लकड़े के इस पल की हालत अब जैसे शुरुआत में थी वैसे नही रही धीरे धीरे कोहरा बढ़ने लगा था करण और रवि अब एक दूसरे को देख कर धीरे धीरे इसपर गुजर रहे थे करीब 10 मिनट तक इस पुराने लकड़े के बने पुल से चलने पर अब तेज हवाएं चलने लगी थी मानो की अब दोनों को यह अहसास होने लगा था कि यह कोई मजाक नही है और जहदीश ने उन्हें यहां भेजा है वह कोई साधरण काम नही था ।हवाओं के तेज झोंके दोनों को पुल से नीचे गिरने के लिए मानो जंग कर रहे थे और दोनों इससे बचते बचते पुल पर आगे बढ़ रहे थे ।
इन हवाओं से करण बचते बचाते एक तरफ जोर से चिल्लाकर रवि को कहता है कि क्या तुमको पीछे जहां से हम इस पूल पर चढ़े थे वो किनारा दिख रहा है ।उसकी बात का जवाब रवि देता है कि आखिर इतनी मुसीबत में भी यह क्या बोल रहा है ।
करण फिर से उसे पूछता है और कहता है कि आगे इतना तूफानी हवाओ के बीच जाना नामुनकिन है तो किनारा पीछे दिखे तो वापस चलते है ।
जिसकी बात सुनकर अब रवि पीछे देखता है तो तूफान में सिर्फ उसे अपने 10 फिट आगे ही लकड़े का पुराना पल मुश्किल से दिखाई दे पाता है । जिसको देखकर उसके चेहरे पर गंभभीर भाव उभर जाते है और वह पलट कर करण को देखता है करण भी उसे देखता है तभी रवि इशारे इशारे में उसको ना कहता है । दोनों अब इस हवाओ के तूफान पर लकड़े के पुल में धीरे धीरे आगे बढ़ने की कोशिश करते है ।
वही झील के किनारे लगे टेंट में जगदीश अपने कम्यूटर की टीवी स्क्रीन पर यह सारी घटनाओं को गंभीरता से देखता है और प्रोफेसर प्राण को बुलाता है ।
जिसे जगदीश यह दिखाकर कहता है इस पूल पर छोटे ड्रोन कैमरा को भेजो और देखो आखिर इतना बड़ा हवाओ का तूफान आया काहा से ।
प्रोफेसर ने वैसा ही किया लगभग 10 से 13 मिनट बाद दूसरे कम्यूटर में दृश्य उभरता है और यह भेजे गए ड्रोन कैमरों का वीडियो होता है जिसमे वह इस लकडी के पुराने पुल का पूरा वीडियो दिखाता है शुरू से झील के उस पार तक पर आश्चर्यजनक इस पूल पर जाने वाले दोनों दोस्त रवि और करण का कही भी चित्र नही दिखाई देता और ना ही इस पुल पर किसी भी तरफ हवाओ का तूफान होता है ।
इस वीडियो को देखकर फ्रोफेसर प्राण तुरंत ही रवि और कारण को डिस्प्ले कर रही स्क्रीन की तरफ देखता है जिसके साथ ही जगदीश भी इस स्क्रीन को देखता है और सामने रखे एक माइक पर करण और रवि को कॉन्टेक्ट करने की कोशिशें करता है जिसका कोई कॉन्टेक्ट नही हो पाता है और कुछ ही सेकंड के बाद कम्यूटर पर आया दोनों का वीडियो का सिंग्नल भी कट हो गया था ।
सिग्नल कट होते ही टेंट में मौजूद सभी लोग एकदम से चुप शांत हो जाते है ।
दूसरी तरफ करण और रवि अब भी इस पुराने पुल पर हवाओं को झेलते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करते है ।
