MURDER MYSTERY - 10 in Hindi Crime Stories by Vismay books and stories PDF | मर्डर मिस्ट्री - 10

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मर्डर मिस्ट्री - 10

“ तुम्हें क्या मालूम मुझे कितना मजा आया था उन तीनों की जान लेने में । तड़पा तड़पा कर मारा था । वैसे तो वो मुझे अच्छे से जानते थे इसीलिए किसी के घर में घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई । मौक़ा मिलते ही में उन्हें बेहोश कर देती फ़िर कुर्सी से बांध देती, आेर मुंह में कपड़ा ठूस देती । वो जब होश में आते तो ना थोड़ा भी हिल पाते , ना हीं कुछ बोल पाते । फ़िर मैं धीरे धीरे उनके चेहरे पर एसिड डालती तब तक , जब तक कि उनके चेहरे की हड्डियां नहीं दिखाई देती। मुझे हड्डियां देखने में बड़ा मज़ा आता हैं । एसिड डालने के थोड़ी देर बाद में उन सबसे वहीं कहती जो मुझे पूरी दुनियां अब तक कहती आई हैं ।“किसी ने एसिड फेंककर , बहुत बुरा किया तुम्हारे साथ , मेरी हमदर्दी तुम्हारे साथ हैं ”। ये सब बोलते हुए उसकी आंखों में किसी दरिंदा से वैशिपन उतर आया था ।

समीर को ये सब बड़ा अजीब लग रहा था सुनने में । उसने आगे पूछा की “तुम्हें तीन लोगों को मारने कि ज़रूरत क्या थी , तुम अकेले मनोहर को भी मार सकती थी ”।

“ मेरा दिमाग़ ख़राब कर रखा था इन तीनों ने ” सलोनी ने बड़ी बेफ़िक्री से जवाब दिया ।

समीर को बात समझ में नहीं आई इसीलिए उसने पूछा कि “में कुछ समझा नहीं , तुम्हारा दिमाग़ ख़राब किया था इन तीनों ने पर कैसे ?"

“ इस जले हुए चेहरे के साथ जीना बहुत मुश्किल है । वैसे भी जली हुई रोटियां आेर बेटियां किसे पसंद आती हैं सर । कभी कभी मुझे देखकर बच्चे डर जाते हैं । लोग नज़रें फेर लेते या अजीब अजीब सी शक्ले बनाते हैं । आखि़र में भी इंसान हूं यार , मुझसे भी नोर्मल तरीक़े से मिलो , जानो , पहेचानो, बात करो। पर नहीं या तो मुझे देखकर गीन आती हैं लोगो को या फ़िर हमदर्दी । पता नहीं क्यूं पर मुझे देखकर लोगों के मुंह आेर आंखों से सिर्फ हमदर्दी ही निकलती हैं । पर किसने कहा मुझे हमदर्दी चाहिए , नहीं हूं में कोई बेचारी आेर बनना भी नहीं है मुझे बेचारा । एक बार नहीं हजार बार लोगों से कहां कि नहीं चाहिए मुझे हमदर्दी । पर लोगों को समझ में कहां आता हैं जब भी मिलते हैं शुरू हो जाते हैं की बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ , बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ । इसी वज़ह से मारा था मेने उन तीनों को, चार पांच साल से जब भी मिलते थे हमदर्दी जताने लग जाते थे । तुम लोगो के लिए हमदर्दी सिर्फ एक लफ्ज़ होगा , मुझे जहर लगता हैं ” सलोनी ने अपनी बात खत्म की ।

“ तुम्हारे दिमाग़ की हालत ठीक नहीं हैं । तुम्हें दिमाग़ के डॉक्टर को दिखाना चाहिए । कोई हमदर्दी की वजह से खून करता हैं” समीर ने अपना अगला सवाल पूछा ।

“ मैने कहां ना मुझे हमदर्दी जहर सा लगता हैं । वो तीनों पांच साल से हमदर्दी का ज़हर मुझको पीलाये ही जा रहे थे । मेरे दिमाग़ बर्दाश्त के बाहर हो गया था । अगर में उन तीनों को नहीं मारती तो में ख़ुद की जान ले लेती । इसीलिए मेने उन सब को मारा जिसका मुझे कोई अफसोस नहीं हैं ” सलोनी ने गुस्से में अपनी बात ख़त्म करी ।

