Jimi, miki aur nighr ki kahaani in Hindi Motivational Stories by Neerja Dewedy books and stories PDF | जिमी, मिकी और नाइट की कहानी

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जिमी, मिकी और नाइट की कहानी

जिमी, मिकी और नाइट की कहानी

नीरजा द्विवेदी

बच्चों अब मैं सन 1964 की अपने पालतू कुत्तों की कहानी सुनाती हूं. उस समय मेरे पापा आगरा में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे और मेरी शादी नहीं हुई थी. उस समय हमारे पास जिमी और मिकी नामक दो कुत्ते पले थे. जिमी की ऊंचाई मुश्किल से सात या आठ इंच और लम्बाई एक फुट थी. एकदम काला रंग था. उसका मुंह चौकोर आकार का था और बहुत बदसूरत था. उसकी दाढ़ी में बकरों जैसे छितराये हुए बाल थे. उसके पिछले पैर टेढ़े-मेढ़े थे, खड़े होने पर व्हिस्की के गिलास की आकृति के हो जाते थे. आगे के पैर अर्ध गोलाकार थे. छोटी सी पूंछ थी जैसे छिपकली की आधी पूंछ कट जाने पर होती है. बाल छोटे-छोटे काले थे. कान न लम्बे थे न छोटे. आवाज़ बहुत तेज़ और कर्कश थी. जब वह गुर्राता तो ऐसा लगता जैसे पानी खौल रहा है. उसका गुस्सा बहुत भयंकर था. डाँटने पर भी वह अपना गुस्सा खीसें निपोरकर, दांत निकाल कर दिखाने की कला में पारंगत था. उसकी बदमिजाज़ी के कारण मैं और मेरा छोटा भाई राजीव उसकी ओर अधिक ध्यान नहीं देते थे पर मेरी छोटी बहिन सुषमा का वह लाड़ला था. सुषमा ही जिमी को नहलाना-धुलाना, टहलाना और खाना खिलाना बड़े प्यार से करती थीं और उसे गोद में लटकाये फिरती थीं जिससे उसके दिमाग सात आसमान पर पहुँच गये थे. वह अपने को शाहंशाह से कम नहीं समझता था और किसी पर भी गुस्सा दिखाने का अपना अधिकार समझता था.

एक बार हम लोग दातागंज गये तो जिमी भी हमारे साथ गया. उसकी हर वस्तु को शंका से देखने की आदत थी और इसके लिये वह जगह-बेजगह सी. आई.डी. की तरह जांच करने लग जाता था. एक बार ऐसा हुआ कि उसने गौशाला में लगे बर्र के छत्ते की खानातलाशी प्रारम्भ कर दी. अब क्या था बर्रों ने उसे उसकी गुस्ताखी की सजा देने के लिये उसकी नाक और मुँह में काट लिया. अब तो जिमी चिचियाते हुए बेतहाशा दौड़कर आया और सुषमा की गोद में चढ़कर आँसू बहाने लगा. दो दिन पूर्व जिमी का पेट खराब हो गया था तो सुषमा ने यह सोचकर कि उसके पेट में दर्द होगा उसे सोडा बाई कार्ब पानी के साथ पिला दिया. जिमी सुषमा की गोद में घुसा जा रहा था. इसी समय मेरा छोटा भाई राजीव हँसते हुए अंदर आया और बोला—‘’मैं जिमी को मना करता रहा पर यह माना नहीं. बार-बार बर्र के छत्ते में नाक डालकर सूंघ रहा था. जब बर्र ने नाक पर काट लिया तो बिलबिलाते हुए भाग आया. अब जिमी की नाक ध्यान से देखी गई और बर्र का डंक निकाला गया. जिमी की दशा देखकर सबको उस पर तरस आने लगा. उसे अमृतधारा पिलाई गई और नाक पर लगाई गई. अब जिमी को थोड़ी राहत मिली पर उसकी नाक तो सूजकर पकौड़ा बन गई और उसकी बदसूरती में इज़ाफा करने लगी.