तभी अचानक ही रवि को सामने एक उजाला नजर आता है जैसे इस तेज हवाओं के बीच से उसे कोई रास्ता दिखता लालटेन की रोशनी लर कर खड़ा शख्श । रवि इन तेज हवाओं के कारण बात नही कर पाने की वजह से करण को हाथ से इशारा करता है और करण भी उस उजाले को देखता है दोनों कुछ समय इस पुराने लकड़े के पूल पर रुक जाते है हवाए तेज होने के कारण दोनों ही अपने हाथों से पूल को पकड़े कुछ देर इस रोशनी को देखते है और एक दूसरे को देखते हुए रोशनी की तरफ जाने का फैसला लेते है ।
कुछ चंद मिनटों बाद वह धीरे धीरे आगे बढ़ते है और अब धीरे धीरे हवाएं भी कम हो जाती है तभी रवि जो आगे चल रहा था वह इस पुल का किनारा देख लेता है और करण को इसकी तरफ इशारा करते हुए कहता है ।
देख करण आगे इस पूल का किनारा आ गया चल जल्दी ।करण भी उसकी बातों को सुनकर जल्दी जल्दी कदमो को उठता हुआ पूल के किनारे की तरफ चलाने लगता है ।
दोनों अब किनारे पर थे इस पुल को क्रॉस करने के लिए दोनों पिछले 20 मिनट में हवाओ के तूफान से गुजरे थे और अपने आप को झील में गिरने से बचाने के लिए बडी मेहनत लगी थी हालांकि किनारे की वह अदभुत पीली रोशनी ने उन्हें रास्ता दिखाया पर वह रोशनी किनारे पर नही दिखाई दे रही थी । दोनों थके हारे थे पर उन्हें आगे बढ़ना था जो उन्हें याद था पर करण चाहता था कि इस बारे में वह जगदीश को बताए इस लिए उसने अपना वायरलेस निकाला और कोशिश करने लगा जगदीश से बात करने की पर कोई फायदा नही हो पाया शायद वायरलेस की बैटरी खत्म हो गई थी । उसकि यह सब हरकत देखकर रवि हैरान था ।
क्यो की अभी 20 मिनट ही बीते थे और यह सब जो झील का साधारण पुल उन्हें पहले दिखा था जिसपर वह टेंट के बाद निकले थे तो सुबह थी और अब अंधेरे वाली रात ,वह इतना अजीब कैसे हो गया था । उसने करण को कहा कि शायद मोबाइल से कॉन्टेक्ट करो तो करण उसे कहता है कि करके देखो जिसकी बात पर रवि अपनी जेब से प्लास्टिक में लपेटा मोबाइल निकाल कर चालू कर देता है और जगदीश के प्रोफेसर को कॉल करता है यहां भी एक मुसीबत जैसे ही कोल करता है वैसे ही पहली रिंग के बाद मोबाइल का टावर गायब हो जाता है ,पर एक रिंग बज जाती है ।
अब दोनों का कॉन्टेक्ट जगदीश की टीम से कट चुका था दोनों ही शांत एक दूसरे का चेहरा देख खामोश बैठे थे ।
तभी रवि अचानक ही करण के पीछे फिर से वही पीली रौशनी को देखता है और करण को दिखाता है । दोनों जल्द ही उठाकर रौशनी जहां होती है वहा जाते है ।जल्द ही उन्हें यह समझ आ जाता है कि यह रौशनी कुछ और नही बल्कि एक छोटा सा भौरा था जो अजीब तरीके से इतनी रोशनी को छोड़ रहा था । वह दोनों उस भौरे के पास जा कर गौर से उसे देखते है पर तभी भौरा वापस एक जगह से दूसरे जगह जाने को निकलता है और दोनों उसे जाते देखते है ।
इस भौरे को देख अब करण कहता है क्या यार ये क्या भौरा भी जुगनू के जैसे चमक रहा है । ऐसा तो मैने कभी नही देखा ।
जिसपर रवि कहता है हा यार मेने भी नही देखा इसका साइज भी इतना बड़ा कैसे है जैसे कोई चिड़िया है ।
