देस बिराना
किस्त उन्नीस
शिशिर बेशक इतनी आसानी से सारी बातें कह गया था लेकिन मेरे लिए ये सारी बातें इतनी सहजता से ले पाना इतना आसान नहीं है। शिशिर जिस मिट्टी का बना हुआ है, उसने शिल्पा की सच्चाई जानने के बावजूद उसे न केवल स्वीकार कर रखा है बल्कि अपने तरीके से उसे ब्लैकमेल भी कर रहा है और रिश्तों में बेईमानी भी कर रहा है। ये तीनों बातें ही मुझसे नहीं हो पा रहीं। न मैं गौरी के अतीत का सच पचा पा रहा हूं, न उसे ब्लैकमेल कर पाऊंगा और न ही इन सारी बातें के बावजूद पति-पत्नी के रिश्ते में बेईमानी ही कर पाऊंगा। हालांकि गौरी मेरी बगल में लेटी हुई है और मेरा हाथ उसके नंगे सीने पर है, वह रोज ऐसे ही सोती है, मेरे मन में उसके प्रति कोई भी कोमल भाव नहीं उपज रहा। आज भी उसकी सैक्स की बहुत इच्छा थी लेकिन मैंने मना कर दिया कि इस समय मूड नहीं है। बाद में रात को देखेंगे। अक्सर ऐसा भी हो जाता है। कई बार उसका भी मूड नहीं होने पर हम बाद के लिए तय करके सो जाते हैं और बाद में नींद खुलने पर इस रिचुअल को भी निभा लेते हैं। अब यह रिचुअल ही तो रहा है। न हमारे पास एक दूसरे के सुख दुख के लिए समय है न हम अपनी पर्सनल बातें ही एक दूसरे से शेयर कर पाते हैं। डिनर या लंच हम एक साथ छुट्टी के दिनों में ही ले पाते हैं और एक दूसरे के प्रति पूरा आकर्षण खो चुके हैं। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है। मुझे पता है कि गौरी का मेरे प्रति आकर्षण का एक और एकमात्र कारण भरपूर सैक्स है और उसके बिना उसे नींद नही आती। मेरी मजबूरी है कि मुझे खाली पेट नींद नहीं आती। कई बार हमारा झगड़ा भी हो जाता है और हम दोनों ही किसी नतीजे पर पहुंचे बिना एक दूसरे से रूठ कर एक अलग-अलग सो जाते हैं लेकिन नींद दोनों को ही नहीं आती। गौरी को पता है मैं खाली पेट सो ही नहीं सकता और मुझे पता है जब तक उसे उसका टॉनिक न मिल जाये, वह करवटें बदलती रहेगी। कभी उठ कर बत्ती जलायेगी, कभी दूसरे कमरे में जायेगी, कोई किताब पढ़ने का नाटक करेगी या बार-बार मुझे सुनाते हुए तीखी बातें करेगी। उसके ये नाटक देर तक चलते रहेंगे। वैसे तो मैं भी नींद न आने के कारण करवटें ही बदलता रहूंगा। तब मान मनौव्वल का सिलसिला शुरू होगा और बेशक रोते धोते ही सही, कम्बख्त सैक्स भी ऐसी नाराज़गी भरी रातों में कुछ ज्यादा ही तबीयत से भोगा जाता है।
अब शिशिर की बातें लगातार मन को मथे जा रही हैं।
गौरी के इसी सीने पर किसी और का भी हाथ रहा होगा। गौरी किसी और से भी इसी तरह हर रोज सैक्स की, भरपूर सैक्स की मांग करती होगी और खूब एंजाय करने के बाद सोती होगी। आज यह मेरी बीवी बन कर मेरे साथ इस तरह अधनंगी लेटी हुई है, किसी और के साथ भी लेटती रही होगी। छी छी। मुझे ही ये सब क्यों झेलना पड़ता है!! मैं ही क्यों हर बार रिसीविंग एंड पर होता हूं। क्या मैं भी शिशिर की तरह गौरी से बेईमानी करना शुरू कर दूं या उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दूं। ये दोनों ही काम मुझसे नहीं होंगे और जिस काम के लिए शिशिर ने मुझे मना किया है, मैं वही करता रहूंगा। लगातार कुढ़ता रहूंगा और अपनी सेहत का फलूदा बनाता रहूंगा।
मेरा मन काम से उचटने लगा है। नतीजा यह हुआ है कि मैं घुटन महसूस करने लगा हूं। मेरी बेचैनी बढ़ने लगी है। मैं पहले भी अकेला था अब और अकेला होता चला गया हूं। इसी दौर में मैंने बाहर एकाध जगह काम की तलाश की है। काम बहुत हैं और मेरी लियाकत और ट्रेनिंग के अनुरूप हैं, लेकिन दिक्कतें हैं कि हांडा परिवार से कहा कैसे जाये और दूसरे वर्क परमिट को हासिल किया जाये।
