When kans met raavan after putla dahan in Hindi Comedy stories by सिद्धार्थ शुक्ला books and stories PDF | व्हेन कंस मैट रावण आफ्टर पुतला दहन

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व्हेन कंस मैट रावण आफ्टर पुतला दहन

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अपने जले हुए कपड़े समेटते हुए लंकेश रात के अंधेरे में उस वन से गुज़र रहे थे कि तभी एक अट्टहास वातावरण में गूंज उठा और आवाज़ आयी - "क्या हुआ दशानन प्रतापी, फिर पिट गयी भद्द आपकी ? करवाये आये मुँह काला इस बार तो सुना है हे दशानन की आपके दहन में घासलेट का उपयोग हुआ और जम के शराब चली" ! उस आवाज़ ने मानो रावण की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो।

"बेटा कंस अपनी सीमा में रहो, नही तो कृष्ण ने तो तुम्हारी बाँह उखाड़ी थी हम तुम्हारी गर्दन उखाड़ देंगे" लंकानरेश ने कपड़े झाड़ते हुए कंस की तरफ देखे बगैर ही कहा मगर वाक्य समाप्त होते ही उसकी दृष्टि कंस पर जम गई।

"अरे क्यों क्रोधित हो दशानन आ जाईये, बैठिए इधर थोड़ा जलपान कर लीजिये थक गए होंगे" कंस की आवाज़ में अभी भी शरारत छलक रही थी।

एक गहरी सांस लेते हुए लंकेश वहीं चबूतरे पर बैठ गए जहाँ कंस अग्नि प्रज्वलित कर धूनी रमाये बैठा था। चूंकि दशहरे के आस पास ठंड शुरू हो जाती है, अतः अग्नि का ताप आरामदायक होता है।

"लंकेश , एक बात कहें? अन्यथा तो नही लेंगे?" कंस पूरे मजाक करने के मूड में आ चुका था।

"बोल लो बेटा बोल लो, अब तुम भी बोल लो कोई पीड़ा अपने हृदय में मत रखो" रावण हाथ सकते हुए बोला

"आपकी जगह मैं होता ना तो विभीषण को कबका स्वाहा कर देता, आपकी नाक के नीचे आपके शत्रु की आराधना करता रहा और आप ... विश्वासघाती ने आपकी नाभि का भेद बता डाला नही तो सुना है आपकी मृत्यु असंभव थी" कंस अग्नि कुंड की लकड़ियों को खंगालते हुए बोला और बीच बीच मे रावण की तरफ देख भी रहा था। रावण की नज़र कहीं और थीं

रावण ने कुछ क्षण कंस की ओर देखा फिर कुछ देर विराम के पश्चात कहा "देखो भाई कंस, ऐसा है तुममे और हममे यही फ़र्क़ है । हमे तुम भले ही अहंकारी बोल लो मगर नीच हम नही हैं जो अपने ही भाई या भांजे को मारने की सोचें (रावण की वाणी में कटाक्ष की गंध थी) । मगर तुम्हारी मूर्खता का कोई जवाब नही" हँसते हुए रावण ने बोला , उनके चेहरे पर अचानक रौनक सी आ गयी।

कंस थोड़ा चौका और बोला - "मूर्ख? मैं? वो कैसे लंकाधिपति?

"एक बात बताओ जब तुम्हे पता था कि देवकी की आठवीं संतान तुम्हारा सर्वनाश कर देगी तब काहे दोनों पति पत्नी को साथ मे रहने दिया? अरे मात्र देवकी को नज़रबंद कर देते एक कमरे में और वासुदेव को जाने देते वापिस कहीं भी जाता , मगर नही तुम इतने मूर्ख हो कि बेड़ियों में जकड़ के कारावास में रख छोड़ा अपने बहन बहनोई को वो भी दोनों को एक साथ। राक्षसों की नाक कटाई दी तुमने। हमे देखो बहन की नाक के लिए लंका स्वाहा करवा ली और तुम एक बालक से पिट गए, अरे तुम तो शकुनि से भी गए बीते हो, लाओ जल पिलाओ हमे " रावण विजयी मुस्कान में बोले।

"ये बाद में पता चली हमे, सोचा तो था बात तो सही है आपकी मालिक , मूर्खता तो हो गयी पर क्या करते जीवन ने हम पर इतना अत्याचार किया था कि हमको अत्याचार करने में आनंद आने लगा और बुद्धि का नाश हो गया, दशानन , क्या करते बताइये" कंस मायूस सा हो रावण को जल का गिलास थमाते हुए बोला।

"अरे इमोशनल न बनो, हम भी मज़ाक ही कर रहे हैं, हमे ही देख लो क्या गत हुई है हमारी । अब सोच रहे हैं आराम किया जाए थोड़ा, बहुत हो गया मगर ये धरती पे पाखंडी मनुष्य हर वर्ष हमे जगा देते है हमारा पुतला जलाने , इस मामले में कंस यू आर लकी कृष्ण ने तुम्हे निपटा दिया और तुम्हारा पुतला तो छोड़ो किसी को वो दिन भी याद नही" रावण फिर कटाक्ष के मूड में थे।

"अब आपका कटाक्ष आहत कर रहा है लंकेश" कंस बोला

"हमारी अधिकतर समस्याओं का कारण यही है कंस की हमे अपना मजाक मजाक और दूसरों का मजाक कटाक्ष लगता है, हमे अगर मजाक करने में आनंद मिलता है तो किसी के द्वारा अपने पर किये गए मज़ाक को भी हल्के फुल्के में ही लेना चाहिए" रावण हल्की मुस्कान के साथ बोला।

रावण थोड़ा आगे की ओर झुके और बोले - " वैसे मजाक शुरू किसने की थी? कंस खिसियाई नज़र से रावण की आंखों में देख हँस पड़ा।

"चलो एक फर्स्ट क्लास एस्प्रेसो बना कर पिलाओ हमे" रावण ने चर्चा को दूसरा मोड़ देने का प्रयास किया

कंस वैसे ही बचकानी मुस्कान के साथ खड़ा हुआ और फिर दोनों साथ मे हँसने लगे।

"बट लंकाधिपति, यू हैव टू डू समथिंग अबाउट दिस पुतला शिट" कंस के मुँह से अंग्रेज़ी में निकला।

रावण ने एस्प्रेसो सूंघ कर चेक किया कि वो एस्प्रेसो ही है ना , फिर कहा - "येह, आई विल थिंक अबाउट इट, ओक लेट्स टेक आ सेल्फी।

"याद रखो कंस राक्षस से बड़ा राक्षस का भय होता है इसलिये उसे नष्ट करने में अधिक आनंद आता है । साधारण शत्रु को हराने की कोई फिक्र भी नही करता परंतु शत्रु असाधारण हो तो उसे मारने का मजा सदियों तक उठाया जाता है। और जिस व्यक्ति के द्वारा उसका अंत होता है उसके पीछे भीड़ जमा हो जाती है भीड़ साहसी नही होती उन्मादी होती है और उसे पुतला जलाने का बस एक बहाना चाहिए होता है, इससे उसकी कायरता को छिपने का एक अवसर मिलता है स्वयं कोई राम कृष्ण नही बनना चाहता बल्कि चाहता है कोई और ये श्रम करे और वे बस उनके पीछे चले पूर्ण सुरक्षित" कहकर रावण जैसे ही चुप हुआ, कंस किन्ही विचारों में डूब गया।

समाप्त