Kashish in Hindi Love Stories by Jyotsana Kapil books and stories PDF | कशिश

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कशिश

" कोशिश करती हूँ आने की। "

" कोशिश नही नीरा, तुझे आना है बस, कैसे भी। "

" हूँ, देखती हूँ ।"

" अरे ! फिर देखती हूँ , तुझे आना है मतलब आना है। कोई बहाना नही चलेगा । "

" हूँ, बाय। " उसने फोन रख दिया। दिलो दिमाग में गहरी उथल पुथल मच चुकी थी। अब आगरा जाना पड़ेगा । वह इस शहर में जाने से जितना बचना चाह रही थी अब जाना उतना ही ज़रूरी हो गया था। उसका कोई बहाना अब नहीं चलने वाला था। मधुर कुछ सुनने को तैयार नही थी। उसकी भतीजी की शादी थी, ऐसे में उसकी प्रिय सखी न आये ये कैसे हो सकता था भला। बरसों बाद तो मुलाकात का एक मौका मिला था। ऊहापोह की स्थिति में नीरा अँगुली में पड़ी अँगूठी से खेलने लगी।

नाज़ुक सी सोने की अँगूठी, जिसमे बीच में गार्नेट और उसके इर्द गिर्द जर्किन के नग झिलमिला रहे थे। ये अँगूठी , जो कभी अविनाश ने दी थी उसे तोहफ़े में। जिसे वह शादी के इतने साल बाद भी उतार न पाई थी। किसी ने अगर कहा भी कि वह सगाई की अँगूठी क्यों नही पहनती तो उसने कह दिया की सगाई वाली अँगूठी डायमण्ड की है , और वह अक्सर अँगूठी उतारकर इधर उधर रख देती है। ऐसे में अगर खो गई तो नुकसान हो जाएगा। जबकि यह हल्की है और इसे बरसो से पहनने की आदत है उसे।

उसके ज़हन में वह आकर्षक चेहरा उभरने लगा। जिसकी याद आज भी नासूर बनकर उसके दिल में पल रही थी। लम्बा कद, गोरा रंग, सौम्य ,शालीन व्यक्तित्व। अविनाश उस बैच का सबसे हैंडसम लड़का था। बहुत कम बोलता था, अक्सर डायरी में न जाने क्या लिखता रहता था। कॉलेज में जब उसने दाखिला लिया तो जिस शख़्स ने सबसे पहली बार उसका ध्यान आकर्षित किया था वो अविनाश था। कई बार नीरा की उसपर नज़र पड़ी तो उसे अपनी ओर देखते पाया। निगाह मिलते ही झेंप कर वह दूसरी ओर देखने लगता।

नीरा दुबली पतली आकर्षक युवती थी,गेहुँआ रंग, कटे बाल, स्मार्ट ,भव्य व्यक्तित्व ,उसका खुश मिजाज़ व्यवहार, हर बात पर खिलखिलाना किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। कॉलेज में आते ही उसकी काव्या से दोस्ती हो गई थी। देखने में काव्या गोरी रंगत की सामान्य सी दिखने वाली युवती थी।

उस दिन वे दोनों खाली समय में महाविद्यालय परिसर में साथ बैठी गप्पें मार रही थी। इधर उधर की बातें करते हुए चर्चा का विषय अपने सहपाठी हो गए। कौन किसमे रूचि लेता लग रहा है, कौन लल्लू लगता है तो कौन बहुत डैशिंग, यही सब बातें हो रही थीं। तभी काव्या ने शर्माते हुए बताया कि उसे भी कोई पसंद आ गया है। बहुत पूछने पर बोली कि उसे अविनाश बहुत पसंद है। वही लड़का जो उस दिन ब्लू जीन्स और ब्लैक शर्ट में कॉलेज आया है।

सुनकर नीरा का मन आहत हो उठा , जैसे उसके अधिकार क्षेत्र में कोई और अनधिकृत रूप से प्रवेश कर रहा हो । तभी काव्या ने उसके समक्ष प्रस्ताव रखा कि वह अविनाश के साथ उसकी दोस्ती करवा दे । नीरा असमंजस में पड़ गई। काव्या से कैसे कहती कि अविनाश तो उसके हृदय में धड़कन बनकर धड़क रहा है। पल भर सोचती रही फिर उसने निश्चित किया कि वह काव्या से मित्रता कर लेने का प्रस्ताव लेकर उसके पास अवश्य जायेगी। स्वयम के लिये तो कुछ कहने का प्रश्न ही नही उठता था। उन दिनों लड़कियाँ अपने हृदय की बात इतनी आसानी से जाहिर ही कहाँ कर पाती थीं। उसपर नीरा तो अन्य युवतियों से भी बढ़कर संकोची थी।

तभी काव्या ने उसे चुटकी काटी तो वह चौंक पड़ी। सामने से अविनाश निकल रहा था। नीली जीन्स और उसपर काली शर्ट उसके उजले रंग पर बहुत फ़ब रही थी । तभी न जाने किन ख्यालों में गुम, वह रुक गया। जेब से उसने नन्ही सी डायरी और पेन निकाला और कुछ लिखने लगा। तभी ' एक्सक्यूज़ मी ' कहती नीरा तेज कदमो से उसकी ओर बढ़ी। अविनाश ने निगाह उठाई तो नीरा को देखकर उसके चेहरे पर पल भर को एक चमक सी दौड़ गई। उसने कहा कि उसकी एक मित्र उससे मित्रता करना चाहती है। जब उसने नाम जानना चाहा तो नीरा ने काव्या की इशारा कर दिया। अविनाश ने उधर देखा तो उसका चेहरा एकदम भावहीन था। नीरा समझ नही पाई की वह क्या सोच रहा है। जब उसने पुनः प्रश्न किया तो अविनाश ने प्रस्ताव पर सहमति की मुहर लगा दी। नीरा को महसूस हुआ जैसे हृदय में कहीं कुछ चुभ सा गया है । उसे न जाने क्यों आशा थी कि शायद वह अस्वीकार कर देगा। परन्तु उसकी सहमति उस उम्मीद पर तुषारापात कर गई थी। फिर कुछ सम्हलकर उसने अपना परिचय दिया, की उसका नाम नीरा है। तो वह बड़े ही ख़ुशगवार ढंग से मुस्कुराया और बोला वह उसे जानता है। नीरा को उसका जवाब बड़ा अच्छा लगा। वह शरारत से मुस्कुराई