जिमी जब हमारे पास आया तो उसकी आयु एक साल थी. मिकी कुछ माह बाद आई तो गोल-मटोल बच्चा थी. जिमी की सूरत और मिकी की सूरत में दिन-रात या काला-सफेद का अंतर था. मतलब यह है कि जिमी जितना बदसूरत था मिकी उतनी ही सुंदर थी. उसका रंग काला, कत्थई और सफेद का मिला-जुला था. बाल जिमी की अपेक्षा लम्बे थे. चेहरा बहुत सुंदर, भोला सा था. आँखें बड़ी-बड़ी, कजरारी थीं. मिकी की पूँछ लम्बी थी और बड़े-बड़े बालों वाली झबरी थी. जब वह चलती तो उसकी पूँछ जंगली मुर्गे जैसी खड़ी हो जाती थी. पिछले पैर गोल-मटोल थे और चलते समय उनमें प्राचीन काल की दक्षिण भारतीय सुंदरियों जैसी माँसलता, लचक और नज़ाकत थी. हमने उसके पैरों में घुँघरू बांध दिये थे अतः जब वह उछल-उछल कर चलती तो बिल्कुल छम्मकछल्लो लगती.

मिकी सबकी प्यारी थी परंतु मेरी बहिन सुषमा उसकी एक आदत से उससे बेहद चिढ़ जाती थी. यदि कहीं दूर पर भी पटाके चलते या आतिशबाज़ी होती तो मिक्की इतना डर जाती कि बुरी तरह चीखने लगती और किसी भी तरह चुप न होती. सुषमा उसे प्यार करती, अंदर कमरे में ले जाती पर मिकी थी कि आँख बंद करके ऐसे चीखती रहती जैसे उसके सामने भूत खड़ा हो. सुषमा क्रोधित होकर उसके ऊपर हाथ भी उठा देती पर सब बेअसर रहता. एक बार दीवाली की रात थी तो मिकी किसी तरह चुप नहीं हो रही थी. कहीं एक पटाका छूटता तो मिकी का कोहराम शुरू हो जाता. तंग आकर सुषमा और राजीव ने मिलकर मिकी का डर कम करने का उपाय सोचा. उन्होंने मिकी की पूँछ में छोटे पटाकों की झालर बांध कर आग लगा दी. पटाके थमे तो मिकी बेहाल होकर गिर पड़ी. मुझे नहीं मालूम कि इस उपचार से मिकी का भय कम हुआ कि नहीं पर यह मालूम है कि हम तीनों पर मम्मी-पापा की कस कर डांट पड़ी थी. हमें भी अपनी गलती का ऐहसास हुआ और हमने कसम खाई कि अब किसी जानवर को नहीं सतायेंगे.

मेरे विवाह के पहले पापा के एक मित्र ने अपने एक स्पेशल ब्रीड के अल्सेशियन कुत्ते के जोड़े के पिल्ले को बड़ी तारीफ करके पापा को भेंट किया. इसके माँ और बाप दोनों ने ही आल इंडिया डौग कम्पटीशन में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया था. मम्मी की इच्छा न होने पर भी हम तीनों की इच्छा के आगे उन्हें झुकना पड़ा और पिल्ला पालने का निर्णय लेना पड़ा. वह हल्के काले रंग का था. नाम रक्खा गया—नाइट. उसका मुँह बहुत बड़ा, लम्बा था. पैर भी अपेक्षाकृत बहुत लम्बे-लम्बे थे. शरीर दुबला-पतला था. उसकी दुम पतली और लम्बी थी जिसके ऊपर छोटे-छोटे बाल थे. नाइट जब हमारे पास आया तो एक माह का बच्चा था पर कद में जिमी और मिकी से दुगना ऊंचा था. जिमी कद में बहुत छोटा पर आयु में सबसे बड़ा था अतः उसने पहले मिकी पर अपना रौब जमा लिया था और अब नाइट पर दबदबा जमाने की कोशिश में उसे बिल्कुल लीचड़ बनाये दे रहा था. नाइट के मां-बाप के किस्से मशहूर थे कि वे इतने बहादुर थे कि उन्होंने शेर को भगा दिया था पर उनका बच्चा तो जिमी के सामने आँख उठाने की हिम्मत नहीं करता था. नाइट अपना खाना खाने चलता तो जिमी उसे डाँट देता. नाइट को भूख ज्यादा लगती थी अतः वह अपना खाना शीघ्रता से खत्म कर लेता था. जिमी को भूख कम लगती थी और वह थोड़ा खाना खाकर छोड़ देता था. हम जिमी का खाना नाइट की तरफ बढ़ा देते थे. हमें पता ही नहीं चलता और जिमी धीरे से नाइट की ओर खीसें निपोरकर दांत दिखा देता. नाइट जिमी से इतना डर जाता कि वह एक ओर हट जाता. जिमी ने अपना खाना नाइट को न खाने देने का अनोखा तरीका निकाल लिया. बचे हुए खाने के कटोरे को जिमी क्यारी में खींच कर ले जाता और कटोरे में नाक से खोद कर मिट्टी डालता. बीच-बीच में चख कर देखता कि खाना खाने लायक है या नहीं. जब उसकी समझ में खाना खाने लायक न रहता तब वह वहाँ से हटता.

