“इसे डॉलर कभी मत पुकारना बे”
शैंकी ने अलोए ब्लेक का गाना प्ले किया, जबसे डॉलर आया था तबसे उसे यह गाना बेहद पसंद आने लगा था । जैसे ही गाने का प्रेलूड शुरू हुआ टूँ टूँ टूँ टूँ ...... डॉलर म्यूज़िक सिस्टम के बिलकुल पास आ गया और अपना मुंह उठाकर हू हू कर गाने लगा तो शैंकी ने खुशी से झूमते हुए पापा से कहा, “देखो पापा डॉलर कैसे गा रहा है।“ माँ को पुकारा, “मम्मा... मम्मा सुनो डॉलर गा रहा है ।“ फिर गाना शुरू हुआ, “आई नीड़ अ डॉलर डॉलर, अ डॉलर इस वॉट आई नीड, हे हे । वेल आई नीड़ अ डॉलर डॉलर, अ डॉलर इस वॉट आई नीड,” अपने नाम का गीत बजने के दौरान डॉलर अपने दोनों अगले पाँव उठाकर शैंकी के साथ डांस करता रहा ।
“पापा, स्टेनले कोरेन ने मेरे डॉलर को नहीं देखा था न इसीलिए उसने इंटेलिजेंस के मामले में ‘बॉक्सर डॉग’ को अपनी बुक ‘द इंटेलिजेंस ऑफ डॉग्स’ में अड़तालीसवें नंबर पर लेजाकर पटका । अगर वो खुद इसे देख लेता तो फाड़कर फेंक देता अपनी रिसर्च - विसर्च, हाहाहा ।“ शैंकी हंसा ।
“यार बॉक्सर पनिशमेंट बेस्ड ट्रेनिंग का प्रतिरोध करते हुए हठ करते हैं । डॉलर को नहीं देखा तुमने, जब डांटो तो कैसे गुर्राता है, और जिद्दी भी कम थोड़े ही है । कोरेन ने इसी हठ भरे प्रतिरोध के कारण बॉक्सर को कम इंटेलीजेंट कह दिया होगा, बस और क्या, पर हाँ ये उसकी गैरजिम्मेदारी थी।“ डीआईजी साहब ने बेटे को समझाया। “गुर्राता है, वो भी एक दबंग डीआईजी पर, हाहाहा ।“ कहकर शैंकी ठहाका लगाकर हंसा ।
“हाँ यार इसने तो मेरी इज्ज़त की बेइज्जती कर रखी है, इसे पता नहीं है अपराधियों से लेकर अधीनस्थ तक कितना घबराते हैं मुझसे ।“ डीआईजी साहब ने शैंकी की तरफ देखा और हँसे ।
“क्या मिल गया बाप बेटे को मैं भी तो जानू ।“ बेटे के पुकारने पर, डॉलर का गाना सुनने के लिए तो नहीं आईं थीं, हाँ दोनों के ठहाकों ने डीआईजी साहब की पत्नी का ध्यान ज़रूर आकर्षित किया । “अरे आपकी बात नहीं हो रही ।“ इत्तफाकन बाप - बेटे दोनों एक साथ, एक ही बात बोले और फिर एक बार ज़ोर से हंस पड़े,और अपनी वार्ता निरंतर रखी ।
“एक बात और बताऊँ पापा, डॉलर लॉन में गड्ढे खोद कर सारे पौधौं का सत्यानाश लगा देता है और माली भैया मना करें तो उल्टा उन्हीं पर गुर्राता है।“ कहकर शैंकी बहुत ज़ोर से हंसा, साथ ही डीआईजी साहब भी, और हँसते हँसते बोले , “यार तुम्हारा डॉलर डीआईजी को धमका दे, माली बेचारे की उसके आगे क्या औकात।“ कम ही समय होता है डीआईजी साहब के पास बेटे के लिए, उसी में उसकी पसंद की बात करके उसे संतुष्ट कर देना चाहते हैं ।
डॉलर जर्मनी में विकसित छोटे कद का प्यारा सा बॉक्सर प्रजाति का श्वान शैंकी को तीसरी कक्षा में प्रथम आने का उपहार स्वरूप पापा ने दिया था । एक बार डॉलर के डॉक्टर ने शैंकी से कहा था कि “जो लोग यह सोचते हैं कि डॉग उनके घर की रक्षा के लिए होता है वे गलत होते हैं मास्टर शैंकी । इन फेक्ट डॉग तो होता है हमारा भाई, हमारा बेटा, हमारा प्यारा दोस्त, यानि हमारे परिवार का हिस्सा । डॉक्टर की यह बात शैंकी कभी नहीं भूला और सचमुच सातवीं कक्षा तक आते - आते डॉलर उसका प्यारा भाई जैसा ही बन गया था । शैंकी ने डॉलर को सिखा दिया कि मेरे पापा तेरे भी पापा हैं और मेरी मम्मी हैं तेरी भी मम्मी, मेरे दादी - दादा, चाचा – चाची,नाना-नानी, मामा- मामी और मेरे सारे कजन्स भी तेरे अपने । डॉलर ने भी इन रिश्तों को बहुत गंभीरता और चतुराई से समझा था। शैंकी को तो वह जी जान से चाहता था , शैंकी कभी नाराज़ हो जाता तो डॉलर अपने विलक्षण सिर को उसकी गोद में रखकर, तो कभी अपनी विशिष्ट थूथन से उसके पेट में गुलगुली करके मनाता, उसकी इस कोमल मनुहार पर शैंकी हंस पड़ता । कभी शैंकी और डॉलर दोनों खेल के मूड में होते तो डॉलर अपने दोनों अगले पैर उठाकर शैंकी के साथ बॉक्सिंग करता । उसमें चंचलता और ऊर्जा तो जैसे छलक़ती रहती । वह खेलते - खेलते शैंकी को अक्सर थका देता ।