करण ने रवि को कहा देख कुछ भी हो इसकी लाइट से ही हैम उस पुल से बचे है और अब हमारा कॉन्टेक्ट भी जगदीश और प्रीफेसर से नही रहा ..साला यहां मर वर गए ना तो यही रह जाएंगे वापस मुम्बई तो क्या टेंट तक भी नही पहुँचेगे ।
करण।
करण हा यार बेफजूल खर्चा और दिखावे के चक्कर मे साला कर्जा हो गया नॉकरी नही । और उस कर्जे को चुकाने इस जगदीश की बातों में आ गए ।
दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी वह भौरा वापस वहां से गुजरता है जिसे देखकर दोनों इस भौरे का पीछा करने का प्लान करते है । और उस भौरे के पीछे चलने लगते है ।
काफी देर चलने के बाद अब अंधेरा कम हो रहा था अबतक दोनों सिर्फ भौरे की पीली रोशनी के सहारे चल रहे थे पर अब सुबह जैसे सूरज उगता है वैसी ही रोशनी आसमान में थी रात खत्म हो रही थी और यहां दिन हो रहा था । पहली बार दोनों ने इस सुबह की उजाले में आसपास देखा तो अंदर से सहर उठे दोनों के हाथ पैर बिल्कुल ठंडे होने लगे ।
यह एक जंगल था बड़े बड़े दरख़्त सीधे आसमान में समाए हुए अजीब किस्म के इन पेड़ों में तनो पर गाढ़ी कत्थई कलर की चिपचिपी छाल से कुछ द्रव्य बाहर बह रहा था ।
जिसे करण हाथ लगाने ही वाला था तभी रवि उसे रोक देता है और कहता है कि पता नही क्या है और कैसा ये पेड़ है जहरीला हुआ तो लग जायेगी । उसकी बात सुनकर करण हाथ तुरंत अपने वापस ले लेता है और दोनों भौरे के पीछे जाते है तभी इस समय सुबह होने के साथ हल्की सूरज की कोमल किरण इस जंगल मे कहा जाती है जिसके कारण अब वह भौरा एक डाली पर बैठ जाता है और अपनी आँखें बंद कर लेता है जैसे ही वह आँखे बंद करता है वैसे ही उससे निकलने वाली रोशनी भी अब खत्म हो जाती है यह देख दोनों आश्चर्य से उसे देखते है और रवि बोल पड़ता है ।
क्या बे अब इसका भी कॉन्टेक्ट खत्म क्या उसकी बात को सुनकर करण उससे कहता है कि नही यार ये हो सकता है कि रात में ही उड़ाता हो अभी दिन हो गया है इस लिए शायद यह यही रहेगा । जिसपर रवि परेशान हो कर बोलता है पागल है क्या ?हम लोग अभी आधे एक घंटे पहले सुबह निकले है पुल पर आते आते रात हो गई और अब इस भौरे के पीछे चलते चलते दिन क्या बकवास है । करण भी अब इस बात से परेशान हो जाता है और कहता है शायद ये खाजने वाली बात रवि सही है तुझे याद है प्रोफेसर ने कहा था कि जब तुम लोग कुछ समझ नही पाओगे की समय क्या है और कॉन्टेक्ट नही होगा तो !! रवि बीच मे बात काटकर याद करते हुए तो तो बेग में रखी वो कागज की बोतलें में से प्राण नामकी बोतल को निकाल ।
उसकी बात सुनकर तुरंत ही बेग नीचे रखकर करण बेग से एक काच की डिब्बे जैसी बोतल को निकाल लेता है और उसमें रखे पेपर को देखते है करण बोतल का ढक्कन खोलने जा रहा होता है तभी रवि उसे रोक कर बोतल के पीछे लिखे कुछ शब्द को पढ़ने के लिए कहता है । अब दोनों ही बोतल के पीछे लिखा शब्द पढ़ते है जिसपर लिखा होता है इस बोतल को खोलोगे तो लिखा सब जल जाएगा इस लिए बोतल ना खोली जाए ।