" जानकर अच्छा लगा कि आप कम से कम मुझे जानते हैं। "

" हाँ कुछ लोग बहुत जल्दी सबका ध्यान अपनी ओर खींच पाने में सक्षम होते हैं "

" ओह, अपनी ये क्वालिटी तो मुझे पता ही नही थी। " जवाब में अविनाश हँस पड़ा।

" ओके, चलता हूँ, सी यू टुमारो " कहकर वह चल पड़ा।

" अरे काव्या से हैलो तो कह दीजिये। "

उसने कहा तो अविनाश ने एक बार अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टि डाली फिर उसके साथ काव्या की तरफ बढ़ गया। थोड़ी देर वे तीनों आपस मे बातें करते रहे फिर अविनाश चला गया।

" तू सच में बहुत अच्छी सहेली है " अविनाश के जाते ही काव्या उसके गले से लग गयी। इसके बाद चल निकला बातों का सिलसिला । मौका मिलते ही वे तीनों बातें करने बैठ जाते, अविनाश को शेरो- शायरी के साथ छोटे- छोटे गिफ्ट्स ,कार्ड्स देने का बहुत शौक था। अक्सर वो काव्या को कार्ड और गिफ्ट देता था, पर नीरा को हैरानी होती जब साथ में उसके लिए भी कार्ड और गिफ्ट होता था। बातों का मौका बहुत कम मिलता था इसलिए दिल की बात कहने के लिए ख़त का सहारा लिया जाता। अब तक सभी सहपाठियों के बीच काव्या और अविनाश की ही चर्चा थी। काव्या के साथ वह उसे भी ख़त लिखा करता था। नीरा सोचती थी कि उसकी सखी पर क्या गुज़रती होगी ये सब देखकर, बेशक अच्छा तो नहीं लगता होगा, पर काव्या ने ऐसा कुछ कभी ज़ाहिर नही होने दिया था।

उस दिन पूरे सप्ताह भर की अनुपस्थिति के बाद नीरा कॉलेज गई तो साईकिल स्टैंड पर अविनाश ने उसे रोक लिया और न आने का कारण पूछने लगा। नीरा ने बताया कि स्वास्थ्य ठीक न होने कारण वह नही आ पाई थी। कुछ देर इधर उधर की बात करके उसने बताया कि एक दिन पहले बात करते हुए काव्या ने उसे कहा है कि वह अविनाश से प्रेम करने लगी है। नीरा यह सुनकर चौंक पड़ी। क्योंकि काव्या ने उससे तो कुछ नही कहा था इस विषय मे। अविनाश काफ़ी गम्भीर था और बताने लगा कि उसने तो इस विषय मे अब तक कुछ सोचा नही है। वह उससे सुझाव माँगने लगा कि इस स्थिति में उसे क्या करना चाहिए। नीरा ने उसे आश्वस्त किया कि वह काव्या से बात करके पता लगाएगी कि उसके मन मे क्या है। अविनाश तो उसके जवाब से सन्तुष्ट होकर चला गया, पर नीरा के दिलो दिमाग में हलचल मच गई। यह सब सुनकर उसे अच्छा नही लगा था। अपनी स्कूटी उसने स्टैंड पर लगाई और कक्षा में जाकर काव्या के आने का इंतज़ार करने लगी।

काव्या आयी तो नीरा को देखकर प्रसन्न हो गयी। उसके न आने का कारण पूछा। वजह बताकर थोड़ी देर औपचारिक बातें होती रहीं फिर नीरा ने उससे आखिर पूछ ही लिया कि वह अविनाश के साथ किस हद तक गम्भीर है। उसके यह कहने पर की अच्छी मित्र है बस, इससे ज्यादा वह कुछ नही सोच सकती, क्योंकि उसके परिवार वाले काफ़ी पुरानी सोच रखते हैं। इस पर नीरा ने पूछा कि यदि ऐसा है तो उसने अपने प्रेम का इज़हार क्यों किया। उसके मुँह से यह सुनते ही काव्या भड़क गयी।

" अरे यार बात करते हुए थोड़ा सेंटी हो गई थी। बोल दिया आई लव यू, पर उसने भी तुझे आते ही ये बता दिया ?"

" वो परेशान है ।"

" ऐ लो, इसमें परेशानी की क्या बात है ? मैंने कौन सा उसे शादी करने को बोला है। "

" पर काव्या ऐसी बातें यूँ ही नही बोल दिया करते ।"

" एक बात बता नीरा, तुझे प्रॉब्लम क्या है ? क्या मै हर बात तेरी परमीशन लेकर बोला करूँ ?"

" तू तो बेकार ही नाराज़ हो रही है ।"

" बेकार क्यों, वो जब बात करेगा तो तेरे साथ करेगा, मुझे कार्ड गिफ्ट देगा तो तुझे भी देगा। मुझे लैटर लिखेगा तो तुझे भी लिखेगा। कभी अकेले में मैं कुछ कहूँ तो वो झट तुझे बताएगा, और तू पूछताछ करने चली आयेगी। "

" काव्या ।" नीरा उसके उखड़े स्वर को सुनकर हैरान रह गई।

" माना कि तूने हमारी फ्रेंडशिप करवाई, पर इसका मतलब ये तो नही कि अब हमेशा तेरे साये में ही जीना होगा मुझे ।" नीरा हैरानी से देखती रह गई उसे ।

" सॉरी , मुझे नही पता था कि तू इतना बुरा मान जाएगी। "

" बुरा मानने की बात है नीरा ।"

" ओके, चलती हूँ, देर हो रही है ।" कहकर वह उठ खड़ी हुई।

उसका मूड बिगड़ गया था। इसके बाद वह काव्या से दूरी बरतने लगी। काव्या भी उससे कटी सी रहने लगी। दोनों ही अब लड़कियों के अलग अलग समूहों में रहने लगी, बातचीत बिलकुल बन्द हो गई। कभी सामने पड़ने पर औपचारिकतावश मुस्कुरा देतीं। अविनाश ने उन दोनों को अलग-अलग देखा तो बात करने की कोशिश की, पर वह उसकी भी उपेक्षा करके चल दी। कई दिन इसी तरह गुज़रे, फिर एक दिन रास्ते में अविनाश ने उसे रोक लिया और कहीं चलकर बात करने पर दबाव डालने लगा। बहुत मना करने पर भी जब वह नही माना नीरा उसके साथ एक रेस्तराँ में आ गई।