उस दिन सुबह शैंकी स्कूल जाने लगा, उसने डॉलर को पुकारा भी, पर वह नहीं आया । ऐसा कभी हुआ ही नहीं था कि शैंकी स्कूल जा रहा हो और डॉलर उसे स्कूल बस तक छोड़ कर न आया हो । शैंकी उसके न आने पर पूरी तरह तैयार होने के बाद उसे बुलाने गया पर वह अपने डॉग हाउस से लेकर गेट के बाहर तक भी कहीं नहीं था। शैंकी की स्कूल बस आ गई थी अतः उसे स्कूल जाना पड़ा । वह बहुत चिंतित होकर, माँ से बोलकर गया कि, “मम्मा डॉलर को अभी के अभी ढुँढवा लेना नहीं तो पता नहीं किस - किस से झगड़ा कर लेगा।“ जब शैंकी स्कूल से लौटा तो सबसे पहले उसने डॉलर को ही पुकारा, पर वह नहीं आया । वह तुरंत मम्मी के रूम की तरफ दौड़ा पर वो घर पर नहीं थीं । उसने एक - एक कर घर के सभी नौकरों, अर्दलियों से पूछा कि “डॉलर कहाँ है ?” पर किसी के पास उत्तर नहीं था । अब शैंकी बहुत अधिक चिंतित हो उठा था । माँ वापस आईं तो शैंकी की आँखों में आँसू आ गए । वह दुखी और नाराज़ दोनों ही होकर माँ से बोला, “मम्मी मैं बोलकर गया था न कि डॉलर को अभी ढुँढवा लेना, फिर आपने क्यों नहीं ढुँढवाया, क्या पता कहाँ चला गया होगा अब तक, आप भी न किसी बात को मानती नहीं हो मम्मी?” अफसोस माँ को भी हुआ, उन्हें भी आखिर यह अंदाज़ा तो नहीं होगा कि डॉलर लौटेगा ही नहीं । उसका न लौटना उसका खो जाना था, और जो खो गया था, वो कोई कुत्ता नहीं था, डीआईजी साहब के इकलौते यानि बेहद लाडले बेटे शैंकी का भाई था। चार दिन हो चुके थे डॉलर नहीं मिला । इन दिनों शैंकी ने न भर पेट खाना खाया और न अकेले संगीत की धुनों को ही आपने आस - पास आने दिया था । जब पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगा तो वह गुमसुम बैठ कर याद करने लगा कि जब वह कहता, “डॉलर मेरा बैग लाओ”, अगर शैंकी स्कूल जा रहा होता तो डॉलर ईमानदारी से बैग ले आता परंतु अगर वह घर में होता तो वह बैग की जगह बॉल उठाकर ले आता और खेलने की ज़िद करता, या म्यूज़िक सिस्टम के पास जाकर अगले दोनों पैर उठाकर खड़ा हो जाता । अगर डॉलर लॉन में गड्ढा खोद रहा होता और उससे बोलो, डॉलर माली भैया आ रहे हैं तो दौड़कर दूर खड़ा हो जाता भोला बनकर, और मासूमियत से आँखें झपकता । शैंकी उसके ध्यान में इतना डूबा हुआ था कि बोल भी पड़ा
“डॉलर भाग माली भैया.........”
शैंकी के माता - पिता डॉलर के लिए न सही पर अपने बेटे के लिए चिंतित हो उठे थे । पुलिस फोर्स के कई कान्स्टेबलों को डॉलर की खोज खबर ले आने के लिए नगर में दौड़ा दिया गया । परंतु डॉलर नहीं मिला । एक कांस्टेबल था मदन बिहारी जो अक्सर घर के काम काज के सिलसिले में डीआईजी साहब के बंगले पर आता - जाता रहता था, डॉलर को ठीक से बस वही पहचानता था । उसने खुद डॉलर को ढूँढने का प्रस्ताव रखा था । वह शैंकी से बोला कि,
“शैंकी भैया जी घर के बाहर हम भी ठीक से नहीं पहचान पाएंगे आपके कुत्ते को.... “ अभी कांस्टेबल मदन बिहारी का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि शैंकी ने बीच ही में टोक दिया, “कुत्ता नहीं डॉलर नाम है उसका । तमीज़ नहीं हैं बिहारी अंकल आपको ।“ ज़रा से बच्चे से तमीज़ का पाठ पढ़ने का मन कहाँ होगा चालीस - पैंतालीस के खुर्राट पुलिसवाले का पर कोई विरोध तो संभव नहीं था वहाँ । बस यही बोल पाए बिहारी जी, “सॉरी भैया गलती से मुंह से निकल गया।“ आगे की बात कहे बगैर ही वे वहाँ थोड़ी देर चुपचाप खड़े रहकर चले गए ।
काइयाँ और आलसी टाइप के बिहारी जी अफसरों की निगाह से दूर हुए नहीं कि तुरंत सुरती मसलकर निचले होंठ के नीचे दबा लेते और आराम मोड में आ जाते । एक ढाई - तीन फिट का डंडा हाथ में रखते, छोटी - छोटी आँखों में कुछ - कुछ ही नहीं, काफी कुछ लालच भरा दिखाई देता, उनके काले, मोटे होठों पर थोड़ी छितरी हुई मूंछों के पीछे से एक कांइयां मुस्कान हर समय फूटती रहती । दोनों भंवों को एक विशेष अंदाज़ में उचकाते हुए, हो हो हो कर हँसते तो सुरती खाए दांतों की बत्तीसी थोड़ी आगे निकल आती, खड़े होते तो पेट बाहर की तरफ निकाल कर, जूते शायद ही कभी साफ किए होंगे, बाएं हाथ में कोई सस्ती सी सिल्वर कलर की चेन पहने रहते जिसे बार - बार कलाई घुमा कर उसके पक्खे को सीधी करने का उपक्रम करते रहते और उसी हाथ की कनिष्ठा का नाखून हमेशा बढ़ा हुआ होता जिसपर वे किसी गहरे रंग की नेलपालिश लगाए रखते और उससे अक्सर अपने दाँत कुरेदते रहते , दाएं हाथ पर एक रुमाल बांधे रखते जिससे सुरती खाते हुए बार - बार अपने होठ पोंछते रहते , ऐसा करते देख कई बार उनसे कुछ - कुछ घृणा सी होने लगती । बालों की एक लट माथे पर झूलती । उनके विषय में सबसे दिलचस्प बात यह थी कि वे कई बरस पहले दिल्ली पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे । बीवी के कहने - कहाने पर थोड़ी मेहनत कर ली और उनका चयन उत्तर प्रदेश में दरोगा के पद पर हो गया तो उन्होने टेक्निकल रिज़ाइंग देकर दरोगा की नौकरी जॉइन कर ली । पुलिस के प्रावधान के तहत यदि अपर पोस्ट पर चयन हो जाए तो कर्मचारी टेक्निकल रिजाइनिंग कर सकता है जिसके अनुसार दो वर्ष तक नई पोस्ट पर स्थाई नियुक्ति न होने पर वह अपनी पुरानी पोस्ट पर वापस लौट भी सकता है । उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा की थका देने वाली नौकरी से आजिज़ आ गए थे वे महान और दो बरस के भीतर - भीतर वे स्वेच्छा से वह नौकरी छोडकर वापस अपनी दिल्ली पुलिस की सिपाही की नौकरी में लौट आए । इन महाशय को ‘कुत्ता’, नहीं नहीं, ‘डॉलर’ को खोजने का काम सौंप दिया गया । इनके साथ एक नए - नए तैनात हुए कांस्टेबल धीरज को भी रख दिया गया ।