दोनों बोतल को नही खोलते ओर बोतल में अंदर रखे पेपर पर पढ़ते है जिसमे प्रोफेसर ने लिखा था कि शायद इस खाजने के लिए आप जो गए हो वहां से वापस नही आ सकोगे पर अगर आप अपनी दिशा और बेग में रखे चमड़े के एक ऐतिहासिक नक्शे की मद्दत से उस जगह तक पहुच जाओगे जहां से वापस आना संभव है । हो सकता है कि यह समय यात्रा के तरंगों से निकलने का कोई यंत्र या और कोई जरिया वहां हो । कोशिश यह रहे कि जहां जाए वही के हो कर आगे बढ़े । आपका प्रोफेसर।
यह सब पढ़कर अब करण प्रोफेसर को खूब गाली बकता है और कहता है अब ये फालतू क्या लिखा है साले दुनिया 21 वी सदी में है और ये बेवकूफ इतिहास समय यात्रा की लगा रहा है । जब करन यह बोल रहा था तब रवि अपनी बेग से एक चमड़े का नक्शा बाहर निकाल लेता है और उसमें देखता है जिसमे पूल के बाद का नक्शे में मुर्दो का जंगल नाग पहाड़ी और देवताओं का नगर के बाद तिलिस्मी दरवाजा का नक्शा दिखाया गया था ।
दोनों ही अपनी आँखें नक्शे पर गड़ा देते है और सूरज के दिशा जैसे नक्शे में है वैसे देखते हुए एक दूसरे को देखकर फटाफट बेग में बोतल नक्शा भर कर जंगल से तेजी से बाहर निकलने के लिए व्हाल देते है इस वक्त दोनों के चेहरे पर पसीना भी साफ दिखाई दे रहा था ।क्यो की वह जिस जंगल में थे वह मुर्दो का जंगल था और यहां से आज तक कोई जिंदा जंगल पार कर नाग पहाड़ो तक नही पहुचा था ।
चलते चलते इस समय रवि को ना जाने क्या सूझी वह जंगल के एक पेड़ के नीचे बड़े से पत्थर पर बैठ गया जहां करण भी खड़ा हो गया ।
रवि को बैठा देख करण ने कहा अब क्या हुआ तुझको भाई चल यहां से जल्दी ।
रवि ने कहा अबे रुक यार मुझे सिगरेट पीने की तलब लगी है ।
कारण -क्या सिगरेट पागल है क्या अब यहां सिगरेट लाने को प्रोफेसर ने माना किया था बेग में 5 पैकेट थे उसको भी सालो ने निकलवा दिया था । बस भिड़ू अपने मन मे ही सोच ले तू सिगरेट पी रहा है और अब चल ।
रवि -अबे पांडु लाल करण बेग से निकलवा दिए ना मेरे जैकेट के अंदर के जेब मे 4 मेने छुपाये थे वो ।
करण - वाह गुरु कुछ तो अच्छा हुआ है आज मेरे को भी दे ।
दोनों सिगरेट को निकालकर मस्त जलाते है और एक एक कश लगाते है तभी अचानक ही जिस पेड़ के नीचे चट्टान पत्थर पर दोनों बैठे थे वह कापने लग जाता है जिसकी कपकपाहट से दोनों घबराकर तुरन्त ही वहां से हट जाते है और उस पत्थर को घूर कर देखने लगते है ।
जिसके बाद जो होता है वह तो बड़ा ही डरावना होता है उस पेड़ की छाल के बीच की दरार से चिपचिपा गाढ़े रंग का पानी अब बहाना शुरू हो गया था जो पहले थोड़ा थोड़ा और फिर अचानक ही उसका धार मोटी और तेज हों जाती है जिसको देख कर करण रवि की तरफ देखता है और सिगरेट की तरफ इशारा करते हुए धीरे से कहता है -तो इस लिये साले फ्रोफेसर ने सिगरेट के लिए मना किया था ।