वहाँ पहुँचकर उसने पहला प्रश्न यही किया कि उनदोनो सखियों के मध्य क्या हुआ है, वे दोनों अब साथ क्यों नही दिखतीं ? पहले तो नीरा ने टालने की कोशिश की फिर उसके बहुत ज़ोर देने पर बता दिया कि उस दिन उसके रिश्ते की गम्भीरता के विषय मे पूछ लेने पर काव्या बहुत बुरा मान गई थी। साथ ही उसे आगाह भी कर दिया कि काव्या उसे लेकर ज़रा भी गम्भीर नही , जिस दिन उनका आठ छूटेगा, वह पलटकर देखेगी भी नही। इस पर अविनाश ने बताया कि उसे भी यही शक था, इसीलिए उसने नीरा की मदद माँगी थी।

उसने यह भी बताया कि वह काव्या की ओर ज़रा भी आकर्षित नही था पर, उसके मित्रता प्रस्ताव को महज इसलिए स्वीकार कर लिया था कि उसके पास यह प्रस्ताव लाने वाली नीरा थी। और वह उसके लिये कुछ भी कर सकता था। यह सुनकर नीरा आश्चर्य में पड़ गई। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा, उसने एक नये दृष्टिकोण से अविनाश की ओर देखा तो उसकी आंखें बहुत कुछ कहती नज़र आयीं।

फिर अविनाश ने यह राज़ भी खोला की काव्या ने उससे अपने दिये गये पत्र व कार्ड्स वापस माँग लिये थे। अविनाश को यह बहुत नागवार गुज़रा था कि काव्या ने उसपर भरोसा नही किया था। नीरा को भी यह जानकर बहुत बुरा लगा था। अविनाश जैसा इंसान क्या इन चीजों का कोई गलत इस्तेमाल कर सकता था ?

अब वह मधुर और उसकी कुछ और सखियों के साथ रहने लगी थी। इस बात का दोनों ने खास ख्याल रखा कि कॉलेज में वे कोई बात आपस में न करें। पर अक्सर बातें और मुलाकातें होने लगीं। कभी रेस्तराँ, कभी उसके घर तो कभी अविनाश के घर। नीरा के घर सभी खुले विचारों के थे। उन्हें अविनाश को लेकर कोई समस्या नही थी , बल्कि सभी उसे बहुत पसंद करते थे। उधर अविनाश के यहाँ भी खुला माहौल था। अविनाश बहुत अच्छा कुक भी था, कभी- कभी साऊथ इंडियन डिश बनाता तो उसे घर ज़रूर बुलाता। नीरा हँसकर कहती

" जानते हो अवि तुम मुझे क्यों पसन्द हो, क्योंकि तुम कुकिंग बहुत अच्छी करते हो ।"

" और मुझे तुमने आज तक चाय भी नहीं बनाकर पिलाई नीर, कुछ सीख लो, वरना शादी के बाद तुम्हारा परिवार तो भूखा मरेगा। "

" क्या करना, मैं गृहकार्य में दक्ष इंसान से शादी करूँगी। मेरी शर्त यही होगी कि लड़का सुन्दर, सुशील और घर के काम काज करना जानता हो। कमाने का काम मैं कर लूँगी ।"

" किस बेचारे की किस्मत फूटेगी तुझसे शादी करके ।"

" एक बेचारे को तो आजकल परख रही हूँ ।"

" तुझे पता भी नहीं लगेगा कि परिंदा कब फुर्र हो गया ।"

" सबसे पहले परिंदे के पर ही कतर दूँगी, फुर्र होने की सोच भी न पाएगा ।"

नोकझोंक चलती रही और वक़्त तेजी से गुजरता गया। ऐसे ही स्नातक का अंतिम वर्ष भी निकल गया और मुलाकातें बहुत कम हो गईं। अविनाश ने कॉलेज छोड़ दिया और जीविका कमाने की फ़िक्र में लग गया। पिता बैंक मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे, और बड़ा भाई कुछ करता नहीं था। न जाने कैसी हीन भावना थी कि किसी के सामने नही निकलता था। हर तरह से कोशिश कर ली गई थी पर कोई फायदा न हुआ था।

नीरा ने एम ए के साथ टीचिंग भी शुरू कर दी। तभी कम्प्यूटर सीखने पर जोर दिया जाने लगा, तो उसने कम्प्यूटर कोर्स भी ज्वाइन कर लिया । समय की बहुत कमी हो गई थी। अब सम्पर्क एकदम से टूट ही गया था। दुनिया भर की बातें हुई थीं दोनों के मध्य, सिर्फ एक बात को छोड़कर। चाहत का इकरार किसी ने भी न किया था। नीरा चुप रही , जब अवि लड़का होकर भी कुछ नही कहता तो वह कैसे कहे। उधर अवि न जाने किस उलझन में था।

अब उसने उसके घर आना भी बंद कर दिया था। इस बीच वे लोग किराए का मकान छोड़कर अपने नए घर में शिफ्ट कर गए थे जो नीरा के घर से काफ़ी दूर था। अवि ने कभी उसे ज़ोर देकर आने को भी नही कहा था। क्या सचमुच बकौल ' अवि ' के परिंदा उड़ चुका था ? जब सोचती तो आँखें भीग जातीं। आखिर क्या है अवि के मन में, क्यों मुझसे दूर होता जा रहा है ? क्या उसकी जिंदगी में कोई और लड़की आ चुकी है ? ढेरों सवाल थे जिनका जवाब या तो अवि को पता था या भगवान को।

जब तन्हा बैठती बेचैनियां हावी होने लगती थीं। अवि के घर फ़ोन था पर नीरा के यहाँ नही लगा था। एक दो बार उसने पी सी ओ जाकर फ़ोन किया भी तो कभी आंटी और कभी भैया ने फ़ोन उठाया। औपचारिक बातें करके उसने फ़ोन रख दिया। बार बार फ़ोन करने में झिझक लगती थी, जबकि यह भी निश्चित न हो कि फोन उठाने वाला शख्स कौन होगा। अक्सर अवि के पुराने खतों का ढेर उठाकर बैठ जाती, उन्हें पढ़ती और पुरानी बातें याद करके सिसकती रहती । उसके ढेरों कार्ड्स, गिफ्ट्स , पर्ची पर लिखकर दी हुई शेर-ओ-शायरी, सब बड़ा सम्हालकर रखी हुई थीं।