“चलो मुन्ना, उठाओ जीप, चलें मिशन खोज कुत्ता।“ बिहारी जी धीरज से बोले और धम्म से जीप में बैठ गए , धीरज ने जीप स्टार्ट की और पूछा, “कहाँ चलें ?”
“ससुर ए ही तो पता नहीं कहाँ चलें, चलो - चलो जिधर आपका मूड बने, अब सारथी तो आपई हैं न ।“ कह कर मदन बिहारी जी ने जेब से सुरती निकाली हथेली पर रगड़ी, दूसरे हाथ से पट - पट की और सावधानी से निचले होंठ के पीछे दबा ली । “ऐसे कहीं भी कहाँ चल दें, कोई जगह तो होगी ?” धीरज की अनुभवहीनता बोली “अरे टो का आप ये सोच रहे हैं कि कुट्टा कौनों बिसेस अपार्टमेंट, कौनों बिसेस सोसाइटी डेख कर भागा होगा का ? और अगर हाँ भी टो भी हमें टो बटाया नहीं ठा न उसने भागटे समय, का समझे मुन्ना, अब चलो ?“ धीरज ने बिहारी जी से बहस किए बगैर थाने से जीप निकालकर चुपचाप सीधे हाथ को सुशीला अपार्टमेंट की तरफ मोड़ ली । और बोला, “इधर ठीक है ?”
“फिर वही, अरे किढर भी मुन्ना, किढर भी, किढर बी चलो बस हिंयां से निकलो।“ दोनों दिन भर घूमें पर डॉलर नहीं मिला । मदन बिहारी जी शाम को डीआईजी साहब के सामने हाजिर हुए । “साब अकेले कुत्ते, मतलब डॉलर को पहचानने में दिक्कत आती है तो क्यों न स्कूल के बाद हम शैंकी भैया जी को साथ ले जाएँ । भैया जी खट से पहचान लेंगे कुत्ते को और हम पट से ले आएंगे साब।“
“हाँ कोई बुराई नहीं है, ले जाना शैंकी को ।“ डीआईजी साहब ने बेटे की परेशानी को देखते हुए अनुमति दे दी । इत्तफाकन इस बीच वहाँ शैंकी भी आ गया तो बिहारी जी उससे भी यही बोले, “शैंकी भैया हम “डॉलर जी” को पहचानने में कन्फूजिया जाते हैं तो क्यों न आप ही हमारे साथ चलें उसे खोजने ।“ शैंकी को सुझाव भा गया, उसका चेहरा खुशी से खिल गया । कितना शानदार अनुभव होगा पुलिस की जीप में पुलिस फोर्स के साथ अपने प्यारे भाई सरीखे डॉलर को खोजना । पापा के डीआईजी होते हुए भला डॉलर न मिलेगा, सारी पुलिस तो अपनी ही है, पापा ने बड़े - बड़े केस सुलझवाए हैं अपने बल बूते पर, डॉलर को ढुँढवाना तो उनके लिए बस एक चुटकी का खेल है । चप्पा - चप्पा छान मारेंगे मैं और पुलिस वाले अंकल । शाम तक खोज कर ले ही आएंगे पक्का, यह सोचकर शैंकी सकारात्मक ऊर्जा से भर उठा । स्कूल से आने के बाद से ही मिशन शुरू हो गया । बिहारी जी धीरज को निर्देश देते रहे जीप यहाँ ले चलो , वहाँ ले चलो , इधर घुमाओ , उधर घुमाओ, इस कॉलोनी, उस बस्ती, इस पार्क, उस पार्क । इस तरह बिहारी जी ने शाम तक सैकड़ों कुत्ते दिखा डाले शैंकी को । पर डॉलर नहीं मिला । अगले दिन फिर निकल पड़े डॉलर को खोजने और पूरा दिन हजारों - हज़ार कुत्ते दिखा डाले बिहारी जी ने शैंकी को । जो भी मरा - गिरा, आड़ा – तिरछा, खाज - खुजली वाला, विक्षिप्त हुआ, छोटा पिल्ला, बड़ा कुत्ता या किसी के पीछे चल रहा, किसी के आगे जा रहा या किसी के साथ चेन में बंधकर जा रहा या गर्मी से बचने को गीली रेत पर ऊँघता कोई कुत्ता, बिहारी जी ने हर कुत्ते के लिए पूछा,
“भैया जी ये तो नहीं आपका डॉलर।“
“नहीं ये नहीं है”
“तो ये होगा”
“नहीं अंकल ये भी नहीं ।”
“तो फिर ये तो ज़रूर ही होगा ।“
“ये कैसे हो सकता है अंकल ।“ शैंकी किसी गंदे से कुत्ते के बारे में पूछने पर खीझ उठता ।
“काहे नहीं हो सकता?” बिहारी जी एक आँख दबाकर, थोड़ा मज़ाक के लहजे में बोले ।
“बिहारी अंकल क्या डॉलर सड़क वाला था ? आप ‘बेवकूफ़ों’ जैसी बात करते हैं ।” बिहारी जी फिर एक बार अपने लिए उपाधि सुनकर चुप ही रह गए । नियमित रूप से खुली जीप में सारा - सारा दिन दिल्ली की तमाम गंदी बस्तियों के चक्कर कटाते रहते शैंकी को ।
“अंकल यहाँ कैसे हो सकता है डॉलर ?” शैंकी ने कहा ।
“भैया जी आपको नहीं पता चोर तो यही लोग होते हैं न ।“ बात तो सही लगी थी शैंकी को अतः वह चुप रह गया । बिहारी जी ने धीरज को जीप बुद्धा गार्डेन की ओर ले चलने का निर्देश दिया और उसे सड़क पर ही इंतज़ार करने को कहा । वहाँ युवा जोड़ों के अलावा बीसियों आवारा कुत्ते घूम रहे थे । बिहारी जी ने एक - एक कुत्ते के लिए पूछा,
“भैया यह तो नहीं है डॉलर ?”