“ पर उस वॉचमेन का क्या हुआ ? वो जिंदा हैं या उसे भी मार दिया ” मौक़ा मिलते ही समीर ने वो सवाल पूछा जिसका जवाब सलोनी के अलावा किसी के पास नहीं था ।

“ लोगों का ध्यान भटकाए रखने के लिए उस वॉचमेन का गायब होना जरूरी था । आेर मेरे लिए मेरा काम इस सोसायटी में बिना रोक टोक हो उसके लिए उसका मरना ज़रूरी था ” सलोनी ने जवाब दिया ।

“ तो फ़िर उसकी लाश कहां हैं "? समीर ने पूछा ।

“ मेरा कोई करीबी मरने से पहले ठीक जिस जगह पर था , वॉचमेन की लाश भी वहीं पर है ” सलोनी ने समीर के सामने पहेली रखी । आेर आगे कहा की “ में बस इतना हीं बता सकती हूं आगे उसकी लाश को ढूंढ़ना तुम्हारी जिम्मेदारी है । वैसे भी एक घंटे में मेरी फ्लाइट हैं , में इस जगह से बहुत दूर जा रही हूं ” सलोनी ने अपनी बात ख़त्म की ।

समीर मन ही मन ये सोच रहा था कि कैसे दिन आ गए हैं खूनी आंखों के सामने हैं पर पकड़ नहीं सकते । सलोनी को गिरफ़्तार न करने की दो वजह है , एक तो वो एसिड अटैक विक्टिम है अगर उस पर हाथ डाला तो पूरे देश का मीडिया पीछे पड़ जाएगा । दूसरा लोगों ने मनोहर को खूनी मान लिया है अब कोई आेर खूनी दुनिया के सामने लाया जाए तो आेर भी पक्के सबूतों की ज़रूरत पड़ेगी पर वो मेरे पास हैं नहीं । समीर सलोनी के घर से बेमन निकल जाता है ।

पुलिस स्टेशन पहुंचने तक समीर वॉचमेन वाली गुत्थी ही सुलझा ने में लगा था । पुलिस स्टेशन पहुंच कर उसने अपनी टीम को मर्डर केस की पूरी सच्चाई बताई । कितने ही लोगों को सच्चाई सुन कर अजीब लगा की सलोनी असली कातिल थी । समीर ने मातरेजी से जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी सलोनी गुप्ता के करीबियों की पूरी डिटेल निकालने को बोल दिया । समीर को ये पता था कि सलोनी की दी हुई पहेली ही आखरी कड़ी है उस वॉचमेन की लाश तक पहोचने की । समीर को अब भी इसी बात का अफ़सोस हो रहा था कि वो असली खूनी को पकड़ नहीं पाया ।आधे घंटे के अंदर अंदर मातरेजी ने सलोनी के करीबियों की सारी जानकारी इकट्ठा कर ली । सब लोग इसी काम में लगे थे कि “ मेरा करीबी मरने से ठीक पहले जिस जगह पर था , वॉचमेन भी वहीं पर है ” सलोनी की इस पहेली का हल निकाल सके ।

पंद्रह मिनट हो चुके थे किसी को भी कुछ भी नहीं मिला था । अचानक समीर को याद आया कि सलोनी के घर में नजरे घुमाते वक्त उसने उसके बेडरूम में रहे एक फोटो की तरफ देखा था , उसमे जो भी सलोनी के साथ खड़ा था उसने पुलिस की वर्दी पहनी हुई थी । समीर को पक्का तो मालूम नहीं था कि उसने जो देखा वो बिल्कुल सही था पर अभी बस इसके सिवा कुछ नहीं था उसके पास । उसने कंप्यूटर पर बैठे मिश्रा जी को कहां की “ कोई ऐसा करीबी ढूंढ़ो जो पुलिस में काम करता था ”? मिश्रा जी को अंदाज़ा हो गया था कि सर को कुछ ढ़ंग का मिल गया है इसीलिए वो भी उस करीबी को ढूंढ़ने लग गए जो पुलिस में काम करता था । थोड़ी देर बाद मिश्रा जी के कंप्यूटर पर एक चेहरा दिख रहा था । वो सलोनी के पापा हवलदार रामकिशन गुप्ता थे । समीर के साथ बाकी सब रामप्रसाद गुप्ता के चेहरे को देख रहे थे और पहेली सुलझाने की कोशिश कर रहे थे ।