उसे याद आता कैसे एक बार अवि के देरी से कॉलेज आने पर वह नाराज़गी में मुँह फेरकर उठ गई थी। अवि कई बार उसे देखकर मुस्कुराया तो उसने शिकायती अंदाज़ में घूर दिया। किसी के सामने वे बात करते नहीं थे, इसलिए हर बात चुपके से खतों के माध्यम से होती थी। नीरा की अभिन्न मित्र मधुर के सिवा किसी को उनके मध्य पनपे इस अनुरागात्मक सम्बन्ध की जानकारी नही थी। उस दिन अवि ने मधुर के हाथों एक छोटा सा कार्ड भिजवाया, जिसमे सिर्फ दो पंक्तियाँ लिखी हुई थीं

बार बार पढिये हमे, न फेंकिये इस कदर

हम आपके दोस्त हैं, कोई शाम का अख़बार नही

यह पढ़ते ही उसके होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कान छा गई। उसने निगाह उठाकर उसे देखा तो मानो वह निहाल हो गया। कितनी ही बार वह उसकी स्कूटी की डिकी में सुर्ख गुलाब अटका जाता, जिसे नीरा बड़े यत्न से किताबों में सहेज लेती। आहिस्ता आहिस्ता अवि कब उसके दिल की गहराइयों में बस चुका था उसे खबर भी न हुई थी। रिसता हुआ ज़ख्म नासूर का रूप लेने लगा था, और ज़ख्म देने वाले को खबर भी न थी। नीरा ने खुद को बहुत व्यस्त कर लिया था, ताकि यादें उसे परेशान न करें पर रात की तन्हाई में वे उसे जकड़ ही लेती थीं। पूरी रात आँखों में गुज़र जाती, तकिये में जज़्ब हुए ऑंसू कितनी ही बेचैन रातों के खामोश गवाह थे।

उस दिन छुट्टी थी और दिन काटना मुश्किल लग रहा था। बेचैनी के आलम में वह बेमकसद घर से निकल पड़ी। निगाह हर जगह उस एक चेहरे को ही ढूंढ रही थीं। काश कि वह कहीं से आ जाता

" नीर " एक पहचानी हुई आवाज़ आयी। पलटकर देखा तो बाईक पर अवि बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था, साथ में कोई दोस्त भी था ।

" व्हाट अ प्लेजेंट सरप्राइज़ अवि ! " ख़ुशी से उसकी आवाज़ थरथरा उठी। " आई मिस यू अ लॉट ।"

" मी टू, मीट माय फ्रेंड वासु ।"

" हैलो " वह मुस्कुराई।

" हाय, अवि ने बहुत कुछ बताया है आपके बारे में, मिलने की बड़ी इच्छा थी। चलिये आज मुलाकात भी हो गई। " वासु बोला। सुनकर बहुत अच्छा लगा।

" कहाँ जा रही हो ?"

" यूँ ही बस। "

" टाइम है ?"

" हाँ, बोलो न। "

" पास ही वासु का घर है, चलो वहाँ चलते हैं ।"

" हूँ, चलो। " एक पल को सोचकर वह बोली।

कितना कुछ था कहने को, पता नही कुछ कहने का मौका भी मिलेगा या नही। पर वह मुश्किल से हाथ आये इस मौके को छोड़ना नहीं चाहती थी। वासु के परिवार में सभी बहुत प्यार से उससे मिले। मालूम पड़ता था कि अवि के उनसे घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। नीरा सबसे हँस बोल तो रही थी पर उसकी बेचैनी चेहरे से साफ झलक रही थी। फिर एक -एक करके वे सभी उनदोनो को वहाँ अकेला छोड़कर चले गए।

" क्या सोच रही हो ?"

" अवि , क्या तुम्हे कभी मेरा ख्याल नही आता ? बिलकुल भुला ही दिया है तुमने। " कहते हुए उसका गला भर आया ।

" क्या तुम्हे लगता है कि ऐसा हो सकता है ?"

" तो क्या वजह है इस बेरुखी की ?"

" बेरुखी नही नीर, सिर्फ मजबूरी। जानता हूँ की तुम्हारे ज़हन में इस वक़्त ढेरों सवाल हैं। पर फ़िलहाल मैं जवाब देने की स्थिति में नही हूँ ।"

" जवाब के लिए कब तक इंतजार करूँ अवि ?"

" पता नहीं ।" उसने दृष्टि चुराते हुए जवाब दिया।

" अरे तुम्हारा तो जन्मदिन आ रहा है दो दिन बाद, बताओ कहाँ ट्रीट दे रही हो ?'

" बोलो कहाँ चाहिए ?"

" चलो उस दिन हम ढेर सारा वक़्त साथ गुज़ारेंगे, ओके ? पहले एक मूवी देखेंगे, फिर लंच करेंगे ।"

" ओके ।" दिल ख़ुशी से पागल हो उठा।

विदा लेकर घर आयी तो दो दिन का इंतज़ार करना भारी पड़ने लगा। कब वो घड़ी आयेगी जब वह प्रिय व्यक्ति उसके पास होगा। ढेरों बातें होंगी,गिले- शिकवे , बहुत कुछ था कहने सुनने को। सदियों के समान एक एक पल गुज़रा। जन्मदिन पर बहुत उत्साहित थी वह। बहुत समय बाद उसने खुद को संवार कर आईने में देखा। अपने ही प्रतिरूप पर मुग्ध हो उठी। नए गोल्डन यलो कलर के सूट में बहुत खूबसूरत लग रही थी।

बाहर निकलने को हुई तो फिर से आईना देखा। नही, ऐसे नहीं जाऊँगी मैं। उसने सोचा, फिर जाकर ब्लू जीन्स और नेट का सुंदर सा क्रीम कलर का टॉप पहन लिया।

" अरे ! अच्छा भला नया सूट पहना था फिर उसे उतारकर पुराने कपड़े क्यों पहन लिए ?" भाभी ने टोक दिया।

" यूँ ही, बस मन नही किया। " कहते हुए वह बाहर निकल गई। हालाँकि उसे खुद को भी वजह समझ नहीं आ रही थी।

पिक्चर हॉल पहुँची तो अवि उसके इंतज़ार में बाइक पर बैठा था। उसे सर से पाँव तक निहारा फिर कुछ अलग अंदाज़ में मुस्कुरा दिया।

" हैप्पी बर्थडे "

" थैंक्स, ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हो ?"