“अंकल वह क्या आवारा कुत्ता है, रोड का ऐसा गंदा छिः, क्या आपने डॉलर को कभी देखा नहीं था ?“ शैंकी झुँझला गया ।
“अरे आवारा होने में कौन सी गाड़ी जुड़ती है ससुर, वैसे भी अब तक वह ‘कुत्ता,’ सॉरी - सॉरी, डॉलर जी पालतू बचे होंगे क्या ?“
“तो क्या उसकी शक्ल भी बदल गई होगी ?” शैंकी झुँझलाकर बोला ।
“अरे हमने ऐसा कब कहा, पर हुलिया तो बदल ही गया होगा । चार दिन आपको यहाँ छोड़ दिया जाए तो आप भी पहचाने नहीं जा सकेंगे सरकार ।” सुरती हथेली पर मसल कर दूसरे हाथ से पट - पट की और निचले होंठ के पीछे दबा कर ढीठ पने से बोले थे मदन बिहारी जी । ऐसा बोलकर शैंकी का मूड बहुत खराब कर दिया उन्होने । खराब मूड वाले शैंकी को बुद्धा गार्डन की झाड़ियों में छिपे प्रेमियों के दर्शन कराने लगे और बोले ,
“देखो भैया जी कैसे करते हैं लड़के - लड़कियां प्रेम। आपकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है का ? यहीं ले आना अगर हो तो, सभी लाते हैं यहाँ तो, वो देखो उधर भी हैं ।“ उन्होने चेहरे पर काइयां मुस्कान चेपी, एक आँख दबाई, बाएं हाथ में पहनी सिल्वर चेन को झटका देकर, दूसरी दिशा में डंडा घुमाते हुए बोले बिहारी जी, ।
“अब चलो यहाँ से, हमारी नहीं है कोई गर्ल वर्ल फ्रेंड।“ शैंकी और भी चिढ़कर बोला ।
यौन कुंठाएँ भी खूब भरी थीं बिहारी जी में तो क्योंकि बड़ी नौकरी से छोटी नौकरी में आने के कारण पत्नी ने नाराज़ होकर त्याग दिया था दारोगा से सिपाही बने पति को । सो वह बेशर्मी से किसी भी लड़की को ताकते रहते,जैसे वह लड़की ही डॉलर हो । इस बार तो हद ही कर दी झाड़ियों के पीछे बड़ी अंतरंग अवस्था में बैठे युगल के सामने जा खड़े हुए और लड़के को डंडा दिखाया तो वह तो तुरंत से पहले भाग खड़ा हुआ । और लड़की के सीने पर धीरे - धीरे डंडा मारते हुए ज़ोर - ज़ोर से बोलकर उसे धमकाने लगे । “का करट हो हियाँ ? अपने बाबा का फोन नंबर टो डो जरा हमें, बटाएं उन्हें का गुला खिला रहीं हैं उनकी लाड़ली यहाँ बुड्ढा गार्डेन में, फिर हमी को परेसान करोगी कि हमारे साथ ई हो गया, हमारे साथ ऊ हो गया, इसने हमारी इज्जत लूट ली उसने हमें छेड़ दिया ।“ लड़की डर के मारे काँपने लगी । और जिसे वह अपना सच्चा प्रेमी समझ कर लाई होगी अपने साथ, वह पल में उड़नछू हो गया था । उसे भागते देख कर तो शैंकी को भी बहुत मज़ा आया था ।
शाम के साढ़े चार बजे थे, दिन भर सड़कों पर घूमते - घूमते शैंकी को भूख लग गई अतः खाना खाने के लिए वह घर चलने के लिए बोलने लगा, तो बिहारी जी पटाक से बोले, “अरे, पूरा मार्किट पटा पड़ा है खाने की चीजों से, अभी खिलाते हैं ।“ यह बात तो शैंकी को भी पसंद आई । बिहारी जी ने रोड साइड वाले ठेले से चार ब्रेड पकौड़े लिए । दो खुद खाए, शैंकी एक ही खा पाया । चौथा धीरज को देते हुए बोले , “आप भी खाइये मुन्ना।“ उसने खाने से मना कर दिया । तो चौथा पकौड़ा बिहारी जी ने वहीं खड़े चितकबरे लंगड़े कुत्ते को डाल दिया जिसके भयंकर खुजली थी । और पुचकारते हुए बोले, “खाव, खाव तुम्हारे ही लिए है ।“ फिर एक आँख दबाकर, शरारत से शैंकी से बोले, “भैया जी ये टो.....ओ नहीं होगा आपका डॉलर ?“ उनकी इस अनर्गल बकवास पर शैंकी कुछ नहीं बोला बस आँखें थोड़ी ज़्यादा खोलकर उनकी तरफ देखता रहा । “अरे गुस्सा काहे खाटे हैं भैया जी, हम भी टो यही कहे न कि ये टो नहीं होगा आपका डॉलर ।“ कहकर बिहारी जी पकौड़े वाले को पैसे दिये बगैर जब निकल लिए तो पकौड़े वाला बोला, “भाईसाब पकौड़े के पैसे तो देते जाओ ।“
“तुम स्साले पुलिसवालों से पकौड़े के पैसे लेकर पचा लोगे ? गैरकानूनी रूप से लगाए हो ठेला यहा, हटवा देंगे पल में । हमसे पईसा मांगते हो स्साले । तुम्हारी तो ..........।“ पकौड़े वाला बिहारी जी के मुंह तो नहीं लगा, पर उनकी तरफ से मुंह फेरकर कुछ बड़बड़ाया ज़रूर । “अरे हाँ, जरा एक कमला पसंद तो और देना ।“ कहकर बिहारी जी ने ठेले वाले की प्रतीक्षा किए बगैर टंगी हुई लड़ियों में से तीन - चार पाउच खुद ही खींच लिए । एक उसमें से शैंकी को दिया और बोले, “लो भैया जी खाकर देखो बढ़िया टेस्ट है, फस्ट क्लास ।“ मम्मी - पापा शैंकी को इस तरह की चीजों से हमेशा दूर रहने की सलाह देते रहते हैं, और निषिद्ध को कर लेने की लालसा बालक क्या, हर मन में होती ही है प्रबल, अतः उसने वह पाउच तुरंत ले लिया और उसने कोई नई चीज़ चखने में बहुत आनंद का अनुभव किया । परंतु उस दिन भी डॉलर के बिना ही लौटना पड़ा शैंकी को ।