तभी रवि सामने पेड़ की ताने पर देखता है तो उस पेड़ की छाल के बीच से अब एक बड़ी दरार दिखाई देती है और यह दरार अब बढ़कर इतनी बड़ी हो जाती है कि पेड़ का ताना बीच से लगभग आधा खुल जाता है और इसके बाद दोनों जो देखते है दोनों के होश उड़ जाते है इस दरार के बीच एक गढ़े कथई कलर के लिक्विड चिपचिपा में एक मनुष्य की समूर्ण नग्न लाश होती है जो किसी बुड्ढे की लगती है और इस चिपचिपी तरह से दिखाई देती है कि अब तब वह जाग जाएगा । जिसे देखते ही रवि करण दोनों अब तेजी से वहां से भागने लगते है इस भागने के चक्कर मे सिगरेट जो दोनों पी रहे थे वह जलती सिगरेट भी वही फेक देते है जिसका असर यह होता है कि अब पूरा जंगल जिसमे लगे पेड़ की छालो से वही सब होने लगता है ।लगभग पूरा मुर्दा जंगल अब अपना असली चेहरा दिखाने लगता है । रवि करण दोनों अब जितना हो सके उतनी तेजी से दौड़ लगा देते है पर यह दौड़ इस घने जंगल मे किसी काम नही आ पाती । अब हालात यह होती है कि इन पेड़ों से निकलने वाला वह रास इनपर भी गिरने लगता है जंगल मे जगह जगह यह पेड़ अब फटने लगे और उसके अंदर से इसी तरह औरत ,मर्द ,बच्चे ,बुढ़े की लाशें बाहर दिखाई देने लगी थी ।
लगातार दौड़ने से अब दोनों ही थक रहे थे पर यह जानलेवा जंगल था जिसे मुर्दो का जंगल बताया गया है इस जंगल मे दूर दूर तक यही पेड़ थे और यही मुर्दे । अब दोनों के अनदर की हिम्मत जवाब देने लग गई थी तभी रवि ने रुकर साँस ली और करण को भी रोक कर सास लेते हुए कहा - अबे य सब क्या है में और नही भाग सकता यार ..करण ने भी उसकी बात सुनकर आस पास ध्यान दिया तो उसे पता चला कि यह सिर्फ वही पेड़ो में ही है कोई भी मुर्दा उनका पीछा नही कर रहा है । उसने अपने पीछे भी देखा तो वहां कोई नही था ।
वह रवि को कहता है यार भागकर कोई मतलब नही हमारा तो पीछा कोई भूत प्रेत नही कर रहा वह रवि के ठीक सामने खड़ा था तभी रवि अपने आखों से उसे डरते हुए पीछे देखने के लिए कहता है और रवि अपनी गर्दन घुमाता है ।
उन दोनों के पीछे 20 से 25 मुर्दे धीरे धीरे खामोशी से आते दिखाई देते है जिसके बाद दोनों फिर से अपनी फूल स्पीड में अंधधुन दौड़ लगा देते है । दौड़ते समय अचानक ही करन का पैर फिसलता है और पेड़ो से निकला चिपचिपा पदार्थ के कारण करण स्लिप हो कर तेजी से जंगल के किनारे एक घास के मैदान में फिसलने लगता है उसे बचाने अब रवि भी उसी दिशा में छलांग लगा देता है पर कोई फायदा नही होता रवि भी फिसलने लगता है । इस घास का मैदान ऊपर से नीचे की तरफ ढलान जैसा था इस लिए इनकी फिसलने की स्पीड भी तेज हो गई थी बीच बीच मे कुछ झाड़ियों से टकराते घास को नाकाम पकड़ने की कोशिश करते दोनों तेजी से फिसल रहे थे ।और अचानक ही यह फिसलन का भी अंत आ गया करण जो पहले फिसला था उसने देखा कि अब मैदान खत्म हो गया है और वह आगे बड़ी सी एक खाई दिखाई दे रही है जिसमे वह गिरने वाला है उसके चेहरे पर मौत की हवाइयां उड़ाने लगी पर जैसे तैसे उसने कुछ झाड़ झुपड के लकड़ियों को पकड़ते पकड़ते अपनी स्पीड काम की थी और एन खाई में गिरने से एक फुट पहले ही वह रुक गया था ।