Master mast, Shiksha past in Hindi Moral Stories by Vijay Vibhor books and stories PDF | मास्टर मस्त, शिक्षा पस्त

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मास्टर मस्त, शिक्षा पस्त

जब से इस धरती पर जीवन का विकास हुआ है तभी से जीवों में अपने वजूद को संभालने या बनाए रखने की कोशिश जारी रखी है, इस विकास में मनुष्य ने बाजी मार ली और सबसे ज़्यादा विकास किया| इस विकास में उसकी नई नई खोजे काम आई| कभी पहिए का विकास, कभी आग की खोज और शिक्षा का विकास आदि आदि ….. शिक्षा के विकास ने जैसे मनुष्य के विकास को पंख लगा दी और वो आज हर वो काम कर लेते है जो कभी असंभव लगते थे किंतु आज वो चुटकियों में हो जाते है| भारत की उन्नत शिक्षा की विरासत …….. प्राचीन समय में भारत शिक्षा का केंद्र होता था| यहाँ पर विश्व के कोने कोने से लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे| शिक्षा के लिए यहाँ पर विश्व विधालया के रूप में नालंदा, तक्षशिला अपने समय में संपूर्ण विश्व में मशूहर हुए| गणित का सिधान्त हमने ही दुनिया को दिया था और पहली मिसाइल का अविष्कार भी हमने किया था …….. | जब तक शिक्षा कुछ ग्यान हासिल करने का ज़रिया थी| वक्त की आँधी ऐसी चली की भारत गुलाम हो गया| किंतु आज शिक्षा बिज्नीस हो गयी है और पैसा बनाने का एक बहुत अच्छा साधन मात्र रह गयी है| आज वो रोज़ी रोटी कमाने की खातिर ही ग्रहण की जाती है …….. शिक्षा का व्यवसाइकरण आज जो शिक्षा हम अपने बच्चों को दे रहे हैं वो व्यवहारी शिक्षा नही है|

आज हमे जो शिक्षा मिल रही है वो हमे नोकर बना रही है, क्योंकि आज जो भी पढ़ाई करता है उसका एक ही सपना होता है की उसको एक अच्छी नोकारी मिलेगी| बच्चे की पाँच साल की उम्र में ही उसको दस किलो का भारी बस्ता उठना पड़ता है, उनको फालतू के बोझ से दबा रही है | उपर से कंप्टिशन का जमाना यदि 95% नंबर भी आए तो भी आप पिछड़ जायगें| माँ बाप तो परेशान है ही बच्चा भी शारीरिक और मानसिक दबाव महसूस करने लगता है, ये हाल तो बच्चों का है| बड़े भी इस बोझ से छूटे नही हैं आज सिर्फ़ डिग्री ही आप की कामयाबी का एक मार्ग है| प्रतियोगिता में यदि एक अनुभवी और एक डिग्री धारक तो प्राथमिकता डिग्री वाला प्राप्त करेगा (कम से कम सरकारी नोकारियाँ तो इसी आधार पर प्राप्त होती हैं) अनुभवी को नम्बर बाद में ही आयगा क्योंकि उसके पास डिग्री नही है| डिग्री का ना होना अनुभवी की तरक्की में रोड़ा बन जाता है, अनुभवी का मान तो सब करते हैं पर तरक्की के नाम पर डिग्री का ना होना उसके लिए शाप बन जाता है| किंतु डिग्री धारक चाहे कम अनुभवी हो फिर भी तरक्की के नाम पर डिग्री उसकी सीढ़ी बन जाती है|