घर आकर बैठे – बैठे उदास हुए शैंकी को वह घटना याद हो आई थी जब उसे दोस्तों के साथ पिक्चर देखने जाना था । डॉलर बार - बार उसके जूतों की रैक पर जा रहा था शैंकी को समझ नहीं आया वह क्यों इतनी जल्दी - जल्दी दौड़ रहा था । तैयार होकर जब जूते पहनने की बारी आई तो वह देखता है कि उसके जूतों की सभी जोड़ियों का एक - एक जूता गायब है । उसने डॉलर को ढूंढा तो पता चला कि वह अपने डॉग हाउस के आगे खड़ा हुआ अपनी आँखों में शैतानी भर कर पूंछ हिला रहा था,और जूते डॉग हाउस में छिपा रखे थे। शैंकी उसकी इस शैतानी पर उसे प्यार से गले लगाकर बोला, “बुद्धू तुझे तो चोरी करनी भी नहीं आती ।“ उस दिन शैंकी पिक्चर देखने नहीं गया था, यह याद करके वह बहुत ही उदास हो गया था ।
अब रोज़ धीरज और बिहारी जी जीप लेकर शैंकी को साथ ले जाने स्कूल के गेट के सामने ही खड़े होते ।धीरज ने मदन बिहारी जी से कहा, “सर क्या यही काम रह गया है पुलिस के लिए, मैं तो घर से क्या - क्या सोचकर आया था, कि गंभीरता से अपना काम करूंगा, पर यह तो पहली पोस्टिंग में ही कुत्ता ढूंढ रहा.............।“ बिहारी जी ने बीच ही में टोका “अरे - अरे का कहटे हो मुन्ना, ज़रा ढीरे बोलो, पहली बाट टो कुट्टा मट बोलो । डूसरी बाट , ये समझो कि डीआईजी साहब के इकलौते बेटे का कुट्टा खोया है किसी ऐरे गैरे के बच्चे का नहीं । टो ये काम छोटा कइसे लग रहा है आपको, जरा बटाइए टो, और इस काम में गंभीरटा की कमी तो हइए नहीं, ई टो बहुटै गंभीर मिशन है, मिशन खोज कुट्टा । चलो स्टार्ट करो जीप, आ गए शैंकी भैया ?” वो अंतिम वाक्य को किसी मंत्र की तरह गाते हुए बोले । सीधे स्कूल से मिशन खोज डॉलर पर निकल कर शैंकी को भूख लगती तो बिहारी जी किसी भी ठेले से लेकर खुले रखे पकौड़े खिला देते, तो कभी मक्खियां लिपटी चांट । शैंकी को भी बहुत आनंद आ रहा था, यह सब पहली बार करने को मिल रहा था न । दो - तीन दिन तो चल गया पर धीरे- धीरे शैंकी का पेट खराब होने लगा ।
शनिवार को शैंकी के पेट में हल्का - हल्का दर्द हो रहा था, पर उसने किसी को इस डर से नहीं बताया कि माँ – पापा उसे डॉलर को ढूँढने जाने नहीं देंगे । शैंकी को याद हो आया था कि अगर मम्मी - पापा या कोई भी उसे (शैंकी को) डांट देता तो डॉलर या तो डांटने वाले के जूते काट देता या उसके प्रिय कपड़े फाड़ देता । ऐसे प्रेमी डॉलर को थोड़ा कष्ट सहकर भी खोजकर अपने पास ले आने के बाद वाले सुख की अग्रिम अनुभूति ने शैंकी को अपने पेट का दर्द भूल जाने की हिम्मत दी । रविवार को धीरज को किसी दूसरी घटना के मौकाए वारदात पर भेज दिया गया था फोर्स के साथ, पर बिहारी जी हाजिर थे । उस दिन डॉलर को खोजते देर हो गई तो शैंकी को वाशरूम जाना था अतः उसने बिहारी जी से कहा, “अंकल मुझे वाशरूम जाना है ।“ बिहारी जी अपनी छितरी मूंछों के पीछे से अपनी कांइयाँ मुस्कान मुस्काए और जीप सुलभ शौचालय के सामने लाकर रोक दी । वे शैंकी के साथ वशरूम में अंदर तक चले आए और एक आंख दबाकर बोले, “लाइए हम मडड कर डें आपकी चेन खोलने में ..... “ और वे शैंकी के मना करते - करते उसकी पैंट के अंदर हाथ डाल कर निषिद्ध हरकत करने लगे । “क्या कर रहे हो अंकल मेरी मम्मी ने मना किया था किसी को अपने प्राइवेट पार्ट छूने देने के लिए, हटो आप, मैं कर लूँगा खुद ।“ शैंकी चिढ़कर बोला।
“मम्मीई ने मना किया है तो फिर जाने डो आप खुडई खोलो, हम तो मडड ही कर रहे ठे आपकी ।“ ‘मम्मी’ पर थोड़ा अधिक ज़ोर देकर फिर से एक आँख दबाकर बोले बिहारी जी और खीखीखी हंस कर बाहर आ गए ।कुछ भी हो बिहारी जी को इस तरह डॉलर को ढूँढने में बहुत आनंद आ रहा था । यदा - कदा डॉलर को कुत्ता पुकार कर शैंकी को चिढ़ाने का मौका भी हाथ में होता ही था ।