एक और मनोरंजक घटना मुझे याद आ रही है. नाइट छे माह का हो चुका था और उसका कद आम अल्सेशियन कुत्तों से काफी ऊँचा हो गया था. जिमी का दबदबा उसके ऊपर अभी भी कायम था. उस समय मेरी शादी हो चुकी थी और हम दोनों पति-पत्नी भी पापा के पास आये थे. गर्मी के दिन थे. आँगन में चारपाई लगी थीं. पापा जल्दी सोते थे और प्रातः जल्दी उठते थे. हम दोनों सुषमा और राजीव के साथ बैठे गप्पें मार रहे थे. जिमी का खाने का कटोरा हमारे समीप ही रक्खा था अतः वह अपने खाने में मिट्टी डालकर उसे अभक्षणीय नहीं बना पाया था. नाइट ने हमारे पास आकर जिमी का खाना खा लिया. जिमी उस समय मन मसोस कर चुप रहा. कुछ देर में नाइट ने जिमी के साथ खेलने का मन बनाया. अब क्या था जिमी का क्रोध उबल पड़ा और वह नाइट पर खौंखिया कर झपट पड़ा. इतना बड़ा कुत्ता जिमी के डर से चिल्लाकर भागा और दौड़कर पापा की गोद में घुस गया. पापा चौंक कर जाग गये और डाँट कर नाइट से बोले—“इतने बड़े हो गये और उस पिद्दी से डर गये.” लगता है कि उस दिन नाइट को शर्मिंदगी महसूस हुई और उसे हनुमान जी की तरह अपनी शक्ति का ज्ञान हुआ. इसके दो या तीन दिन के बाद की बात है जब हम सब लोग आँगन मे बैठे थे. जिमी का बचा हुआ खाना हम लोगों की कुर्सी के पास रक्खा था. जिमी एक ओर खड़ा था और नाइट उसके सामने की तरफ खड़ा था. जिमी सशंकित था कि नाइट उसका खाना न खा ले. हम लोग चुपचाप देख रहे थे. जिमी ने हमारी दृष्टि बचा कर नाइट की ओर गुस्से से देखा. नाइट ने अपनी निगाह दूसरी ओर कर ली. अब जिमी मुड़कर उसके सामने पहुँचा और उसे डराने की कोशिश की. नाइट ने ध्यान नहीं दिया. इस पर जिमी का पारा चढ़ गया और वह खीसें निपोरकर, दाँत निकालते हुए उसे डराने के लिये धीरे से गुर्राया. शायद पापा की डाँट का असर हुआ या नाइट को हनुमान जी की भांति अपने बाहुबल का अनुमान लग गया कि उसने जिमी को गर्दन से पकड़

कर झिझोड़ डाला. उस दिन जिमी को समझ में आ गया कि अब उसकी सत्ता खत्म हो गई है और उसने नाइट से पंगा लेना बंद कर दिया.

जिमी सुषमा का बहुत लाड़ला था. जब सुषमा का विवाह हुआ और वह अपने ससुराल गई तो इतना मम्मी नहीं रोईं जितना जिमी रोया. उसने रो-रो कर हंगामा कर दिया और अन्न का एक दाना मुँह में नहीं डाला. जब जिमी की दो दिन तक भूख हड़ताल चलती रही तो हार कर पापा ने जिमी को एक आदमी के साथ सुषमा की ससुराल में भेज दिया.

जिमी सुषमा के पास दस साल जीवित रहा. होम्योपैथिक दवा के कमाल से उसने लम्बी आयु प्राप्त की. वह इतना बुड्ढा हो गया था कि आखिरी दिनों में बिल्कुल अंधा हो गया था. एक दिन अपने वृद्धावस्था के कष्टों से मुक्ति पाने के लिये जिमी न जाने कहाँ चला गया. आज भी सुषमा यह सोच कर दुखी होती हैं कि इतने प्यार से पाले गये कुत्ते के पार्थिव शरीर की न जाने क्या गति हुई होगी

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