आज प्राइवेट डिग्री कॉलेज (M.Ed., B.Ed.) खुले हुए हैं वो नॉन-अटेंडिंग (कक्षा में ना जाना पड़े) के 60-70 हज़ार रुपय अतिरिक्त लेकर उनका काम कर देते हैं| बाद में एग्ज़ॅम में जाम कर नकल भी होती है, ऐसा नही है की सरकार नकल को रोकने का प्रयत्न नही करती वो तो भरपूर कोशिश करती है की नकल ना हो किंतु जो लोग नकल रोधक दस्ते में होते हैं उनके पहुचने की खबर प्रकाश गति से पहले ही पहुँच जाती है| नकल से पास लोगों के कारण वो लोग पिछड़ जाते हैं जो दिन रात पढ़ कर पेपर देते हैं| जगह जगह खुले हुए स्टडी सेंट्र्स डिग्री कोर्स करने का एक अनोखा बिज्नस खोले हुए है ……… पेपर करवाने के नाम पर कॅंडिडेट को पेपर घर से करके लाने को दे देते है और उनसे मोटी फीस वसूलते हैं| डिग्री बढ़ाने की खातिर कॅंडिडेट ये बोझ सहन करता है क्योंकि उसको उमिद होती है की जितनी ज़्यादा डिग्रियाँ होंगी उसको उतनी ही अच्छी नोकरी मिलेगी ……. और नोकारी मिलेगी तो उसको अच्छी तारिककी मिलेगी| आप ही सोचो जो शिक्षक बिना पढ़े नकल के सहारे ही डिग्री प्राप्त करेगा तो वो क्या खाक हमारे बच्चों को पढ़ाएगा, क्या उसकी भावना एक शिक्षक की होगी …….? सरकारी नोकरी मतलब आराम ही आराम ……. दोस्तो सरकारी नोकारी प्राप्त करने की लिए युवाओं में इतनी मारा मारी है की यदि एक चपरासी की नोकारी भी निकलती है तो उसके लिए उच्च डिग्री धारक भी कोशिश करते हैं| क्योंकि उनको लगता है की सरकारी नोकरी मिल गयी तो आराम ही आराम है| वो अपने पिता के द्वारा शुरू किया हुआ काम को नही अपनाता जिस काम से उसका भरण पोषण और शिक्षा हुई है उसको शरम आती है अपने पिता के काम को करने में वो शरमाता है जूता ठीक करने में, लोहे का काम, खेती करने में ….. आदि आदि, जबकि वो उस काम का मलिक होता है, किंतु उसको नोकर बनने में गर्व होता है|

क्या ये दोष हमारी शिक्षा प्रणाली का नही है, जो हमे स्वालंबी बनाने के स्थान पर क्लर्क, चपरासी या सरकारी नोकर बना रही है| आज़ादी के बाद हमारी शिक्षा की मुख स्वालंबी फसल तेयार करने की ओर मोड़ दिया गया होता तो 70 सालों के बाद (मेरी नज़र में) बेरोज़गारी का जो रूप आज है वो बहुत हद तक नही के बराबर होता……

चलते चलते ………

मेरे भी दो मास्टर दोस्तों की लॉटरी निकल गयी उनको अध्यापक की सरकारी नोकरी मिल गयी| एक दिन रास्ते में मिल गया, हाल चाल पूछने के बाद पूछा नोकरी कैसे चल रही है, उसका जवाब सुन कर हैरान हो गया “यार बहुत दिन प्राइवेट स्कूलों में धक्के खाए, साले पूरा तेल निकल लेते थे और हाथ में कुछ भी नही देते थे, लेकिन अब मौज ही मौज है कुछ काम नही कोई पूछने वाला नही”| हाँ एक मजबूरी है सुबह स्कूल में हाजरी तो भरनी पड़ती है| मैने मन ही मन सोचा जो लोग इसका शोषण कर रहे थे उनके लिए तो ये आधी रात को भी मेहनत करता था और अब इसके हुनर की परख हुई है तो मेहनत होती नही| योग्य अध्यापक पहले ही कम है और अयोग्य लोग सरकारी अध्यापक बन जाते हैं ……… (जो लोग अपना कर्तव्य पालन नही करते वो मेरी नज़र में अयोग्य ही हैं)| (दोस्तो सारी उंगलियाँ बराबर नही होती, कुछ अध्यापक मेहनती भी होते हैं लेकिन उनका प्रतिशित बहुत कम है)