अंततः रविवार की शाम को डॉलर दिखा । शैंकी हर्षातिरेक में चिल्लाया, “अंकल गाड़ी उधर लो, उस पीली शर्ट वाले लड़के के पीछे, देखो वो जो डॉग को ले जा रहा है, वो पीली शर्ट वाला, उसके साथ डॉलर ही है अंकल, डॉलर ही है ।“ उस दिन भी धीरज के न होने पर जीप बिहारी जी स्वयं ही चला रहे थे । शैंकी चिल्लाता रह गया पर बिहारी जी ने जीप रोकी बहुत आगे ले जाकर । “आप सुनते नहीं हो, आपने इतनी दूर लाकर रोकी है जीप अब तक वो लड़का न जाने कहाँ चला गया होगा डॉलर को लेकर ।“ शैंकी गुस्से, दुख और झुंझलाहट भरे मिश्रित भाव से तेज़ आवाज़ में बोला था ।
“आपको दिखाई नहीं देता है कितना भीड़ - भड़ाका था उस जगह, जहां आप चिल्लाने लगे रोको – रोको । अरे कहाँ लगाते हम वहाँ जीप? कुत्ता न हुआ आफत हो गया, लड़का न हुआ रॉकेट हो गया ।“ इस बार बिहारी जी भी अकड़ कर बोले । शैंकी बिहारी जी की तरफ देखता हुआ कसमसा कर ही रह गया बस। उन्होने शैंकी को अनदेखा किया और जीप से उतरकर दोनों टांगें फैलाकर पेट को आगे की तरफ निकाल कर आराम से खड़े होकर हथेली पर सुरती मसली दूसरे हाथ से पट - पट की और नीचे वाले होंठ के पीछे दबा कर, बोले, “हाँ अब बटाओ किधर था वो पीला लड़का जो कुट्टा ले जा रहा था ।“ शैंकी कहना चाहता था फिर से डॉलर को कुत्ता पुकारा, पर इस बार मन में सोचकर ही रह गया कि ये आदमी सड़क के कुत्ते की पूंछ है ये कभी सीधा नहीं होगा । शैंकी को एक तो अपने पेट की बेचैनी थी जो मरोड़ के साथ अजीब तरह से गुड़ - गुड़ कर रहा था, दूसरे बिहारी अंकल ने गाड़ी ठीक वहीं नहीं रोकी थी जहां डॉलर दिखा था अतः इस बार उसे अंकल पर गुस्सा तो बहुत आया पर वह असहाय सा बहुत ज़्यादा झुँझला कर रह गया । उसके पेट में ज़ोर की मरोड़ होने लगी, वह बेचैन हो उठा और बोला अंकल घर चलिये । अंकल ने बिना कोई प्रश्न किए जीप स्टार्ट कर तुरंत घर की तरफ मोड़ दी और बोले, ”आप कहटे हैं टो घर चलते हैं सरकार ।“ क्योंकि इतनी जल्दी तो वो भी कुत्ता ढूंढ लेना चाहते थे नहीं । शैंकी मन से बेहद दुखी था आज डॉलर की झलक मिली भी पर वह नहीं मिला, कितना बदला - बदला सा लग रहा था । बिहारी अंकल ठीक ही कह रहे थे कि सड़क का बनते क्या देर लगती है किसी को । पेट में दर्द भी ठीक उसी समय होना था । उसे बिहारी जी पर तो गुस्सा आ ही रहा था, आ अपने पेट दर्द पर भी रहा था । उसे मोशन इस कदर लूज हुए कि अब दुबारा डॉलर को खोजने जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका था वह । बिहारी अंकल ने कहा, “मैं खुद जाकर देखता हूँ भैया जी , जहां आपने बताया था कि आपको डॉलर जी दिखे थे ।“ शैंकी ने मन ही मन सोचा, डॉलर को कुत्ता बोल जाते हैं, पर इतने बुरे भी नहीं हैं बिहारी अंकल, । उसे पूर्ण आशा बंध गई थी कि अब तो वो ले ही आएंगे डॉलर को । वह कई बार वाशरूम जा - जा कर निढाल हुआ बिस्तर पर पड़ गया । श्रीमती डीआईजी किसी उदघाटन टाइप कार्यक्रम में गई हुईं थीं । जब वो लौटीं तो देखा बिस्तर पर पड़े शैंकी का चेहरा बिलकुल पीला पड़ा हुआ था । “क्या हुआ बेटा ।“ उन्होने चिंतित होकर पूछा ।
“मम्मी लूज़ मोशन......।“ कराहट भरी धीमी आवाज़ में शैंकी इतना ही बोल पाया । उसे डीहाइड्रेशन हो जाने के कारण तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा । ड्रिप चढ़वाते हुए अस्पताल के बेड पर अर्धचेतन से शैंकी को लगा कि डॉलर उसका निक्कर पकड़कर उसे खीच रहा है, वह मरी सी आवाज़ में बोला “डॉलर मान जा, मैं गिर जाऊंगा।“ आँख खोली तो सामने बिहारी जी खड़े अपनी जुल्फें संवार रहे थे, और बोल रहे थे कि , “आप ठीक हो जाइए भैया फिर से डॉलर को खोजेंगे, वो ज़रूर मिलेगा ।“ इस कदर बीमार होने के बाद, खुद जाकर डॉलर को खोजने के प्रति शैंकी का उत्साह मर गया था । उसने मरी सी आवाज़ में पूछा, “अंकल आप गए थे फिर वहाँ, जहां मुझे डॉलर दिखा था ?“
“हाँ हाँ भैया काहे न जाते, गए हम तो तभी के तभी, हर तरफ खोजे पर कहीं न दिखे डॉलर जी तो । हमें अकेले दिखते भी कैसे, आप ठीक हो जाइए फिर चलते हैं।“
“............”