" ऐसे मतलब ?"

" तुम्हारी ये स्माइल कुछ कह रही है, बहुत राज भरी लग रही है। "

" हूँ, लीव इट ।"

" क्यों ? बताओ न क्या बात है ?"

" पता है आने से पहले मैं शेव कर रहा था तो ख्याल आया की तुम आज क्या पहनकर आओगी " वह एक पल को ठहरा " फिर ख्वाहिश हुई की तुम ब्लू जीन्स और क्रीम टॉप में आओ, इसमें तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो ।"

" ओह " उसके स्वर में हैरानी थी " तुम्हे हैरानी होगी अवि, कि मैंने आने के लिए दूसरी ड्रैस पहनी थी । फिर न जाने क्यों उसे पहनकर आने को दिल नहीं किया और मैंने ये कपड़े डाल लिए। "

" देखा, इसे कहते हैं टेलीपैथी। "

" हाँ सचमुच , उस दिन भी मैं तुमसे मिलने बहुत बेकरार थी, यूँ ही घर से निकल पड़ी,और देखो रास्ते में तुम मिल गए ।"

" हाँ नीर, हमारा रिश्ता बेमिसाल है ।" अब वे दोनों सिनेमा हॉल में बैठ चुके थे।

" फिर भी इतनी तकलीफ़ मेरे हिस्से में क्यों है अवि ? इस कदर बेचैनी, मेरी जान ले लेगी। "

" खामोश, ऐसी बाते मत करो नीर, ये दिन भी गुज़र जाएंगे ।"

" हूँ, वक़्त कब रोके रुका है, निकल ही जाएगा " उसने निःश्वास छोड़ी।

" आज इतनी नाउम्मीदी भरी बातें मत करो, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। अपना बर्थडे गिफ्ट नहीं देखोगी ?" कहते हुए उसने एक नाज़ुक सी अँगूठी निकाली, जिसमे बीच में सुर्ख गार्नेट और आसपास जर्किन के नग चमक रहे थे। आहिस्ता से उसकी अनामिका में पहना दी।

" सो ब्यूटीफुल। "

" खास तौर पर तुम्हारे लिए ऑर्डर देकर बनवाई थी ।"

" आई लव इट ।"

" और मुझसे ?" उसने शरारती अंदाज़ में पूछा

" तुम इस लायक नही। " वह कृत्रिम गुस्से से बोली।

" सच में ।" अवि ने उदास होकर कहा। फिर खामोश हो गया।

" अरे तुम तो उदास हो गए, मजाक कर रही थी यार, हर बात को यूँ दिल पर नहीं लेते। "

" नही ,सच तो है नीर। " हाथों में हाथ लिए बैठे रहे पर ख़ामोशी पसर गई थी। डबडबाई आँखों से वह स्क्रीन पर आँखें जमाए रही, अवि न जाने किन ख्यालों में गुम था। इंटरवल के बाद इधर उधर की बातें होती रहीं, पर मन की बात कहने से दोनों बचते रहे। दिन फिर पहले की तरह ही गुज़रने लगे, रातें सिसकती रहीं, कितने ही अनसुलझे सवाल लिए। जवाब कौन देता। घर में अब उसके लिए वर की तलाश तेज हो गई। चाहकर भी वह कुछ न कह पाई। आखिर किस बिना पर मना करती सबको, अवि ने आज तक उससे कुछ नहीं कहा था। काश की कभी बताता की उसके दिल में क्या है, भविष्य को लेकर क्या सोचता है वह।

एक दिन विवाहिता बड़ी बहन जो आगरा में ही रहती थीं, घर आयीं तो उसे बताया की उन्हें एक दिन रास्ते मे अवि मिला था, और उसने बोला था कि नीरा को उसे कॉल करने को बोलियेगा। पर वह उसे यह बात बताना भूल गई थीं।

सुनकर वह बेचैन हो उठी। कुछ दिन पहले ही उसके घर में फ़ोन लग गया था। बड़ी बेकरारी से दिन गुज़ारा उसने। रात में मौका मिलते ही अवि का नम्बर डायल किया।

" हैलो " उस तरफ फिर से उसकी माँ थीं।

" नमस्ते आंटी, नीरा बोल रही हूँ। "

" नमस्ते बेटा, कैसी हो ? अब तुम न तो घर आती हो और न ही फोन करती हो ।"

" जी मैं ठीक हूँ, टाइम ही नहीं मिलता। पढ़ाई, टीचिंग, इन सबमे पूरा दिन कहाँ जाता है पता नहीं लगता। "

" अच्छा है बिज़ी हो, खाली दिमाग शैतान का घर होता है। "

" जी, अवि घर पर है आंटी ?"

" नही बेटा, जयपुर गया है किसी ज़रूरी काम से ।"

" जी "

" कोई खास बात ?"

" नही, बस यूँ ही सोचा हाल चाल लूँ ।" कहकर उसने टाल दिया, पर मन में बड़ी कोफ़्त हुई कि जब फ़ोन करो कभी नही मिलता। मन फिर मायूस हो गया।

" बहुत हो गया अब मैं भी भूल जाऊँगी उसे। जब उसे मेरी कोई परवाह नही तो मैं ही क्यों पागल हो रही हूँ। आज से मैं उसे अपनी ज़िंदगी से निकाल फेंकती हूँ ।" वह बड़बड़ाने लगी। उसने अवि के सारे ख़त, तस्वीर और उपहार जला दिए, किताबों में सूखे हुए गुलाब के फ़ूल मसलकर चूर चूर कर दिए और सारी रात रोते हुए गुज़ार दी।

कुछ दिन बाद ही करण उसे देखने के लिए आये और दोनों पक्षों की सहमति से शादी तय कर दी गई। करण मुरादाबाद के रहने वाले थे अतः तय हुआ की शादी वहीं जाकर की जाएगी। अपने परिचितों के लिए सगाई व प्रीतिभोज का कार्यक्रम आगरा में करने का निर्णय लिया गया। शादी में ज्यादा दिन नही थे अतः तेजी से तैयारियाँ होने लगीं। खरीदारी और सबको निमंत्रण देने के काम में दिन कैसे उड़े जा रहे थे पता ही न लगा। अवि को बुलाए या न बुलाए वह कुछ निश्चय नही कर पा रही थी, आखिरकार सगाई से एक दिन पहले उसने अवि को निमंत्रित करने का फैसला ले लिया। खाने से निबटकर उसने धड़कते दिल से फ़ोन लगाया।

" हैलो " इस बार आवाज़ अवि की थी।

" हैलो ... अवि ?"

