Dil ki zameen par thuki kile - 22 in Hindi Short Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 22

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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 22

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

22--मोहभंग

बड़ा हँसता-खेलता परिवार था वो !आइडियल सिचुएशन वाला पति-पत्नी, बेटा-बेटी। बच्चे बड़े हुए, शादी-ब्याह हो गए, उनकी अपनी पसंद से !

बिटिया अपने घर, बहू अपने परिवार में।सब कहते, इस परिवार से बड़ी पाॅज़िटिव वाइब्रेशन्स आती हैं।खूब आना-जाना लगा रहता यानि लोगों की रौनक !

बेटे की दो प्यारी सी बेटियों की मुस्कान से घर चहकता रहता। अधेड़ दादा-दादी को पोतियाँ मिलीं तो जैसे कारूँ का खज़ाना मिल गया | खज़ाना जैसे खनकता रहता, न जाने कितना है इस परिवार के पास ! भौतिक रूप में कुछ इतना था भी नहीं कि श्रेष्ठी लोगों में नाम जोड़ा जा सके किन्तु कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि तीन-चार सब्ज़ियों के बिना भोजन मिला हो |

रहने को घर, चलने को वाहन ! और क्या होता है --वैसे तो कोई सीमा होती ही नहीं किसी भी चीज़ की | श्रम करने वालों के मुख पर एक अलग ही प्रसन्नता और सुकून होता है |अचानक घर के बुज़ुर्ग यानि पिता के न रहने से परिवार कमज़ोर पड़ गया |

युवा पति-पत्नी के बीच घर के बुज़ुर्ग कभी कूड़े ही नहीं थे | कहाँ जाना -आना है ? क्या लाना है, कभी कोई रोकटोक थी ही नहीं | हश्र हुआ बुज़ुर्ग महिला के साथ अपशब्दों में बोलाचाली शुरू ! अंधी दौड़ में किसी बाहरी के सीखने -पढ़ने पर बेटी जैसी पुत्र-वधू सास से अपशब्दों में बात करने लगी | बेटे-बहू में तो बाहरी घुसपैठिये ने पहले ही दरार डलवा दी थी |

एक उम्र पर आकर सब बिछुड़ने की बात सोचने लगते हैं, किसीको तो पहले जाना ही होता है --बस, एक आश्वासन रह जाता है कि बच्चे हमारे पास हैं | बच्चे भी वो जो 15 /18 वर्ष की उम्र तक दादी के हाथ से बने कितने पकवान एन्जॉय करते थे |

जब बच्चों के सामने उनकी माँ ने ऐसे अपशब्दों से सास को नवाज़ना शुरू किया तब उन्हें लगा ग़ुस्सा है, उतर जाएगा कुछ दिनों में |हो जाता है कभी किसी बात पर बहुत अधिक क्रोध !आख़िर मनुष्य-मन ही तो है | उसे भरोसा कैसे हो कि उसकी बेटी से भी अधिक प्यार पाई बहू इस प्रकार बात कर सकती है ? प्यार का कोई सानी नहीं होता |भ्रम में जीती रही कुछ भी हो जाए, मेरी बहू मुझसे किसी हालात में ग़लत व्यवहार नहीं कर सकती | यह भ्रम टूटा और सबसे बड़ा भ्रम तब टूटा जब उसने पोतियों को मूक देखा |वो इतनी बड़ी तो हो चुकी थीं कि वास्तविकता समझ पातीं किन्तु पोतियों के व्यवहार ने उसे सचमुच इतनी पीड़ा दी कि उसे अपनी परवरिश पर भ्रम हो आया और उसने वह जगह छोड़ने का निश्चय कर लिया |

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