कई बार इच्छा भी होती है कि मैं भी पैसे के इस समंदर में से अपनी मुट्ठियों में भर कर थोड़े बहुत पाउंड निकाल लूं लेकिन मन नहीं माना। यह कोई बहुत इज्जतदार सिलसिला तो नहीं ही है। हम यहां बेशक बेगारी की जिंदगी जी रहे हैं और हेरा फेरी जैसी टुच्ची हरकतों से इस जलालत के बदले कुछ ही तो भरपाई हो पायेगी। हालांकि कई बार गौरी मेरी बेचैनी और छटपटाहट को समझने की कोशिश करती है लेकिन या तो उसके सामने भी बंधन हैं या फिर जिस तरह की उसकी परवरिश है, वहां इन सब चीजों के लिए कोई जगह ही नहीं है। हम पांच जवान, पढ़े-लिखे लड़के उस घर के जवाईं हैं, बेशक घर जवाईं लेकिन हैं तो उस खानदान में सबसे पढ़े लिखे, लेकिन हमें कभी भी घर के सदस्य की तरह ट्रीटमेंट नहीं मिलता। मैं इस घर में कभी भी, एक दिन के लिए भी, न तो कभी सहज हो पाया हूं और न ही मेरी नाराजगी की, उदासी की वजह ही किसी ने पूछने की ज़रूरत ही समझी है।
दारजी और नंदू के पत्र आये हैं। आखिर गुड्डी की शादी कर ही दी गयी। लिखा है नंदू ने - टीचर्स की हड़ताल की वज़ह से मार्च में ही पता चल गया था कि बीए की परीक्षाएं अप्रैल में नहीं हो पायेंगी। गुड्डी ने दारजी से भी कहा था और मेरे ज़रिये भी दारजी कहलवाया था कि वह शादी से इनकार नहीं करती लेकिन कम से कम उसके इम्तिहान तो हो जाने दें लेकिन दारजी ने साफ साफ कह दिया - शादी की सारी तैयारियां हो चुकी हैं अब तारीख नहीं बदलेंगे।
वही हुआ और गुड्डी इतनी कोशिशों के बावजूद बीए की परीक्षा नहीं दे पायी। मुझे नहीं लगता कि गुड्डी की ससुराल वाले इतने उदार होंगे कि उसे इम्तिहान में बैठने दें। वैसे मैं खुद गुड्डी के घरवाले से मिल कर उसे समझाने की कोशिश करूंगा। शादी ठीक-ठाक हो गयी है। बेशक तेरी गैर हाजरी में मैंने गुड्डी के बड़े भाई का फर्ज निभाया है लेकिन तू होता तो और ही बात होती। तेरी सलाह के अनुसार मैंने सारे पेमेंट्स कर दिये थे और दारजी तक यह खबर दे दी थी कि जो कुछ भी खरीदना है या लेनदेन करना है, मुझे बता दें। मैं कर दूंगा। मैंने उन्हें पटा लिया था कि दीप ने गुड्डी की शादी के लिए जो ड्राफ्ट भेजा है, वह पाउंड में है और उसे सिर्फ इन्टरनेशनल खाते में ही जमा किया जा सकता है। दारजी झांसे में आ गये और सारे खर्चे मेरी मार्फत ही कराये। मैं इस तरीके से काफी फालतू खर्च कम करा सका। दारजी और गुड्डी के खत भी आगे पीछे पहुंच ही रहे होंगे।
नंदू के खत के साथ-साथ गुड्डी का तो नहीं पर दारजी का खत जरूर मिला है। इसमें भी गुड्डी की शादी की वही सारी बातें लिखी हैं जो नंदू ने लिखी हैं। अलबत्ता दारजी की निगाह में दूसरी चीजें ज्यादा अहमियत रखती हैं, वही उन्होंने लिखी हैं। मेरे भेजे गये पैसों से बिरादरी में उनकी नाक ऊंची होना, शादी धूमधाम से होना, फिर भी काफी कर्जा हो जाना वगैरह वगैरह। उन्होंने इस बात का एक बार भी जिक्र नहीं किया है कि गुड्डी उनकी ज़िद के कारण बीए होते होते रह गयी या वे इस बात की कोशिश ही करेंगे कि गुड्डी के इम्तहानों के लिए उसे मायके ही बुला लेंगे। सारे खत में दारजी ने अपने वही पुराने राग अलापे हैं। इस बात का भी कोई जिक्र नहीं है कि ये सब मेरे कारण ही हो पाया है और कि अगर मैं वहां होता तो कितना अच्छा होता।
दारजी का पत्र पढ़ कर मैंने एक तरफ रख दिया है।
अलबत्ता अगर गुड्डी का पत्र आ जाता तो तसल्ली रहती।
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