" हाँ नीर !" उसने हैरानी से पूछा

" हूँ "

" कितने महीनों से तुम्हारे फ़ोन का इंतज़ार कर रहा था। तुमने किया क्यों नही ?"

" किया तो था। "

" कब ?"

" तुम्हारा मैसेज काफी लेट मिला मुझे, दीदी भूल गई थीं। जब याद आया तो बताया। मैंने उसी दिन फ़ोन किया था, पर हमेशा की तरह फोन पर तुम नही थे, आंटी से बात हुई थी। तुम जयपुर गए थे। "

" और माँ शायद बताना भूल गई होंगी कि तुमने कॉल की थी ।"

" कोई ज़रूरी काम था क्या ?"

" हाँ, तुमने भविष्य के लिए कुछ सोचा नीर ?"

" क्या सोचूँ ?"

" अब मैं सैटल हो गया हूँ , अपना बिज़नेस कर लिया है। इतना कमाने लगा हूँ कि परिवार की जरूरतें पूरी कर सकूँ । "

" काँग्रेट्स ।"

" विल यू मैरी मी ?" एक वज्र सा गिरा और नीरा ने खुद को लहु लुहान महसूस किया। " आय लव यू सो मच ।"

" तुम ये बात आज कह रहे हो अवि !" वह कराह उठी " कबसे तुम्हारे मुँह से यह सुनने के लिए तरस रही थी मैं। " वह सिसक पड़ी।

" मैं तब तक तुमसे कुछ नही कहना चाहता था जब तक मेरे पाँव के नीचे पुख़्ता ज़मीन न हो। आज हालात इस क़ाबिल हो चुके हैं कि मैं बेखटके अपने दिल की बात कह सकता हूँ। "

" क्या फ़ायदा अब ? कल मेरी इंगेजमेंट है ।"

" ऐसा मज़ाक मत करो नीर, मैं बर्दाश्त नही कर पाउँगा ।"

" तुम्हे बर्दाश्त भी करना पड़ेगा और इस हक़ीक़त को कुबूल भी करना पड़ेगा। "

" मैंने तुम्हे इनवाइट करने को ही फ़ोन किया था। कल दिन में मेरी रिंग सेरेमनी है और एक सप्ताह बाद शादी ।"

" तुम सच बोल रही हो ?" उसे अब भी विश्वास नही हो रहा था।

" मुझे झूठ बोलकर क्या मिल जाएगा अवि ? कल आ रहे हो न ?"

" नहीं "

" क्यों ?"

" मैं कैसे आ सकता हूँ "

" क्या दिक्कत है ?"

" तुम्हे अपने सामने किसी और का होते कैसे देख पाउँगा ?"

" जैसे मैं खुद को ज़िन्दगी से दूर होते हुए देखूँगी, जिस आग से मुझे गुज़रना होगा उसकी थोड़ी सी तपिश तुम भी तो बर्दाश्त करके देखो न। " वह सुबक पड़ी, और फ़ोन रख दिया।

सिसकियों का स्वर सुनकर माँ और भाभी भी उसके पास आ गए ।

" क्या हुआ नीरा ?" भाभी ने चिंतित स्वर में पूछा। काफी देर तक वह रोती रही फिर खुद को संयत करके मुश्किल से कहा ।

" अभी अवि को फ़ोन किया था मैंने, उसने आज मुझे प्रपोज़ कर दिया। " सुनकर सब सन्न रह गए।

" अब ?" भाभी का स्वर कहीं दूर से आता लगा।

" अब क्या हो सकता है ? क्या कर सकती हूँ मैं ? कार्ड बंट चुके हैं,गेस्ट आने लगे, सारी तैयारी हो चुकी है। क्या है अब मेरे हाथ में ?" माँ के गले लगकर वह रोती रही। कोई कुछ न कह सका। सच ही तो था, अब कुछ भी करने का वक़्त निकल चुका था।

" अगर उसके मन में कुछ था तो कम से कम कुछ कहता तो, हम इंतज़ार कर लेते। पर उसने कभी बताया ही नही कि वह क्या चाहता है ।"

" मुझसे पूछिये कि क्या गुज़री है मुझ पर इन वर्षो में। हर पल इंतज़ार रहा कि वह कुछ बोले पर उसने कभी कुछ नहीं कहा ।"

सगाई की रस्म अदा हो गई पर इतनी विचलित दुल्हन मधुर पहली बार देख रही थी। उसकी मनोदशा देखकर मधुर को भी कुछ समझ नही आ रहा था कि कैसे अपनी सखी का दर्द कम करे। उसकी जलन शांत करने में हर अपना असमर्थ था। हालाँकि मधुर ने उसे सुझाव भी दिया कि चाहे तो ये रिश्ता तोड़ दे और अवि को अपना ले। पर उसने इंकार कर दिया, अपने परिवार पर बदनामी का एक भी छींटा उसे गवारा नही था। जानती थी कि अगर ऐसा हुआ तो कितनी बातें बनेंगी। उसे दर्द मंजूर था पर खानदान के नाम पर धब्बा नही।

उनलोगों की मुरादाबाद रवानगी से एक दिन पहले अवि आया। बढ़ी हुई शेव, लाल आँखेँ अस्त व्यस्त कपड़े। स्थिति नाज़ुक देख सबने उन्हें बात करने को अकेला छोड़ दिया।

" कैसी हो ?"