इतने में मिश्रा जी ने कहां “हा सर याद आया ये तो वहीं है जो छह - सात साल पहले इसी पुलिस स्टेशन में नया नया ट्रांसफ़र होके आया था । उसकी बेटी पे एसिड फैंका गया , एसिड फेंकने वाला भी छुट गया ये पुलिस में होते हुए भी कुछ नहीं कर सका । इसी बोज के तले वो घुट घुट कर जी रहा था और एक दिन उसने आत्महत्या कर दी । इसी पुलिस स्टेशन की छत से कूदकर उसने आत्महत्या की थी ” ।

मिश्रा जी की बात सुनकर समीर का दिमाग़ तेज़ी से भागने लगा । उसका दिमाग़ सलोनी की पहेली दोहरा रहा था और इसी के साथ उसके मुंह बस इतना हीं निकला की “इसका मतलब है की ” । इतना बोलने के साथ हीं वो तेज़ी से छत की तरफ भागा । भागते भागते समीर ने मिश्रा जी को हथौड़ा लेकर आने को बोल दिया । थोड़ी देर बाद सभी छत के दरवाजे के सामने खड़े थे । समीर ने हथौड़ा लिया और तालो पे मारना शुरू कर दिया । थोड़ी ही देर में ताले टूट गए और वो सब छत पे दाख़िल हुए ।

छत पर चारों तरफ़ जाड़े प्लास्टिक के बैग्स थे वो भी काले रंग के । चारों तरफ से अजीब सी बदबू आ रही थी । ये बदबू लाश सड़ने की नहीं थी । सब मिलकर अलग अलग बैग खोलने लगे । सारे बैग्स में कटे हुए अंग थे । किसी में हाथ तो किसी में पांव था । सारे बैग्स फॉर्मेलीन से भरे हुए थे जिससे कटे हुए अंग सड न जाए । एक कोने वाले बैग को खोल कर मिश्रा जी ने कहां की “सर ये देखिए इस बैग में कटा हुआ सर हैं , आेर ये सर उस वॉचमेन का है ”। समीर ने सहमति में सिर हिलाया । समीर को ये समझते देर ना लगी कि वॉचमेन की लाश के टुकड़े टुकड़े कर के इस छत पर फेंका गया है ।

मिश्रा जी ने पूछा कि “ सर ये पुलिस स्टेशन की छत पर आए कहां से होंगे ? छत का दरवाज़ा तो हमेशा लॉक रहेता है , उसकी चाबी भी कमिश्नर सर के पास हैं ? ”

“ ये पुलिस स्टेशन को लगकर ये जो बड़ी बड़ी बिल्डिंग आप देख रहे हो , इसी बिल्डिंग की किसी बाल्कनी से इन्हें फेंका गया है । मिश्रा जी ये लड़की बहुत चालाक है , हम पूरे शहर भर में वॉचमेन को ढूंढ़ते फ़िर रहे थे और वो हमारे सिर के ऊपर ही था ”।

“ क्या हम उसे कभी भी पकड़ पाएंगे ”? मिश्रा जी ने पूछा ।

समीर घड़ी की तरफ़ देखकर सोचता है की सलोनी को मिले हुए एक घंटे से ऊपर हो गया था । अभी तक तो उसकी फ्लाइट टेक ऑफ हो चुकी होंगी । समीर गर्दन थोड़ी ऊपर करके आसमान कि तरफ़ देखता है । दूर बादलों में कही प्लेन नज़र आ रहा होता हैं ।

वो मिश्रा जी की तरफ़ घूमकर कहता है “ अब उसे नहीं पकड़ सकते मिश्रा जी , वो तो उड़ गई । पर किसी न किसी दिन पकड़ी जाएगी । इन नीचे रहते पुलिसवालों से बच तो सकती हैं पर ऊपर एक बड़ा पुलिस वाला भी ही । जिससे आजतक कोई नहीं बचा , ये भी नहीं बचेगी ।
- continue

(मुझे पता है मैने बहुत गलतियां की होगी इसमें । कहीं मेरी storytelling ख़राब होगी तो कहीं कहानी का फ्लो टूट रहा होगा । इसीलिए आप लोगों से रिक्वेस्ट है जहा पर भी मेरी गलती लगे मुझे बताइए। आपकी वजह से में बहुत कुछ शिख सकता हूं । आप यहां नीचे कॉमेंट में बताइए या मेरे व्हाट्सएप (8780948835) बताइए । Thank you। )