाते लोशान अपने मजबूत हाथो से उन दोनों की गर्दन पकड़कर ऊपर उठाते हुए कहता है कि “ तुम इन्सानो को समझ नहीं आता है कि लोशान को खत्म नहीं किया जा सकता । क्योकि मै भगवान हूँ और आज के बाद तुम सब इन्सानो के भाग्य का फैसला अब मै करूँगा । ” उसके मजबूत पकड़ से अपने आप को छूटा पाना उनके के लिए बेहद मुश्किल लग रहा था । इसलिये शीरा और डॉक्टर लिजा उनकी मदद करने के लिए दौड़ पड़ी । उसी समय लोशान उन दोनों को उठाकर शीरा और डॉक्टर लिजा के ऊपर फेक दिया । जिस से सब एक –दूसरे पर गिर पड़े ; इस से पहले की वो सब अपने पैरो पर दुबारा खड़े हो पाते । लोशान जमीन पर गिरी राज दंड को उठाकर उन चारो पर जादुई रोशनी से लगातार हमला करके उनकी शारीरिक शक्ति छिन ली । उन सब को वही पर तड़पता छोडकर लोशान एकबार फिर से सीढ़ियो पर चढ़ने लगा । उधर लाऊटन मंदिर के बाहर – रोन अपने सेना के साथ मिलकर शैतान को मारते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था । इस बार सेना भी शैतानो को बराबर टक्कर दे रही थी । कमांडर गिलहड़ी रोन के सामने आकर कहता है कि “ यहाँ से जिंदा बचकर नहीं जा पाओगे रोन । तुम भी हमारी तरह लोशान के गुलाम बन जाओ । रोन कमांडर गिलहड़ी से कहता है कि “ सेना कभी भी आतंकवादियो और शैतानो के सामने घुटने नहीं टेकती ।” उसकी बात सुनकर कमांडर गिलहड़ी उसको मारने के लिए दौड़ पड़ा । लेकिन उस से पहले ही रोन एक साथ कई बमो का पिन निकाल कर उनकी तरफ फेक दिया । उस शक्तिशाली धमाके मे कमांडर गिलहड़ी के शरीर के टुकड़े इधर –उधर बिखर गये । अमावस्या के लगते ही सारे ग्रह-नाशत्र एक ही दिशा मे आ गये और उसे निकली दिव्य रोशनी सीधा आकर मीनार के ऊपर गिरी । लोशान दिव्य रोशनी को देखते ही ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए कहता है कि “अब इस धरती पर से पूरे मानव जाति का नामो निशान मिटा दूँगा । हर जगह नजर आयेगी मेरी शापित शैतान सेना । ” यह कहकर वो दिव्य रोशनी के अंदर चला गया और उसकी ताकत को सोखकर एक बार फिर से जवान होने लगा । कमांडर गिलहड़ी को खत्म करने के बाद रोन अपने दोस्तो की मदद करने के लिये लाऊटन –मंदिर के अंदर दौड़ता हुआ चला गया । जहां पर उसको सोनिका ; डॉक्टर लिजा ; शीरा और सेम जमीन पर पड़े दिखायी दिये । शीरा रोन को सामने खड़ा देखकर कहती है कि “ हमारी चिंता मत करो ; बस लोशान को रोको वरना सब कुछ तबाह हो जायेगा । ” रोन गुस्से से पागल होकर मन मे कहता है कि “ आज कुछ भी हो जाये मगर ये लोशान मेरे हाथों से नहीं बच पायेगा । चाहे वो कितना भी बड़ा शैतान क्यो ना हो ? । ” इतना कहकर वह मशीन गन से हमला करते हुए उसकी तरफ बढ्ने लगा । इस अचानक हमले से लोशान बुरी तरह से बौखल गया और उस पर राज दण्ड से हमला करने लगा । जादुई रोशनी के लगातार हमलो से अपने-आपको बचाता हुआ रोन लोशान के पास पहुँचकर उसके हाथों से राज दण्ड छुड़ाने मे कामयाब हो गया । इसके बाद दोनों एक – दूसरे को बड़ी बेरहमी से मारने लगे । इसी लड़ाई के दौरान जमीन पर पड़ी राज दण्ड रोन के हांथ लग गयी और वह तुरंत ही उसको उठाकर लोशान के ऊपर जादुई रोशनी से हमला करने लगा । राज दण्ड से निकली रोशनी और ग्रह –नाशत्र की दिव्य रोशनी के आपस मे मिल जाने से रोशनी मे एक जबरदस्त धमाका हुआ । जिसकी रोशनी लाऊटन मंदिर से बाहर निकल कर आस –पास के जंगल मे फैल गयी । कुछ देर बाद लोशान और रोन अपने अंदर की सारी ताकत को लगाकर पैरो पर खड़े होने लगे । रोन लोशान की तरफ देखकर कहता है कि “ जरा अपने-आपको तो देखो ! सर्वशक्तिमान बनने की चाहत ने तुम्हे एक पुजारी से शैतान बन दिया । श्याद तुम ये बात भूल गये थे कि पूरी दुनियाँ को चलाने वाला अभी भी जिंदा है । ” अपने-आपको काँच के रूप मे देखते ही लोशान गुस्सा से पागल होकर रोन को मारने के लिये दौड़ा पड़ा । लेकिन बीच रास्ते मे ही एक जबरदस्त आवाज के साथ उसके शरीर के टुकड़े इधर –उधर बिखर गये । सोनिका बंदूक की नली मे फूक कर कहती है कि “ देखा मेरा निशान , तुम लड़को से कितना बेहतर है । सिर्फ एक गोली से ही लोशान का खेल खत्म कर दिया । ” उसकी बात सुनकर रोन के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी । सब एक –दूसरे को सहारा देकर लाऊटन-मंदिर से बाहर निकले । सेना की बची हुई टुकड़ी शीरा ; रोन ; सेम ; सोनिका और डॉक्टर लिजा को सही-सलामत देखकर बहुत खुश हुई । कुछ घंटो के बाद सैनिको को वापस ले जाने के लिये अमेरिकी हैलीकाप्टर वहाँ पर उतरा । हैलीकाप्टर पर चढ़ते समय शीरा सोनिका और डॉक्टर लिजा को गले लगाकर कहती है कि “ ईशवर तुम सब की रक्षा करे । ” सोनिका और डॉक्टर लिजा शीरा से कहती है कि “ तुम और तुम्हारे समुदाय की भी । इसके बाद वो सब अमेरिकी हैलीकाप्टर मे बैठकर वहाँ से चले गये ।
द एण्ड
मोहम्मद सिकंदर