" कैसा होना चाहिए ? देखो इन हाथों में लगी हुई मेहँदी, जिसमे तुम्हारा नाम नही। कल मैं सजूंगी, पर किसी और के लिए, तुम्हारा नाम मेरी ज़िंदगी से खुरचकर निकाल दिया जाएगा। अब किसी दिन ये आस नही रहेगी कि शायद आज तुमसे मुलाकात हो जाए ।" अवि की आँखें भी गीली हो गईं।

" तुमने क्यों कुछ नहीं कहा ? क्यों इतनी देर लगा दी ? एक बार बोलते तो, मैं सारी उम्र तुम्हारे इंतज़ार में गुज़ार देती। तुम क्यों चुप रहे ?" उसने अवि को झिंझोड़ दिया।

बहते आँसुओ को पोंछकर उसने नीरा को सीने से लगा लिया। भावनाओं का आवेग नही थम रहा था। उसने अपनी हथेलियों में नीरा का चेहरा थामा और अश्रुसिक्त पलकों पर चुम्बन अंकित कर दिया।

" शांत हो जाओ नीर, इन यादों को दफनाकर नई जिंदगी की तैयारी करो ।" फिर उठकर बाहर निकल गया।

वह अब भी सुबक रही थी। इतने वर्ष गुज़र गए अपनी गृहस्थी में रमे हुए पर कई बार यादें उसे बेतरह बेचैन कर देती थीं। बड़े भाई का तबादला दिल्ली हो चुका था और आगरा से उसका सम्बन्ध खत्म सा ही हो गया था। पर आज मधुर की ज़िद ने उसे फिर उस शहर में जाने को विवश कर दिया था जिसके साथ दर्द जुड़ा हुआ था । दरअसल मधुर को अंदाज़ा ही नहीं था कि इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद भी उसके सीने में चिंगारी बनकर वो यादें आज भी धधक रही हैं।

" हाय नीरा " उसे देखकर मधुर चहक पड़ी

" कबसे इंतज़ार कर रही थी तेरा, मुझे यकीन था कि तू मुझे निराश नही करेगी।"

" तुझे इंकार कैसे करती। " वह मुस्कुराई। मधुर उसका हाथ पकड़कर अंदर ले गई। अधिकतर रिश्तेदार आ चुके थे , घर में खूब गहमा गहमी दिख रही थी।

" नीरा देखना तुझे बहुत अच्छा लगेगा, जितने भी फ्रेंड्स इस शहर में हैं आज सबसे मुलाकात हो जाएगी तेरी। आज फिर कॉलेज की यादें ताजा हो जाएंगी ।" वह जोश में बोलती जा रही थी पर नीरा का दिल आशंका से सहम गया ।

" कौन कौन आ रहा है मधुर ?" धड़कते दिल से उसने पूछा।

" एकता, श्वेता, प्रियंका, प्रदीप "

" और ... ?"

" और किसे बुलाना था ?" अनजान बनते हुए मधुर बोली, फिर शरारत से हँस पड़ी। उत्तर में नीरा खामोश रह गई।

" लगता है कोई चिंगारी अभी भी दबी पड़ी है सीने में " उसने टटोलना चाहा।

" मैंने उसे जूनून की हद तक चाहा था मधुर। वो ज़ख्म आज भी नासूर बनकर टीस देता है मुझे। "

" मुझे लगा था कि वक़्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है, तू अब घर में रम चुकी है, तो वो निशान अब बाकी नही रहे होंगे ।" मधुर किसी आशंका में डूब गई।

" है इश्क़ नही आसान, बस इतना समझ लीजिए इक आग का दरिया है और डूबकर जाना है " मधुर के चेहरे पर भी अफ़सोस के भाव उभर आये थे।

दिन भर आपा धापी में गुज़र गया। शाम को सभी सहपाठी आ चुके थे,उनसे मिलकर बहुत खुशनुमा अहसास हो रहा था। रह रहकर ठहाके लग रहे थे, कितनी ही यादें ताजा हो गई थीं। लगता था कि वक़्त ठहरा हुआ है। अठारह वर्ष का लंबा अंतराल कभी गुज़रा ही नही था। जयमाला हो रही थी कि तभी गहरे नीले रंग के सूट और सुर्ख टाई में अवि आता नज़र आया। अब उसने फ्रेंचकट दाढ़ी रख ली थी, आँखों पर नज़र का चश्मा भी था। आज भी वह बहुत हैंडसम लग रहा था।

नीरा की आँखों में पलभर को एक चमक सी उभरी , फिर ग़म के बादलों ने उसे घेर लिया। वह झट से उसकी तरफ पीठ फेरकर खड़ी हो गई। मुश्किल से सम्हाला हुआ दिल फिर से मचलने लगा। उसे देखकर जी चाहा कि सब कुछ भूल जाए और दौड़कर उसके पास चली जाए। अवि की नज़रें बेचैनी से उसे तलाश रही थीं। आखिर फिरोज़ी रंग की पटोला प्रिंट की सिल्क साड़ी में उसकी और पीठ किये नीरा को उसने तलाश ही लिया । उसी के लिए तो आज वह बरसों बाद किसी फंक्शन में आया था। अब कैसी दिखती होगी वह ? जानने की उत्सुकता थी पर वह जल्दी में न था।

चुपचाप बैठ गया। कई सहपाठी उसे नज़र आये पर किसी से बात करने का दिल नही किया। थोड़ी देर बाद नीरा पलटकर मधुर के साथ कहीं चल दी। शरीर थोड़ा भर गया था, चेहरे पर बढ़ती वयस की परिपक्वता दिख रही थी। बालों का फ्रेंच नॉट बना रखा था। हल्का मेकअप, गले में मोतियों की माला, मोती के ही टॉप्स और कंगन में उसका सादा रूप अवि को अपनी ओर खींच रहा था । वह जब तक दिखी आँखों में गहरी चाह लिए वह उसे देखता रहा।

" नीरा , अविनाश तुझसे बात करना चाहता है। " मधुर उसके कान में फुसफुसाई।

" नहीं, मैं उससे मिलना नहीं चाहती। " वह व्याकुल होकर बोली ।

" क्यों ? क्या हर्ज है ? "

" तू समझ सकती है। "

" इतना बड़ा फैसला लेने वाली अब इतने साल बाद इतनी कमजोर क्यों पड़ रही है ?"