शैंकी खुद जाने के नाम पर कुछ नहीं बोला । डीआईजी साहब ने अपने इकलौते बेटे का यह हाल देखा तो चिंतित होकर बोले कि, “हम आज ही एक दूसरा डॉग मंगा देते हैं । बॉक्सर ही मंगाएंगे, सारे बॉक्सर इतने ही इंटेलिजेंट और अफैक्ष्नेट होते हैं, उसका नाम भी तुम डॉलर ही रखना शैंकी ।“ पर शैंकी ने मना कर दिया, “नहीं पापा मुझे डॉलर ही चाहिए, वही डॉलर, बिहारी अंकल ढूंढ रहे हैं उसे ।“ खैर डीआईजी साहब ने पुनः अपने महकमे के लोगों को याद दिलाया कि कुत्ता खोज कर लाया जाए, किसी भी कीमत पर । बिहारी जी को डॉलर को ढूँढने का जिम्मा मिला ही हुआ था । चूंकि उन्हें पता था डॉलर कहाँ दिखा था तो उन्हें ही फिर से भेजा गया । धीरज के छुट्टी पर होने के कारण किसी दूसरे कांस्टेबल को साथ ले जाने की हिदायत दी थी डीआईजी साहब ने । जो कांस्टेबल साथ गया उसके घर नई - नई ब्याहता साली और साढ़ू आ धमके थे, बिना किसी पूर्वसूचना के । उसकी बीवी का बार - बार फोन आ रहा था कुछ मिठाई - नमकीन घर पहुंचाने के लिए। बिहारी जी ने उन्हें चले जाने के लिए कहा और उन्हें आश्वस्त भी किया कि आप जाइए हम अकेले ही काफी हैं कुत्ता खोजने के लिए ।
इस बार डॉलर को ढूँढने का सौ प्रतिशत ईमानदार प्रयास किया बिहारी जी ने । सौ प्रतिशत प्रयासों के खाली जाने के अवसर कम ही होते हैं, अतः जिस झुग्गी बस्ती की तरफ डॉलर दिखा था पीली शर्ट वाले लड़के के साथ, बिहारी जी ने उस झुग्गी बस्ती जाकर लड़के को खोज निकाला था । एक ढीली सी खाट पर लड़का पेट के बल लेटा, बहुत ही बेसुरे तरीके से गा रहा था, “ जींस पहनके जो मारा तूने ठुमका, पड़ौसन की भाभी सराबी हो गई.....,” उसी खाट के पाए से डॉलर बंधा था । बिहारी जी ने अचानक ही उस लड़के की टांगों पर ज़ोर - ज़ोर के दो - चार डंडे लगाए । लड़का हड़बड़ा कर खड़ा हो गया । बिहारी जी डॉलर की तरफ डंडा दिखाते हुए बोले, “टुम स्साले पुलिस वालों का कुट्टा चुराटे हो, टुम्हारी ये मजाल । टोड़ डेंगे टुम्हारे हाड़ - गोड़ सब ।“ यह कह कर दो - चार डंडे और लगा दिये । अब तो डर के मारे उस लड़के की घिग्गी ही बंध गई । “साब... साब, मुझे पता नहीं था ये आपका कुत्ता है, माफ कर दो साब, मा...आफ कर दो।“ वह घिघियाया हुआ लड़का हाथ जोड़कर लगभग दौहरा हुआ माफी मांगने लगा । “स्साले इसे कुट्टा कहटे हो, अबे ये कुट्टा नहीं डॉलर है उल्लू के पट्ठे डॉलर, डॉलर पुकारो इसे । टुमको स्साले कुट्टा दिखता है ये कुट्टा ,टमीज़ नहीं है,अकल नहीं है ?“ यह कहकर मदन बिहारी जी ने लड़के की काली पतली टांगों पर दो - चार डंडे और धरे । झुग्गी के कई लोग लड़के के घर के आस - पास इकट्ठे हो गए । डर के मारे माफ़ी मांगते हुए लड़के की आवाज तेज़ होकर फट रही थी, वह उस फटी आवाज़ में कह रहा था, “साब मुझे इसका नाम नहीं पता, मुझे तो यह जमना किनारे मिला था साब, आपका है तो आप ले जाओ इसे......।” कहते हुए उसकी काली - पतली टांगें बुरी तरह काँप रहीं थीं । “अबे ले जाएँ, कहाँ ले जाएं ? अब क्या करेंगे इसका हम लेजाकर ? टुम स्साले डॉलर से सड़क का कुट्टा बना दिये इसे । अब टुम्ही रक्खो इसे अपने पास ।“ और बिहारी जी ने आँख बाहर निकाल कर उस पीली शर्ट वाले लड़के की तरफ घूर कर देखा । लड़का और भी डर गया । घर के सामने भीड़ इकट्ठी देखकर लड़के की माँ दौड़कर आई और माजरा भाँपकर कांस्टेबल मदन बिहारी जी से अपने बेटे को छोड़ने की गुहार लगाने लगी । “साब हम तो गरीब लोग हैं, हम क्या करेंगे इस कुत्ते का, आपका है आप ले जाओ ।“ और अपने बेटे की ओर मुखातिब होकर बहुत गुस्से में भरकर गाली - गलौंच करते हुए बोली, “माफी मांग साब से, कमीने तुझे मना किया था न मत बांध इस कुत्ते को, एक तू कुत्ता क्या कम था मेरे लिए । कोई ढंग का काम तो कर न सकता तू नासपिटे, उल्टे काम कित्तेई करवा लो । चल इसे खोलकर दे साब को, हरा........।“ उसने अपने लड़के को कुछ और भी गालियां दीं, काफी खफा लग रही थी वह उसकी हरकतों से । बिहारी जी ने लड़के की माँ को भी खूब डराया धमकाया। और डंडे से उसे झुग्गी के भीतर जाने का इशारा किया। औरत अंदर चली गई, पीछे - पीछे बिहारी जी भी चले गए । औरत से बोले, “डेखो कुट्टा टो अब हमारे किसी काम का रहा नहीं ।“