रुकने के बाद वह खड़ा होता है आसमान की तरफ देखकर भगवान को थेँक्यु कहता है और पलट कर रवि को देखता जो तेजी से फिसल कर उसके पास ही आ रहा था जिसे वह कह रहा था कि रवि स्पीड कम कर खाई है ।पर रवि को आवाज सुनाई नही देती ओर वह तेज गति से स्लिप होते हुए करण से जा टकराता है जिससे करण और रवि सीधे 30 फिट गहरी खाई में गिर जाते है जहां इन जंगल के अंदर से एक झरना बाहर की तरफ इसी खाई में बह रहा था ।
दूसरी तरफ जगदीश परेशन हो उठा था दोनों का कोई पता नही चल पा रहा था कई जगदीश के लोग अब इस झील और आसपास के जंगल मे दोनों की तलाश कर रहे थे ।प्रोफेसर जो अब भी एक पुराने पंचांग को हाथ मे लेकर अपनी डायरी में कुछ शब्द लिख रहा था ।
जगदीश प्रोफेसर को कहता है कि चाहे जो हो जाये प्रोफेसर इन दोनों का लोकेशन मुझे दो ।
जिसके जवाब में फ्रोफेसर प्राण कहता है कि शायद ये दोनों किसी टाइमलाइन में इंटर कर गए है और जब तक वह इसके बाहर नही निकलते तब तक हमे इंतजार करना होगा
उसकी बातों को सुनने के बात जगदीश पूछता है कि आखिर कब तक इंतजार करना होगा
प्राण कहता है कि शायद कुछ घण्टे या कुछ दिन या महीने भर का भी हो सकता है इंतजार ।
जगदीश क्या ? प्राण आगे बताता है कि जब तक नक्शे में बताए गए तिलिस्मी दरवाजे तक नही पहुचते जिसके बाद हम उनसे कॉन्टेक्ट कर पाएंगे ।
एक बेहद ही घने जंगल के बीच गिरते झरने की आवाज के बाद शांत पानी की नदी में अचानक ही अंदर से रवि बाहर निकलता है और तेजी से अपनी सास को खिंचता है इसके तुरंत ही उसके आगे पानी से करण भी बाहर आता है और पानी मे सास ना ले पाने के वजह से वह भी तुरंत हवा छोड़ता है । दोनों जैसे तैसे पानी मे तैरते हुए एक किनारे पहुचते है और किनारे पर जा कर पीठ के बल सो जाते है दोनों थक गए थे । थोड़ी देर तक ऐसे ही पड़े रहने के बाद दोनों उठकर बैठ जाते है और मुर्दा जंगल जो अब झरने के उसपार था उसे देखते है तो वहां जंगल के छोर पर दूर कई मुर्दे खड़े उन्हें दिखाई देते है ।
और दोनों जैसे ही उन्हें देख कर पलटे वैसे ही दोनों के गले पर चमचमाती तलवारे अचानक ही रख दी जाती है इससे पहले दोनों कुछ भी समझे तलवारे रखने वाली दो 6 फुट की औरते उन्हें उनके साथ चलने का इशारा करती है । हालांकि रवि और करण कुछ समझे नही थे पर इन औरतो को जब उन्होंने देखा तो वह पूरी तरह से बिना कपड़ों की थी इनके शरीर पर छाती तथा निचले भाग पर सिर्फ काले रंग से किसी साँप जैसे विशाल जानवर की पेंटिंग की गई थी आखों में मानो सुरमा जबरन भरा गया था जिससे आँखे भी अजीब दिखाई दे रही थी और बालों को किसी वनस्पति के बनाये रिबिन से बांध कर वह बहौत सुंदर पर इतनी ही खतरनाक भी दिख रही थी ।
उनके इशारे से दोनों अब चुप चाप आगे आगे और वह औरतें उनके गर्दन पर तलवार लगाकर उनके पीछे पीछे बिना बात किये पहाड़ो के मैदान से पहाड़ो की दिशा में चलने लगे थे ।