" मैं सचमुच कमज़ोर पड़ रही हूँ मधुर, प्लीज़ उसे मना कर दे ।"

" कैसे मना कर दूँ ? कोई वाजिब रीज़न भी तो हो।, तू एक बार बात कर ले, तुझे भी अच्छा लगेगा, यकीन कर ।" मधुर ने जोर दिया।

" उससे मुलाकात के डर से ही मैं आगरा आना नही चाहती थी। मेरे पूछने पर भी तूने ये नहीं बताया कि तूने उसे इनवाइट किया है ।"

" मुझे लगा था कि इतने समय बाद तू जरूर उसे देखना चाहेगी। सिर्फ तेरी वजह से ही उसे बुलाया था। वो भी एक कॉल पर चला आया। "

" ज़रा सोच, क्यों आया है वो, तेरे लिए ही न ।" वह मौन रही, मधुर उसका हाथ पकड़कर उसे एक टेबल तक ले आयी जहाँ अवि उसका इंतज़ार कर रहा था।

" थैंक्स अवि, मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरे एक फोन पर आ गए ।"

" मुझे आना ही था मधुर ।" वह सिर्फ नीरा को देखे जा रहा था।

" कैसी हो नीर ?"

" अच्छी हूँ। "

" तुम लोग बात करो, मैं चलती हूँ " मधुर ने उन्हें अवसर देते हुए कहा, अवि कृतज्ञता पूर्वक उसकी ओर मुस्कुराया ।

" खुश तो हो न ?"

" हाँ, बहुत "

" कभी भूल भटके मेरा ख्याल आता है, या बिलकुल ही भुला दिया ?" वह मुस्कुराया।

" क्यों आयेगा ? भरी पुरी ज़िन्दगी है, मेरा घर, पति, बच्चे। अब इन बेवकूफियों के लिए वक्त नही अवि। वो सब छोड़कर बहुत आगे निकल आयी हूँ। " मोबाईल से खिलवाड़ करते हुए वह बोली। उसकी आँखों में देखने की हिम्मत नही पड़ रही थी नीरा की।

" तुम तो बड़ी बेमुरव्वत निकलीं, एकदम ही भुला दिया " अवि की नज़र उसकी अनामिका पर पहनी हुई गार्नेट और जर्किन वाली अँगूठी पर जमी हुई थी। उसकी निगाहों का अहसास होते ही नीरा ने अँगूठी छुपाने का निरर्थक प्रयास किया।

" और क्या, तुम क्या सोच रहे थे कि तुम्हारी याद दिल से लगाए ऑंसू बहा रही हूँगी, इतनी मूर्ख तो मैं कभी नही रही। "

" चलो अच्छा है खुश रहो, आबाद रहो। "

" तुम सुनाओ अवि, शादी तो कर ही ली होगी। " मन में एक अजीब सी ख्वाहिश पैदा हुई। उसने अब भी अवि की ओर नही देखा।

" हाँ, तुम चली गईं तो मैं किसके इंतज़ार में बैठा रहता ।" छनाक से जैसे उसका दिल टूट गया, हालाँकि वजह वह न समझ सकी। आखिर क्यों वह सुनना चाहती थी कि वह आज भी उसकी यादें सीने से लगाए बैठा है।

" बहुत खूबसूरत है मेरी बीवी, देखोगी तो रश्क कर उठोगी ।"

" लेकर क्यों नही आये ? मैं भी मिल लेती। " उसकी उँगलियाँ लगातार मोबाइल से खिलवाड़ करने में व्यस्त थीं।

" मैं उसे सबकी निगाह से बचाकर रखता हूँ, कहीं कोई नज़र न लगा दे ।"

" बड़े पज़ेसिव हो ।"

" हूँ, एक बार धोखा खा चुका हूँ न। "

" हूँ , और बच्चे ?"

" हाँ, हैं न, एक बेटा और एक बेटी। " हर स्वीकारोक्ति उसे आघात पर आघात दे रही थी।

" गुड , अब चलूँ मैं ? " उसने इजाजत लेते हुए पूछा। दृष्टि अब भी मोबाइल की स्क्रीन पर जमी हुई थी।

" नीर, क्या मेरी प्रेजेंस इतनी भारी लग रही है तुम्हे कि तुमने एक बार भी नज़र उठाकर मेरी तरफ देखा तक नहीं ।" उसके स्वर में पीड़ा झलक रही थी।

" जिस गली जाना नही ,उसका रास्ता भी क्यों तकना ? "

" ओके, प्रॉमिस, अब कभी तुम्हारे सामने नही आऊँगा ।"

" बाय । " बिना देखे ही वह बोली। दुःख के भाव लिए अवि पलटकर चल दिया। वह आँखों में उमड़ आये आँसुओ को रोकने की कोशिश करने लगी।

" अविनाश कहाँ गया नीरा, अभी तो यहीं था ?" प्रदीप ने पूछा।

" चला गया। "

" अरे ! इतनी जल्दी !" प्रदीप हैरान हो गया।

" बीवी की याद आने लगी होगी, लेकर जो नही आया था। "

" पर याद करने के लिए एक अदद बीवी भी तो चाहिए। "

" मतलब ?"

" अरे शादी ही कहाँ की है उसने ।" प्रदीप बोला।

" क्या ?" वह हैरान हो गई, दिल में एक अजीब सन्तुष्टि सी हुई, पर अगले ही पल एक गहरी टीस जैसे चुभती चली गई।

" तुम्हे नही पता ?"

" नहीं, मुझे कैसे पता लगेगा ?"

" चल नीरा, कुछ खाकर आएं, अब तो पेट में चूहे कूद रहे हैं " श्वेता बोली।

सभी खाने की ओर बढ़ गए। तभी मधुर आ गई, उसे एक तरफ ले जाकर धीरे से फुसफुसाई

" अविनाश का मैसेज आया है नीरा " कहते हुए उसने अपना मोबाइल उसके सामने कर दिया, नीरा पढ़ने लगी

' मधुर, अपनी सहेली से कहना की अब तो गार्नेट वाली अँगूठी उतारकर रख दे, वरना गलतफहमी होने लगती है कि वो अपनी खुशियों की झूठी दास्तान सुना रही है । '

पढ़ते ही उसने एक कसक के साथ अँगूठी को भींच लिया। " कभी नही, इस शरीर में प्राण रहते कभी नही ।"