“तो साब अब हम क्या करें, साब कुछ सेवा पानी कर दें आपकी?” औरत बिहारी जी की नीयत कुछ - कुछ समझ रही थी । इस तरह के बेटों की माताओं को इस तरह की भाषा समझ आ ही जाती होगी । बिहारी जी ने सीधे - सीधे हामी तो नहीं भरी हाँ चेहरा दाहिने कंधे की तरफ घुमाया और दोनों हाथ अपने कूल्हों पर टिकाकार मुंडी को हिलाने लगे । औरत बोली
“साब कुछ पैसे हैं मेरे पास .......”
“अरे कुछ किटने होटे हैं माई .........?“ बिहारी जी मुंह में सुरती दबाए - दबाए बोले ।
“होंगे कोई हज़ार एक रुपये........“
“बीस हज़ार का कुट्टा है ये, बीस हज़ार का जो टुम्हारे लड़के ने बर्बाद किया है, वो भी पुलिस का, एक हज़ार डिखाटी हो, क्या होगा इटने में । पर अब पुलिस इसे वापस टो नहीं ले सकटी यहाँ रह लिया न ये, टुम्हारी बडबुओं से भरी झुग्गी में ।“ बिहारी जी कड़क कर बोले ।
“साब मेरे पास तो इतने ही हैं ।“औरत बारह सौ रुपये निकाल कर बिहारी जी की तरफ बढ़ाने लगी । “अभी पकड़कर टुम्हारे लड़के को ठाने ले जाएंगे न, सब निकल आएगा पैसा वैसा........।“ बिहारी जी गुस्सा दिखाते हुए दरवाजे से दिखाई देते घिघियाए लड़के की ओर घूमकर बोले, “चलो टुम ठाने वही होगा टुमारा हिसाब - किताब ।“ लड़के को एक - आध बार पहले भी थाने जाने का अनुभव था, वहाँ हुई पिटाई को वह कैसे भूल सकता था अतः उसका डरना स्वाभाविक था । उसकी माँ भी बहुत डर गई थी पिछली बार लड़का पिट कर आया तो हफ्तों में जाकर सही हुआ था, ऊपर से हैसियत से ज़्यादा पैसा खर्च करना पड़ गया था सो अलग । और यह भी तो सुना था उसने कि अगर ऊपर से दबाव पड़ता है अफसरों का किसी चोरी, डकैती, हत्या या बलात्कार के अपराधियों को जल्दी पकड़ने का तो पुलिसवाले किसी दूसरे छोटे - मोटे चोर उचक्के या आवाराओं को भी पकड़ कर कह देते हैं कि पकड़ लिया अपराधी, और मामला शांत हो जाता है । पिछले बरस लच्छी के लड़के के साथ यही तो हुआ था । आवारा घूमता था दिन भर, एक दिन चढ़ गया पुलिस के हत्ते, लगा दिया डकैती का केस । आज तक जेल में ही पड़ा सड़ रहा है । औरत ने थाना - कचहरी करने से बेहतर समझा निपटारा वहीं के वहीं करना । आस - पड़ौस से करीब चार हज़ार रुपए इकट्ठे करके मदन बिहारी जी को दिये तो उन्होने नाक भौं सिकोड़ते हुए रुपए ऐसे पकड़े जैसे बिच्छू घास पकड़ रहे हों । उन्होने एक आँख दबाकर, गर्दन हिलाई और लापरवाही से रुपए जेब में ठूँसे और हिलते - डुलते झुग्गी से बाहर आ गए । फिर उस लड़के की तरफ मुड़े, आदतन झटका देकर हाथ की चेन सीधी की, ढिबरी सी आँख फाड़ीं और हाथ में पकड़ा डंडा दिखाकर बोले,
“और टुम स्साले, इधर सुनो, अबे ध्यान से सुनो । “
“जी...ई सा.........आब......” लड़का डरते - डरते थोड़ा पास आ गया पर इतना ही कि बिहारी जी अगर डंडे से
मारना चाहे तो मार न पाएँ ।
“ये जो कुट्टा है न बे, इसे डॉलर कभी मत पुकारना, अब ये डॉलर रहा ही नहीं न बे । अब ये झुग्गी का कुट्टा बन गया । फिर भी अगर कभी पुकारा टुमने, टो ये डंडा सीढा टुम्हारी........“
निर्देश निधि, c/o डॉ प्रमोद निधि, विद्या भवन, कचहरी रोड, बुलंदशहर, (उप्र), पिन – 203001
फोन – 9358488084, ईमेल - nirdesh.nidhi@gmail.com
24.4.2019